Karwa Chauth 2024: जानियें कब है करवा चौथ? साथ ही पढ़ियें करवाचौथ की कथा, व्रत, नियम और पूजन विधि…

Karwa Chauth

अपने पति की लम्बी आयु के लिये सुहागिन स्त्रियाँ करती है करवाचौथ का व्रत (Karwa Chauth Vrat) एवं पूजन। जानियें कब और कैसे करें करवा चौथ का व्रत और उद्यापन? इसके साथ ही पढ़ियें करवा चौथ का महत्व (Significance Of Karwa Chauth), व्रत के नियम, करवा चौथ व्रत की कथा (Karwa Chauth Vrat Katha) और बिन्दायक जी की कथा

Karwa Chauth Vrat
करवाचौथ व्रत

कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चतुर्थी के दिन करवा चौथ (Karwa Chauth) का व्रत किया जाने का विधान हैं। विवाहित स्त्रियाँ करवाचौथ का व्रत अपने पति की दीर्धायु के लिये करती हैं। स्त्रियाँ करवा चौथ पर पूरे दिन निर्जल व्रत करके रात्रि के समय चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही अपना व्रत खोलती हैं और अपने पति की लम्बी उम्र के लिये प्रार्थना करती हैं। करवा चौथ पर भगवान शिव, देवी पार्वती, गणेश जी की पूजन की जाती है और चंद्रोदय पर अर्ध्य के बाद व्रत खोला जाता हैं।

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Karwa Chauth Vrat Kab Hai?
करवाचौथ व्रत कब हैं?

इस वर्ष करवाचौथ (Karwa Chauth) का व्रत 20 अक्टूबर, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा। चंद्रोदय का समय (जयपुर, राजस्थान में) रात्रि 8:07 PM रहेगा।

Karwa Chauth Vrat Ka Mahatva
करवाचौथ व्रत का महत्व

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार विवाहित स्त्रियाँ अपने पति के लम्बी आयु के लिये करवाचौथ (Karwa Chauth) का निर्जल व्रत करती हैं। अविवाहित लड़कियाँ भी मनपसंद जीवन की कामना से करवाचौथ का व्रत और पूजन करती हैं।

करवाचौथ का उल्लेख महाभारत की एक कथा में भी मिलता हैं। जब कौरवों ने पाण्ड़वों से छल से जुएँ में उनका राज्य छीन लिया और पाण्ड़वों को 12 वर्ष के वनवास और 1 वर्ष के अज्ञातवास का पण पूरा करने के वन में जाना पड़ा। तब अर्जुन दिव्यास्त्र की प्राप्ति के लिये भगवान शिव की तपस्या करने के लिये नीलगिरी पर्वत पर चले गयें थे।

उस समय पर पाण्ड़वों पर कई संकट आयें। तब उन कष्टों को देखकर एक बार द्रौपदी ने भगवान श्री कृष्ण से अपने और अपने पतियों पर आने वाले संकटों से मुक्ति के लिये उपाय पूछा। तब भगवान श्री कृष्ण ने द्रौपदी को करवाचौथ के व्रत के विषय में बताया। द्रौपदी ने पूरे विधि-विधान के साथ करवा चौथ के व्रत के पालन किया। उस व्रत के प्रभाव से पाण्ड़वों के समस्त कष्टों का नाश हुआ।

Karwa Chauth Vrat Aur Pujan Vidhi
करवाचौथ व्रत और पूजन विधि

करवाचौथ (Karwa Chauth) के दिन भगवान शिव, देवी पार्वती और भगवान गणेश की पूजा की जाती है और रात्रि को चंद्रमा को अर्ध्य दिया जाता हैं। कुछ परिवारों में करवाचौथ से एक दिन पहले सास अपनी बहू को सरगी देती हैं और बहू करवाचौथ के दिन सूर्योदय से पूर्व सरगी का सेवन करती हैं।

