Kajali Teej Vrat Katha: जानियें कजली तीज व्रत कब है? साथ ही पढ़ें कजली तीज व्रत कथा

kajali teej vrat katha

तीज माता की कृपा से पायें अखण्ड़ सुहाग और वैवाहिक जीवन के समस्त सुख। जानियें व्रत की विधि, महत्व, तीज पर मनाये जाने वाली परम्परायें और साथ ही पढ़ें कजली तीज व्रत कथा (Kajali Teej Vrat Katha)…

कजरी तीज (Kajari Teej) कब हैं?, कजरी तीज (Kajari Teej) का महत्व क्या हैंं?, कजरी तीज / सातुड़ी तीज पर मनायी जाने वाली परंपराये कौन सी हैं?, कजरी तीज व्रत की विधि क्या हैं? और कजरी तीज के व्रत के नियम क्या हैं? यह जानने के लिये यहाँ क्लिक करेंं। Click here for all information about Kajari Teej…

Kajari Teej Vrat Katha – Third Story
कजली तीज व्रत कथा – तृतीय

पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन काल में एक राजा था। उस राजा के 7 पुत्र और 1 पुत्री थी। उस समय में राजा और राज परिवार के लोग पूरे वर्ष कभी युद्ध तो कभी देशाटन तो कभी और दूसरे कार्यो में व्यस्त रहा करते। एकमात्र चौमासा ही ऐसा जब इन सब चीजों से अवकाश रहता था। इस समय में बरसात के कारण युद्ध नही किये जा सकते थे, नदियाँ उफान पर रहती थी इसलिये देशाटन पर भी नही जाया जा सकता था। इसीलिये राजपरिवार के लोग अपने पुत्र-पुत्रियों के विवाह आदि मांगलिक कार्य इसी चातुर्मास में किया करते थे। विशेष रूप से जब भाद्रपद मास में विवाह करके बहू लाई जाती थी तो उसे भादौड़ी लाड़ी की संज्ञा दी जाती थी।

उस राजा ने भी अपने पूर्वजों की परम्परा का निर्वाह करते हुये अपने ज्येष्ठ पुत्र का विवाह चातुर्मास में ही किया। राजा के ज्येष्ठ पुत्र का विवाह बड़े जोर शोर से सम्पन्न हुआ। शुभ मूहूर्त में गाजे बाजे के साथ बहू को विदा कराके अपने राज्य की ओर लेकर चल दिये। रास्ता थोड़ा लम्बा था इसलिये उसको तय करने में कुछ दिन का समय लगना तय था। कज्जली तीज के व्रत (Kajali Teej Vrat Katha) वाले दिन वो लोग यात्रा में रहेंगे यह जानकर बहू की माँ ने अपनी बेटी को कज्जली तीज के व्रत (Kajali Teej Vrat Katha) के लिये सत्तू और पूजा की सामग्री देते हुये पूजा की विधि बताई। परंतु वो उसको यह बताना भूल गई की नीम और आंकड़े के खड़े वृक्ष की पूजा नही करनी बल्कि उसकी टहनी तोड़ कर उस टहनी की पूजा करनी हैं।

सभी लोग वहाँ से विदा होकर चल दिये और जब मार्ग में कज्ज्ली तीज (Kajali Teej Vrat Katha)का दिन आया तो बहू ने कज्जली तीज की पूजा की परंतु उसने अंजाने में खड़े नीम और आंकड़े के वृक्ष की पूजा कर दी। ऐसा करने से तीज माता उस बहू और राजा से नाराज हो गई। और उन्होने एक नाग और नागिन को आदेश दिया की इस राजा का कोई भी पुत्र विवाह होने बाद जीवित नही रहना चाहिये। नाग और नागिन ने माता कि आज्ञा के पालन का वचन दे दिया। राजा को इस विषय मे कुछ ज्ञान नही था। उसने तो अपने पुत्र के लिये नया महल बनवाया था। जब वो नगर में पहुँचे तो बड़ी धूम-धाम से उनका स्वागत किया गया।

