जानियें कब है भैया पंचमी (Bhaiya Panchami)? पढ़ियें भैया पंचमी (नाग पंचमी) की पूजा विधि और कहानी

Bhaiya Panchami

इस वर्ष भैया पाँचें (भैया पंचमी) 25 जुलाई, 2024 गुरूवार के दिन है।

श्रावण मास (सावन मास) की कृष्ण पक्ष की पंचमी तिथि के दिन भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) और नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। देश के कुछ भाग इस दिन नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। जबकि देश के दूसरे भागों में श्रावण मास (सावन मास) की शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि के दिन नाग पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह भाई–बहन का त्यौहार है। यह व्रत बहने अपने भाई की मंगल कामना के लिये रखती है।

भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) जिससे भैया पाँचें और नाग पंचमी (Nag Panchmi) के नाम से भी जाना जाता है। बहनें अपने छोटे-बड़े भाइयों की कुशलता की कामना के लिये इस व्रत को करती है। पढ़ियें भैया पंचमी की पूजा विधि, उद्यापन की विधि, भैया पंचमी की कहानी और साथ ही बिन्दायक जी की कहानी भी…

Bhaiya Panchami (Nag Panchami) Ki Puja Vidhi
भैया पाँचें, भैया पंचमी और नाग पंचमी की पूजा विधि

• भैया पाँचें की पूजन के लिये एक दिन पूर्व रात को मोठ और चने भीगों कर रख दें।

• भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) के दिन सुबह बहन को सिर से स्नान करना चाहिये।

• स्नान के बाद एक थाल भीगे हए मोठ-चने, हल्दी, रूपया, एक लोटा ले उसपर मौली बांधकर सतिया बनाये फिर उसमें पानी भरें उस पानी में कच्चा दूध मिलायें।

• तत्पश्चात यह सब वस्तुएँ लेकर कीकर के वृक्ष पर जाये हैं।

• कीकर के वृक्ष पर लोटे से जल चढ़ायें, हल्दी से तिलक करें। फिर अपने माथे पर हल्दी से बिंदी लगाये।

• भीगे हुये मोठ-चने वृक्ष की झाड़ी की टहनी के कोनों पर बोयें और फिर अपनी साड़ी के पल्लू से सात बार कीकर की टहनी को स्पर्श करके अपने माथे से लगाये। यह करते समय यह कहें “झाड़ झड़े मेरा बीर बड़े”।

• तत्पश्चात भैया पाँचें की कहानी कहे या सुने। कहानी कहते या सुनते समय अपने हाथ में मोठ-चने लेकर उन्हे छीलते रहे।

• कहानी सुनने के दौरान छीले हुए मोठ-चने को कहानी सुनने के बाद वहीं वृक्ष पर चढ़ा दें।

• भैया पाँचें की कहानी के बाद विनायक महाराज की कहानी भी कहे या सुने।

• विनायक महाराज की कहानी कहने-सुनने के पश्चात सूरज भगवान को जल दें।

• परंतु ध्यान रहें कि थोड़ा-सा जल बचाकर रखना हैं। जिसका प्रयोग घर लौटने पर करना है। घर के बाहर पहुँच कर अंदर आने से पूर्व घर के दरवाजे के दोनों कोनों पर पानी डाले, फिर हल्दी से स्वास्तिक बनाये।

• इसके बाद घर मे प्रवेश करें। घर में आकर एक थाली में मोठ-चने, फल-मिठाई, रुपए रखकर और एक अन्य लोटे में जल लेकर बायना निकाले। यह बायना अपनी सास को दें और यदि सास ना होतो जेठानी या ननद को देकर चरण स्पर्श करें और आशीर्वाद लें।

• यह पूजा अविवाहित लड़कियाँ भी कर सकती हैं। वो यह बायना अपनी छोटी बहनों को दे सकती हैं।

Bhaiya Panchami Ke Udyapan Ki Vidhi
भैया पंचमी के उद्यापन की विधि

नवविवाहिता स्त्री को शादी के पहले वर्ष अपने मायके में ही भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) मनानी चाहिये। अच्छे से तैयार होकर सिर पर चुनरी ओढ़कर भैया पंचमी की विधि विधान से पूजा करके, कहानी सुनने के बाद एक थाली में भीगे हुए मोठ-चने रखकर साथ में फल-मिठाई, साड़ी-ब्लाउज और दक्षिणा रखकर बायना लेकर ससुराल जाकर अपनी सास या ननद या जेठानी को दें और उनके चरण स्पर्श करके आशीर्वाद प्राप्त करें।

