Shattila Ekadashi – षट्तिला एकादशी कब हैं? पढ़ियें एकादशी व्रत की कथा और नियम

Shattila Ekadashi Vrat

षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का व्रत करने से धन-धान्य और मोक्ष की प्राप्ति होती हैं। जानिये षट्तिला एकादशी कब हैं? और षट्तिला एकादशी व्रत का महत्व क्या हैं? साथ ही पढ़ियें षट्तिला एकादशी व्रत की कथा , पूजन की विधि और षट्तिला एकादशी व्रत के नियम।

Shattila Ekadashi
षट्तिला एकादशी

धर्म शास्त्रों के अनुसार माघ मास की कृष्णपक्ष की एकादशी को षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। षट्तिला एकादशी को तिल्दा एकादशी (Tilda Ekadashi) और षटिला एकादशी (Shatila Ekadashi) के नाम से भी पुकारा जाता हैं। इस एकादशी पर भगवान विष्णु की पूजा किये जाने का विधान हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार इस दिन तिल का प्रयोग करना श्रेयस्कर रहता हैं। इस दिन छ: प्रकार से तिलों का प्रयोग किये जाने का विधान हैं। इस दिन अन्न और तिल दान करने से महान पुण्य की प्राप्ति होती हैं। षट्तिला एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से जातक को अपार धन-धान्य की प्राप्ति होती है और मरणोपरांत वैकुण्ठ धाम को चला जाता हैं।

Shattila Ekadashi Kab Hai?
षट्तिला एकादशी कब हैं?

इस वर्ष षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का व्रत एवं पूजन 6 फरवरी, 2024 मंगलवार के दिन किया जायेगा।

Significance Of Shattila Ekadashi Vrat
षट्तिला एकादशी का महत्व

हिंदु धर्म में एकादशी व्रत को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता हैं। माघ माह की षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का व्रत करना बहुत उत्तम बताया गया हैं। षट्तिला एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से जातक को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती हैं।

षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) पर तिलों के प्रयोग को विशेष महत्व दिया गया हैं। षट्तिला एकादशी पर तिलों को छ: प्रकार से प्रयोग करना चाहियें।

  • तिल पीसकर उसका उबटन लगाना चाहिये।
  • जल में तिल डालकर स्नान करना चाहिये।
  • पीने के जल में तिल डालकर उस पानी को पीना चाहिये।
  • तिल से बने भोजन और मिष्ठान भगवान को भोग लगाने चाहियें। तिल से बनी वस्तुओं का सेवन करना चाहिये।
  • तिल और अन्नादि का दान करना चाहियें।
  • तिल से हवन में आहूति देनी चाहियें।
  • षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) पर तिल का उपयोग करने से जातक को आरोग्य, धन-धान्य व यश-कीर्ति की प्राप्ति होती हैं।
  • इस दिन भोज्य सामग्री और तिल दान करने से जातक को स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन मनुष्य जितने तिल दान करता है वो उतने वर्षों तक स्वर्ग के आनंद का उपभोग करता हैं।

षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का व्रत एवं पूजन पूरे विधि-विधान और पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ करने से

  • जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।
  • अपार धन-धान्य की प्राप्ति होती हैं।
  • सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
  • जातक को आरोग्य की प्राप्ति होती हैं।
  • यश और कीर्ति में वृद्धि होती हैं।
  • मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त होता हैं।

Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
व्रत एवं पूजन की विधि

माघ मास की षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार है –

माघ मास की षट्तिला एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

  • षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) के दिन प्रात: काल तिल पीस कर उससे उबटन करके, तिल के जल से स्नान करके नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
  • संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।
  • धूप-दीप जलाकर भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत में तिल मिलाकर उससे स्नान करवायें। चंदन लगायें। रोली-चावल से तिलक करें। इत्र चढ़ायें।
  • फल-फूल अर्पित करें।
  • भोग अर्पित करें। भोग में तिल से बने मिष्ठान अवश्य चढ़ायें।
  • धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • इसके बाद षट्तिला एकादशी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • षट्तिला एकादशी के व्रत में अन्न का सेवन ना करें। दिन में एक ही बार संध्या को पूजन करने के बाद ही फलाहार और तिल से बनी मिठाई का सेवन करें।
  • व्रत की रात को हवन करें और उसमें तिल की आहूति दें। रात्रि को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
  • व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
  • गरीब ब्राह्मण या किसी जरूरतमंद को षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) पर भोजन सामग्री और तिल का दान जरूर करें।

