नृसिंह जयन्ती (Narsingh Jayanti) का व्रत करने से भगवान नृसिंह प्रसन्न होते हैं। जानियें नृसिंह जयन्ती कब हैं?, नृसिंह जयन्ती व्रत की क्या विधि है?, नृसिंह जयन्ती के व्रत में कौन सी कथा सुनी व पढ़ी जाती है? और नृसिंह जयन्ती का व्रत करने से क्या लाभ होता है?
Narsingh Jayanti
नृसिंह जयन्ती
वैशाख मास शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान नृसिंह के रूप में प्रकट हुए थे। इसलिए इस दिन नृसिंह जयन्ती (Narsingh Jayanti) पर्व के रूप में मनायी जाती है। यह व्रत हर नर-नारी कर सकता हैं। इस व्रत में भगवान नृसिंह का पूजन होता है। जो भी मनुष्य इस महान व्रत को करता है उस पर भगवान नृसिंह प्रसन्न होते और उसके जीवन की सभी कठिनाइयाँ समाप्त हो जाती है। इस व्रत को विधि पूर्वक करने वाला व्यक्ति सांसारिक दुःखों से मुक्त हो जाता है ।
Narsingh Jayanti Kab Hai?
नृसिंह जयन्ती कब हैं?
इस वर्ष नृसिंह जयन्ती (Narsingh Jayanti) का व्रत 22 मई, 2024 बुधवार के दिन किया जायेगा।
Puja Vidhi
पूजा विधि
- दोपहरी में वैदिक मंत्रों का उच्चारण करके स्नान करना चाहिए।
- नृसिंह भगवान की मूर्ति को गंगाजल से स्नान कराकर मंडप में स्थापित करके विधिपूर्वक पूजन करने का विधान है।
- ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान-दक्षिणा, वस्त्र आदि देना अभीष्ट है । सूर्यास्त के समय मन्दिर में जाकर आरती करके ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए।
- एकादशी के व्रत की ही तरह इस व्रत में भी नरसिंह जयंती (Narsingh Jayanti) से एक दिन पहले भोजन करना चाहिए। अनाज नहीं खाना चाहिए। जयंती के अगले दिन ही व्रत खोलना चाहिये।
- सूर्यास्त से पहले नरसिंह पूजा करे। और इसके बाद जागरण भी करना चाहिए और अगले दिन सुबह में दर्शन पूजन करनाचाहिए। पूजा करने के बाद व्रत तोड़ सकते है।
- इस दिन सबसे शक्तिशाली और प्रभावी साधना है नरसिंह यंत्र की स्थापना। इसे घर के पूर्व भाग में ऐसे रखे की उसका मुख पश्चिम की ओर हो। पूर्व दिशा सूर्य देवता की और महालक्ष्मी की दिशा है। यह उन सभी दिशाओं में सबसे शुभ माना जाता है जहां से सकारात्मक ऊर्जा आपके घर में प्रवेश करती है। जब यन्त्र यहाँ रखा जाता है, इसकी ऊर्जा पूरे घर में फैल जाती है, और सभी नकारात्मकताओं को दूर कर देती है। और सौभाग्य, शांति, समृद्धि, सद्भाव और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करता है।
विशेष: इस दिन नृसिंह-ऋणमोचन स्तोत्रम् का पाठ करने से मनुष्य सभी प्रकार के ऋण से मुक्त हो जाता हैं।
Benefits Of Narsingh Jayanti Vrat
नृसिंह जयन्ती व्रत के लाभ
नृसिंह जयन्ती (Narsingh Jayanti) का व्रत एवं पूजन पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से साधक को भगवान नृसिंह का आशीर्वाद प्राप्त होता है और उनकी कृपा से –
• ऋण, वित्तीय कठिनाइयों, रिश्ते में आयी समस्याएँ दूर होती हैं।
• धन प्राप्ति और इच्छा पूर्ण होती है।
• शरीर निरोगी होता है और बीमारियों से सुरक्षा होती है।
• अदालती मामलों और कानूनी मामलों में सफलता के मिलती है
Narsingh Jayanti Ki Vrat Katha
नृसिंह जयन्ती की व्रत कथा
राजा कश्यप के दो पुत्र थे, हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिप। राजा के मरने के बाद ज्येष्ठ पुत्र हिरण्याक्ष राजा बना। हिरण्याक्ष बहुत ही क्रूर राजा था। उसके पापों के कारण वाराह भगवान ने उसे मृत्यु के घाट उतार दिया। अपने बडे भाई की मृत्यु का बदला लेने के लिए हिरण्यकशिपु ने भगवान शंकर को प्रसन्न करने के लिए उनका कठोर तप किया। और उन्हे प्रसन्न करके वर माँगा कि- “मैं न अन्दर मरूँ न बाहर, न दिन में मरूँ न रात में, न भूमि पर मरू न आकाश में, न जल में मरूँ न थल में, न अस्त्र से मरूँ न शस्त्र से, न मनुष्य से मरूँ न पशु से|” भगवान शंकर तथास्तु कहकर वहाँ से अन्तर्धान हो गए। ऐसा वरदान पाकर वह अपने को अजर-अमर समझने लगा। उसने स्वयं को ही भगवान घोषित कर दिया। और लोगों से जबरदस्ती अपनी पूजा कराने लगा। जो उसकी बात ना मानते उन्हे वो घोर कष्ट देता। उसके अत्याचार इतने बढ़ गए कि चारों ओर त्राहिमाम्-त्राहिमाम् मच गया। उसके यहाँ पुत्र का जन्म हुआ और उसका नाम प्रह्लाद रखा गया। प्रह्लाद भगवान विष्णु का परम भक्त था उसने अपने पिता को भगवान मानने से इंकार कर दिया। हिरण्यकशिपु ने अपने बेटे को बहुत समझाया कि वो उसे ही भगवान माने। परन्तु वह इस बात को मानने को तैयार नहीं हुआ। हिरण्यकशिपु ने क्रोध मे आकर उसे मारने के लिए कई प्रयाक किये परन्तु भगवान विष्णु ने हर बार बालक प्रहलाद की रक्षा की। एक बार हिरण्यकशिपु ने प्रहलाद को खम्भे से बाँध दिया और तलवार से उसकी हत्या करनी चाही। तब खम्भा फाड़कर भगवान नृसिंह प्रकट हुए। भगवान नृसिंह का आधा शरीर पुरुष का और आधा सिंह का था। उन्होंने हिरण्यकशिपु को उठाकर अपने घुटनों पर रखा और दहलीज पर ले जाकर गोधूलि बेला में अपने नाखूनों से उसका पेट को फाड़ दिया। इस तरह दुनिया को हिरण्यकशिपु के अत्याचारों से मुक्ति दिलाई और अपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करी। नृसिंह भगवान का लोकमंगल के लिए स्मरण करके ही इस दिन व्रत करने का माहात्म्य है।