Dasavatara Stotram: भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिये नियमित रूप से कीजियें दशावतार स्तोत्रम् का पाठ

Dasavathara Stotram; Image for Dasavathara Stotram; Dasavathara image;

दशावतार स्तोत्रम् (Dasavatara Stotram) की रचना वेदांताचार्य श्रीमद्वेंकटनाथ के द्वारा की गई है। यह एक बहुत ही दुर्लभ स्तोत्र है। इस स्तोत्र में भगवान विष्णु के द्स अवतारों की स्तुति की गई है। इस स्तोत्र का नियमित पाठ करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। पढ़ियें दशावतार स्तोत्र (Dashavatara Stotra) और जानियें इस स्तोत्र का पाठ करने के लाभ…

Dasavatara Stotram
दशावतार स्तोत्रम्

दशावतार स्तोत्रम् (Dasavatara Stotram) भगवान विष्णु के दस अवतार को समर्पित है। इसमें भगवान विष्णु के दस अवतारों की स्तुति की गई है। दशावतार स्तोत्रम् अत्यंत ही दुर्लभ स्तोत्र है। इस स्तोत्र का ज्ञान बहुत ही कम लोगों को है। इस स्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से साधक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। पढ़ियें दशावतार स्तोत्रम् (Dasavatara Stotram) और साथ ही जानियें इसके पाठ की विधि और लाभ…

Benefits of Dashavatara Stotra
दशावतार स्तोत्र के लाभ

पूर्ण विश्वास और श्रद्धा-भक्ति के साथ नित्य प्रतिदिन दशावतार स्तोत्रम् (Dasavatara Stotram) का पाठ करने से

  • समस्त परेशानियों का समाधान होता है।
  • परिवार में सुख-शान्ति आती है।
  • रोग-दोष-कष्ट और दरिद्रता का नाश होता है।
  • यश-बल और मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।
  • कार्यसिद्धि में आने वाली बाधायें दूर होती है।
  • धन-सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
  • मनोरथ पूर्ण होता है।
  • भय का नाश होता है।
  • साधक इस लोक में सुख भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है।

When And How To Recite This Stotra?
इस स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?

दशावतार स्तोत्रम् (Dasavatara Stotram) का पाठ प्रात:काल या प्रदोष काल में कभी भी किया जा सकता है।

  • स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। भगवान विष्णु की प्रतिमा या चित्र के सम्मुख दीपक जलायें।
  • स्वच्छ मन से विष्णु भगवान का ध्यान करें। फिर पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ एकाग्रचित्त होकर इस स्तोत्र का पाठ करें।
  • फिर भगवान श्री हरि विष्णु से अपनी गलतियों के लिये क्षमा मांगे और तत्पश्चात उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें। भगवान विष्णु आपकी सभी मनोकामनायें पूर्ण करेंगें ऐसा मन में विश्वास रखें।

Dasavatara Stotram (Vedantacharya Krutam)
दशावतार स्तोत्रम् (वेदांताचार्य कृतम्)

दशधा निर्वर्तयन्भूमिकां

रंगे धामनि लब्धनिर्भररसैरध्यक्षितो भावुकैः ।
यद्भावेषु पृथग्विधेष्वनुगुणान्भावान्स्वयं बिभ्रती
यद्धर्मैरिह धर्मिणी विहरते नानाकृतिर्नायिका ॥ 1 ॥

निर्मग्नश्रुतिजालमार्गणदशादत्तक्षणैर्वीक्षणै-
रंतस्तन्वदिवारविंदगहनान्यौदन्वतीनामपाम् ।
निष्प्रत्यूहतरंगरिंखणमिथः प्रत्यूढपाथश्छटा-
डोलारोहसदोहलं भगवतो मात्स्यं वपुः पातु नः ॥ 2 ॥

अव्यासुर्भुवनत्रयीमनिभृतं कंडूयनैरद्रिणा
निद्राणस्य परस्य कूर्मवपुषो निश्वासवातोर्मयः ।
यद्विक्षेपणसंस्कृतोदधिपयः प्रेंखोलपर्यंकिका-
नित्यारोहणनिर्वृतो विहरते देवस्सहैव श्रिया ॥ 3 ॥

