धार्मिक मान्यता के अनुसार बहुला चौथ (Bahula Chauth) के दिन गौ माता का पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से संतान की रक्षा होती है और साधक को ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है। जानियें कब करें बहुला चौथ का व्रत (Bahula Chauth Vrat)? साथ ही पढ़ियें व्रत का महत्व, नियम, विधि और व्रत कथा…
Bahula Chauth Vrat
बहुला चौथ व्रत
भाद्रपद मास (भादों) की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि के दिन बहुला चौथ (Bahula Chauth) का व्रत किया जाता है। इसे सामान्य भाषा में बहुला चतुर्थी भी कहते हैं। इस दिन संकष्ट चतुर्थी का व्रत भी किया जाता है। बहुला चौथ के व्रत में गौ माता के पूजन को विशेष महत्व दिया गया है। इस दिन किसान अपने गाय-बैल की पूजा करते है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण और भगवान गणेश जी की पूजा भी की जाती हैं। बहुला चौथ का व्रत ऐश्वर्य प्राप्ति, संतान प्राप्ति और संतान की रक्षा के लिये जाता हैं।
Bahula Chauth Vrat
बहुला चौथ व्रत कब है?
इस वर्ष बहुला चतुर्थी (Bahula Chauth) का व्रत 22 अगस्त, 2024 गुरूवार के दिन किया जायेगा।
Significance Of Bahula Chauth
बहुला चौथ का पौराणिक महत्व
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने ही बहुला चौथ (Bahula Chauth) के दिन को गौ-पूजन और गौ-सेवा के दिन के रूप में प्रतिपादित किया था। भगवान श्रीकृष्ण का एक नाम गोपाल भी है। इस दिन पर गौ माता के साथ भगवान श्रीकष्ण की भी पूजा की जाती हैं।
बहुला चौथ (Bahula Chauth) का व्रत बहुत ही शुभ फल प्रदान करने वाला है। इस दिन संकष्ट चतुर्थी होने से इसके व्रत का फल दोगुना हो जाता है। इस व्रत को करने से
- जातक के परिवार में सुख-शांति रहती है और उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
- संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है।
- संतान की सुरक्षा के लिये भी इस दिन का व्रत करने का विधान है। पुत्रवती महिलायें अपने पुत्रों की सुरक्षा और उनकी लम्बी आयु के लिये इस व्रत को करती है। ऐसी मान्यता है कि इस व्रत के करने से संतान पर आया संकट दूर हो जाता हैं।
- बहुला चौथ (Bahula Chauth) का व्रत करने से मनुष्य जीवन-मृत्यु के चक्कर से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
पौराणिक दृष्टि के साथ- साथ इस व्रत का सामाजिक महत्व भी है। किसान खेती के उपयोग के लिये पशुओं को पालते है। गाय हमें दूध देकर हमारा पालन करती है। इस दिन हम उनकी पूजा करके उनके प्रति अपना आभार व्यक्त करते हैं। इस दिन पशुओं की सेवा की जाती है और उनसे कोई काम नही लिया जाता। यह व्रत हमें हर परिस्थिति में सत्य का पालन करने का संदेश देता है। जो व्यक्ति सत्य के मार्ग पर चलता है, उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं।
Bahula Chauth Ke Niyam
बहुला चौथ पर यह कभी ना करें
- इस दिन दूध से बनी किसी भी वस्तु का सेवन न करें। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने वाला मनुष्य पाप का भागी होता है।
- इस दिन गाय और बैल से कोई काम नही कराना चाहियें।
Vrat Ki Vidhi
बहुला चौथ व्रत की विधि
भगवान श्री कृष्ण द्वारा प्रतिपादित इस शुभ फल देने वाले व्रत कि विधि इस प्रकार है-
1. बहुला चौथ (Bahula Chauth) के व्रत में एक ही समय भोजन किया जाता है, वो भी संध्या के समय पूजा करने के बाद।
2. इस दिन मिट्टी से पूरा शिव परिवार यानि भगवान शिव, माता पार्वती, कार्तिकेय जी, गणेश जी, नंदी जी और साथ में गाय और बछड़ा बनाकर पूजास्थान पर एक चौकी पर स्थापित करें।
3. फिर संध्या के समय दीपक जलाकर विधि-विधान से उनकी पूजा अर्चना करें और भोग लगायें।
4. इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा का भी विधान हैं। ऐसी मान्यता है कि जो इस दिन भगवान श्री कृष्ण और शिव परिवार के साथ गाय और बछड़े की पूजा करता है, उसके धन-ऐश्वर्य में वृद्धि होती है और उसे संतान सुख की प्राप्ति होती हैं।