Bhaiya Panchami/ Nag Panchami Ki Kahani
भैया पाँचें और नाग पंचमी की कहानी

बहुत समय पहले की बात है एक गाँव में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र थे। वो सातों पुत्र विवाहित थे। साहूकार की छ बहुओं के भाई थे और उनका मायका बहुत समृद्ध था। परन्तु सातवीं बहू के कोई भाई नही था और ना ही उसका मायका इतना धनवान था।

एक बार श्रावण मास की भैया पंचमी (नाग पंचमी) आई तब साहूकार की छ बहुएँ अपने मायके जाने की तैयारी करने लगी। जल्दी-जल्दी घर के काम निपटाकर वो अपने मायके भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) मनाने जाना चाहती थी।

वो छ बहुएँ कुएँ पर पानी भर रही थी तभी किसी ने उनसे पूछा की तुम सभी तो यहाँ हो पर तुम्हारी देवरानी कहाँ है? तो उन्होने उत्तर दिया के आज भैया पंचमी है और हमें अपने पीहर जाना है भैयापंचमी की पूजा के लिये। परन्तु उसके कोई भाई नही है इसलिये वो अंदर चुपचाप बैठी है और अपने काम कर रही है।

उनकी सभी बातें एक सर्प सुन रहा था। एक बार उस छोटी बहू ने उस सर्प के जीवन की रक्षा करी थी इसीलिये वो सर्प उसका आभारी थी। उन बहूओं की बातें सुनकर सर्प उन बहूओं के पीछे पीछे उनके घर पहुँच गया। घर पहुँच कर उस सर्प ने आदमी का रूप ले लिया।

घर में आकर उस सर्प ने साहूकर की छोटी बहू को अपनी बहन बताया और कहा कि वो उसका दूर रिश्ते का भाई है। उसने वहाँ सबका अभिवादन किया। लेकिन छोटी बहू को यकीन नही हुआ इसीलिये उसने उससे कहा मेरा कोई भाई नही है, तुम कौन हो? मैं तुम्हे नही जानती। तब उसने उसको विश्वास दिलाया कि वो उसका भाई है और कहा की मेरा जन्म तुम्हारे विवाह के बाद हुआ था।

यह जानकर उसे बहुत खुशी हुई। वो सबसे कहने लगी मेरा भाई आया है, मेरा भाई आया है। उसे याद आया कि आज तो भैया पंचमी है परन्तु उसने कभी यह त्यौहार नही मनाया था इसीलिये उसे इसकी विधि नही पता थी। उसने अपनी सास से भैया पंचमी की विधि पूछी। बोली सासू माँ मेरा भाई आया है और आज भैया पंचमी है। मैं क्या करूँ, उसकी सास ने कहा की पहले चूल्हा लीप फिर उसपर चावल चढ़ा। जब चावल बन जायें उसमें घी-बूरा मिलाकर अपने भाई को खिला। उसने वैसा ही किया।

खाना खाने के बाद उस भाई ने कहा बहन मैं तुम्हे अपने घर ले जाने के लिये आया हूं। सब तुमसे मिलकर बहुत खुश होंगे। बहू ने अपनी सास से पूछा तो उसकी सासू ने भी उसे जानेकी आज्ञा दे दी।

जब इंसान के रूप मे सर्प अपनी बहन को अपने साथ लेकर वहाँ से चला तो उसने मार्ग में उस बहन को अपने विषय मे बताया कि मैं एक सर्प हूँ, और एक बार तुमने मेरे जीवन की रक्षा करी थी और मुझे भाई माना था इसलिये मैं अब तुम्हारा धर्म भाई हूँ।

अपने बिल के पास पहुँच कर मैं अपने असली रूप में आऊँगा तब तुम बिना ड़रे मेरी पूंछ को पकड़ लेना और मेरे साथ बांबी में आ जाना। उसने वैसा ही किया और बांबी में पहुंचने के बाद उस सर्प ने उसे अपने परिवार से मिलाया और अपनी पत्नी से कहा ये मेरी धर्म बहन है। तब उसकी पत्नी बोली- यह मेरी ननद है, भतीजे बोले – हमारी बुआ आई है। सबने मिलकर उसका स्वागत किया।

