Chandi Dhwaj Stotra : श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् के पाठ से होंगे शत्रु पराजित

Chandi Dhwaj Stotram; Image for Chandi Stotra; Maa Chandi; Devi Chandika;

Shri Chandi Dhwaj Stotra
श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम्

भगवती माँ दुर्गा के अनेक रुप है। देवी चण्डी भी माँ शक्ति का ही स्वरूप है। यह माँ दुर्गा का उग्र रूप है। राक्षसों का संहार करने के लिये देवी ने चण्ड़ी रूप धारण किया था। देवी चण्डिका भी माँ काली के समान ही अपने उग्र रूप में पूजी जाती हैं। श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् (Chandi Dhwaj Stotra) माँ चण्डिका को समर्पित है। इस स्तोत्रम् का पाठ समस्त संकटों से मुक्ति प्रदान करने वाला है और शत्रुओं पर विजय दिलाने वाला है।

Benefits of Reciting Chandi Stotra
श्री चण्डी स्तोत्रम् पाठ के लाभ

नित्य प्रतिदिन पूर्ण श्रद्धा भक्ति और शुद्धता के साथ रात्रि के समय माँ चण्डी का ध्यान करके श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम् (Chandi Dhwaj Stotra) का पाठ करने से साधक को सर्वशक्तिशाली माँ चण्डिका का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से

  • संकटों का निवारण होता है।
  • शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।
  • सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
  • धन, सम्पत्ति और सुखों की प्राप्ति होती है।
  • यश और बल में वृद्धि होती है।
  • दुख, दरिद्रता, रोग और कष्टों का नाश होता है।
  • इसके प्रभाव से सभी जीवित प्राणी वशीभूत हो जाते है।
  • मुक्ति की प्राप्ति होती है।

Shri Chandi Dhwaj Stotram Lyrics
श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्रम्

॥ विनियोग ॥

अस्य श्री चण्डी-ध्वज स्तोत्र मन्त्रस्य मार्कण्डेय ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः, श्रीमहालक्ष्मीर्देवता, श्रां बीजं, श्रीं शक्तिः, श्रूं कीलकं मम वाञ्छितार्थ फल सिद्धयर्थे विनियोगः.।

॥ अंगन्यास ॥

श्रां, श्रीं, श्रूं, श्रैं, श्रौं, श्रः ।

॥ मूल पाठ ॥

ॐ श्रीं नमो जगत्प्रतिष्ठायै देव्यै भूत्त्यै नमो नमः ।
परमानन्दरुपिण्यै नित्यायै सततं नमः॥१॥

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥२॥

रक्ष मां शरण्ये देवि धन-धान्य-प्रदायिनि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥३॥

नमस्तेऽस्तु महाकाली पर-ब्रह्म-स्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥४॥

नमस्तेऽस्तु महालक्ष्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥५॥

नमस्तेऽस्तु महासरस्वती परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा॥६॥

नमस्तेऽस्तु ब्राह्मी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥७॥

नमस्तेऽस्तु माहेश्वरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥८॥

नमस्तेऽस्तु च कौमारी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥९॥

नमस्ते वैष्णवी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१०॥

नमस्तेऽस्तु च वाराही परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥११॥

नारसिंही नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१२॥

नमो नमस्ते इन्द्राणी परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१३॥

नमो नमस्ते चामुण्डे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१४॥

नमो नमस्ते नन्दायै परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१५॥

रक्तदन्ते नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१६॥

नमस्तेऽस्तु महादुर्गे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१७॥

शाकम्भरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१८॥

शिवदूति नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥१९॥

नमस्ते भ्रामरी देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२०॥

नमो नवग्रहरुपे परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२१॥

नवकूट महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२२॥

स्वर्णपूर्णे नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२३॥

श्रीसुन्दरी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२४॥

नमो भगवती देवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२५॥

दिव्ययोगिनी नमस्ते परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२६॥

नमस्तेऽस्तु महादेवि परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२७॥

नमो नमस्ते सावित्री परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२८॥

जयलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥२९॥

मोक्षलक्ष्मी नमस्तेऽस्तु परब्रह्मस्वरुपिणि ।
राज्यं देहि धनं देहि साम्राज्यं देहि मे सदा ॥३०॥

चण्डीध्वजमिदं स्तोत्रं सर्वकामफलप्रदम् ।
राजते सर्वजन्तूनां वशीकरण साधनम् ॥३१॥

सर्वमङ्गलमाङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तुते॥

Click below to listen Shri Chandi Dhwaj Stotra (श्री चंडी ध्वज स्तोत्रम्) :