  • करवाचौथ (Karwa Chauth) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजास्थान पर बैठकर हाथ में जल लेकर व्रत का संकल्प करें। फिर इस मंत्र के जाप के साथ व्रत आरम्भ करें।
  • मंत्र : मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये करक चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये।
  • दिनभर निर्जल व्रत करें। फिर संध्या के समय पूजा के लिये अच्छे से तैयार हो जायें।
  • पूजास्थान पर खड़िया से पोतकर उसपर गेरू और पिसे चावल से करवा चौथ बनायें।
  • फिर एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर उस पर जल से भरकर मिट्टी का टोंटीदार करवा और उसपर उसका ढ़क्कन लगाकर रखें।
  • फिर दीपक प्रज्जवलित करें।
  • चौकी पर दूप बिछाकर उसपर मिट्टी से बनी भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा स्थापित करें।
  • तत्पश्चात्‌ जल के छींटे लगाकर, रोली-चावल से सबकी पूजा करें। फिर देवी पार्वती को श्रृन्गार की वस्तुयें जैसे मेंहदी, बिंदी, चूड़ी, काजल, सिंदूर आदि अर्पित करें। देवी को लाल चुनरी चढ़ायें।
  • फल-फूल चढ़ाकर, भोग अर्पित करें।
  • फिर करवाचौथ की कथा कहें या सुनें। फिर बिंदायक की कथा कहें या सुनें।
  • चंद्रोदय के बाद चंद्रमा को छलनी में दीपक रखकर देखकर अर्ध्य दें। फिर पति के हाथ से जल ग्रहण करें।
  • फिर परिवार से सभी बड़ों का आशीर्वाद लें। तत्‌पश्चात्‌ स्वयं भोजन करें।

Udyapan Vidhi
उद्यापन की विधि

  • करवाचौथ के व्रत का उद्यापन (Karwa Chauth Udyapan) विवाह वाले वर्ष ही किया जाता हैं। विवाह के वर्ष बहू के पीहर से करवाचौथ के उद्यापन के लिये यह वस्तुयें आती हैं।
  • चौदह चीनी के करवे उनमें बताशे और दक्षिणा के रुपये।
  • चीनी के करवे पर मौली बांधी जाती हैं। रोली से स्वास्तिक बनाया जाता हैं। यदि चीनी के करवे ना मिले तो स्टील के गिलास में चीनी भरकर भी रखी जा सकती हैं।
  • उद्यापन में साड़ी ब्लाऊज, दक्षिणा या पैर पड़ाई के रुपये, चौदह बर्तन ढक्कन वाले, एक चावल का कलश, जामाता के कपड़े, एक मिट्टी का करवा अथवा सामर्थ्यानुसार स्टील या चाँदी का करवा (पानी भरकर) नाला बाँधकर, सतिया बनाके, फल, मिठाई, पूरी, सब्जी, हलवा आदि के साथ विशेष बायना भेजा जाता है।
  • फिर नवविवाहिता स्त्री चन्द्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही भोजन करती हैं। यह व्रत निराहार एवं निर्जल किया जाता हैं।

Karwa Chauth Ke Niyam
करवा चौथ के नियम

करवा चौथ (Karwa Chauth) के व्रत में कुछ विशेष नियम हैं। व्रत करने वाली स्त्री को इसका पालन अवश्य करना चाहिए।

  1. कुछ परिवारों में सरगी की परम्परा होती है और कुछ में नही। जहाँ सरगी की परम्परा हो उन्हे अपने परिवार की परम्परा के अनुसार सरगी ग्रहण करनी चाहियें।
  2. व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन अच्छे से तैयार होना चाहिये और हो सके तो सोलह श्रृंगार करने चाहियें।
  3. चंद्रमा निकलने से पहले निराहार और निर्जल रहकर व्रत करना चाहिये। चंद्रमा को अर्ध्य देने के बाद ही अपने पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलना चाहिये।
  4. जैसी आपके परिवार की परम्परा हो वैसे ही व्रत का पालन करें।
  5. पूजा के लिये मिट्टी के करवे लिए जाते हैं।
  6. पूजन के बाद करवाचौथ माता की कथा अवश्य सुननी चाहियें।
  7. करवा चौथ की पूजा में भगवान शिव, देवी पार्वती, भगवान गणेश और भगवान कार्तिकेय का पूजन होता।
  8. चंद्रमा को अर्ध्य देते समय चंद्रमा को छलनी से देखा जाता है और फिर उसके बाद छलनी से ही पति को देखते हैं।
  9. व्रत करने वाली स्त्री को इस दिन कैंची-चाकू आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए और ना ही बाल, नाखुन आदि काटने चाहियें।
  10. किसी भी प्रकार की हिंसा से दूर रहना चाहिये।
  11. मन, कर्म,वचन से अपना आचरण शुद्ध रखना चाहियें।