Vrat Ke Niyam
व्रत के नियम

षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) पर भूल कर भी यह काम ना करें।

  • इस दिन स्त्रियाँ सिर से स्नान न करें। अर्थात बाल न धोयें।
  • भोजन में चावल का सेवन न करें।
  • व्रत करने वाला इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • मौन रखें अन्यथा कम बोलें, बिल्कुल भी क्रोध ना करें।
  • अपने आचरण पर नियंत्रण रखें।
  • व्रत की रात्रि को जागरण करें।

Shattila Ekadashi Vrat Katha
षट्तिला एकादशी व्रत कथा

षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) व्रत की दो कथायें प्रचलित हैं।

षट्तिला एकादशी व्रत की प्रथम कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha) –

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को माघ मास की कृष्णपक्ष की एकादशी जिसे षट्तिला एकादशी कहते है उसकी कथा सुनायी थी। भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया सबसे पहले षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) व्रत की कथा भगवान विष्णु ने देवर्षि नारद जी को सुनायी थी।

पौराणिक कथा के अनुसार एक बार नारद जी भगवान विष्णु से मिलने वैकुण्ठ लोक में गये। वहाँ उन्होने भगवान विष्णु से षट्तिला एकादशी व्रत का महत्व सुनाने के लिये कहा। तब भगवान विष्णु ने उनको षट्तिला एकादशी की कथा सुनाते हुये बताया कि अति प्राचीन काल में एक नगर में एक धार्मिक विचारों की वृद्धा ब्राह्मणी रहा करती थी। वो विधवा थी और उसके कोई संतान भी नही थी। उसने अपना सम्पूर्ण जीवन प्रभु भक्ति में बिताने का निश्चय कर रखा था। इसलिए वो हमेशा प्रभु भक्ति में लीन रहती। भगवान विष्णु ने कहा वो मेरी अनन्य भक्त थी। वो पूरे विधि-विधान और श्रद्ध-भक्ति के साथ मेरी पूजा किया करती थी। उसने मुझे प्रसन्न करने के लिये पूरे एक माह तक व्रत रखा और मेरी आराधना मे लीन रही। इतने कठोर व्रत के प्रभाव से उसके सभी पापों का नाश हो गया और वो निर्मल हो गयी।

भगवान विष्णु ने नारद जी को बताया कि वो मेरी भक्ति तो पूरे मन से करती थी किंतु उसमें एक कमी थी, कि वो कभी किसी को भोजन सामग्री अन्नादि दान नही करती थी। एक बार मैं स्वयं उसके पास वेष बदलकर भिक्षा माँगने के लिये गया था। उसने मुझे भोजन या अन्न देने के स्थान पर मिट्टी का ढे‌ला दे दिया।

धरती पर अपना जीवनपूर्ण करने के बाद अपने पुण्य कर्मों के प्रभाव से उसे स्वर्ग लोक में स्थान मिला। किंतु अन्नादि का दान ना करने के कारण उसे स्वर्ग में एक खाली कुटिया मिली जिसमें एक आम का वृक्ष था। यह देखकर उसे बहुत दुख हुआ और उसने मुझे याद करते हुये कहा, “हे प्रभु! मैंने जीवनभर आपकी उपासना की और उसके फलस्वरूप मुझे यह खाली कुटिया प्राप्त हुयी है। जिसमें सुख-सुविधायें तो दूर नित्य जरूरत का सामान भी नही हैं।“ तब मैंने उसे दर्शन देकर कहा कि तुमने पूरे जीवन मेरी उपासना की किंतु जरूरतमंद को भोजन आदि का दान नही किया। एक बार जब मैं स्वयं तुम्हारे द्वार आया तो तुमने मुझे मिट्टी का ढ़ेला दान में दिया। यह उसी का परिणाम हैं। अब मैं तुम्हे उपाय बताता हूँ जिससे तुम्हे यहाँ सभी सुख-सुविधायें प्राप्त हो सकें।

