चंपा षष्ठी (Champa Shashti) को चम्पा छठ (Champa Chhath), स्कंद षष्टी (Skanda Sashti) और बैंगन छठ (Baigan Chhath) के नाम से भी जाना जाता हैं। सुखमय जीवन और पापमुक्ति के लिये करें चंपा षष्ठी का व्रत एवं पूजन। जानियें कब और कैसे करें चंपा षष्ठी (Champa Shashti) व्रत एवं पूजन? साथ ही पढ़ियें चंपा षष्ठी एवं स्कन्द षष्ठी व्रत कथा…
Champa Shashti / Skanda Sashti
चंपा षष्ठी / स्कंद षष्ठी
मार्गशीर्ष (अगहन) माह की शुक्लपक्ष की षष्टी तिथि के दिन चंपा षष्ठी (Champa Shashti) का पर्व मनाया जाता हैं। चंपा षष्ठी को चम्पा छठ, स्कंद षष्टी और बैंगन छठ के नाम से भी जाना जाता हैं। यह पर्व प्रमुख रूप से महाराष्ट्र और कर्नाटक राज्य में बड़ी धूम-धाम से मनाया जाता हैं। इस दिन खंडोबा (खंडेराव) की पूजा की जाती है। खंडोबा को भगवान शिव का अवतार और चरवाहों, किसानों व शिकारियों का देवता माना जाता हैं।
इस दिन को स्कंद षष्टी (Skanda Sashti) भी कहा जाता हैं, दक्षिण भारत के कई स्थानों पर इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती हैं। इस दिन भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप की उपासना करने से जातक का जीवन सुखमय हो जाता है और उसके इस जन्म व पूर्व जन्म के पापों का भी निवारण हो जाता हैं।
Champa Shashti Kab hai?
चंपा षष्ठी (चम्पा छठ) कब हैं?
इस वर्ष चंपा षष्ठी (Champa Shashti) का पर्व 18 दिसम्बर 2023, सोमवार के दिन मनाया जायेगा।
Significance Of Champa Shashti
चंपा षष्ठी का महत्व
हिंदु मान्यता के अनुसार चंपा षष्ठी (Champa Shashti) के दिन भगवान शिव और भगवान कार्तिकेय का व्रत एवं पूजन करने से साधक को उनकी कृपा प्राप्त होती हैं। विधि अनुसार इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से
- साधक के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।
- साधक जीवन की परेशानियों से मुक्त हो जाता हैं।
- साधक के कार्य बिना किसी बाधा के पूर्ण हो जाते हैं।
- सुखमय जीवन की प्राप्ति होती हैं।
- घर-परिवार में शांति होती हैं।
- धन-समृद्धि में वृद्धि होती हैं।
- संतान पर आने वाली विपत्तियों का नाश होता हैं। और उनका जीवन निष्कंटक हो जाता हैं।
- जातक जीवन के सभी सुखों को भोगकर मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
- ज्योतिषशास्त्र के अनुसार इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा और उनका व्रत करने से साधक को मंगल ग्रह की अनुकूलता प्राप्त होती हैं।
Champa Shashti Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
चंपा षष्ठी व्रत एवं पूजन की विधि
चंपा षष्ठी (Champa Shashti) के व्रत के दिन महाराष्ट्र में भगवान शिव के मार्कंडेय स्वरूप की पूजा की जाती है वहीं दक्षिण भारत में इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा की जाती हैं। दोनों पूजाओं की विधि एक दूसरे से थोड़ी भिन्न हैं।
महाराष्ट्र में इस दिन को चंपा षष्ठी और बैंगन छठ (Baigan Chhath) कहा जाता है तो दक्षिण भारत में इस दिन को स्कंद षष्टी (Skanda Sashti) के नाम से पुकारते हैं।
Champa Shashti Ki Puja Vidhi
चंपा षष्टी की पूजा विधि
- चंपा षष्ठी (Champa Shashti) के दिन प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व ही स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- शिवालय जाकर दूध व गंगाजल से शिवलिंग का अभिषेक करें।
- शिवजी को बेलपत्र, फल-फूल अर्पित करें। चंदन से तिलक करें।
