Eight Yogini Dasha: जानियें आठ योगिनी दशाओं की अवधि, प्रभाव, मंत्र और स्तोत्रम्

Eight Yogini Dasha; Image for yogini Dasha; Yogini Dasha;

ज्योतिष शास्त्र में जिस प्रकार से 120 वर्षों की विंशोत्तरी दशा होती है उसी प्रकार से 36 वर्षों की योगिनी दशा होती है जिसका मनुष्य के जीवन पर बहुत अधिक प्रभाव होता है। ज्योतिष शास्त्र में इसका अपना महत्व है। 27 नक्षत्रों में विभाजित यह 8 योगिनी दशायें (Eight Yogini Dasha) अपने समय के अनुसार मनुष्य को सुख, दुख, कष्ट और पीड़ा प्रदान करने का कार्य करती हैं। ये सभी योगिनियाँ मनुष्य के जीवन को व्यापक रूप से प्रभावित करती हैं। जानियें अष्ट योगिनी दशाओं (Eight Yogini Dasha) की समय अवधि, मंत्र और स्तोत्रम्…

Eight yoginis (8 yogini dasha)
अष्टयोगिनी (आठ योगिनी दशा)

ज्योतिषशास्त्र में जिस प्रकार से विंशोत्तरी, अष्टोत्तरी आदि ग्रह दशायें होती है उसी प्रकार से उनके अतिरिक्त योगिनी दशायें (Yogini Dasha) भी होती हैं। योगिनी दशायें विशेषकर भारत के पूर्वी भाग और पड़ोसी देश नेपाल आदि में बहुत अधिक प्रचलित हैं। इन योगिनियों को नवग्रहों की माता माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस योगिनियों की उपासना करने से संबंधित ग्रह के दुष्प्रभाव से साधक की रक्षा होती है। जैसे अगर कोई पुत्र किसी से कितना भी नाराज हो या न हो यदि माता उस पर प्रसन्न हो जाये तो पुत्र को भी माता का मान रखने के लिये उस पर कृपा करनी ही पड़ती है। कम से कम वह उस जातक पर कुपित नहीं रह सकता और उसका अहित नही कर सकता। इसके अतिरिक्त स्त्रियाँ कोमल व ममतामयी स्वभाव की होती है इससे वो पुरुष की अपेक्षा शीघ्र प्रसन्न हो जाती है। उनको प्रार्थना के द्वारा प्रसन्न करना काफी सरल होता और उसका परिणाम भी साधक को बहुत ही कम समय में प्राप्त होता है। अतः ग्रहों के दुष्प्रभाव से बचने के लिये उनकी माताओं (योगिनियों) की स्तुति करना बहुत उत्तम होता है।

योगिनी पिंगला सूर्य की, मंगला चन्द्र की, भ्रामरी मंगल की, भद्रिका बुध की, धन्या गुरु की, सिद्धा शुक्र की, उल्का शनि की तथा संकटा राहू व केतु की माता हैं। मुन्थहा / सुरसा देवताओं व नागों की माता हैं। भद्रा शनि की बहिन है।

Mantras and Stotrams Of 8 Yogini Dasha
अष्टयोगिनियों के स्तोत्र और मंत्र

ज्योतिष शास्त्र में इन आठ योगिनी दशाओं (Yogini Dasha) को 27 नक्षत्रों में विभाजित किया गया है। यह अपनी महादशा और अंतर्दशा में मनुष्य के जीवन पर व्यापक प्रभाव डालती है। मनुष्य को इनके प्रभाव से सुख- दुख, कष्ट-पीड़ा और लाभ-हानि झेलनी होती हैं। यह अष्ट योगिनियाँ प्रकार इस प्रकार हैं:

मंगला योगिनी दशा (Mangla Yogini Dasha)

मंगला योगिनी दशा की पहली दशा है, और इसका स्वामी चंद्रमा है। आमतौर पर इसके सकारात्मक परिणाम मिलते हैं। इसी कारण इसे शुभ माना जाता है। मंगला योगिनी दशा (Mangla Yogini Dasha) से प्रत्येक जातक को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। इस काल में जातक को कार्यों में सफलता मिलती है, उसके यश में बढ़ोत्तरी होती है और धन की प्राप्ति होती है। अपने नाम के अनुरूप ही यह लोगों के जीवन में सकारात्मकता लाता है। इस दशा के शुभफल पाने और उसमें वृद्धि करने के लिये मंगला स्तोत्रम् का पाठ करें।

अवधि : 1 वर्ष
स्तोत्र: मंगला स्तोत्रम्
मंत्र: ह्रीं मंगले मंगलायै स्वाहा ।

पिंगला योगिनी दशा (Pingala Yogini Dasha)

