भारत के प्राचीनतम और प्रसिद्ध मंदिर जहाँ दर्शन और पूजा-अर्चना करने से शीघ्र विवाह होता है।
हिंदु धर्म में विवाह को जीवन का महत्वपूर्ण संस्कार माना जाता है। हर माता-पिता अपनी संतान के लिये योग्य जीवनासाथी की इच्छा रखते है। कन्या का विवाह सुयोग्य वर के साथ हो और पुत्र को सुंदर और सुशील पत्नी मिले यही हर माता-पिता की इच्छा होती है। लड़के-लड़की भी अपने लिये मनचाहा जीवनसाथी चाहते है। लेकिन कई बार विवाह में अड़चने आने लगती है और बहुत कोशिशों के बावजूद भी सफलता नही मिलती।
यदि किसी के जीवन में इस प्रकार की समस्या आ रही हो जैसे
लड़की की शादी के लिये योग्य लड़का नही मिल रहा हो
या
लड़के के लिये योग्य लड़की नही मिल रही हो
या
जन्मकुण्ड़ली में कोई दोष हो
या
बात बनते-बनते बिगड़ जाती हो
या
विवाह मे देरी हो रही हो
या
कोई अन्य अड़चन आ रही हो तो इन समस्याओं का निवारण करने के लिये बहुत सरल सा उपाय है। हमारे देश में कुछ प्राचीन मंदिर है जिनमें जाकर दर्शन एवं पूजा-अर्चना करने से विवाह में आने वाली सभी रूकावटें अपने आप दूर हो जाती है। आप का काम स्वत: ही बनता जायेगा।
ऐसी मान्यता है कि इन मंदिरों में दर्शन और पूजा-अर्चना करने से विवाह में आने वाली परेशानियाँ दूर हो जाती है और ईश्वर की कृपा से शीघ्र विवाह हो जाता है। यें मंदिर भारत के प्राचीनतम और प्रसिद्ध मंदिर है। हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इन मंदिरों में जाकर मनोवांछित फल पाते है।
काली मंदिर – कलकत्ता (Kali Temple, Kolkata)
कालीघाट काली मंदिर हुगली नदी के किनारे कलकत्ता शहर में है । समय के साथ नदी मंदिर से दूर आगे बढ़ गई है और यह अब आदि गंगा नामक एक छोटी नहर के किनारे है जो हुगली से जुड़ता है। कालीघाट उस स्थान का प्रतिनिधित्व करता है जहां दक्षायणी या सती के पैर की उंगलियाँ रुद्र तांडव के दौरान गिर गईं थी । किंवदंती है कि एक भक्त ने प्रकाश की एक चमकदार किरण की खोज की जो भागीरथी नदी से पत्थर के एक टुकड़े पर आती है जिसका आकार एक मानव पैर की अंगुली जैसा है। उसी ने पास में नकुलेश्वर भैरव का स्वयंभू लिंग भी पाया और वह वहाँ घने जंगल के बीच में काली की पूजा करने लगा। यह मंदिर 200 साल पुराना है। यहाँ पर आकर पूजा अर्चना करने से विवाह में आने वाली समस्याएँ समाप्त हो जाती है और भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है।
विंध्याचल मंदिर – उत्तर प्रदेश (Vindhyachal Temple-UP)
पवित्र नदी गंगा के तट पर विंध्याचल में विंध्यवासिनी देवी का मंदिर स्थित है। यह विंध्यवासिनी देवी का सबसे पूजनीय शक्तिपीठ है। माँ विंध्यवासिनी को ‘काजला देवी’ के नाम से भी जाना जाता है। और आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि ‘कजली’ एक स्थानीय लोक गीत की शैली है जिसकी उत्पत्ति भक्तों द्वारा गाए गए भक्ति गीतों से हुई है । मंदिर में पत्थरों द्वारा आयताकार आकार निर्मित किया गया है, अंदर एक गर्भगृह है जिसके चारों ओर एक बरामदा है । गर्भगृह में देवी का एक चित्र बना है जिसमें काले पत्थर से सिर बना है और ऊपर बड़ी आंखें बनी है। आँखो के सफेद भाग चांदी से बना है और देवी के चरणों में चांदी का शेर विश्राम करते हुए बैठा है। इस मन्दिर में माता के दर्शन करके भक्ति युक्त चित्त से जो प्रार्थना की जाती है वो अवश्य पूर्ण होती है।
