Pashupatastra Stotra: जब किसी भी चीज से लाभ ना हो तो पाशुपतास्त्र स्तोत्र के पाठ से अवश्य लाभ होता है

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पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) की शक्ति और प्रभाव अतुलनीय है। जब किसी भी प्रयोग से लाभ ना हो रहा हो तो पाशुपतास्त्र स्तोत्र का पाठ करने से मनुष्य को अवश्य ही लाभ होता है। असहनीय दुख और पीड़ा, असाध्य रोग और मराणांतक कष्ट से मुक्ति के लिये पाशुपतास्त्र स्तोत्र का पाठ करना श्रेष्ठ है। इससे भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं और साधक को उनकी कृपा प्राप्त होती है। पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) का पाठ कैसे करें? और इसको करने क्या लाभ होता है? जानने के लिये पढ़ें…

Pashupatastra Stotra
पाशुपतास्त्र स्तोत्र

पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) का वर्णन अग्नि पुराण के 322वें अध्याय में मिलता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक किसी भी बड़ी से बड़ी परेशानी और पीड़ा से मुक्त हो सकता है। यह अमोघ स्तोत्र अत्यन्त ही प्रभावशाली और शीघ्र परिणाम देने वाला है। विधि अनुसार इस स्तोत्र का प्रयोग करने से साधक की हर मनोकामना की पूर्ति होती है। जब कोई भी प्रयोग काम नही आ रहा हो तब इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक असाध्य रोग और असहनीय पीड़ा से शीघ्रता से मुक्त हो जाता है।

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How To Recite Pashupatastra Stotra?
पाशुपतास्त्र स्तोत्र का पाठ कैसे करें?

यह एक अमोघ स्तोत्र है इसका प्रयोग किसी योग्य गुरू के निर्देशन में ही करें अन्यथा परिणाम विध्वंसक भी हो सकता है। यह एक स्तोत्र एक अमोघ अस्त्र के समान है।

  • पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) प्रतिदिन नियमित रूप से सुबह या शाम के समय को एक जाप करने से साधक की समस्त बाधाओं का नाश हो जाता है। कार्य सिद्धि में आने वाले विघ्न दूर होते हैं।
  • 108 बार जप करने पर समस्त विपत्तियों का नाश होता है। साधक हर जगह विजयी होता है। युद्ध में शत्रु पर विजय प्राप्त करता है ।
  • पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) के मंत्र पाठ के साथ घी और गुग्गल से हवन करने से मनुष्य को असाध्य रोगों से मुक्ति मिलती है और मुश्किल से मुश्किल कार्य भी पूर्ण होता है।
  • पाशुपतास्त्र स्तोत्र के मंत्रो का 1008 बार पाठ करने के उपरांत प्रति दशांश हवन, तर्पण एवं मार्जन करें। यथाशक्ति ब्राह्मण को भोजन करायें तो निश्चित रूप अभीष्ट फल की सिद्धि होती है।

Benefits Of Pashupatastra Stotra
पाशुपतास्त्र स्तोत्र के लाभ

पाशुपतास्त्र स्तोत्र (Pashupatastra Stotra) की शक्ति असीम है। यह एक अमोघ स्तोत्र है। जब कोई भी उपाय काम ना आ रहा हो तो इस स्तोत्र के पाठ से लाभ अवश्य होता है। इस स्तोत्र का पूर्ण भक्ति – भावना के किसी योग्य गुरू के निर्देशन में साधना करने से कोई असाध्य कार्य भी सिद्ध हो सकता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से

  • असाध्य और भयंकर रोग से ही मुक्ति मिलती है।
  • बड़े से बड़े कष्टों का निवारण होता है।
  • कार्य सिद्धि में आने वाले विघ्न दूर होते है।
  • विवाह संबंध में आने वाले परेशानियाँ दूर होते है और शीघ्र विवाह के योग बनते है।
  • साधक हर स्थान पर विजयी होता है। चाहें युद्ध हो या कोई अन्य अवसर साधक हमेशा अपने विरोधियों को पराजित करता है।
  • समस्त क्लेशो की शांति हो जाती है ।
  • साधक की हर मनोकामना पूर्ण होती है।

