महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का व्रत एवं पूजन करें और भगवान शिव की कृपा से पायें आरोग्य, सौभाग्य, और धन-समृद्धि। महाशिवरात्रि पर कैसे करें भगवान शिव को प्रसन्न? जानियें महाशिवरात्रि कब हैं? महाशिवरात्रि व्रत का महत्व और पूजन विधि। साथ ही पढ़ें महाशिवरात्रि व्रत की कथा।
Maha Shivratri Vrat
महाशिवरात्रि व्रत
हिन्दु धर्म में महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के त्यौहार का बहुत महत्व हैं। इस दिन भगवान शंकर की उपासना किये जाने का विधान है। फाल्गुन माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन शिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार महाशिवरात्रि को इसलिये विशेष माना जाता है क्योकि इस दिन अग्निलिङ्ग जिसे भगवान शिव का स्वरूप माना जाता है उससे सृष्टि का आरम्भ हुआ था। इसके अतिरिक्त एक अन्य मान्यता के अनुसार महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव और देवी पार्वती का विवाह हुआ था।
हर माह की कृष्णपक्ष की चतुर्दशी तिथि के दिन मास शिवरात्रि मनायी जाती हैं। इन सभी शिवरात्रियों में महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती हैं। महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव का व्रत एवं पूजन करने से भगवान शिव की कृपा से साधक को आरोग्य, सौभाग्य, और धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं। उसके सभी पापों और कष्टों का निवारण हो जाता हैं। भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होकर साधक को मनोवांछित वर प्रदान करते हैं।
Maha Shivratri Vrat Kab Hai?
महाशिवरात्रि कब हैं?
इस वर्ष महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का व्रत एवं पूजन 8 मार्च, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा और शिव खप्पर पूजन 10 मार्च, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
Significance Of Mahashivratri
महाशिवरात्रि का महत्व
पौराणिक मान्याओं के अनुसार महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन ही एक विशाल अग्निलिंग से पृथ्वी प्रकट हुयी थी। उस अग्निलिंग को भगवान शिव का स्वरूप माना जाता हैं। इसके अतिरिक्त एक अन्य मान्यता यह भी है कि इस दिन देवी पार्वती और भगवान शिव का मिलन हुआ था। इसलिये इसे शिव-पार्वती के विवाह के दिन के रूप में भी मनाया जाता हैं।
धार्मिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव शीघ्र प्रसन्न होते हैं। महाशिवरात्रि के दिन उनका व्रत और पूजन से जातक को भगवान शिव की कृपा आसानी से प्राप्त होती हैं।
महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) का व्रत एवं पूजन बहुत भी पुण्यदायी और शुभफल देने वाला हैं। इस दिन व्रत व पूजन करने से
- विवाह में आने वाली समस्याओं का समाधान होता हैं। जिनके विवाह में व्यवधान आ रहें हों, वो इस दिन भगवान शिव का व्रत एवं पूजन करे और उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें। शीघ्र विवाह के योग बनने लगेंगे ।
- अखण्ड़ सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं।
- धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
- वैवाहिक जीवन सुखमय होता हैं।
- साधक को आरोग्य की प्राप्ति होती हैं। उसके रोगों का नाश होता हैं।
- मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती हैं।
- सभी पापों और कष्टों का निवारण होता हैं।
- जीवन की समस्त समस्याओं का समाधान होता हैं।
- यश और बल में वृद्धि होती हैं।
- शारीरिक व मानसिक कष्टों का नाश होता हैं।
- महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन कावड़ में गंगाजल लाकर भगवान शिव का अभिषेक करने से जातक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं और उसके जीवन में शुभता आती हैं।
Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
व्रत एवं पूजन की विधि
भगवान शिव बहुत थोड़े से ही प्रयास से ही प्रसन्न हो जाते हैं। धर्मग्रंथों में शिवजी का एक नाम आशुतोष है, जिसका अर्थ है शीघ्र प्रसन्न होने वाला। भगवान शिव अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न हो जाते है और उन्हे मनोवांछित फल भी प्रदान करते हैं। महाशिवरात्रि के दिन व्रत एवं पूजन की विधि इस प्रकार हैं।
- महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर शिवालय जाकर शिवलिंग का जल से अभिषेक करें। इस दिन शिवलिंग का अभिषेक करना बहुत शुभ फल देने वाला माना जाता हैं। अलग-अलग वस्तुओं से शिवलिंग का अभिषेक करने से अलग-अलग फल प्राप्त होते हैं।
जानियें किस वस्तु से महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) पर शिवलिंग का अभिषेक करने से क्या फल प्राप्त होता हैं?