पिंगला दूसरी योगिनी दशा (Yogini Dasha) है। ग्रहों में सूर्य इस दशा का स्वामी ग्रह है। यह दशा आमतौर पर मानसिक तनाव, संपत्ति विवाद, भाई-बहनों में कलह, बुरी खबर, खराब स्वास्थ्य, हानि, अपमान आदि जैसी समस्याएं देती है। इस दशा के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये पिंगला स्तोत्रम् (Pingala Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 2 वर्ष
स्तोत्र: पिंगला स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ ग्लौं पिंगले बैरिकारिणि प्रसीद फट् स्वाहा।

धन्या (Dhanya)

धन्या तीसरी योगिनी दशा (Yogini Dasha) है इसका स्वामी बृहस्पति है। इसके काल में मनुष्य को शुभ फल मिलता है और उसे धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त लोगों को राजनीति और उससे जुड़े कार्यों में भी सफलता मिलती है। इस दशा के शुभफल पाने और उसमें वृद्धि करने के लिये धन्या स्तोत्रम् (Dhanya Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 3 वर्ष
स्तोत्र: धन्या स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ श्रीं धनदे धान्यै स्वाहा ।

भ्रामरी (Bhrahmari)

भ्रामरी चौथी योगिनी दशा (Yogini Dasha) लाल ग्रह मंगल द्वारा शासित है। इस काल में इसका प्रभाव व्यक्ति को अत्यंत क्रोधी बनाता है। इसके अतिरिक्त इस दशा के दौरान व्यक्ति को यात्रा में परेशानी, जीवन में विभिन्न प्रकार की समस्याएँ, व्यापार में हानि, कर्ज आदि का सामना करना पड़ता है। इस दशा के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये भ्रामरी स्तोत्रम् (Bhrahmari Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 4 वर्ष
स्तोत्र: भ्रामरी स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ भ्रामरि जगतामधीश्वरी भ्रामेरी क्लीं स्वाहा ।

भद्रिका (Bhadrika)

भद्रिका पाँचवीं दशा है जिसका स्वामी बुध ग्रह है, जिसे ज्ञान का ग्रह कहा जाता है। इसके काल में जातक को अपने परिश्रम के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। जातक को आर्थिक लाभ, सुन्दर स्त्रियों का साथ और भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है। इसके अतिरिक्त राजकीय (सरकारी) कार्यालय में काम करने वालो की पदोन्नति होती है। इस दशा के शुभफल पाने और उसमें वृद्धि करने के लिये भद्रिका स्तोत्रम् (Bhadrika Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 5 वर्ष
स्तोत्र: भद्रिका स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ भद्रिके भद्रं देहि अभद्र नाशय स्वाहा ।

उल्का (Ulka)

उल्का छठी योगिनी दशा (Yogini Dasha) है जिसका स्वामी कर्मफल दाता शनि है। इस दशा काल में जातक को अधिक परिश्रम और संघर्ष करना पड़ता है। आमतौर पर यह दशा कष्टकारी होती है क्योंकि इस दशा के दौरान जातक बहुत सी परेशानियों में पड़ जाता है। विशेष रूप से मनुष्य को मानहानि, शत्रुओं की अधिकता और उनका भय, कर्ज, गंभीर बीमारियाँ, कोर्ट केस, पारिवारिक समस्याएँ, सिर, चेहरे और पैरों से संबंधित रोग जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस दशा के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये उल्का स्तोत्रम् (Ulka Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 6 वर्ष
स्तोत्र: उल्का स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ उल्के मम रोगं नाशयजृभय स्वाहा ।

सिद्धा (Siddha)

सिद्धा सातवीं योगिनी दशा (Yogini Dasha) है और इसका स्वामी ग्रह शुक्र है। इस दशा की अवधि में धन, भौतिक सुख, प्रेम, रोमांस, आकर्षण में वृद्धि होती है। यह दशा शुभ होती है इसलिए बुद्धि, धन और व्यापार में वृद्धि के साथ-साथ घर में विवाह, मांगलिक कार्य आदि के अनेक आयोजन होते रहते हैं। इस दशा के शुभफल पाने और उसमें वृद्धि करने के लिये सिद्धा स्तोत्रम् (Siddha Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 7 वर्ष
स्तोत्र: सिद्धा स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ ह्रीं सिद्धेमेसर्वमावसं साधय स्वाहा ।

संकटा (Sankata)

संकटा अंतिम दशा है और इसका स्वामी ग्रह छाया ग्रह राहु है। इसके नाम से ही पता चलता है कि इस दशा के दौरान जातकों को विभिन्न प्रकार की समस्याओं और संघर्षों का सामना करना पड़ता है। इस दशा की अवधि सबसे लंबी होती है इसलिए इस अवधि के दौरान मातृ रूप में योगिनी की पूजा करना काफी फायदेमंद होता है। इस दशा के दुष्प्रभाव को कम करने के लिये संकटा स्तोत्रम् (Sankata Stotram) का पाठ करें।

अवधि : 8 वर्ष
स्तोत्र: संकटा स्तोत्रम्
मंत्र: ॐ ह्रीं सङ्कटे मम रोगं नाशय स्वाहा ।