दुख-दरिद्रता का नाश करके सुख-सम्पत्ति को आकर्षित करता है स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का पाठ

Bhairava; Swarnakarshana Bhairava; Swarnakarshana Bhairava Stotram;

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् (swarnakarshana bhairava stotram) का नित्य पाठ करने से दुख – दरिद्रता का नाश होता है और सुख एवं धन की प्राप्ति होती है। जानिये स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का पाठ कब और कैसे करें साथ ही पढ़े इसका महत्व…

How And When To Recite Swarnakarshana Bhairava Stotram?
कब और कैसे करें स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का पाठ?

  • प्रात:काल या संध्या के समय स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके एकाग्रचित्त होकर भगवान भैरव का ध्यान करें।
  • श्रद्धा-भक्ति के साथ स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का पाठ करें।
  • स्तोत्र का पाठ करने के बाद भगवान भैरव से अपने त्रुटियों और अपराधों के लिये क्षमा माँगें और फिर उनसे अपना मनोरथ निवेदन करें।

विशेष: शास्त्रों के अनुसार यदि कोई साधक पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ एकाग्रचित्त होकर लगातार तीन दिन तक संध्या के समय 10 बार इस स्तोत्र का पाठ करता है तो उसे स्वप्न में भगवान भैरव के दर्शन प्राप्त होते है। जो श्रेष्ठ मनुष्य स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का प्रात:काल या संध्या के समय आठ बार पाठ करता है तो उसे अपार स्वर्ण की प्राप्ति होती है।

Know The Benefits Of Reciting Swarna Akarshana Bhairava Stotram
स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् पाठ का महत्व

स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से भगवान महादेव के स्वरूप भैरव जी की कृपा साधक को प्राप्त होती है। भगवान भैरव उस पर प्रसन्न होते है। पूर्ण विश्वास के साथ एकाग्रचित्त होकर इस स्तोत्र का प्रतिदिन संध्या के समय पाठ करने से

  • साधक अपने सभी पापों से मुक्त हो जाता है।
  • उसे महान ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
  • अपार धन – धान्य की प्राप्ति होती है।
  • उस श्रेष्ठ मनुष्य को भगवान भैरव के दर्शन प्राप्त होते है।
  • बड़ी मात्रा में स्वर्ण प्राप्त होता है।
  • समस्त मनोकामनाओं की पूर्ति होती है।
  • तीनो लोकों में ऐसी कोई वस्तु नही जो वह प्राप्त करना चाहता और ना पा सके। उसे अचल ऐश्वर्य प्राप्त होता है।
  • विषधर जीवों से रक्षा होती है उसे उनका भय नहीं रहता।
  • शत्रु का नाश होता है। दुख एवं दुर्भाग्य का का नाश होता है।
  • रोग और दरिद्रता दूर होती है।
  • समस्त सुख भोगकर मरणोपरांत साधक सद्गति को प्राप्त करता है।

Swarnakarshana Bhairava Stotram Lyrics
स्वर्णाकर्षण भैरव स्तोत्रम्

ॐ अस्य श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवस्तोत्रं मन्त्रस्य बह्मऋषिः
अनुष्टुप् छन्दः श्रीस्वर्णाकर्षणभैरवदेवता
ह्रीं बीजं क्लीं शक्तिः सः कीलकं मम दारिद्र्य नाशार्थे पाठ विनियोगः ।

ऋष्यादिन्यासः

ब्रह्मर्षये नमः शिरसि ।
अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे ।
स्वर्णाकर्षणभैरवाय नमः हृदि ।
ह्रीं बीजाय नमः गुह्ये ।
क्लीं शक्तये नमः पादयोः ।
सः कीलकाय नमः नाभौ ।
विनियोगाय नमः सर्वाङ्गे ।
ह्रां ह्रीं ह्रूं इति कर षडङ्गन्यासः ॥

अथ ध्यानम् –

पारिजात द्रुम कान्तारे स्थिते माणिक्यमण्डपे
सिंहासन गतं वन्दे भैरवं स्वर्णदायकं
गाङ्गेय पात्रं डमरूं त्रिशूलं वरं करः सन्दधतं त्रिनेत्रं
देव्यायुतं तप्तस्वर्णवर्ण स्वर्णाकर्षणभैरवमाश्रयामि ॥