जगन्नाथ, पुरी, भुवनेश्वर ( Jagannath, Puri, Bhubaneswar)
जगन्नाथ मंदिर पुरी और ओडिशा का सम्मान है। भगवान जगन्नाथ के पवित्र दर्शन और साथ मे सुभद्रा और बलभद्र के होने से भक्तों को अपार आनंद मिलता है। दोनों भगवान और देवी अवसर और मौसम के अनुसार सजायें और अलंकृत किये जाते है। मंदिर की संरचनात्मक पिरामिड के आकार की है। पौराणिक मान्यता के अनुसार प्रभु की मूल छवि जिसको दिख जाये उसको मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। भगवान की मूल छवि मे इतनी शक्ति है। ऐसा कहा जाता है कि एक बार यमराज ने मूल छवि को कही दूर पृथ्वी के किसी अज्ञात कोने मे छिपाने का फैसला किया। भगवान जगन्नाथ की जिस मूर्ति की अब पूजा की जाती है वो भगवान विष्णु के द्वारा लकड़ी से बनायी गई है। हालांकि मूर्ति में हाथ नहीं हैं परंतु इसमें बहुत शक्ति है। यहाँ आकर दर्शन करने मात्र से भक्तों के सभी कष्ट नष्ट हो जाते है। और उन्हे मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।
वीरभद्र मंदिर, लेपाक्षी (Veerabhadra Temple, Lepakshi)
लेपाक्षी ऐतिहासिक और पुरातात्विक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है। ये अपनी समृद्ध ललित कला और वास्तुशिल्प सौंदर्य के लिए बहुत प्रसिद्ध है। लेपाक्षी मंदिरों में पत्थर पर की गई नक्काशी बहुत उत्तम और मनमोहक है। यहाँ भगवान शिव, विष्णु और वीरभद्र तीनों के मंदिर है। यहाँ पर भारत की सबसे बड़ी ‘नंदी’ (बैल) की मूर्ति है, जिसकी ऊँचाई 6 फीट और लंबाई 8 मीटर है। यह प्राचीन लेपाक्षी का पर्याय है। नंदी की ये भव्य मूर्ति राजसी शिल्पकला का एक अनूठा उदाहरण है। इसकी सुंदरता का वर्णने करने के लिये शब्द नही है, इसकी शोभा देखते ही बनती है। जो भी इसको देखता है, वो इसे देखता रह जाता है। फरवरी के महीने में यहाँ एक उत्सव का आयोजन होता है जो 10 दिनो तक चलता है। इसमें पूरे भारतवर्ष से श्रद्धालु आते है।
थिरुमानन्चेरी, तंजावुर (Thirumanancheri, Thanjavur)
थिरुमानन्चेरी भगवान शिव के सबसे लोकप्रिय मंदिरों में से एक है। यहां भगवान शिव कल्याणसुन्दरेश्वर के रूप में पूजे जाते है और देवी पार्वती कोकिलाम्बल के रूप में पूजी जाती है। हिंदु कथाओं के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से अपना विवाह समारोह पृथ्वी पर मनाने की इच्छा व्यक्त की। भगवान शिव ने उन्हे इच्छापूर्ण करने का आश्वासन दिया। फिर एक दिन कैलाश पर क्रीड़ा करते हुए एक विवाद होने पर देवी पार्वती को गाय के रूप में पृथ्वी पर आना पड़ा। भगवान विष्णु चरवाहे का रूप लेकर आये। फिर भगवान विष्णु भगवान शिव के पास गये, तब शिवजी ने उन्हे बताया की यह सब लीला देवी पार्वती की इच्छापूर्ण करने के लिये ही हो रही है। और उन्हे वापस अपने असली रूप में आने के लिये कावेरी नदी में स्नान करना होगा। इस प्रकार देवी पार्वती अपने रूप में आयी और भगवान शिव ने उनकी इच्छापूर्ण करने के लिये उनसे इसी मंदिर में विवाह रचाया। तभी से यहाँ ऐसी मान्यता है कि जो भी स्त्री-पुरूष विवाह की इच्छा से यहाँ दर्शन करने आता है, देव कृपा से उसका विवाह शीघ्र हो जाता है।
श्री उमा महेश्वरा, कोल्लम (Sri Uma Maheshwara, Kollam)
