Ravi Pradosh Vrat Katha: रवि प्रदोष के दिन पढ़ियें रवि प्रदोष व्रत कथा। पायें भगवान शिव की कृपा

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प्रदोष व्रत यदि रविवार के दिन हो तो उसे रवि प्रदोष (Ravi Pradosh) कहते हैं। इस प्रदोष व्रत (Pradosh Vrat) को करने से जातक दीर्धायु होता है, उसके रोगों का नाश होता है और वो निरोगी हो जाता हैं। साधक को भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है। रवि प्रदोष का व्रत करने से साधक को सूर्य ग्रह की शुभ प्राप्त होती है। पढ़ियें रवि प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha) …

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Ravi Pradosh Vrat Katha
रवि प्रदोष व्रत कथा

प्राचीन समय में एक गांव में एक ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। वो बहुत ही निर्धन था। उसकी पत्नी धार्मिक विचारों वाली महिला थी। वो भगवान शिव की भक्त थी और नियम से प्रदोष व्रत करती थी। उन ब्राह्मण दम्पति के एक पुत्र भी था। एक दिन वो ब्राह्मण पुत्र अकेला पोटली लेकर गंगा स्नान के लिये गया। मार्ग में उसे चोरों ने पकड़ लिया और उससे धन माँगने लगें। उसने कहा की मैं तो बहुत ही दरिद्र ब्राह्मण हूँ। मेरे पास धन नही है। उन्होने उसकी पोटली भी देखी किंतु उसमें भी भोजन के अतिरिक्त कुछ नही मिला।

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उस बालक के पास धन ना पाकर चोरों ने उसे छोड़ दिया और वे चोर कहीं ओर चोरी और लूट की इच्छा से वहाँ से चले गयें। चोरों से छूटकर वो बालक चलते- चलते एक नगर के समीप पहुँचा। थकान के कारण वो एक बरगद के पेड़ के नीचे आराम करने लगा। थकान के कारण उसे वहाँ नींद आ गयी। तभी चोरों की तलाश करते राजा के सिपाही वहाँ आ पहुँचें। एक अन्जान बालक को अकेला वृक्ष के नीचे सोता देखकर सैनिकों को उससे चोरों के विषय में पूछा। उसने उन्हे सत्य बता दिया कि किस प्रकार से उसे चोरों ने मार्ग में रोका और फिर कुछ ना होने पर छोड़ दिया। उसकी इन बातों पर उन्हें सन्देह हुआ और उसे उन चोरों का साथी मानकर वो उसे बन्दी बनाकर राजा के दरबार में लेकर पहुँचें। अपने सैनिकों की बात सुनकर राजा ने बिना उस बालक की बात पर ध्यान दिये उसे कारागार में बंद करने का आदेश दे दिया।

उधर उस बालक के घर पर उसकी माँ उसका इंतजार कर रही थी। जब वो बालक घर नही पहुँचा तो वो ब्राह्मणी चिंतित हो गई। अगले दिन रवि प्रदोष था, उस ब्राह्मणी ने नियम के अनुसार उस दिन व्रत रखा और भगवान शिव से अपने पुत्र के सकुशल घर लौट आने की प्रार्थना की। भगवान भोलेनाथ सदा ही अपने भक्तों का कल्याण करते हैं। उस ब्राह्मणी की प्रार्थना से द्रवित होकर भोलेनाथ ने रात्रि में राजा को स्वप्न में दर्शन देकर आदेश दिया कि हे राजन तुमने जिस बालक चोर समझ कर कारागर में ड़ाल दिया है वो निर्दोष है उसे शीघ्र-अतिशीघ्र सम्मान के साथ उसके परिवार के पास पहुँचाने का प्रबन्ध करों। अन्यथा मैं तुम्हें और तुम्हारे राज्य को नष्ट कर दूंगा।

प्रात:काल उठते ही राजा ने अपना स्वप्न अपने मंत्रियों को सुनाया और सैनिकों को आदेश दिया कि उस बालक को सम्मान के साथ राजदरबार में प्रस्तुत करें। राजा ने उस बालक को अपने वचनों से संतुष्ट किया और उसके परिवार के विषय में प्रश्न किया। फिर एक दल को उस बालक के माता-पिता को लाने के लिये भेजा। राजा के सैनिकों अपने घर आया देखकर ब्राह्मण और ब्राह्मणी ड़र गये। वो सैनिक उन्हे लेकर राजा के दरबार में पहुँचें। राजा ने उनका सभा में सत्कार किया और उनके सुखमय जीवन के लिये दान में 5 गाँव दियें। जिससे उनकी दरिद्रता दूर हो सके।

भगवान भोलेनाथ के आशीर्वाद से उस ब्राह्मणी और उसका परिवार सुखमय जीवन व्यतीत करने लगे। जो साधक भगवान शिव की भक्ति करता है, नियम अनुसार विधि-विधान से रवि प्रदोष का व्रत एवं पूजन करता है और रवि प्रदोष व्रत कथा (Ravi Pradosh Vrat Katha) कहता या सुनता है, उस पर भगवान भोलेनाथ की कृपा होती है। उनका जीवन सुखमय होता है, रोगों का नाश होता है और दरिद्रता दूर होती है।