Pashupatastra Stotra Lyrics

पाशुपतास्त्र स्तोत्र

विनियोग – ॐ अस्य पाशुपतास्त्रशांतिस्तोत्रस्य भगवान वेदव्यास ऋषि: अनुष्टुप छ्न्द: श्रीसदाशिवपरमात्मा देवता सर्वविघ्नविनाशार्थे पाठे विनियोग:।

मंत्र पाठ:

ॐ नमो भगवते महापाशुपताय, अतुलबलवीर्यपराक्रमाय, त्रिपन्चनयनाय, नानारुपाय, नानाप्रहरणोद्यताय, सर्वांगडरक्ताय, भिन्नांजनचयप्रख्याय, श्मशानवेतालप्रियाय, सर्वविघ्ननिकृन्तनरताय, सर्वसिध्दिप्रदाय, भक्तानुकम्पिने असंख्यवक्त्रभुजपादाय, तस्मिन् सिध्दाय, वेतालवित्रासिने, शाकिनीक्षोभजनकाय, व्याधिनिग्रहकारिणे पापभन्जनाय, सूर्यसोमाग्नित्राय विष्णु कवचाय, खडगवज्रहस्ताय, यमदण्डवरुणपाशाय, रूद्रशूलाय, ज्वलज्जिह्राय, सर्वरोगविद्रावणाय, ग्रहनिग्रहकारिणे दुष्टनागक्षय कारिणे ।

ॐ कृष्णपिंग्डलाय फट । हूंकारास्त्राय फट । वज्र हस्ताय फट । शक्तये फट । दण्डाय फट । यमाय फट । खडगाय फट । नैऋताय फट । वरुणाय फट । वज्राय फट । पाशाय फट । ध्वजाय फट । अंकुशाय फट । गदायै फट । कुबेराय फट । त्रिशूलाय फट । मुदगराय फट । चक्राय फट । पद्माय फट । नागास्त्राय फट । ईशानाय फट । खेटकास्त्राय फट । मुण्डाय फट । मुण्डास्त्राय फट । काड्कालास्त्राय फट । पिच्छिकास्त्राय फट । क्षुरिकास्त्राय फट । ब्रह्मास्त्राय फट । शक्त्यस्त्राय फट । गणास्त्राय फट । सिध्दास्त्राय फट । पिलिपिच्छास्त्राय फट । गंधर्वास्त्राय फट । पूर्वास्त्रायै फट । दक्षिणास्त्राय फट । वामास्त्राय फट । पश्चिमास्त्राय फट । मंत्रास्त्राय फट । शाकिन्यास्त्राय फट । योगिन्यस्त्राय फट । दण्डास्त्राय फट । महादण्डास्त्राय फट । नमोअस्त्राय फट । शिवास्त्राय फट । ईशानास्त्राय फट । पुरुषास्त्राय फट । अघोरास्त्राय फट । सद्योजातास्त्राय फट । हृदयास्त्राय फट । महास्त्राय फट । गरुडास्त्राय फट । राक्षसास्त्राय फट । दानवास्त्राय फट । क्षौ नरसिन्हास्त्राय फट । त्वष्ट्रास्त्राय फट । सर्वास्त्राय फट । नः फट । वः फट । पः फट । फः फट । मः फट । श्रीः फट । पेः फट । भूः फट । भुवः फट । स्वः फट । महः फट । जनः फट । तपः फट । सत्यं फट । सर्वलोक फट । सर्वपाताल फट । सर्वतत्व फट । सर्वप्राण फट । सर्वनाड़ी फट । सर्वकारण फट । सर्वदेव फट । ह्रीं फट । श्रीं फट । डूं फट । स्त्रुं फट । स्वां फट । लां फट । वैराग्याय फट । मायास्त्राय फट । कामास्त्राय फट । क्षेत्रपालास्त्राय फट । हुंकरास्त्राय फट । भास्करास्त्राय फट । चंद्रास्त्राय फट । विघ्नेश्वरास्त्राय फट । गौः गां फट । स्त्रों स्त्रौं फट । हौं हों फट । भ्रामय भ्रामय फट । संतापय संतापय फट । छादय छादय फट । उन्मूलय उन्मूलय फट । त्रासय त्रासय फट । संजीवय संजीवय फट । विद्रावय विद्रावय फट । सर्वदुरितं नाशय नाशय फट ।

यथा- ॐ नमो भगवते महापाशुपताय नम: स्वाहा एवं ॐ कृष्णपिंगलाय फट् स्वाहा।

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