गाज का व्रत (Gaaj Ka Vrat) भादों माह की शुक्लपक्ष की द्वितीया या अनंत चतुर्दशी या किसी भी शुभ दिन पर किया जा सकता है। हिन्दू मान्यता के अनुसार गाज का व्रत एवं पूजन करने से अन्न, धन और संतान प्राप्ति की प्राप्ति होती है। जानियें कब करें गाज का व्रत (Gaaj Ka Vrat) एवं पूजन? साथ ही पढ़ियें पूजा की विधि और प्रचलित व्रत कथायें…
Gaaj Ka Vrat 2024
गाज का व्रत 2024
गाज का व्रत (Gaaj Ka Vrat) भाद्रपद माह (भादों) में किया जाता है। इसकी कोई तिथि नियत नही है, यह व्रत भाद्रपद माह में किसी शुभ दिन को किया जा सकता है। अधिकांश लोग यह व्रत भाद्रपद मास की शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि या फिर अनन्त चतुर्दशी के दिन करते है। इस व्रत में गाज की पूजा किये जाने का विधान है। यह व्रत पुत्र संतान प्राप्ति और उसकी कुशलता के लिये किया जाता है। हिंदु मान्यता के अनुसार पुत्र जन्म होने और या पुत्र का विवाह होने पर गाज का व्रत एवं उद्यापन अवश्य करना चाहिए।
Gaaj Ka Vrat Aur Puajn Kab kare?
गाज का व्रत एवं पूजन कब करना है?
इस वर्ष गाज का व्रत (Gaaj Ka Vrat) एवं पूजन 5 सितम्बर, 2024 गुरूवार के दिन या भाद्रपद माह के किसी भी शुभ दिन अपनी इच्छानुसार किया जा सकता है।
Gaaj Ka Vrat Aur Pujan Karne Ki Vidhi
गाज का व्रत एवं पूजन करने की विधि
भाद्रपद माह (भादों) के किसी भी शुभ दिन आप यह व्रत कर सकते है। इस व्रत की विधि इस प्रकार है –
- व्रत के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजा के लिये दीवार पर घर की ज्येष्ट बहू या पुत्रवती स्त्री गाज का चित्र बनायें। इसमें एक भील-भीलनी और एक बच्चा बनाया जाता है। भील-भीलनी के सिर पर टोकरियाँ बनायें। कुछ परिवारों में मिट्टी से गाज बनाकर उसपर जौ लगायें जाते है। कुछ परिवारों में कच्चे सूत के तीन धागे रखकर ही पूजा की जाती है। अधिकतर इस दिन अपने कुलदेवता या कुलदेवी की पूजा करते है। यह आप अपने परिवार की परम्परा के अनुसार करें।
- एक जल से भरा कलश रखें। हलवा-पूडी का भोग बनायें। कुछ परिवारों में गाज के व्रत में रोट का भोग लगाने और व्रत करने वाली स्त्री को भोजन में रोट खाने की परम्परा है।
- हाथ में गेहूँ के दाने हाथ में रखकर गाज की कहानी कहें या सुनें।
- गाज की कहानी (Gaaj Ki Kahani) सुनने के बाद बिंदायक की कहानी सुनें।
- फिर कलश का जल सूर्य को चढ़ा दें।
Gaaj Ke Vrat Ka Udyapan Karne Ki Vidhi
गाज के व्रत का उद्यापन करने की विधि
जब किसी स्त्री को पुत्र प्राप्त हो या उसके पुत्र का विवाह हो तो उसे उस वर्ष के भाद्रपद माह (भादों) के किसी शुभ दिन गाज के व्रत का उद्यापन करना चाहिये।
- उद्यापन के लिये एक चुनरी पर सात जगह चार-चार पूड़ी, हलवा और दक्षिणा के लिये पैसे रखें।
- फिर एक जल के कलश पर स्वास्तिक बनायें।
- विधि अनुसार गाज की पूजा करें और गेहूँ के 7 दाने हाथ में लेकर गाज की कथा सुनें।
- गाज की कथा सुनने के बाद बिंदायक की कथा कहे या सुने।
- उसके बाद कलश के जल से भगवान सूर्य को अर्ध्य दें।
- सारी पूडियाँ, हलवा व दक्षिणा के पैसे चुनरी के साथ अपने सासू माँ या किसी ब्राह्मणी को देकर चरण स्पर्श करें।
- तत्पश्चात् सात ब्राह्मणों को भोजन कराये और उन्हे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