नवविवाहित जोड़े को नये महल में भेजा गया। उसी रात को राजा के ज्येष्ठ पुत्र की नागिन के द्वारा काटे जाने से मृत्यु हो गई। पूरे राज्य में शोक की लहर दौड़ गई। विवाह की खुशियाँ मृत्यु के शोक में बदल गई। राजा शोक के सागर में ड़ूब गया। उसको समझ ही नही आ रहा था कि ऐसा कैसे हो गया? समय बीतता गया और फिर राजा के दूसरे पुत्र के विवाह के लिये रिश्ते आने लगे। राजा ने अपने दूसरे पुत्र का विवाह तय कर दिया और नियत तिथि पर विवाह सम्पन्न हो गया। दूसरी बार भी वही सबकुछ हुआ। मार्ग मे कज्जली तीज पड़ी और इस बार भी बहू की माँ ने अपनी बेटी को यह नही बताया कि नीम और आंकड़े के खड़े वृक्ष की पूजा नही करनी बल्कि उसकी टहनी तोड़ कर उस टहनी की पूजा करनी हैं। और उसने भी वही गलती करी जो उससे बड़ी बहू ने करी थी। फिर राजा के दूसरे पुत्र के साथ भी वही हुआ जो उसके ज्येष्ठ पुत्र के साथ हुआ था। ऐसे करते करते के छ: बेटों की शादियां हुई और सभी की नागिन द्वारा काटे जाने से मृत्यु हो गई।

राजा पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था। सात में से उसके छ: पुत्र असमय ही काल के गाल में समा गये थे। उसने निश्चय किया की अब वो अपने सबसे छोटे पुत्र का विवाह ही नही करेगा। परन्तु परिवार वालों और मंत्रियों ने राजा को बहुत समझाया और यह कह कर मनाया कि अबकि बार हम राजकुमार का विवाह उस नगर से नही करेंगे जिस नगर से पहले छ: राजकुमारों का विवाह किया था। हम इस राजकुमार का विवाह दूसरे नगर से करेंगे।

सबके समझाने पर राजा मान गया और राजा के सातवें पुत्र का विवाह तय हो गया। राजा का मन अनिश्चितता और अनहोनी के भय से व्याकुल था। कही न कही उसे ड़र था कि उसके सातवें पुत्र के साथ वैसा न हो जो जैसा उसके छ: पुत्रों के साथ हुआ। राजा के सातवें पुत्र का विवाह भी सम्पन्न हो गया। इस बार भी कज्जली तीज तभी पड़ रही थी जब वो मार्ग में होते। इस बार बहू की माँ बहुत समझदार थी। उसने अपनी बेटी को सत्तू और पूजन की सामग्री देने के साथ ही पूजा की पूरी विधि (Kajali Teej Vrat Katha) भी बताई और साथ ही यह भी बताया कि नीम और आंकड़े के खड़े वृक्ष की पूजा नही करनी बल्कि पूजा के लिये उसकी टहनी तुड़वा कर मंगवा लेना। और साथ ही यह भी बताया कि पूजा के लिये थोड़ा कच्चा दूध भी रखवा लेना।

राजा अपने पुत्र और पुत्रवधू को लेकर अपने नगर को चल दिया। जब कज्जली तीज आई तब बहू ने अपने ससुर से कहा पिताजी मुझे कज्जली तीज की पूजा करनी है उसके लिये आप नीम और आंकड़ा और साथ में थोड़ा सा कच्चा दूध मंगवा दो। राजा को पुरानी बातें याद गयी जिनको सोचकर वो भयभीत हो गया। फिर उसने सोचा कि इस बार पूजा की विधि पहले से अलग है और यही सोच कर उसने पूजन के लिये नीम, आंकड़ा और कच्चा दूध मंगवा दिया। बहू ने पूरे विधि विधान से तीज माता की पूजा करी। उसकी पूजा से तीज माता संतुष्ट हो गई। और उन्होने प्रसन्न होकर उसे अखण्ड़ सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद भी दिया।