साहूकार की छोटी बहू ने वहाँ देखा की साँप के बच्चों की माँ अपने बच्चों और छोटे भाई-बहनों को घण्टी बजाकर बुलाती है दूध पीने के लिये। एक दिन उसने कहा कि मैं इन्हे दूध पिला देती हूँ। उसकी भाभी ने कहा ठीक है परंतु ध्यान रखना कि घण्टी दूध ठण्ड़ा हो तभी बजाना उससे पहले नही। किंतु उसने गलती से घण्टी पहले ही बजा दी। तब तक दूध गर्म ही था और उस साँप के छोटे भाई-बहन का गर्म दूध पीने से जीभ,फन,पूँछ आदि जल गये। इससे वो बहुत नाराज हुए और बोले इसने हमें गर्म दूध से जलाया है हम इसको सजा देंगे, हम इसको खायेंगे। तब उसकी भाभी ने कहा नही इनसे गलती हुई है इन्हे माफ कर दो। मैं इनकी तरफ से क्षमा माँगती हूँ।

तभी सर्प की पत्नी के पुत्र हुआ तु उसने अपनी ननद (साहूकार की छोटी बहू) से पूछा बोलो ननद जी आपको क्या चाहिये अपने भतीजे के जन्म की खुशी में। तब उसने अपनी भाभी से एक नौलखा हार माँगा। भाभी ने ननद को नौलखा हार भेंट में दे दिया। और उससे यह कहा कि यदि आप इस हार को पहनोगी तो यह हार ही रहेगा परंतु अगर कोई दूसरा इसे पहनेगा तो उसके गले में यह सर्प बन जायेगा।

इधर साहूकार का छोटा लड़का अपनी पत्नी को लेने के लिये आया तो उसकी पत्नी ने ईश्वर से प्रार्थना की हे ईश्वर यदि मेरे पति को यह पता चलेगा के एक सर्प मेरा भाई है तो पता नही उसे कैसा लगेगा। इसलिये आप इस बांबी के स्थान पर महल बना दो। ईश्वर ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी और जहाँ बाम्बी थी वहाँ एक सुंदर महल बन गया। साहूकार का बेटा वहाँ आया और दो दिन के लिये वहाँ रूका। उसका वहाँ बहुत आदर सत्कार हुआ। फिर जब उस लड़के ने अपनी पत्नी को लेकर जाने के लिए कहा तो उस धर्म भाई ने विदा करते समय बहुत सारे दास-दासी, हाथी-घोड़े, धन-दौलत देकर उन्हे विदा किया।

जब वो वहाँ से निकले तो मार्ग मे साहूकार के बेटे को याद आया कि वो वहाँ पर अपना कुछ सामान भूल आया है। उसने अपना सामान लाने के लिये वापस जाने के लिये कहा। तो उसकी स्त्री ने कहा ऐसा कौन सा कीमती सामान है जिसके लिये हम दुबारा लौटे। हम अभी अपने घर चलते है परंतु उसका पति नही माना। और वापस लौट कर उसी स्थान पर आ गया। परंतु अब वहाँ पर कोई महल नही था। वहाँ तो साँप की बांबी थी। यह देखकर साहूकार के बेटे को बहुत क्रोध आया और अपनी स्त्री से कहा कि तुमने मुझे भ्रम में रखा। तुमने मुझे धोखा दिया है।

अब मुझे सच सच बता की यह क्या माजरा है? तब उसकी पत्नी ने उसे सारी कहानी सुना दी। और कहा कि मेरे कोई भाई नही था, इसलिये सारी जेठानियाँ मेरा अपमान करती थी। मुझ पर ईश्वर ने दया दिखाई और एक सर्प मेरा धर्म भाई बनकर आया और यह उसी की बाम्बी है।

मैंने ईश्वर से प्रार्थना की थी कि दो दिन के लिये उस बाम्बी के स्थान पर एक महल हो जाये। जिससे किसी को इस बात का पता ना चलें। उसके पति को उसकी बात पर विश्वास हो गया और वो उसे लेकर अपने घर लौट आया।