- इसके बाद स्वयं भोजन करें।
Gaaj Ke Vrat Ki Katha (First)
गाज के व्रत की कथा (प्रथम)
गाज के व्रत की दो कथायें प्रचलित हैं।
प्रथम कथा – हिंदु धर्म कथाओं के अनुसार अति प्राचीन काल में एक राजा और रानी निसन्तान होने के कारण बड़े दुखी थे। रानी ने एक दिन गाज माता का ध्यान करके उनसे संतान प्रदान करने की प्रार्थना की। रानी ने प्रण किया कि यदि मेरे पुत्र हुआ तो मैं भाद्रपद मास में गाज माता का व्रत (Gaaj Ka Vrat) एवं पूजन करूँगी और हलवे की कड़ाही करूँगी। गाज माता की कृपा से रानी गर्भवती हो गई और उसे पुत्र की प्राप्ति हुई।
दुर्भाग्यवश रानी भाद्रपद मास में गाज माता व्रत एवं पूजन करना और हलवे की कड़ाही करना भूल गई। यह देखकर गाज माता रानी पर क्रुद्ध हो गईं और उन्होने पालने में सोते रानी के पुत्र को आँधी से उडा कर एक भील-भीलनी के घर पहुँचा दिया। वो भील-भीलनी गाज माता के भक्त थे। जब भील-भीलनी ने अपने घर में पालने में सोता बालक देखा तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना नही रहा। वो भील-भीलनी भी निसंतान होने से दुखी थे। घर पर अकस्मात बच्चे को पाकर भील दम्पत्ति बहुत अतिप्रसन्न हुए और बारम्बार ईश्वर का धन्यवाद करने लगे।
राजा-रानी महल में अपने पुत्र को ना पाकर व्यथित हो उठे। राजा ने पूरे नगर में अपने पुत्र के खो जाने और ढ़ूँढ़ कर लाने वाले को पुरस्कार देने की घोषणा करा दी। राजा के वस्त्र धोने वाला धोबी उस भील-भीलने के घर के निकट ही रहता था। उसने भील-भीलनी के घर पर पालने में झूलते बालक को देखा तो राजा को सूचना दे दी। राजा के सैनिक भील-भीलनी को बच्चे के साथ महल लेकर आये और राजा-रानी के समक्ष प्रस्तुत किया। राजा ने उनसे उस बालक के विषय में पूछा तो उन्होने बताया कि यह पुत्र उन्हे गाज माता की कृपा से प्राप्त हुआ है। फिर राजा-रानी को उस दिन जो भी हुआ वो बता दिया। यह सुनकर रानी को अपनी भूल स्मरण हो आया।
रानी ने गाज माता से अपनी भूल के लिये क्षमा माँगी और अगले ही दिन गाज माता का व्रत (Gaaj Ka Vrat) एवं पूजन पूरे धूम-धाम से किया और अपने प्रण के अनुसार हलवे की कढ़ाई भी करी। गाज माता रानी पर पुन: प्रसन्न हो गई और उसे उसका पुत्र सकुशल मिल गया। इधर उन भील-भीलनी को भी गाज माता की कृपा से धन-धान्य और संतान की प्राप्ति हुई। हे माता आपने जिस प्रकार राजा-रानी और भील-भीलनी की मनोकामना पूर्ण की उसी प्रकार सभी की मनोकामना पूर्ण करना।
Gaaj Ki Kahani (Second)
गाज की कहानी (द्वितिय)
एक पौराणिक कथा के अनुसार बहुत समय पहले भाद्रपद माह (भादों) की अनंत चतुर्दशी के दिन इंद्रलोक की देव कन्याएँ, स्त्रियाँ, अप्सराएँ, यक्षिणी आदि धरती पर गाज की पूजन कर रही थी। तभी एक भीलनी ने उन्हे ऐसा करते देखा तो उनसे पूछा कि आप लोग यह क्या कर रही हैं? तब उन्होने उसे बताया कि हम गाज का व्रत एवं पूजन कर रहें है। भीलनी ने पुन: पूछा इसका क्या महत्व है? कृपा करके मुझे बताये। आपको व्रत करते देख मेरे मन में भी इस व्रत को करने की इच्छा हो रही है। तब उन्होने बताया कि इस व्रत को करने से साधक को देवी लक्ष्मी की कृपा से अपार धन-सम्पत्ति और यश की प्राप्ति होती है। भीलनी ने उनसे व्रत एवं पूजन की विधि जानकर स्वयँ भी उस व्रत को करना आरंभ कर दिया।