अपने राज्य पहुँच कर राजा ने अपने पुत्र को दूसरे महल मे रहने के लिये कहा, तब बहू ने कहा- नही पिताजी मैं उसी महल में रहूंगी, जिसमें इससे पहले आपने अपने बड़े बेटे-बहुओं को रखा था। राजा ने बहुत समझाया परंतु बहू न मानी और उसने राजा को विश्वास दिलाया की कुछ भी अनिष्ट नही होगा। राजा ने अपनी बहू की बात मानकर उन्हे उसी महल में रहने की आज्ञा दे दी।

फिर बहू ने महल की पहली सीढ़ी पर दीपक जला कर रख दिया, दूसरी सीढ़ी पर चने भिगोकर रख दिए, तीसरी सीढ़ी पर कच्चा दूध रख दिया और सबसे ऊपर वाली सीढ़ी पर फूलों की टोकरी रख दी।
रात्रि में नागिन उसके पति को ड़सने के लिये उस महल में आयी तो उसने देखा कि सीढ़ी पर दीपक जल रहा है, तो वो बहुत खुश हुई और आशीर्वाद दिया की तुमने मुझे रास्ता दिखाया। फिर नागिन आगे चली तो उसे खाने के लिये भीगे हुए मिले। उसने चने खाकर दिल से आशीर्वाद दिया। फिर ओर आगे चली तो उसे दूध का कटोरा मिला, उसने पेट भर के दूध पिया और खुश होकर आशीर्वाद दिया। और उससे आगे चलकर अगली सीढ़ी पर फूलों की डलिया मिली उसमें वो खूब लोटपोट हुई और खुश होकर आशीर्वाद देती हुई उस कमरे में पहुंची जहाँ राजकुमार अपनी पत्नी के साथ सोया हुआ था।

राजकुमार को नींद आ चुकी थी, परंतु उसकी पत्नी जाग रही थी। बहू ने पहले से ही अपनी ननद से कहकर एक हाँड़ी मंगाकर अपने कमरे में रख ली थी। अब नागिन चारों तरफ घूम रही थी और सोच रही थी कि इसने मेरा इतना ध्यान रखा, मेरे लिये खाना रखा, दूध रखा और फूल रखें तो क्या मैं इसके पति को काट कर उसके प्राण हरूँ या छोड़ दूँ? फिर उसे तीज माता का वर्षों पूर्व दिया वो आदेश स्मरण हुआ और उसने उसके पति को ड़स कर अपना कर्तव्य पूर्ण कर दिया। जब बहू ने देखा की नागिन ने उसके पति को ड़स लिया है, उसने उस नागिन को काटकर टुकड़े करके हांडी में रख दिया। जब सुबह हुई और बहुत देर तक कोई कमरे से बाहर नही आया तो रानी ने अपनी बेटी को भेजा।

ननंद अपनी भाभी और भाई को जगाने के लिये उनके कमरे में गई तो वहाँ खून देखकर चिल्लाने लगी। तब सब लोग वहाँ इकट्ठे हो गये और चारो तरफ शोर मच गया। तभी ऊपर से बहू की आवाज आई कि मैं अभी जीवित हूँ। परन्तु इनको नागिन के ड़स लिया है। मैंने उस नागिन को मार ड़ाला है और यह उसी का रक्त हैं। राजा अपने सबसे छोटे बेटे की मृत्यु की सूचना से सदमें में चला गया। फिर सचेत होकर बोला मैंने पहले ही बहू को मना किया था परंतु वो नही मानी। अब देखो यह क्या हो गया। सबका रो-रोकर बुरा हाल हो गया।