कोल्लम के प्राचीन शहर में उमा महेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार महेश्वर (भगवान शिव) और देवी उमा कैलाश पर्वत से धरती पर आये। और इस जगह की सुंदरता को देखकर देवी उमा ने यहाँ पर रात भर रूकने की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान शिव और देवी उमा ने एक बरगद के पेड़ के नीचे यहाँ आराम किया। उस बरगद के पेड़ के निकट एक राजसी मूर्तिकार और शिल्पकार रहता था। उसे स्वप्न में कहा गया कि वो उस स्थान पर मंदिर का निर्माण करें जहां भगवान शिव और देवी उमा ने आराम किया था। तब राजा से आज्ञा लेकर उसने एक पीडम का निर्माण किया और वहाँ महेश्वर और देवी उमा दोनों की मूर्तियाँ स्थापित करी। यह मूर्तियाँ इस मंदिर की विशेषता है। ऐसा माना जाता है कि स्वयंवर अर्चना, उमा महेश्वर पूजा और गणपति होम के माध्यम से जन्मकुंडली के दोषों का भी निवारण हो जाता है।
मूकाम्बिका मंदिर, कोल्लूर (Mookambika Temple Kollur)
शांत और निर्मल कोल्लूर नगर में सौपरनिका नदी के तट पर बहुत प्रसिद्ध मूकाम्बिका मंदिर है। यहां आदि शंकराचार्य द्वारा अभिषेक किया गया श्री चक्र पर देवी का पंचधातु से बना चित्र है। पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले कौमासुर नामक एक दानव था, जो देवताओं को प्रताड़ित करता था और उन्हे कष्ट देता था। कौमासुर ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये घोर तपस्या करी। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर जब भगवान शिव उसे वरदान देने के लिये प्रकट हुये तब वाग्देवी (वाणी की देवी) को लगा की भगवान शिव का वरदान पाकर कौमासुर बहुत अनिष्ट कर सकता है। यह जानकर वाग्देवी ने कौमासुर को गूंगा बना दिया। तब से कौमासुर मूकासुर के नाम से जाना जाता है। सभी देवताओं की शक्तियों को मिलाकर देवी ने एक दिव्य शक्ति बनाई और उससे मूकासुर का वध कर दिया। ऐसा माना जाता है कि तब से इस पवित्र स्थान पर देवी मूकाम्बिका नाम से निवास करती है, और अपने भक्तों की इच्छाओं को पूर्ण करती है।
शिरडी साईं मंदिर – नासिक (Shirdi Sai Mandir, Nasik)
शिरडी में साईं बाबा का एक बहुत ही सुंदर मंदिर है। इसे साई बाबा की सेवाओं को जनता तक पहुँचाने के लिये उनकी समाधि के ऊपर बनाया गया था। साईं बाबा का नाम, जन्मस्थान और जन्म तिथि के विषय में कोई सटीक जानकारी नहीं हैं। ऐसा कहा जाता है कि सोलह वर्ष की आयु में साईं बाबा शिरडी के अहमदनगर गाँव में आये और उन्हे वहाँ खंडोबा मंदिर में आश्रय मिला। शीघ्र ही उन्होंने अपने विचार व्यक्त करने शुरू कर दिए, उनकी भाषा सरल थी और उनके पास विशेष शक्ति थी जिससे वो गरीबों और जरूरतमंदों की समस्याओं का निवारण करते थे। उनकों हिंदू और मुसलमान दोनों मानते थे । वो एक मस्जिद में रहते थे और उनका अंतिम संस्कार एक मंदिर में किया गया। उन्होने ‘श्रद्धा’ यानी विश्वास और ‘सबुरी’ यानी दया को ईश्वर प्राप्ति का सर्वोच्च गुण बताया है। साई बाबा के आशीर्वाद से भक्तों के सभी बिगड़े काम बन जाते है।
यह बहुत ही प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है और इनके विषय में यह कहा जाता है की जो भी अविवाहित कन्या और अविवाहित पुरूष विवाह की इच्छा से इन मंदिरों में जाकर दर्शन और विशेष पूजा करते है। उनके विवाह में आने वाली रूकावटें दूर हो जाती है और उनका शीघ्र विवाह हो जाता हैं।