अच्युताष्टकम् (Achyutashtakam) का नित्य पाठ करने से मिलेगी अपनी मनोकामना पूर्ण करने की शक्ति

Achyutashtakam; Lord Vishnu; Shri Krishna; Shri Ram;

श्री शंकराचार्य द्वारा रचित अच्युताष्टकम् (Achyutashtakam) में भगवान विष्णु के विभिन्न अवतारों के नाम, रूप और लीलाओं का बहुत ही सुन्दर वर्णन किया गया है। इसके आठ श्लोकों में भगवान विष्णु के अवतार श्रीराम और श्री कृष्ण की लीलाओं को बहुत ही सन्दरता से पिरोया गया है। पढ़ियें अच्युताष्टकम् (Achyutashtakam) और जानिये इसका नित्य पाठ करने के लाभ..

Benefits of reading Achyutashtakam
अच्युताष्टकम् के लाभ

अच्युताष्टकम् का नित्य पाठ करने से साधक को भगवान श्री हरि विष्णु की कृपा प्राप्त होती है। उनके अवतारों और उनकी लीलाओं को पढ़नें और उनका ध्यान करने से मन को असीम शांति का अनुभव होता है। अच्युताष्टकम् का नित्य पाठ करने से

  • मन शांत होता है।
  • सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।
  • संकल्प शक्ति दृढ़ होती है।
  • साधक में अपनी इच्छाओं को पूरा करने का सामर्थ्य उत्पन्न होता है।
  • सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।

When to read Achyut Ashtakam?
अच्युताष्टकम् कब पढ़ना चाहियें?

  • प्रतिदिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • फिर पूजास्थान पर बैठकर भगवान श्री हरि विष्णु का ध्यान करें।
  • दीपक जलाकर अच्युताष्टकम् का पाठ करें।

Achyutashtakam Lyrics

अच्युताष्टकम्

अच्युतं केशवं रामनारायणं कृष्णदामोदरं वासुदेवं हरिम् ।
श्रीधरं माधवं गोपिकावल्लभं जानकीनायकं रामचन्द्रं भजे ॥ १॥

अच्युतं केशवं सत्यभामाधवं माधवं श्रीधरं राधिकाराधितम् ।
इन्दिरामन्दिरं चेतसा सुन्दरं देवकीनन्दनं नन्दनं सन्दधे ॥ २॥

विष्णवे जिष्णवे शङ्खिने चक्रिणे रुक्मिणिऱागिणे जानकीजानये ।
वल्लवीवल्लभायाऽर्चितायात्मने कंसविध्वंसिने वंशिने ते नमः ॥ ३॥

कृष्ण गोविन्द हे राम नारायण श्रीपते वासुदेवाजित श्रीनिधे ।
अच्युतानन्त हे माधवाधोक्षज द्वारकानायक द्रौपदीरक्षक ॥ ४॥

राक्षसक्षोभितः सीतया शोभितो दण्डकारण्यभूपुण्यताकारणः ।
लक्ष्मणेनान्वितो वानरैः सेवितोऽगस्त्यसम्पूजितो राघवः पातु माम् ॥ ५॥

धेनुकारिष्टकोऽनिष्टकृद्द्वेषिहा केशिहा कंसहृद्वंशिकावादकः ।
पूतनाकोपकः सूरजाखेलनो बालगोपालकः पातु माम् सर्वदा ॥ ६॥

विद्युदुद्योतवत्प्रस्फुरद्वाससं प्रावृडम्भोदवत्प्रोल्लसद्विग्रहम् ।
वन्यया मालया शोभितोरःस्थलं लोहिताङ्घ्रिद्वयं वारिजाक्षं भजे ॥ ७॥

कुञ्चितैः कुन्तलैर्भ्राजमानाननं रत्नमौलिं लसत्कुण्डलं गण्डयोः ।
हारकेयूरकं कङ्कणप्रोज्ज्वलं किङ्किणीमञ्जुलं श्यामलं तं भजे ॥ ८॥

अच्युतस्याष्टकं यः पठेदिष्टदं प्रेमतः प्रत्यहं पूरुषः सस्पृहम् ।
वृत्ततः सुन्दरं कर्तृ विश्वम्भरस्तस्य वश्यो हरिर्जायते सत्वरम् ॥ ९॥

॥ इति श्रीशङ्कराचार्यविरचितमच्युताष्टकं सम्पूर्णम् ॥