बच्चों को अकाल मृत्यु से बचाने के लिये करें ॐ कारीया व्रत (Om Kariya vrat)। इसे अमकारीका व्रत (Amkarika Vrat) के नाम से भी जाना जाता है। भादों की शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन यह व्रत किया जाता है। जानियें ॐ कारीया व्रत की तारीख। साथ ही पढ़ियें व्रत एवं पूजन की विधि, व्रत के नियम, उद्यापन की विधि और ॐ कारीया व्रत की कहानी (Om Kariya vrat Ki Kahani)…
Om Kariya vrat 2024 (Amkarika Vrat)
ॐ कारीया व्रत (अमकारीका व्रत)
भाद्रपद मास (भादों) की शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन ॐ कारीया व्रत (Om Kariya vrat) किया जाता हैं। इसे अमकारीका व्रत (Amkarika Vrat) के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत रक्षाबंधन के बाद आता हैं। यह कुंवारी कन्याओं के द्वारा किए जाने वाला व्रत हैं। इसी दिन राधाष्टमी और दूर्वाष्टमी का त्योहार भी मनाया जाता है।
Om Kariya Vrat Kab Kare?
ॐ कारीया व्रत कब करें?
इस वर्ष ॐ कारीया व्रत (Om Kariya Vrat) 11 सितम्बर, 2024 बुधवार के दिन किया जायेगा।
Om Kariya Vrat Ke Niyam
ॐ कारीया व्रत के नियम
1. इस व्रत को केवल कुंवारी लड़कियां ही कर सकती हैं।
2. इस व्रत में आग पे बनी हुई कोई भी वस्तु नहीं खा सकते। भोजन में कच्ची चीजें ही खा सकते हैं। जैसे कच्ची भीगी दाल, कच्चा दूध, कच्चा नारियल, भीगे गेहूं और सभी फल खा सकते हैं।
Amkarika Vrat Ki Pujan Vidhi
अमकारीका व्रत की पूजन विधि
ॐ कारीया व्रत (Om Kariya Vrat) में शिवजी की पूजा करनी होती है। विधिवत रूप से भगवान शिव की पूजा करे, परंतु धूप-दीप प्रज्वलित नहीं करें।
1. भाद्रपद मास (भादों) की शुक्लपक्ष की अष्टमी के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
2. पूजा स्थान पर बैठ कर एक मौली का लच्छा लेकर पहले व्रत पर पहली गाँठ लगाये। इस प्रकार हर वर्ष के व्रत पर इसी लच्छे में गाँठ लगाते जाये। इसे इस व्रत के उद्यापन तक सुरक्षित रखें। इस व्रत का उद्यापन 8 वर्ष पूर्ण होने पर नौवें वर्ष में करें।
3. विधि अनुसार भगवान शिव की पूजा करें। उन्हे जल चढ़ाये, चंदन लगाये, भोग अर्पित करें। परंतु इस बात का ध्यान रखें की धूप-दीप प्रज्जवलित ना करें।
4. इस व्रत में आग पर बनी वस्तुयें खाना वर्जित हैं।
Udyapan Ki Vidhi
उद्यापन की विधि
आठ व्रत पूर्ण होने पर नौवे व्रत पर उद्यापन करना होता हैं। उद्यापन वाले दिन हर बार की तरह भगवान शिव की पूजा करें। इस बार लच्छे में गाँठ ना लगाये। उस लच्छे को पूजन करने के बाद भगवान शिव को चढ़ा दें।
1. इसके बाद आठ कुंवारी लड़कियों को भोजन करायें।
2. भोजन में इस दिन खीर अवश्य बनायें।
3. भोजन कराने के बाद उन्हे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
4. उन्हे भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें। अब आप इस दिन आग पर बनी वस्तु का सेवन कर सकती हो।
Om Kariya Vrat Ki Kahani
ॐ कारीया व्रत की कहानी
