काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) पर करें दुख, भय और नकारात्मक शक्तियों का नाश करने वाले भगवान कालभैरव की उपासना। जानिये काल भैरव जयंती कब हैं? भगवान काल भैरव का स्वरूप कैसा हैं? कालाष्टमी (Kalashtami) पर भगवान काल भैरव की पूजा (Kaal Bhairav Ki Puja) के लाभ और विधि। साथ ही पढ़ें काल भैरव की उत्पत्ति की कथा ।
Kaal Bhairav Jayanti 2024
काल भैरव जयंती 2024
मार्गशीष (अगहन) मास की कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि के दिन कालाष्टमी (Kalashtami) का व्रत एवं पूजन किया जाता हैं। शास्त्रों के अनुसार इस दिन भगवान काल भैरव प्रकट हुये थे। कालाष्टमी को काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) के नाम से भी जाना जाता हैं। इसके अतिरिक्त इस दिन को काल भैरव अष्टमी (Kaal Bhairav Ashtami) भी कहा जाता हैं। इसदिन भगवान शिव के कालभैरव स्वरूप की पूजा की जाती हैं। काल भैरव भगवान शिव का रौद्र रूप हैं। भगवान कालभैरव तंत्र देवता के रूप में भी जाने जाते हैं। तंत्र सिद्धि के लिये तांत्रिक भगवान काल भैरव की उपासना करते हैं। भगवान काल भैरव की कृपा से साधक को समस्त सिद्धियों की प्राप्ति होती हैं। काल भैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) के दिन भगवान कालभैरव की विधिवत् पूजा करने से भूत बाधा और किसी के द्वारा किये गये अभिचार का प्रभाव नष्ट होता हैं।
When Is The Kaal Bhairav Jayanti?
काल भैरव जयंती कब हैं?
इस वर्ष कालभैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) 23 नवम्बर, 2024 शनिवार के दिन मनायी जायेगी।
Kaal Bhairav Ka Swaroop
भगवान काल भैरव का स्वरूप
पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान कालभैरव की उत्पत्ति भगवान शिव के क्रोध से हुई थी। इसलिये काल भैरव को भगवान शिव का रौद्र रूप माना जाता हैं। भगवान काल भैरव (Kaal Bhairav) को भगवान रूद्र का अवतार कहा जाता हैं। कालभैरव को काशी का कोतवाल भी कहा जाता हैं।
- भगवान कालभैरव बहुत ही साहसी और शक्तिशाली हैं। इनका शस्त्र दण्ड़ हैं। जिससे यह पापियों को उनके पापों का दण्ड़ देते हैं।
- भगवान काल भैरव की सवारी कुत्ता हैं।
- इनके चार हाथ है और वर्ण श्याम हैं।
- भगवान कालभैरव को दण्ड़ाधिपति और तंत्र का देवता कहा जाता हैं।
- रविवार के दिन भगवान कालभैरव की पूजा की जाती हैं।
Benefits Of Kalashtami Puja
कालाष्टमी पर भगवान काल भैरव की पूजा के लाभ
कालाष्टमी (Kalashtami) पर भगवान काल भैरव की विधि-अनुसार पूजा करने से भगवान कालभैरव प्रसन्न होते है और उनकी कृपा से साधक की मनोकामन पूर्ण होती है।
- कालभैरव जयंती (Kaal Bhairav Jayanti) पर भगवान काल भैरव की यथाविधि पूजा करने से साधक में साहस और शक्ति का संचार होता हैं।
- सभी प्रकार के ड़र और भय का नाश होता हैं।
- शत्रु पर विजय प्राप्त होती हैं।
- कानूनी मामलों में जीत मिलती हैं।
- भूत-प्रेत की बाधा का शमन होता हैं।
- किसी के द्वारा किये गये तंत्र का प्रभाव नष्ट होता हैं। जातक को उससे मुक्ति मिलती हैं।
- रोग-व्याधि का नाश होता हैं।
- घर-परिवार में शान्ति रहती हैं।
- दुखों और समस्याओं का नाश होता हैं।
- मनोकामनाओं की पूर्ति होती हैं।
यदि किसी पर शनिदेव का प्रकोप हो तो उसे भगवान कालभैरव की आराधना करनी चाहिये। ऐसा करने से शनिदेव शांत होते हैं। भगवान काल भैरव की उपासना से जातक को राहु, केतु, शनि और मंगल की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
How To Worship On Kaal Bhairav Jayanti
काल भैरव जयंती की पूजा विधि
कालाष्टमी (Kalashtami) के दिन भगवान शिव के काल भैरव स्वरूप के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा की जाती हैं। शास्त्रों के अनुसार काल भैरव को रात्रि का देवता माना जाता है जिसके कारण उनका पूजन अर्धरात्रि को किया जाता हैं।