Karwa Chauth Vrat Katha
करवाचौथ की कथा

प्राचीन समय की बात हैं, एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। साहूकार के बेटे अपनी इकलौती बहन से बहुत स्नेह करते थे। उस सात भाइयों की बहन का विवाह हो गया और विवाह के बाद करवा चौथ (Karwa Chauth) का दिन आया। तब साहूकार की बेटी अपने पहले करवाचौथ पर मायके आयी हुयी थी। उस दिन उसने अपने पति की लम्बी आयु के लिये व्रत रखा।

परंतु वो भूख और प्यास से व्याकुल होने लगी। अपनी बहन को भूख-प्यास से व्याकुल होते देख उसके भाइयों को बहुत दुख हुआ। उन्होने उसे खाने के लिये कहा, परंतु उसने मना कर दिया। तब उन भाइयों ने पेड़ पर दीपक जलाकर अपनी बहन से कहा कि देख बहन चाँद निकल आया। तू अर्ध्य देकर भोजन करले। उस लड़की ने अपनी भाभियों से भी कहा भाभी चांद निकल आया है, आप भी अर्ध्य देकर भोजन कर लो। तो भाभियों ने कहा कि अभी हमारा चांद नही निकला। अभी तो सिर्फ आपका ही चांद निकला हैं। आप ही अर्ध्य देकर भोजन कर लो।

लड़की ने अज्ञानतावश उसी दीपक के प्रकाश को ही चंद्रमा मानकर व्रत खोल लिया। जैसे ही उसने पहला टुकड़ा तोड़ा तो खाने में बाल निकला, जैसे ही दूसरा टुकड़ा तोड़ा तो छींक पड़ी और फिर उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा तभी उसके पति की मृत्यु की सूचना आ गई। अकस्मात अपने पति की मृत्यु की सूचना पाकर वो लड़की हतप्रभ रह गई। तब उसकी माँ ने उसे समझाया और उसे उसके ससुराल भेजने की तैयारी करी।

ससुराल भेजने से पहले साहूकार की पत्नी ने अपनी पुत्री को कुछ बातें समझाई और उसने अपनी बेटी को सोने का सिक्का दिया और कहा कि मार्ग में जो भी मिले तू उसके पैर छूकर उससे आशीर्वाद लेना और जो भी तुझे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दे उसे तू यह सोने का सिक्का दे देना। और अपने पल्लू में गांठ लगा लेना। साथ ही साल भर में जितनी भी चौथ आती है तू उनसे सुहाग मांगना। ऐसा करने से सब कुछ सही हो जायेगा।

साहूकार की पुत्री ने अपनी माँ के कथनानुसार मार्ग में जो भी मिला उसके चरणस्पर्थ किये पर किसी ने भी उसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद नही दिया। जब वो अपने ससुराल पहुँची तो उसे उसकी ननद मिली उसने उसके चरणस्पर्श किये। उसकी ननद ने उसे सौभाग्यवती होने का आशीर्वाद दिया। तब उसने मोहर निकाल कर अपनी ननद को दे दी और अपने पल्लू में गाँठ लगा ली। जब वो घर के अंदर पहुँची तो उसने देखा की उसका पति मृत पड़ा हैं।