5. सूर्यास्त के बाद गाय और बछड़े की पूजा करें।
6. पूजा करने के पश्चात बहुला चौथ (Bahula Chauth) की कथा सुने या पढ़नी चाहिये।
पूजन समाप्त करने के बाद इस श्लोक का उच्चारण करें-
या: पालयन्त्यनाथांश्च परपुत्रान् स्वपुत्रवत्।
ता धन्यास्ता: कृतार्थाश्च तास्त्रियो लोकमातर:।।
7. बहुला चौथ (Bahula Chauth) के अगले दिन पूजन करने के बाद मिट्टी से बने गाय एवं बछड़े को नदी या तालाब में प्रवाहित कर दिया जाता हैं।
Local traditions followed On This Chauth
बहुला चौथ पर निभायी जाने वाली स्थानीय परम्परायें
1. बहुला चौथ (Bahula Chauth) के दिन गुजरात में खुले आकाश के नीचे भोजन पकाया जाता है और सब लोग वही खुले आकाश के नीचे बैठकर भोजन करते हैं।
2. बहुला चौथ (Bahula Chauth) के दिन मध्यप्रदेश में उड़द की दाल के वड़े बनाकर भोग लगाये जाते हैं और भोग के बाद घर की महिलायें ही उनका सेवन करती हैं।
Bahula Chauth Vrat Katha
बहुला चौथ व्रत कथा
पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में संसार को कंस के अत्याचारों से मुक्त कराने और धर्म की स्थापना के लिये भगवान श्री हरि विष्णु ने माता देवकी के गर्भ से श्री कृष्ण के रूप में अवतार लिया। जब श्री हरि विष्णु वैकुण्ठ से पृथ्वी पर अवतरित हुये तो बहुत से देवी-देवताओं ने भी उनकी लीलाओं का आनंद उठाने और उनमें भाग लेने के लिये धरती पर गोप-गोपियों बनकर अवतार लिया।
श्री कृष्ण को गोसेवा करते देख समुंद्र मंथन से उत्पन्न हुई कामधेनु ने भी श्री कृष्ण द्वारा सेवा की इच्छा से बहुला नामक गाय के रूप में नंद बाबा की गौशाला में प्रवेश किया। बहुला के साथ एक बछड़ा भी था।
भगवान श्रीकृष्ण को गायों से बड़ा प्रेम था और उन गायों में बहुला उन्हे बहुत प्रिय थी। भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि बहुला कामधेनु का रूप है और उनके प्रेम के कारण ही उसने यह रूप लिया है।
भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की चतुर्थी का दिन था। उस दिन बहुला वन में चरती हुई बहुत आगे चली गई और अपने झुण्ड़ से बिछड़ गई। शाम होती देख उसे अपने बछड़े की चिंता सताने लगी। तभी एक बहुत विशालकाय शेर उसके सामने प्रकट हो गया। शेर को अपने सामने पाकर बहुला ड़र के मारें स्तब्ध हो गई।
उसे लगा की अब उसकी मृत्यु निकट आ गयी है। मृत्यु को सामने देखकर भी बहुला के मन से अपने बछड़े के भूखे होने का ध्यान नही गया। मन में भगवान का ध्यान करके उसने वनराज से कहा कि मेरा बछड़ा भूखा हैं और मैं उसे दूध पिलाकर तुम्हारा भोजन बनने के लिये आ जाऊँगी। वनराज ने उससे कहा कि सामने आये शिकार को मैं कैसे जाने दे सकता हूँ? मैं जानता हूँ तू एक बार जाने के बाद दुबारा नही आयेगी। तेरा बछड़ा भूखा है तो क्या हुआ, मैं भी भूखा हूँ, तू पहले मेरी भूख मिटा।
बहुला ने शेर से कहा, मैं तुम्हे वचन देती हूँ कि एक बार अपने बछड़े को दूध पिलाकर, उसकी भूख मिटाकर मैं तुम्हारा भोजन बनने के लिये आजाऊँगी। उसकी बाते सुनकर वनराज ने उससे कहा कि
मैं तेरी बात पर भरोसा करके जाने दे रहा हूँ। तू जल्दी से अपने बछड़ें को दूध पिलाकर वापस आ। मैं तेरी प्रतीक्षा करूँगा। बहुला ने जाकर अपने बछड़े को दूध पिलाकर उसकी भूख शांत की। फिर उससे दुलार करके वापस जंगल में उस शेर के पास पहुँच गई।
जब बहुला वनराज के सामने पहुँची तो यह देखकर अचम्भित रह गई की वो शेर और कोई नही बल्कि भगवान श्री कृष्ण ही थे। उन्होने बहुला की परीक्षा लेने के लिये शेर का रूप धारण किया था। बहुला ने अपने वचन के पालन के लिये अपने प्राणों की भी परवाह नही की। उसकी सत्य निष्ठा, निर्भिकता और वचन परायणता देखकर भगवान श्री कृष्ण उस पर बहुत प्रसन्न हुये। और उसको वरदान दिया अब से आज के दिन तुम्हारी पूजा की जायेगी। लोगा तुम्हे गौमाता मानकर पूजा करेंगे। इस दिन तुम्हारी पूजा करने से मनुष्य के धन-ऐश्वर्य में वृद्धि होगी, सन्तान की इच्छा रखने वाले को संतान की प्राप्ति होगी, जो माता तुम्हारी पूजा करेगी उसकी संतान दीर्धायु होगी और उन सबकी सभी मनोकामनायें पूरी होंगी।