गाज माता की कृपा से उस भील-भीलनी को अपार धन-सम्पदा की प्राप्ति हुई। उनका वैभव देखते ही बनता था। उनका यश भी दिनों दिन बढ़ता जा रहा था। एक बार एक धोबी जो राज परिवार और उस भील परिवार के वस्त्र धोता था उससे भूलवश रानी और भीलनी के वस्त्र बदल गये। रानी ने जब देखा की उसके वस्त्र किसी और से बदल गये हैं तो उसाने उस धोबी बो बुलाकर पूछा कि इस नगर में ऐसा कौन है जो इस प्रकार के राजसी वस्त्र धारण करता है? तब उस धोबी ने उस भील दम्पत्ति के विषय में रानी को बताया।
रानी ने उस भीलनी को मिलने के लिये बुलवाया और उससे पूछा कि उसके इस वैभव का क्या रहस्य है? तब उस भीलनी ने रानी को बताया कि “यह सब गाज माता की कृपा से सम्भव हुआ है। मैं हर वर्ष भाद्रपद माह की अनन्त चतुर्दशी को गाज की पूजन करती हूँ। गाज माता की कृपा से ही हमारी सभी मनोकामनायें पूर्ण हुई हैं।“ यह सब सुनकर रानी के मन में भी संतान पाने के लिये गाज का व्रत करने इच्छा जागृत हुई। रानी ने भीलनी से व्रत की विधि पूछी तो भीलनी ने रानी को व्रत एवं पूजन की विधि बताकर कहा कि “हे रानी! आप व्रत अवश्य किजिये किंतु इस बात का ध्यान रखना की व्रत भंग ना हो।“
रानी ने भी गाज का व्रत (Gaaj Ka Vrat) करना आरम्भ कर दिया। गाज माता की कृपा से रानी को पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। जब अगली बार गाज का व्रत आया तो उसके मन में व्रत की विधि को लेकर संशय उत्पन्न हुआ। उसने सोचा कि मेरा पुत्र छोटा है और अगर आज मैं व्रत में रोट खाऊँगी तो मेरे पुत्र के पेट में दर्द होगा। यह सोचकर उसने गाज के व्रत में रोट नही खायें। यह देखकर गाज माता रुष्ट हो गई और उन्होने उसके पुत्र को पालने समेत अदृश्य कर दिया। अपने पुत्र को ना पाकर राजा और रानी बहुत दुखी हुये। उन्होने सभी स्थानों पर बच्चे की तलाश की किंतु उन्हे सफलता नही मिली।
रानी ने दुखी मन से उस भीलनी को बुलाया और सारी बात बताई तब उस भीलनी ने रानी को कहा कि ‘हे रानी! आपने व्रत की विधि पूर्ण ना करके भूल की है, जिसके कारण गाज माता रुष्ट हुई हैं। आप उनसे क्षमा माँगों।‘ तब उस रानी ने गाज माता से अपनी भूल की क्षमा माँगी। और अगली बार जब पुन: गाज का व्रत आया तो पूरे विधि-विधान से श्रद्धा भक्ति के साथ रानी ने उस व्रत का पालन किया। रानी की इस भक्ति-भावना को देखकर गाज माता उसपर पुन: प्रसन्न हो गई और उसी रात्रि उसे उसका पुत्र वापिस दे दिया। अपने पुत्र को पुन: प्राप्त करके राजा और रानी बहुत प्रसन्न हुये। तब से उस नगर में सभी गाज का व्रत करने लगे।
॥ बोलो गाज माता की जय ॥
Bindayak Ji Ki Kahani
बिन्दायक जी की कहानी
एक समय की बात है एक कुएँ मे एक मेंढक-मेंढकी रहते थे। मेंढकी हर दिन भगवान गणेश जी (बिन्दायक जी) का नाम लेती। मेंढक को यह बात अच्छी नही लगती वो मेंढकी इस बार के लिये हर बार टोकता था। एक दिन उस कुएँ पर एक स्त्री पानी लेने आई और वो दोनों मेंढक-मेंढकी उस बर्तन में समा गये। उन्हे बाहर निकलने का कोई मार्ग नही मिला तो उस मेंढक ने मेंढकी से कहा तू हमेशा जिस बिंदायक का नाम लेती है उस बिंदायक को सहायता के लिये बुला। मेंढकी ने बिंदायक जी को सहायता के लिये पुकारा तभी बिंदायक जी माया से दो साँड़ लडते हुये आये और उस बर्तन को गिरा दिया। और बिंदायक जी की कृपा से वो दोनों बहते हुये एक तालाब में पहुँच गये।