गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) के दिन कैसे करें अपने गुरू की पूजा? साथ ही जानिये गुरु पूर्णिमा से जुड़ी खास बातें…

Guru purnima

गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) को व्यास पूर्णिमा और मुड़िया पूनों के नाम से भी पुकारा जाता हैं। इस दिन गुरू की पूजा किये जाने का विधान है। जानियें गुरु पूर्णिमा कब हैं?, गुरु पूर्णिमा पर गुरू पूजा का मुहूर्त क्या है? साथ में पढ़ियेंं गुरू पूजन की विधि और गुरू पूर्णिमा का महत्व…

Guru Purnima (Vyas Purnima)
गुरु पूर्णिमा (व्यास पूर्णिमा)

आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा (Guru Purnima) और व्यास पूर्णिमा (Vyas Purnima) भी कहते हैं। ब्रज क्षेत्र में गुरु पूर्णिमा को मुड़िया पूनो भी कहा जाता हैं। प्राचीन समय से हमारे देश में गुरू शिष्य की परम्परा चली आ रही है। छात्र शिक्षा-दीक्षा के लिये गुरूकुल या गुरु के आश्रम में जाया करते थे। हिंदु धर्म में गुरु को ईश्वर के तुल्य माना गया है। इस बात का पता इस श्लोक से ही चलता है कि हमारी संस्कृति में गुरू का क्या स्थान है।

गुरुर्ब्रह्मा, गुरुर्विष्णु, गुरुर्देवो महेश्वर:।
गुरुर्साक्षात् परब्रह्म, तस्मै श्री गुरुवे नम:॥

गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है। गुरू ही ज्ञान के प्रकाश से अज्ञान के अंधेरे को दूर करके अपने शिष्य के जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है। गुरू पूर्णिमा के दिन गुरू की पूजा की जाती है। पूरे भारतवर्ष में गुरू पूर्णिमा का पर्व बहुत श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है।

इस दिन गुरू पूर्णिमा मनाने का एक कारण यह भी है कि इस दिन पुराणों के रचयिता महर्षि वेद व्यास का जन्म हुआ था। इसलिये इसे व्यास पूर्णिमा भी कहते है। गुरू पूर्णिमा के दिन वेदव्यास जी की पूजा अर्चना की जाती है।

Guru Purnima Kab Hai?
गुरु पूर्णिमा कब हैं?

आषाढ़ मास की पूर्णिमा (गुरु पूर्णिमा ) 21 जुलाई, 2024 रविवार के दिन होगी।

Guru Puja Ka Shubh Muhurat
गुरु पूर्णिमा पर गुरू पूजा का मुहूर्त

यदि पूर्णिमा तिथि सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्त तक रहे तो ही इस दिन गुरु पूजा एवं श्री व्यास पूजा की जा सकती है।

और यदि पूर्णिमा तिथि सूर्योदय के बाद तीन मुहूर्त से कम हो तो गुरु पूजा एवं श्री व्यास पूजा एक दिन पहले की जाती है।

Guru Purnima Par Guru Pujan Ki Vidhi
गुरु पूर्णिमा पर गुरु पूजन की विधि

1. गुरु पूर्णिमा के दिन प्रातःकाल स्नान आदि नित्यकर्मों से निवृत होकर स्वच्छ और सुंदर वस्त्र धारण करें।

2. फिर वेद व्यास जी की पूजा करें। वेद व्यास जी की तस्वीर के आगे दीपक जलायें और फिर तिलक करके तस्वीर पर पुष्प या फूलमाला चढ़ायें। भोग लगाये और फिर उसके बाद अपने गुरु के पास जायें। गुरू को ऊँचे आसन पर बैठाकर तिलक करें, पुष्पमाला पहनायें।

