Hanuman Tandav Stotra – जानियें हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?

Hanuman Tandav Stotra

Hanuman Tandav Stotra
हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र

चमत्कारिक प्रभाव वाले शिव ताण्डव स्तोत्र की ही भांति हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र भी बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है। इस कलियुग में हनुमान जी की आराधना करने से साधक को उसके जीवन की सभी प्रकार की समस्याओं से मुक्ति मिल जाती है।

Benefits Of Hanuman Tandav Stotra
हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र के लाभ

हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र के पठन और श्रवण के द्वारा हनुमान जी की उपासना करने से जातक को –

  • मंगल एवं शनि ग्रहों की अनुकूलता प्राप्त होती है और राहु-केतू के दुष्प्रभाव का शमन होता है।
  • जन्मपत्री के विभिन्न प्रकार के दोषों का निवारण होता है।
  • भूत बाधा का निवारण होता है।
  • रोगों का नाश होता है और जातक स्वस्थ और निरोगी हो जाता है।
  • शत्रु पराजित होता है।
  • परिवार पर आयी विपत्ति का नाश होता है।
  • सभी प्रकार के भयों से जातक मुक्त हो जाता है।
  • जातक सभी प्रकार की सम्पदा से युक्त हो जाता है।
  • रोजगार में उन्नति होती है।
  • विद्यार्थी को विद्या प्राप्त होती है।
  • धन चाहने वाले को धन और बल की इच्छा रखने वाले को बल प्राप्त होता है।
  • मनोवंछित कार्यों की सिद्धि होती है।

How And When To Recite Hanuman Tandav Stotra?
हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?

शास्त्रों के अनुसार हनुमान जी की उपासना संध्या के समय करनी चाहिये। यदि सम्भव हो तो हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र का पाठ प्रतिदिन करें और यदि समयाभाव के कारण प्रतिदिन नही कर सकते हो तो मंगल और शनिवार के दिन हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र का पाठ करें। आप यह पाठ हनुमान जी के मन्दिर जाकर उनकी प्रतिमा के समक्ष बैठकर भी कर सकते है और चाहेंं तो अपने घर पर पूजास्थान पर बैठकर भी कर सकते है।

  • संध्या के समय स्वच्छ होकर साफ कपडें पहनकर पूजास्थान पर पूर्व की ओर मुँँह आसन लगाकर बैठे।
  • दीपक जलाकर हनुमान जी की प्रतिमा के समक्ष गुड़-चने का भोग व फल रखें।
  • पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ हनुमान-ताण्डव-स्तोत्र का पाठ करें। फिर हनुमान जी की आरती करें।
  • प्रसाद और फल लोगों में बाँट दें।

विशेष नोट : – मंगलवार और शनिवार के दिन हनुमान जी को चोला एवं पान चढ़ाने से मनोवांछित कार्य की सिद्धि होती है। मन मेंं शांति और विचारों मेंं सकारात्मकता आती है।

॥ श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥

वन्दे सिन्दूरवर्णाभं लोहिताम्बरभूषितम् ।
रक्ताङ्गरागशोभादयं शोणापुच्छं कपीश्वरम् ॥

भजे समीरनन्दनं, सुभक्तचित्तरंजनं, दिनेशरूपभक्षकं, समस्तभक्तरक्षकम्।
सुकण्ठकार्यसाधकं विपक्षपक्षबाधकं, समुद्रपारगामिनं, नमामि सिद्धकामिनम्॥1॥

सुशङ्कितं सुकण्ठभुक्तवान् हि यो हितं वचस्त्वमाशु धैर्य्यमाश्रयात्र वो भयं कदापि न ।
इति प्लवङ्गनाथभाषितं निशम्य वानराऽधिनाथ आप शं तदा, स रामदूत आश्रयः ॥2॥

सुदीर्घलोचनेन, पुच्छगुच्छशोभिना, भुजद्वयेन सोदरीं निजांसयुग्ममास्थितौ ।
कृतौ हि कोसलाधिपौ, कपीशराजसन्निधौ, विदहजेशलक्ष्मणौ, स मे शिंव करोत्वरम् ॥3॥

सुशब्दशास्त्रपारगं विलोक्य रामचन्द्रमाः, कपीश नाथसेवकं, समस्तनीतिमार्गगम्।
प्रशस्य लक्ष्मणं प्रति, प्रलम्बबाहुभूषितः कपीन्द्रसख्यमाकरोत्, स्वकार्यसाधकः प्रभुः ॥4॥

प्रचण्डवेगधारिणं, नगेन्द्रगर्वहारिणं, फणीशमातृगर्वहृद्दृस्यवासनाशकृत् ।
विभीषणेन सख्यकृद्विदेह जातितापहृत्, सुकण्ठकार्यसाधकं, नमामि यातुधतकम् ॥5॥

नमामि पुष्पमौलिनं, सुवर्णवर्णधारिणं गदायुधेन भूषितं, किरीटकुण्डलान्वितम्।
सुपुच्छगुच्छतुच्छलंकदाहकं सुनायकं विपक्षपक्षराक्षसेन्द्र-सर्ववंशनाशकम् ॥6॥

रघूत्तमस्य सेवकं नमामि लक्ष्मणप्रियं दिनेशवंशभूषणस्य मुद्रीकाप्रदर्शकम्।
विदेहजातिशोकतापहारिणम् प्रहारिणम् सुसूक्ष्मरूपधारिणं नमामि दीर्घरूपिणम् ॥7॥

नभस्वदात्मजेन भास्वता त्वया कृता महासहा यता यया द्वयोर्हितं ह्यभूत्स्वकृत्यतः ।
सुकण्ठ आप तारकां रघुत्तमो विदेहजां निपात्य वालिनं प्रभुस्ततो दशाननं खलम् ॥8॥

इमं स्तवं कुजेऽह्नि यः पठेत्सुतसा नरः कपीशनाथसेवको भुनक्तिसर्वसम्पदः ।
प्लवङ्गराजसत्कृपाकताक्षभाजनास्सदा न शत्रुतो भयं भवेत्कदापि तस्य नुस्त्विह ॥9॥

नेत्राङ्गनन्दधरणीवत्सरेऽनङ्गवासरे ।
लोकेश्वराख्यभट्टेन हनुमत्ताण्डवं कृतम् ॥10॥

॥ ॐ इति श्री हनुमत्ताण्डव स्तोत्रम् ॥