तब भगवान विष्णु ने उस ब्राह्मणी को बताया कि तुम्हारे पास देवकन्याएं आयेंगी। जब वो तुम्हारे पास आये तो तुम द्वार तब तक मत खोलना जब तक वो तुम्हे षटतिला एकादशी के व्रत की विधि ना बतायें। उनसे षटतिला एकादशी के व्रत का सारा विधान जानकर तुम पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ उसका पालन करना। उसके प्रभाव से तुम्हारी सभी मनोकामनायें पूर्ण हो जायेंगी। तुम्हारी कुटिया धन-धान्य से भर जायेगी।

उस ब्राह्मणी ने वैसा ही किया और उस व्रत के प्रभाव से उसकी कुटिया धन-धान्य से भर गयी। वो सब जो वो वृद्धा प्राप्त करना चाहती थी उसे वो सब प्राप्त हुआ।

षट्तिला एकादशी व्रत की द्वितीय कथा (Shattila Ekadashi Vrat Katha Second) –

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार अति प्राचीन समय में वारणसी नगर में एक गरीब लकड़हारा निवास करता था। वो बहुत ही कठिनाईयों से अपने और अपने परिवार का पालन-पोषण करता था। जीवन के दुख झेलते-झेलते उसने सुखों की आशा ही छोड़ दी थी। उसकी आजीविका सिर्फ उसके द्वारा जंगल से काटी हुई लकड़ी पर भी निर्भर भी।

एक दिन वो लकड़हारा भूखा-प्यासा लकड़ियाँ बेचने के लिये इधर-उधर भटकते-भटकते एक साहूकार के घर पहुँच गया। उसने देखा कि वहाँ तो उत्सव की तैयारी चल रही थी। इतनी धूम-धाम देखकर उसने साहूकार से पूछा कि यहाँ किस उत्सव की तैयारी हो रही हैं? तब उस साहूकार ने हँसते हुये कहा, कि आज षटतिला एकादशी हैं, और यह उसी के व्रत की तैयारी चल रही हैं।“ तब उस लकड़हारे ने साहूकार से पूछा कि इसको करने से क्या लाभ होता हैं और इसका क्या महात्म्य है? तब उस साहूकार ने कहा कि इस व्रत को करने से जातक को भगवान विष्णु की कृपा से धन-धान्य की प्राप्ति होती हैं। इस व्रत के प्रभाव से जातक के सभी पापों का नाश हो जाता है, उसे आरोग्य की प्राप्ति होती हैं, धन-समृद्धि-यश-कीर्ति में वृद्धि होती है और उत्तम संतान की प्राप्ति होती हैं।

यह सब सुनकर उस लकड़हारे के मन में भी श्रद्धा उत्पन्न हुयी। उसने सुबह से कुछ भी नही खाया था, व्रत के विषय मे सुनकर उसने मन ही मन षट्तिला एकादशी (Shattila Ekadashi) का व्रत करने का संकल्प कर लिया। मन में व्रत का संकल्प करते ही, उस साहूकार ने उससे सारी लकड़ियाँ दोगुने दाम देकर खरीद ली। खुशी-खुशी वो लकड़हारा व्रत का सारा सामान लेकर अपने घर गया और अपने परिवारवालों को सारा वृत्तांत सुनाया।

उस साहूकार के द्वारा बतायी विधि से उसने अपने परिवार के साथ पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ षट्तिला एकादशी का व्रत एवं पूजन किया। इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी कष्ट समाप्त हो गयें। उसे अपार धन-सम्पत्ति की प्राप्ति हुई, नगर में उसकी मान-प्रतिष्ठा बढ़ी और उसके सभी पाप नष्ट हो गयें। वो लकड़हारा इस लोक के सभी सुख भोगकर अंत में वैकुण्ठ धाम को चला गया।

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