बहुत समय पहले की बात है, एक गाँव में दो बहनें रहती थी एक का नाम था हूँका और दूसरी का नाम था कूँका। उन दोनों बहनों का विवाह भी एक ही गांव में हुआ। बड़ी बहन का विवाह बहुत ही समृद्ध परिवार में हुआ, परंतु छोटी बहन का विवाह एक गरीब घर में हुआ। छोटी बहन भगवान शिव की बहुत बड़ी भक्त थी।
ईश्वर की कृपा से छोटी बहन को संतान सुख प्राप्त हुआ परंतु बड़ी बहन के कोई संतान नही हुई। इस कारण वो अपनी छोटी बहन और उसके बच्चों से ईर्ष्या करती थी। एक बार उसके मन अपनी छोटी बहन के बच्चों को मार ड़ालने का विचार आया। उसने अपनी छोटी बहन के बच्चों को भोजन पर बुलाया और उन्हे खीर में जहर मिलाकर खिला दिया। बच्चों ने बड़े प्रेम से भोजन किया। विष के प्रभाव से उन बच्चों की मृत्यु हो गई।
बच्चों के मरने के बाद उस बड़ी बहने ने उस बच्चों के शवों को ठिकाने लगाने का सोचा। उसको लगा कि अगर किसी को पता चल गया तो बहुत समस्या हो जायेगी। इसलिये उसने उन बच्चों के सिर काटकर उन्हे कोठी के नीचे दबा दिया।
शाम तक जब बच्चे घर नही पहुँचे तो छोटी बहन अपनी बड़ी बहन के घर बच्चों के विषय में पूछ्ने के लिये गई। तो बड़ी बहन ने कह दिया की बच्चे तो मेरे पास नही हैं। यह सुनकर छोटी बहन जोर –जोर से रोने लगी। फिर उसने भगवान भोलेनाथ को सहायता के लिये पुकारा। वो बोली, हे भोलेनाथ! मेरे बच्चों की रक्षा करों। मुझ दुखिया की सहायता करों।
उसकी करुण पुकार सुनकर माँ पार्वती ने भोलेनाथ से कहा, प्रभु! यह आपकी परम भक्त हैं। और आपको सहायता के लिये पुकार रही हैं। आपको इसकी सहायता के लिये जाना चाहिये। तब भगवान भोलेनाथ ने पार्वती जी से कहा ठीक हम दोनों उसकी सहायता के लिये चलते हैं। भगवान शिव ने एक साधू का रूप धारण किया और माता पार्वती ने एक बिल्ली का रूप ले लिया।
शिव जी साधू का रूप लेकर उस बड़ी बहन के घर पहुँच गये और उसे अपनी बातों में लगा लिया। तब पार्वती जी ने बिल्ली के रूप जाकर कोठी में से खोदकर उन बच्चों के सिर निकाल कर उनके धड़ से जोड़ दिये। उधर भगवान शिव ने संकल्प छोड़ा और वो बच्चे पुन:जीवित हो उठे। बच्चे अपनी माँ की आवाज सुनकर दौड़ कर बाहर आ गये। तभी भगवान शिव और माता पार्वती वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।
बड़ी बहन समझ गई की अब उसका झूठ पकड़ा जायेगा। यही सोचकर उसने अपनी छोटी बहन के पैर पकड़ लिये और रोने लगी। बड़ी बहन ने अपनी छोटी बहन को सारी बात बताकर अपनी गलती की माफी माँगी। तब छोटी बहन ने कहा, दीदी! आपने ऐसा क्यूँ किया? तब बड़ी बहन ने कहा कि तेरे संतान हैं, परंतु मैं संतान सुख से वन्चित हूँ। इस संताप के कारण मेरे मन में यह कलुषित विचार आये। उसकी बातें सुनकर उस छोटी बहन को अपनी बड़ी बहन पर दया आ गई। उसने भगवान शिव से प्रार्थना करी, हे भोलेनाथ! जैसे आपने मुझे संतान सुख दिया और मेरे बच्चों की रक्षा करी, वैसे मेरी बहन को भी संतान प्रदान करों।
अपनी छोटी बहन के द्वारा ऐसी प्रार्थना सुनकर बड़ी बहन की आँखों में आंसु आ गये। उसने अपनी छोटी बहन को गले लगा लिया। उसके बाद से वो दोनों बहनें खुशी से रहने लगी।
ऐसी मान्यता है कि इस व्रत को करने अबोध बालक सुरक्षित रहते हैं और उनकी अकाल मृत्यु नही होती।