तब वो साहूकार की पुत्री अपने पति के मृत शरीर के साथ जंगल में झोपड़ी बनाकर रहने लगी। और अपने मृत पति की सेवा करती रही। जब चौथ का दिन आया तो उसने व्रत रखा और जब चौथ माता उसके पास आई तो उसने उनसे अपना सुहाग माँगा। तब चौथ माता ने कहा कि मैं तुझे सुहाग नही दे सकती पर अगली बड़ी चौथ आयेगी तू उससे अपना सुहाग मांगना। उसने वैसा ही किया। अगली चौथ का भी व्रत किया और जब चौथ माता आयी तो उसने उनसे अपना सुहाग माँगा। तब उन्होने भी उसे यही कहा कि मेरी बड़ी बहन आयेगी तू उससे मांगना।

ऐसा करते करते कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की चौथ यानी करवाचौथ (Karwa Chauth) आयी तो उस स्त्री ने पूरे विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत किया। उसके व्रत से चौथ माता प्रसन्न हुयी। और उससे वर मांगने के लिये कहा। तब उस स्त्री ने अपने पति की लम्बी आयु मांगी। माता ने उसकी मनोकामना पूर्ण कर दी और उसका पति ऐसे उठ गया कि जैसे किसी गहरी नींद से उठा हो। अपने पति को पुन: जीवित पाकर वो बहुत प्रसन्न हुयी और उसने बारम्बार चौथ माता का धन्यवाद दिया।

अपने पति को लेकर अपने ससुराल पहुँची। अपने पुत्र को पुन:जीवित पाकर उसकी माँ बहुत खुश हुई। तब उसने अपनी बहू से पूछा कि यह कैसे हुआ? तब उसने कहा कि यह सब करवाचौथ माता का आशीर्वाद हैं। उन्ही की कृपा से मुझे सुहाग की प्राप्ति हुई हैं। अपनी बहू से यह सब सुनकर उसकी सास ने पूरे नगर में इस बात की मुनादी करा दी। हे! चौथ माता जैसा आपने साहूकार की बेटी को सुहाग दिया और उसके पति को जीवनदान दिया वैसा सभी को देना।

Bindayak Ji Ki Katha
बिन्दायक जी की कथा

बहुत समय पहले कि बात है, एक गाँव में एक बुढ़िया अपनी बेटी के साथ रहती थीं। उस गाँव में एक बार भगवान गणेश जी का मेला भरा। तो बेटी ने अपनी माँ से कहा कि मैं भी मेले मे जाऊंगी। तब उसकी माँ ने कहा, बेटी वहाँ तो बहुत भीड़ होती हैं। तू रहने दे, पर बेटी नही मानी और अपनी माँ से जाने कि जिद्द करने लगी। तब माँ ने अपनी बेटी की खुशी के लिये उसे दो लड्डू और पानी देकर कहा कि एक लड्डू भगवान गणेश को खिलाकर उन्हे पानी पिला देना, दूसरा लड्डू तू स्वयं खा लेना और बचा हुआ पानी पी लेना।

बेटी अपनी माँ की बात सुनकर मेले में चली गई। मेले में पहुँचकर वो गणेश जी के मंदिर में उनकी प्रतिमा के पास बैठ गई और कहने लगी आप एक लड़्ड़ू खाओ और पानी पियो। मेला समाप्त हो गया। सभी लोग अपने घर चले गयें। परंतु वो लड़की वहाँ गणेश जी की प्रतिक्षा करती रही। उसकी ऐसी भक्ति को देखकर गणेश जी को उस पर दया आ गयी और गणेश जी एक बालक का रूप लेकर आये और एक लड़्ड़ू खाकर पानी पी लिया। और उस लड़की से वर माँगने के लिये। तब उस ल‌ड़की ने अन्न, धन, भवन, भाग्य, सौभाग्य, सुहाग, खेत-खलिहान, गाय-बैल जो चाहा गणेश जी ने उसे दिया। हे गणेशजी महाराज! जैसे आपने उन माँ बेटी पर दया की वैसे सब पर करना।

। बोलो गणेशजी महाराज की जय ।

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