मन्त्रः

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं ऐं श्रीं आपदुद्धारणाय ह्रां ह्रीं ह्रूं
अजामल वद्धाय लोकेश्वराय स्वर्णाकर्षणभैरवाय
मम दारिद्र्य विद्वेषणाय महाभैरवाय नमः श्रीं ह्रीं ऐम् ।

अथ स्तोत्रम् –

ॐ नमस्ते भैरवाय ब्रह्मविष्णुशिवात्मने ।
नमस्त्रैलोक्य वन्ध्याय वरदाय वरात्मने ॥ १॥

रत्नसिंहासनस्थाय दिव्याभरण शोभिने ।
दिव्यमाल्यविभूषाय नमस्ते दिव्यमूर्तये ॥ २॥

नमस्तेऽनेक हस्ताय अनेक शिरसे नमः ।
नमस्तेऽनेक नेत्राय अनेक विभवे नमः ॥ ३॥

नमस्तेऽनेक कण्ठाय अनेकांसाय ते नमः ।
नमस्तेऽनेक पार्श्वाय नमस्ते दिव्य तेजसे ॥ ४॥

अनेकायुध युक्ताय अनेक सुर सेविने ।
अनेक गुण युक्ताय महादेवाय ते नमः ॥ ५॥

नमो दारिद्र्यकालाय महासम्पद्प्रदायिने ।
श्रीभैरवी संयुक्ताय त्रिलोकेशाय ते नमः ॥ ६॥

दिगम्बर नमस्तुभ्यं दिव्याङ्गाय नमो नमः ।
नमोऽस्तु दैत्यकालाय पापकालाय ते नमः ॥ ७॥

सर्वज्ञाय नमस्तुभ्यं नमस्ते दिव्यचक्षुषे ।
अजिताय नमस्तुभ्यं जितमित्राय ते नमः ॥ ८॥

नमस्ते रुद्ररूपाय महावीराय ते नमः ।
नमोऽस्त्त्वनन्तवीर्याय महाघोराय ते नमः ॥ ९॥

नमस्ते घोरघोराय विश्वघोराय ते नमः ।
नमः उग्राय शान्ताय भक्तानां शान्तिदायिने ॥ १०॥

गुरवे सर्वलोकानां नमः प्रणवरूपिणे ।
नमस्ते वाग्भवाख्याय दीर्घकामाय ते नमः ॥ ११॥

नमस्ते कामराजाय योषितकामाय ते नमः ।
दीर्घमायास्वरूपाय महामायाय ते नमः ॥ १२॥

सृष्टिमायास्वरूपाय निसर्गसमयाय ते ।
सुरलोकसुपूज्याय आपदुद्धारणाय च ॥ १३॥

नमो नमो भैरवाय महादारिद्र्यनाशिने ।
उन्मूलने कर्मठाय अलक्ष्म्याः सर्वदा नमः ॥ १४॥

नमो अजामलवद्धाय नमो लोकेश्वराय ते ।
स्वर्णाकर्षणशीलाय भैरवाय नमो नमः ॥ १५॥

मम दारिद्र्य विद्वेषणाय लक्ष्याय ते नमः ।
नमो लोकत्रयेशाय स्वानन्दं निहिताय ते ॥ १६॥

नमः श्रीबीजरूपाय सर्वकामप्रदायिने ।
नमो महाभैरवाय श्रीभैरव नमो नमः ॥ १७॥

धनाध्यक्ष नमस्तुभ्यं शरण्याय नमो नमः ।
नमः प्रसन्न आदिदेवाय ते नमः ॥ १८॥

नमस्ते मन्त्ररूपाय नमस्ते मन्त्ररूपिणे ।
नमस्ते स्वर्णरूपाय सुवर्णाय नमो नमः ॥ १९॥