राजकुमार के अंतिम संस्कार की तैयारी होने लगी। शमशान में दूर दूर से लोग एकत्रित हो रहे थे। जब राजकुमार को चिता पर लिटाया गया तो उसकी पत्नी ने कहा कि मैं भी अपने पति के साथ सती होऊँगी। और यह कहकर वो हाँड़ी हाथ में लेकर अपने पति के शव के साथ चिता पर बैठ गई। तभी नाग देवता आए और बोले कि तुम तो सती हो रही हो पर मेरी नागिन को लेकर क्यों जल रही हो? तब उस बहू ने कहा तुम्हारी नागिन ने मेरे पति और उनके छ: भाइयों को मारा हैं। इसीलिये अब मैं उसको लेकर अपने पति के शव के साथ सती हो रही हूँ।

नाग देवता ने उसे कहा कि मेरी नागिन ने यह सब तीज माता के आदेश पर किया था। तब बहू ने कहा ऐसा कैसे हो सकता है? मैंने तो पूरे विधि-विधान से तीज माता की पूजा की थी। जो भी स्त्री विधि-विधान के साथ तीज माता की पूजा करती है, तीज माता उसे अखण्ड़ सौभाग्य का आशीर्वाद देती हैं। फिर वो मेरे पति को मारने का आदेश क्यूँ देंगी? तब नाग देवता ने तीज माता का आह्वाहन किया। तब तीज माता प्रकट होकर बोली – हे पुत्री! तुझसे पहले तेरी जेठानियों ने मेरी पूजा में एक बहुत बड़ी त्रूटी करी थी और यह सब उसी का प्रणाम हैं। उन्होने नीम और आंकड़े के खड़े पेड़ की पूजा कि थी जबकि मेरी पूजा में नीम और आंकड़े के वृक्ष की टहनी का प्रयोग होता है। तूने मेरी पूजा पूरे विधि-विधान से की थी। इसलिये मैं तुझे अखण्ड़ सौभाग्य का वरदान देती हूँ। तेरा पति अभी जीवित हो जायेगा।

तब उस बहू ने कहा – हे माँ! आप तो करूणा की सागर हो। इनसे यह गलती अंजाने में हुई हैं। इनको इस विषय में कुछ भी पता ही नही था। इनकी इस गलती के लिये इन्हे क्षमा कर दीजिये। मेरे पति के साथ मेरे पति के छ: भाइयों को भी जीवित कर दीजिये। वहाँ उपस्थित सभी स्त्री-पुरूष माँ से दया की प्रार्थना करने लगे। उस बहू के भक्ति युक्त वचन और सब की प्रार्थना सुनकर माँ को दया आ गयी। फिर उन्होने कहा, हे पुत्री मैं तुझ पर अति प्रसन्न हूँ। तेरे पति के छ: भाई भी तेरे पति के साथ जीवित हो जायेंगे। ऐसा कहकर माता अंतर्ध्यान हो गई। तभी उसका पति जीवित हो गया और उधर उसके सभी भाई भी जीवित हो कर आ गये। उस बहू ने वो हाण्ड़ी नाग देवता को दे दी। तीज माता की कृपा से वो नागिन भी जीवित हो गई। उसने भी राजा की छोटी बहू को खूब आशीष दिये।

राजा अपने सभी पुत्रों को जीवित देखकर अति प्रसन्न हुआ। और अपनी छोटी बहू के पैर छूने लगा और बोला तेरे भाग्य से आज मेरे सभी पुत्र जीवित हो गये। मैं तेरा बहुत आभारी हूँ। तब बहू ने कहा यह सब तो तीज माता की कृपा है। आप उनकी चरण वंदना कीजिये और उनको धन्यवाद दीजिये। तब राजा ने सारे नगर में तीज माता की महिमा का गुणगान कराया और सबको पूजा की सही विधि से अवगत कराया। राजा की आज्ञा से हर वर्ष गाजे-बाजे के साथ तीज माता की सवारी निकाली जाने लगी।

जैसे तीज माता ने छोटी बहू की सुनी वैसे सबकी सुने और जैसे उसको अखण्ड़ सुहाग दिया वैसे सबको दें। तीज का व्रत करने वाली स्त्री को कजली तीज की व्रत कथा (Kajali Teej Vrat Katha) अवश्य पढ़नी चाहिये।