3. फिर उसके बाद अपने गुरू को फल, मिठाई, वस्त्र, दक्षिणा देकर उनका आशीर्वाद लें।

Significance of Guru Purnima
गुरु पूर्णिमा का महत्व

पौराणिक मान्यता के अनुसार गुरु पूर्णिमा के दिन ही अट्ठारह पुराणों, महाभारत, श्रीमद्भागवत और ब्रह्मसूत्र जैसे अलौकिक शास्त्रों की रचना करने वाले महान महर्षि वेदव्यास जी का जन्म हुआ था।

वेदव्यास ऋषि पराशर और सत्यवती के पुत्र थे। हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार महर्षि व्यास त्रिकालदर्शी थे, उन्हे तीनों कालों का ज्ञान था। वेदव्यास को उनकी दिव्य दृष्टि द्वारा ये ज्ञात हो गया थे की कलियुग में लोगों में धर्म के प्रति कम रुचि होगी। इस कारण मनुष्य नास्तिक हो जायेगा और उसे ईश्वर में विश्वास नही रहेगा। वो कर्तव्यों से विमुख हो जायेगा और उसकी आयु भी कम हो जायेगी।

इन कारणों से उसके लिये एक सम्पूर्ण वेद का अध्ययन करना कठिन होगा। यही सोचकर मानवों के हित के लिये महर्षि व्यास जी ने एक वेद को चार भागों में विभाजित कर दिया। जिससे कम बुद्धि, कम ज्ञान और कम स्मरण शक्ति वाला मनुष्य भी इन वेदों का अध्ययन करके लाभांवित हो सके।

वेद व्यास जी ने वेदों को चार भागों में विभाजित करके उनकों नाम दिया ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद। इस प्रकार से वेदों को चार खण्ड़ों मे विभाजित करने के कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा। वेद व्यास जी ने अपने चार प्रिय शिष्यों वैशम्पायन, सुमन्तुमुनि, पैल और जैमिन को चारों वेदों ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद की शिक्षा प्रदान करी।

वेदों में उपस्थित ज्ञान अत्यंत मुश्किल और गूढ़ है, इसी कारण वेद व्यास जी ने पाँचवे वेद के रूप मे 18 पुराणों की रचना करी। पुराणों में कथाओं के द्वारा वेदों के ज्ञान को आसान भाषा और शैली में समझाया गया हैं। वेद व्यास जी ने अपने शिष्य रोम हर्षण को पुराणों का ज्ञान प्रदान किया था।

महर्षि वेद व्यास जी ने महाभारत जैसे महाकाव्य की रचना की थी। व्यास जी को आदि गुरू माना जाता है। महर्षि वेद व्यास जी के शिष्य भी बहुत योग्य और बुद्धिमान थे उन्होने वेदों को अनेक शाखाओं और उप-शाखाओं में विभाजित करके उनका विस्तार किया।

हर व्यक्ति को अपने गुरू को सम्मान देना चाहिये और उनको अपने गुरू मे आदि गुरू वेद व्यास जी का रूप देखना चाहिये।

1. गुरू पूर्णिमा के दिन अपने गुरु के साथ ही अपने से बड़े परिवारजनों का भी सम्मान करना चाहिये। उन्हे भी गुरु समान मानना चाहिए।

2. ऐसा कहा गया है कि गुरु के बिना ज्ञान प्राप्त नही होता। गुरु ही अपने शिष्य को विद्या का दान देकर उसे अज्ञानता के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर लेकर जाता है।

3. ज्ञान ही मनुष्य के जीवन को अर्थ प्रदान करता है। गुरु के आशीर्वाद से बड़ी कोई चीज नही होती। गुरु की कृपा और आशीर्वाद पाने से मनुष्य का कल्याण होता है। जिसपर उसके गुरु की कृपा होती है उसका सर्वथा मंगल होता है।

4. गुरु पुर्णिमा का दिन गुरु मन्त्र पाने के लिये सर्वश्रेष्ठ माना जाता है।

5. व्यक्ति को गुरु पुर्णिमा पर अपने गुरु की जितनी हो सके सेवा करनी चाहिये। इस दिन गुरु सेवा का बड़ा महत्व हैं।