गोपायेदनिशं जगंति कुहनापोत्री पवित्रीकृत-
ब्रह्मांडप्रलयोर्मिघोषगुरुभिर्घोणारवैर्घुर्घुरैः ।
यद्दंष्ट्रांकुरकोटिगाढघटनानिष्कंपनित्यस्थिति-
र्ब्रह्मस्तंबमसौदसौ भगवतीमुस्तेवविश्वंभरा ॥ 4 ॥

प्रत्यादिष्टपुरातनप्रहरणग्रामःक्षणं पाणिजै-
रव्यात्त्रीणि जगंत्यकुंठमहिमा वैकुंठकंठीरवः ।
यत्प्रादुर्भवनादवंध्यजठरायादृच्छिकाद्वेधसां-
या काचित्सहसा महासुरगृहस्थूणापितामह्यभृत् ॥ 5 ॥

व्रीडाविद्धवदान्यदानवयशोनासीरधाटीभट-
स्त्रैयक्षं मकुटं पुनन्नवतु नस्त्रैविक्रमो विक्रमः ।
यत्प्रस्तावसमुच्छ्रितध्वजपटीवृत्तांतसिद्धांतिभि-
स्स्रोतोभिस्सुरसिंधुरष्टसुदिशासौधेषु दोधूयते ॥ 6 ॥

क्रोधाग्निं जमदग्निपीडनभवं संतर्पयिष्यन् क्रमा-
दक्षत्रामिह संततक्ष य इमां त्रिस्सप्तकृत्वः क्षितिम् ।
दत्वा कर्मणि दक्षिणां क्वचन तामास्कंद्य सिंधुं वस-
न्नब्रह्मण्यमपाकरोतु भगवानाब्रह्मकीटं मुनिः ॥ 7 ॥

पारावारपयोविशोषणकलापारीणकालानल-
ज्वालाजालविहारहारिविशिखव्यापारघोरक्रमः ।
सर्वावस्थसकृत्प्रपन्नजनतासंरक्षणैकव्रती
धर्मो विग्रहवानधर्मविरतिं धन्वी सतन्वीतु नः ॥ 8 ॥

फक्कत्कौरवपट्टणप्रभृतयः प्रास्तप्रलंबादय-
स्तालांकास्यतथाविधा विहृतयस्तन्वंतु भद्राणि नः ।
क्षीरं शर्करयेव याभिरपृथग्भूताः प्रभूतैर्गुणै-
राकौमारकमस्वदंतजगते कृष्णस्य ताः केलयः ॥ 9 ॥

नाथायैव नमः पदं भवतु नश्चित्रैश्चरित्रक्रमै-
र्भूयोभिर्भुवनान्यमूनिकुहनागोपाय गोपायते ।
कालिंदीरसिकायकालियफणिस्फारस्फटावाटिका-
रंगोत्संगविशंकचंक्रमधुरापर्याय चर्यायते ॥ 10 ॥

भाविन्या दशयाभवन्निह भवध्वंसाय नः कल्पतां
कल्की विष्णुयशस्सुतः कलिकथाकालुष्यकूलंकषः ।
निश्शेषक्षतकंटके क्षितितले धाराजलौघैर्ध्रुवं
धर्मं कार्तयुगं प्ररोहयति यन्निस्त्रिंशधाराधरः ॥ 11 ॥

इच्छामीन विहारकच्छप महापोत्रिन् यदृच्छाहरे
रक्षावामन रोषराम करुणाकाकुत्स्थ हेलाहलिन् ।
क्रीडावल्लव कल्किवाहन दशाकल्किन्निति प्रत्यहं
जल्पंतः पुरुषाः पुनंतु भुवनं पुण्यौघपण्यापणाः ॥

विद्योदन्वति वेंकटेश्वरकवौ जातं जगन्मंगलं
देवेशस्यदशावतारविषयं स्तोत्रं विवक्षेत यः ।
वक्त्रे तस्य सरस्वती बहुमुखी भक्तिः परा मानसे
शुद्धिः कापि तनौ दिशासु दशसु ख्यातिश्शुभा जृंभते ॥

। इति कवितार्किकसिंहस्य सर्वतंत्रस्वतंत्रस्य श्रीमद्वेंकटनाथस्य वेदांताचार्यस्य कृतिषु दशावतारस्तोत्रम् ।

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