श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra) का पाठ भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का बहुत ही सरल उपाय है। जन्माष्टमी के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से विशेष प्रयोजन सिद्ध होते है। साक्षात परब्रह्म स्वरूप श्री कृष्ण की भक्ति साधक को आनन्द से भर देती है। पढ़ियें श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र और साथ ही जानिये इसके लाभ और माहात्म्य…
Significance Of Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra
श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र का माहात्म्य
जप-तप-पूजा और बड़े यज्ञ आदि के अनुष्ठान के बिना भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त करने का एक बहुत ही आसान उपाय है, वो है श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र का नित्य पाठ। इस कलियुग में जहाँ पर लोगों में धर्म के प्रति आस्था कम हो रही है और अधर्म और अनाचार बढ़ रहा है। ऐसे समय में श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra) के पाठ से साधक भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न कर सकता है और उनकी कृपा प्राप्त सकता है। श्री कृष्ण की अनपायनी भक्ति साधक को परम आनन्द से भर देती है।
Benefits Of Reading Kripa Kataksh Stotra
श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र के लाभ
शास्त्रों के अनुसार बिना स्तोत्र के जप-तप-सेवा और पूजा आदि भी सिद्ध नहीं होते। सरलता पूर्वक भगवान कृष्ण की कृपा पाने के लिये इस प्रभावशाली स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें। इस स्तोत्र के पाठ के द्वारा श्री कृष्ण की भक्ति करने से
- साधक का हृदय परमानंद से भर जाता है।
- साधक पापमुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त होता है।
- श्री कृष्ण की सेवा करके और उनके प्रति समर्पण का भाव रखकर भक्ति करने से साधक जन्म–मरण के चक्र से छूट जाता है।
- भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है। धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि में वृद्धि होती है।
- मान-सम्मान और ऐश्वर्य में बढ़ोत्तरी होती है।
- रोग–दोष-कष्ट एवं पाप नष्ट हो जाते है।
- दुख- दरिद्रता का नाश होता है।
- साधक मोह-माया के बन्धनों से मुक्त हो जाता है और उसे भगवान की अनपायिनी भक्ति प्राप्त होती है।
- पृथ्वी पर सुख भोगकर साधक अंत में सद्गति को प्राप्त करता है।
When And How To Recite Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra?
श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र का पाठ कब और कैसे करें?
पूर्ण श्रद्धा – भक्ति के साथ अपनी इन्द्रियों को वश में रखकर साधक को श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra) का पाठ करना चाहिये। शरीर और मन के भाव दोनों की शुद्धता आवश्यक है। भक्ति भाव से इस स्तोत्र का पाठ करें। सुबह या शाम कभी भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है।
- स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- पूजास्थान पर पीले रंग के आसन पर बैठ जायें।
- फिर गाय के घी का दीपक प्रज्वलित करें।
- आँखे बन्द करके भगवान श्री कृष्ण का ध्यान करें।
- फिर 108 बार इस मंत्र का जाप करें। मंत्र: “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय”
- तत्पश्चात् श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र का पाठ करें।
नोट: जन्माष्टमी के दिन व्रत रखें और विधि अनुसार श्री कृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र (Shri Krishna Kripa Kataksh Stotra) का पाठ करें। शास्त्रों के अनुसार जन्माष्टमी के दिन इस स्तोत्र का पाठ करने से श्री कृष्ण के आशीर्वाद से साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती है।
Krishna Kripa Kataksh Stotra Lyrics
।। श्रीकृष्ण प्रार्थना ।।
मूकं करोति वाचालं पंगु लंघयते गिरिम्।
यत्कृपा तमहं वन्दे परमानन्द माधवम्।।
नाहं वसामि वैकुण्ठे योगिनां हृदये न च।
मद्भक्ता यत्र गायन्ति तत्र तिष्ठामि नारद।।
।। अथ श्रीकृष्ण कृपाकटाक्ष स्तोत्र ।।
भजे व्रजैकमण्डनं समस्तपापखण्डनं,
स्वभक्तचित्तरंजनं सदैव नन्दनन्दनम्।
सुपिच्छगुच्छमस्तकं सुनादवेणुहस्तकं,
अनंगरंगसागरं नमामि कृष्णनागरम्॥
मनोजगर्वमोचनं विशाललोललोचनं,
विधूतगोपशोचनं नमामि पद्मलोचनम्।
करारविन्दभूधरं स्मितावलोकसुन्दरं,
महेन्द्रमानदारणं नमामि कृष्ण वारणम्॥
कदम्बसूनकुण्डलं सुचारुगण्डमण्डलं,
व्रजांगनैकवल्लभं नमामि कृष्णदुर्लभम्।
यशोदया समोदया सगोपया सनन्दया,
युतं सुखैकदायकं नमामि गोपनायकम्॥
सदैव पादपंकजं मदीय मानसे निजं,
दधानमुक्तमालकं नमामि नन्दबालकम्।
समस्तदोषशोषणं समस्तलोकपोषणं,
समस्तगोपमानसं नमामि नन्दलालसम्॥
भुवो भरावतारकं भवाब्धिकर्णधारकं,
यशोमतीकिशोरकं नमामि चित्तचोरकम्।
दृगन्तकान्तभंगिनं सदा सदालिसंगिनं,
दिने-दिने नवं-नवं नमामि नन्दसम्भवम्॥
गुणाकरं सुखाकरं कृपाकरं कृपापरं,
सुरद्विषन्निकन्दनं नमामि गोपनन्दनं।
नवीन गोपनागरं नवीनकेलि-लम्पटं,
नमामि मेघसुन्दरं तडित्प्रभालसत्पटम्।।
समस्त गोप मोहनं, हृदम्बुजैक मोदनं,
नमामिकुंजमध्यगं प्रसन्न भानुशोभनम्।
निकामकामदायकं दृगन्तचारुसायकं,
रसालवेणुगायकं नमामिकुंजनायकम्।।
विदग्ध गोपिकामनो मनोज्ञतल्पशायिनं,
नमामि कुंजकानने प्रवृद्धवह्निपायिनम्।
किशोरकान्ति रंजितं दृगंजनं सुशोभितं,
गजेन्द्रमोक्षकारिणं नमामि श्रीविहारिणम्।।
अथ स्त्रोत्रम शुभ फलम्
यदा तदा यथा तथा तथैव कृष्णसत्कथा,
मया सदैव गीयतां तथा कृपा विधीयताम्।
प्रमाणिकाष्टकद्वयं जपत्यधीत्य यः पुमान्,
भवेत्स नन्दनन्दने भवे भवे सुभक्तिमान॥