नमः सुवर्णवर्णाय महापुण्याय ते नमः ।
नमः शुद्धाय बुद्धाय नमः संसारतारिणे ॥ २०॥

नमो देवाय गुह्याय प्रचलाय नमो नमः ।
नमस्ते बालरूपाय परेषां बलनाशिने ॥ २१॥

नमस्ते स्वर्ण संस्थाय नमो भूतलवासिने ।
नमः पातालवासाय अनाधाराय ते नमः ॥ २२॥

नमो नमस्ते शान्ताय अनन्ताय नमो नमः ।
द्विभुजाय नमस्तुभ्यं भुजत्रयसुशोभिने ॥ २३॥

नमोऽनमादि सिद्धाय स्वर्णहस्ताय ते नमः ।
पूर्णचन्द्रप्रतीकाश वदनाम्भोजशोभिने ॥ २४॥

नमस्तेऽस्तुस्वरूपाय स्वर्णालङ्कारशोभिने ।
नमः स्वर्णाकर्षणाय स्वर्णाभाय नमो नमः ॥ २५॥

नमस्ते स्वर्णकण्ठाय स्वर्णाभाम्बरधारिणे ।
स्वर्णसिंहानस्थाय स्वर्णपादाय ते नमः ॥ २६॥

नमः स्वर्णभपादाय स्वर्णकाञ्चीसुशोभिने ।
नमस्ते स्वर्णजङ्घाय भक्तकामदुधात्मने ॥ २७॥

नमस्ते स्वर्णभक्ताय कल्पवृक्षस्वरूपिणे ।
चिन्तामणिस्वरूपाय नमो ब्रह्मादिसेविने ॥ २८॥

कल्पद्रुमाघः संस्थाय बहुस्वर्णप्रदायिने ।
नमो हेमाकर्षणाय भैरवाय नमो नमः ॥ २९॥

स्तवेनानेन सन्तुष्टो भव लोकेश भैरव ।
पश्य मां करुणादृष्ट्या शरणागतवत्सल ॥ ३०॥

श्री महाभैरवस्येदं स्तोत्रमुक्तं सुदुर्लभम् ।
मन्त्रात्मकं महापुण्यं सर्वेश्वर्यप्रदायकम् ॥ ३१॥

यः पठेन्नित्यमेकाग्रं पातकै स प्रमुच्यते ।
लभते महतीं लक्ष्मीमष्टैश्वर्यमवाप्नुयात् ॥ ३२॥

चिन्तामणिमवाप्नोति धेनु कल्पतरुं ध्रुवम् ।
स्वर्ण राशिमवाप्नोति शीघ्नमेव न संशयः ॥ ३३॥

त्रिसन्ध्यं यः पठेत्स्तोत्रं दशावृत्या नरोत्तमः ।
स्वप्ने श्री भैरवस्तस्य साक्षाद्भूत्वा जगद्गुरुः ॥ ३४॥

स्वर्णराशि ददात्यस्यै तत्क्षणं नात्र संशयः ।
अष्टावृत्या पठेत् यस्तु सन्ध्यायां वा नरोत्तमम् ॥ ३५॥

लभते सकलान् कामान् सप्ताहान्नात्र संशयः ।
सर्वदः यः पठेस्तोत्रं भैरवस्य महात्मनाः ॥ ३६॥

लोकत्रयं वशीकुर्यादचलां लक्ष्मीमवाप्नुयात् ।
नभयं विद्यते क्वापि विषभूतादि सम्भवम् ॥ ३७॥

म्रियते शत्रवस्तस्य अलक्ष्मी नाशमाप्नुयात् ।
अक्षयं लभते सौख्यं सर्वदा मानवोत्तमः ॥ ३८॥

अष्ट पञ्चाद्वर्णाढ्यो मन्त्रराजः प्रकीर्तितः ।
दारिद्र्य दुःखशमनः व स्वर्णाकर्षण कारकः ॥ ३९॥

य एन सञ्चयेद्धीमान् स्तोत्रं वा प्रपठेत् सदा ।
महा भैरव सायुज्यं स अन्तकालेलभेद् ध्रुवम् ॥ ४०॥

॥ इति रुद्रयामलतन्त्रे स्वर्णाकर्षणभैरवस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