- भगवान शिव का ध्यान करें। शिवमहिम्नस्त्रोत्र और शिव चालीसा का पाठ करें।
- इस मंत्र का 108 बार जाप करें – ॐ श्रीं अर्धनारीश्वराय प्रेमतत्त्वमूर्तये नमः।
- भगवान शिव को भोग में देशी खाण्ड़, बाजरा और बैंगन अर्पित करें। फिर उसे भोग लगाकर निर्धन और जरूरतमंद लोगों में बाँट दें।
- संध्या (प्रदोष काल) के समय शिवालय में तेल के नौ दीपक जलायें।
Skanda Sashti Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
स्कंद षष्ठी व्रत एवं पूजन की विधि
- स्कंद षष्ठी (Skanda Sashti) के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर पूजास्थान पर बैठकर स्कंद षष्ठी के व्रत एवं पूजन का संकल्प करें।
- पूजास्थान पर एक चौकी बिछायें, उसपर वस्त्र बिछाकर उस पर भगवान कार्तिकेय की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- भगवान कार्तिकेय की पूजा दक्षिण दिशा की ओर मुहँ करके की जाती हैं।
- धूप-दीप जलाकर कार्तिकेय जी का पूजन करें।
- दूध, दही, घी एवं जल से कार्तिकेय जी का अभिषेक करें। रोली-चावल से उनका तिलक करें।
- भगवान कार्तिकेय जी को चम्पा के फूल अवश्य चढ़ायें। फल अर्पित करें।
- भोग लगायें। इस दिन व्रत करने वाले को एक ही समय भोजन करना चाहिये।
Skanda Sashti Vrat Ke Niyam
स्कंद षष्ठी व्रत के नियम
- स्कंद षष्ठी (Skand Sashti) के व्रत में तेल का सेवन ना करें।
- रात्रि में भूमि पर शयन करें।
- ब्रह्मचर्य का पालन करें।
Champa Shashti Ki Katha
चंपा षष्ठी की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार एक समय मणि-मल्ह नाम के दो राक्षस थे। वो दोनो सगे भाई थे। वो ब्रह्मा जी से वरदान पाकर बहुत शक्तिशाली और निरंकुश हो गये थे। उन्होने अपनी शक्ति के अभिमान में आकर ऋषि-मुनियों का जीवन दूभर कर दिया था। तब ऋषियों ने देवताओं से सहयता मांगी पर कोई लाभ ना हुआ। मणि-मल्ह दोनों भाइयों की शक्ति के सामने उनकी एक ना चली तब सभी मिलकर भगवान शिव की शरण में गये। तब भगवान शिव ने उनकी सहायता का वचन दिया।
भगवान शिव भैरव रूप में प्रकट हुये और देवी पार्वती ने शक्ति स्वरूप में प्रकट होकर खंडोबा नामक स्थान पर मणि-मल्ह नाम के दोनों दैत्य भ्राताओं से छह दिनों तक युद्ध करके उन्हे चम्पा षष्टी (Champa Shashti) के ही दिन मृत्यु के घाट उतार दिया था। इस लिये इस दिन चम्पा षष्टी का पर्व बहुत धूम-धाम से मनाया जाता हैं। महाराष्ट्र में भगवान शिव के अवतार भैरव को मार्तंड-मल्लहारी व खंडोबा के नाम से पुकारा जाता हैं।
Skanda Sashti Ki Katha
स्कंद षष्ठी की कथा
एक पौराणिक कथा के अनुसार एक बार किसी बात पर भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश से नाराज होकर भगवान कार्तिकेय जी कैलाश पर्वत को छोड़ कर चले गये। अपने माता-पिता और अनुज भ्राता को त्याग कार्तिकेय जी दक्षिण दिशा में मल्लिकार्जुन में जाकर निवास करने लगे। मल्लिकार्जुन भगवान शिव के ज्योतिर्लिंगों में से एक हैं। कहा जाता है कि उस दिन मार्गशीर्ष माह की शुक्लपक्ष की षष्टी तिथि थी। कार्तिकेय जी इस दिन दक्षिण में गये थे इसलिये दक्षिण भारत में इस दिन उत्सव मनाया जाता हैं।
अन्य कथा के अनुसार देवासुर संग्राम में देवताओं की सेना के सेनापति के रूप में इस दिन भगवान कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया था। और उसके आतंक से धरती और आकश को मुक्त किया था। इस कारण से इस का विशेष महत्व हैं।
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