बहुत दिनों बाद उस साहूकार की छोटी बहू के पुत्र हुआ। साहूकार की छोटी बहू ने अपनी ननद से पूछा की तुम्हे क्या चाहिये? तो उसकी ननद ने कहा की आप जो अपने मायके से नौलखा हार लाई हो मैं तो वही लूँगी।

तब छोटी बहू ने उससे कहा कि तुम उसकी जगह कुछ भी ले लो, मैं खुशी से दे दूंगी। पर उसे मत लो यह मेरे पीहर का हार है। यदि इसे मेरे अतिरिक्त कोई दूसरा पहनेगा तो यह सर्प बन जाएगा। परंतु उसकी ननद नही मानी और बोली मैं तो यही हार लूँगी। तब उस बहू ने अपनी ननद को वो हार दे दिया। जैसे ही वो ननद उस हार को हाथ में लेकर देखने लगी तभी वो सर्प बन गया।

यह देखकर ननद बहुत ड़र गई। तब छोटी बहू बोली कि मैंने आपसे पहले ही कहा था यह मेरे पीहर का हार है। फिर उसने अपनी ननद को अपनी सारी कहानी बताई। कैसे एक सर्प उसका धर्म भाई बनकर आया और उसने उसकी पीहर की कामना पूरी करी। यह सुनकर उन सभी को बड़ा अचम्भा हुआ। किस प्रकार सच्चे मन से ईश्वर से भैया पंचमी (Bhaiya Panchami) के दिन उसने जो माँगा ईश्वर ने उसे दिया।

इसलिये जो भी श्रावण मास की कृष्ण पक्ष की पंचमी को भैया पाँचें (Bhaiya Panchami) मनाएँ और विधि विधान से पूजा करें। साथ ही विनायक जी की कहानी कहें या सुनें। उन सबकी ईश्वर उसी प्रकार मनोकामना पूरी करे जैसे साहूकार की छोटी बहू की करी।

Bindayak Ji Ki Kahani
बिन्दायक जी की कहानी

एक दिन एक लड़का बिंदायक जी से मिलने के लिये अपने घर से चल दिया और अपनी माँ से बोला की मैं विनायक जी से मिल कर ही वापस आऊँगा। चलते-चलते वो लड़का एक बियाबान जंगल मे पहुँच गया। उसे ऐसे देखकर विनायक जी को उस पर दया आ गई। उन्होने सोचा की ये लड़का मुझसे मिलने का नाम लेकर घर से निकला और कही जंगल में इसके साथ कुछ अनिष्ट ना हो जाये। यही सोचकर बिन्दायक जी एक बूढ़़े ब्राह्मण का रूप धारण कर उसके पास आये और बोले बेटा तू कहाँ और किसके पास जा रहा है?

वह लड़का बोला कि मैं अपने घर से बिन्दायक जी से मिलने के लिये निकला हूँ। मैं उन्ही के पास जा रहा हूँ। यह सुनकर बूढ़़े ब्राह्मण का रूप धारण किये विनायक जी बोले मैं ही विनायक हूँ। बोल तुझे क्या चाहिये। जो भी मांगना है मांग ले। परंतु एक बार ही मांगना। यह सुन कर उस लड़के ने कहा, “अन्न हो, धन हो। हाथी की सवारी हो, महल में गुलाब के फूल जैसी सुंदर स्त्री बैठी हो।” उसकी चतुराई देखकर विनायक जी प्रसन्न हो गये और बोले, “लड़के तूने तो सब कुछ ही मांग लिया। जा सब कुछ वैसा ही होगा जैसा तूने मांगा हैं।“

वो लड़का फिर अपने घर आया तो उसने देखा कि एक सुन्दर सी बहु चौकी पर बैठी है और घर में बहुत सा धन आ गया है। उस लड़के ने अपनी माँ से कहा, “देख माँ मुझे बिन्दायक जी ने कितना धन दिया है। यह सब मैंने बिन्दायक जी से मांगा हैं।
हे विनायक! जी महाराज जैसे आपने उस लड़के की सुनी वैसे सबकी सुनना और जैसा उसको दिया वैसा सबको देना। कहने सुनने वाले हमारे पूरे परिवार की मनोकामना पूर्ण करना।