- मार्गशीष माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन प्रात:काल ब्रह्ममुहूर्त में स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- यदि सम्भव हो तो इस दिन गंगा स्नान करें और ऐसा नही कर सकते हो तो स्नान के जल में थोड़ा सा गंगाजल मिलाकर स्नान करें।
- पूजास्थान पर बैठकर कालाष्टमी (Kalashtami) के व्रत का संकल्प करें।
- फिर अपने पितरों का स्मरण करके उनका श्राद्ध और तर्पण करें। ऐसा करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती हैं।
- पूजास्थान पर एक चौकी बिछाकर उसपर गंगाजल छिड़कें। फिर उस पर भगवान कालभैरव, भगवान शिव और देवी पार्वती की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें।
- भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा करें।
- तत्पश्चात् ॐ ह्रीं उन्मत्त भैरवाय नमः मंत्र का जाप करते हुये भगवान कालभैरव का ध्यान करें।
- अर्धरात्रि के समय धूप-दीप जलाकर, काले तिल, काले उड़द और सरसों के तेल से भगवान काल भैरव की पूजा करें। भगवान को चमेली का फूल अर्पित करें।
- उन्हे उड़द और तिल से बनी वस्तुओं का भोग लगायें।
- पूजा के समय “ॐ भैरवाय नमः” मंत्र का जाप करते रहें।
- फिर कालभैरव स्तोत्र और कालभैरव सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ करें।
- शंख और घण्टाध्वनी के साथ भगवान कालभैरव की आरती करें।
- फिर अंत में काले कुत्ते् की पूजा करके उसे दूध पिलायें और मीठी रोटियां खिलाएं।
Kaal Bhairav Ki Katha
काल भैरव की उत्पत्ति की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान कालभैरव की उत्पत्ति मार्गशीष माह की कृष्णपक्ष की अष्टमी के दिन हुयी थी। भगवान काल भैरव की उत्पत्ति के विषय में यह कथा है कि एक बार भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव इन तीनो के मध्य श्रेष्ठता को लेकर विवाद हो गया। सभी स्वयं को श्रेष्ठ बता रहे थे। इस विवाद को समाप्त करने के लिये ऋषि-मुनियों और देवी-देवताओं की एक सभा आयोजित की गयी।
बहुत चिंतन और मंथन के बाद सभी जिस निष्कर्ष पर पहुँचे उसे ब्रह्मा जी ने अस्वीकार कर दिया। ब्रह्मा जी के अतिरिक्त भगवान विष्णु और भगवान शिव ने उस निष्कर्ष को अपनी स्वीकृति दे दी। किंतु ब्रह्मा जी स्वयं को श्रेष्ठ बताने लगे। उन्होने भगवान शिव के लिये अनुचित शब्दों का उपयोग करके उन्हे अपमानित करने की कोशिश की। जिसके चलते भगवान शिव को क्रोध आ गया और उनके रौद्ररूप से कालभैरव की उत्पत्ति हुयी।
कालभैरव हाथ में दण्ड़ लिये और कुत्ते पर सवार होकर प्रकट हुये। उनको देखकर सभा में उपस्थित सभी देवी-देवता और ऋषि-मुनि भयभीत हो गये। ब्रह्माजी के पांच मुख थे, उन्होने जिस मुख से भगवान शिव का अपमान किया था, कालभैरव ने एक ही प्रहार से उस मुख को विच्छेद कर दिया। इस कारण ब्रह्मा जी के अब चार मुख हैं। तब ब्रह्मा जी ने भगवान शिव से क्षमा माँगी और वहाँ उपस्थित सभी देवी-देवताओं ने भगवान शिव की स्तुति करके उन्हे शांत किया।
भगवान शिव का क्रोध शांत होने पर वो पुन: अपने रूप में आ गये। लेकिन ब्रह्मा जी का एक शीष विच्छेद करने के कारण काल भैरव को ब्रह्म हत्या का पाप लग गया था। तब भगवान शिव ने काल भैरव को ब्रह्महत्या के पाप के प्रायश्चित के लिये धरती पर भेजा और उनसे कहा धरती के जिस स्थान पर ब्रह्मा जी का यह शीष तुम्हारे हाथ से छूटकर गिरेगा, वहीं तुम्हे इस पाप से मुक्ति मिलेगी।
भगवान काल भैरव जब काशी पहुँचे तब उन्हे ब्रह्महत्या के पाप से मुक्ति मिली। इसके कारण जब भी कोई भक्त काशी विश्वनाथ के दर्शन करने जाता है वो भगवान काल भैरव के दर्शन भी अवश्य करता हैं। काशी में भगवान काल भैरव को डंडाधिपति और दंडपानी के नाम से भी पुकारा जाता है।
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