- उत्तम संतान प्राप्त करने हेतु महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का दही से अभिषेक करें।
- जीवन के समस्त कष्टों से मुक्ति पाने हेतु महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का दूध से अभिषेक करें।
- वाणी दोष दूर करने हेतु महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का शहद से अभिषेक करें। शहद शिवजी को बहुत है।
- मोक्ष प्राप्ति की कामना रखने वाले को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का घी (धृत) से अभिषेक करना चाहिये।
- धन-संपत्ति पाने की कामना रखने वाले को महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग का पंचामृत से अभिषेक करना चाहियें।
- लक्ष्मी प्राप्ति हेतु महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चंदन का पाउडर चढ़ायें।
- ऋण से मुक्ति पाने हेतु महाशिवरात्रि के दिन शिवलिंग पर चावल का आटा चढ़ायें।
- शत्रुओं से मुक्ति और उनके शमन हेतु महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के दिन शिवलिंग का गन्ने के रस से अभिषेक करें।
- अभिषेक करते समय “ॐ नमः शिवाय” मंत्र का जाप करें।
- फिर एक स्वच्छ वस्त्र से शिवलिंग को पोछकर साफ करें।
- अपने दाहिने हाथ की अनामिका, मध्यमा और तर्जनी अंगुली पर चंदन या पवित्र भस्म लेकर शिवलिंग पर त्रिपुंड़ (तीन आड़ी रेखाएँ) बनायें। फिर उसके मध्य वाली रेखा पर चंदन का तिलक लगायें। फिर उसमें कुमकुम की बिंदी लगायें।
- शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ायें, आंक के फूल, धतूरा, फूलों की माला, ऋतु फल आदि चढ़ायें। स्त्रियाँ देवी पार्वती को वस्त्र अर्पित करें, मेहंदी लगायें, हल्दी लगायें, कुमकुम लगायें और उनकों श्रृन्गार की वस्तुएँ अर्पित करें।
- भोग में मिठाई या सूखे मेवे अर्पित करें।
- धूप-दीप जलाकर शिवजी की आरती और महाशिवरात्रि की आरती करें।
- महाशिवरात्रि की कथा कहें या सुनें।
- महामृत्युंजय मंत्र का 108 बार जाप करें। शिवमहिम्न स्त्रोत्र और शिवाष्टक का पाठ करें।
- तत्पश्चात् भगवान शिव और देवी पार्वती का ध्यान करें और उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें।
- इस दिन उपवास रखें और भोजन में सिर्फ फलाहार करें।
- अमावस्या के दिन किसी साधू को भोजन व दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
Mahashivratri Vrat Katha
महाशिवरात्रि व्रत की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार, बहुत समय पहले चित्रभानु नाम का एक आखेटक (शिकारी) था। वो पशुओं को मारकर उन्हे बेचता और उस धन से अपने परिवार का पालन-पोषण किया करता था। उसके इस कार्य से उसे पर्याप्त मात्रा में धन प्राप्त ना होने के कारण उसने एक सेठ से ऋण लिया। किंतु धन के अभाव के चलते वो समय पर सेठ का धन नही चुका पाया। इस बात से क्रृद्ध होकर उस सेठ ने अपने आदमियों से कहकर उस शिकारी चित्रभानु को बंदी बनाकर एक शिवालय में बंद कर दिया।
जिस दिन चित्रभानु को बंदी बनाकर शिवालय में बंद किया उस दिन संयोगवश महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) थी। प्रात:काल से ही मंदिर में महाशिवरात्रि की पूजा-अर्चना होने लगी। चित्रभानु शिवालय में होने वाले मंत्रोच्चार, कथा, स्तुति और आरती सुन रहा था। वो उन बंधनों को भूल कर भगवान शिव के ध्यान में खो गया।
कुछ समय बाद ही सेठ के आदमी उसे सेठ के पास ले गये। उसने सेठ से धन चुकाने के लिये कुछ समय और मांगा। सेठ को भी उसपर दया आगई। उसने उसे मुक्त कर दिया। शिकारी ने तुरंत ही वन की ओर प्रस्थान किया। वन में एक सरोवर के निकट वृक्ष पर जाकर छुपकर बैठ गया। वो बिल्वपत्र का वृक्ष था और उस वृक्ष के नीचे एक शिवलिंग उपस्थित था। शिकार की प्रतीक्षा करतें-करतें वो पेड़ से बिल्वपत्र तोड़कर वृक्ष के नीचे फेंक रहा था। अंजाने ही वो शिवलिंग पर बिल्वपत्र चढ़ा रहा था। उसके पास जो जल का पात्र था उससे जल रिस कर स्वत: शिवलिंग पर गिर रहा था। इस प्रकार अंजाने में ही उससे शिवलिंग की पूजा हो गई। रात्रि से बंधन में रहने और फिर आखेट के लिये वन में आने के कारण उसने कुछ खाया भी नही था। इस प्रकार उसने महाशिवरात्रि का व्रत भी कर लिया था।
महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के व्रत व पूजन के प्रभाव से उसमें दया का भाव जागृत होने लगा। तभी उसने देखा कि एक गर्भवती हिरणी सरोवर पर पानी पीने आयी, उसने तुरंत लक्ष्य संधान कर लिया। तभी उस हिरणी ने कहा, “हे आखेटक! मैं गर्भवती हूँ। मेरा जल्द ही प्रसव होने वाला हैं। यदि अभी तुम मेरी हत्या करोगे तो मेरे साथ मेरा बच्चा भी मर जायेगा। तुम कृपा करके मुझे जाने दो। मैं प्रसव करके स्वयं ही तुम्हारे पास आ जाऊंगी। शिकारी को उसपर दया आ गई और उसने उसे जीवित छोड दिया। स्वयं पुन: शिकार की प्रतिक्षा करने लगा।
शिकार की प्रतिक्षा करते करते पुन: वो पेड़ से बिल्व-पत्र तोड़कर नीचे डालता रहा और वो बिल्वपत्र शिवलिंग पर गिरते रहें। उसे अनायास ही प्रात: सुने मंत्रों आ स्मरण हो आया। वो उन्हे मन ही मन याद करने लगा। कुछ समय पश्चात उसे फिर एक मृगी सरोवर के पास दिखी उसने उसे देखकर अपने धनुष पर बाण का संधान किया। जैसे ही उस शिकारी ने बाण चढ़ाया उस मृगी ने कहा, “हे शिकारी! मैं कुछ समय पूर्व ही ऋतुक्रिया से निवृत्त हुई हूँ। इस समय मैं एक कामातुर विरहिणी हूँ। मुझे प्रिय के पास जाना हैं। उनसे मिलकर मैं स्वयं ही तुम्हारे पास जाऊँगी। कृपा करके मुझे जाने दो।“
शिकारी के हृदय में इस मृगी के लिये भी दया का भाव उत्पन्न हो गया। उसने उसे भी जाने दिया। इस प्रकार एक ही दिन में उसने दो बार हाथ आये शिकार को जाने दिया। वो फिर उसी वृक्ष पर जाकर बैठ गया और शिकार की प्रतिक्षा करने लगा।
थोड़े समय के बाद एक और हिरणी अपने बच्चों के साथ सरोवर की ओर आती दिखी। उसे देखकर शिकारी ने तुरंत बिना समय गंवायें अपने धनुष पर बाण चढ़ाया और लक्ष्य का संधान करने लगा। यह देखकर वो मृगी ड़र गई और अपनी आंखों में अश्रु लेकर उस शिकारी से प्रार्थना करने लगी। वो बोली, “हे आखेटक! कृपा करके तुम मेरे बच्चों को मत मारों। अगर तुम्हे प्राण लेने ही है तो मेरे प्राण ले लो। बस मुझे इतना समय दे दों कि मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप दूँ। मैं इन बच्चों को इनके पिता को सौंप कर तुम्हारे पास शीघ्र ही जाऊँगी।“ अनायास ही शिकारी फिर भावुक हो गया और उसने इस मृगी को भी अपना शिकार नही बनाया।
वो भूख-प्यास से व्याकुल था किंतु फिर भी कोई अज्ञात शक्ति उसे बल प्रदान कर रही थी। वो फिर से शिकार के इंतजार में पेड़ पर बैठ गया। बहुत समय बीतने के बाद एक बहुत सेहतमंद हिरण आता दिखा। शिकारी ने उसको अपना निशाना बना कर तीर चलाना चाहा तभी वो हिरण बोला, “ हे शिकारी! यदि तुमने इससे पहले आने वाली तीन मृगी की हत्या कर दी है तो शीघ्र ही मुझे भी मारा डालों। वो तीनों मेरी पत्नियाँ थी। मैं उनका वियोग नही सह सकता। और यदि तुमने उन्हे छोड़ दिया है तो मुझे इतना समय दे दो कि मैं उनसे अंतिम बार मिलकर विदा ले लूँ।“ तभी वो तीनों मृगी भी अपना वचन निभाने के लिये वहाँ पर प्रकट हो गई। पशुओं में ऐसी वचन परायणता और प्रेमभाव देखकर उस शिकारी का हृदय परिवर्तन हो गया। उसने आगे से कभी शिकार ना करने की प्रतिज्ञा कर ली। और उन सभी मृग और मृगी को छोड दिया।
भगवान शिव की कृपा से उसका पूरा जीवन ही बदल गया। अंजाने में किये महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) के व्रत के प्रभाव से जीवन के सुख भोगने के बाद उस बहेलिये चित्रभानु को मरणोपरांत शिव लोक प्राप्त हुआ। भगवान शिव की महिमा अपरम्पार हैं। भगवान शिव अपने भक्तों पर शीघ्र प्रसन्न होकर उनके सभी कष्टों का नाश करते है और मनोवांछित फल प्रदान करते हैं।
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