Padmini Ekadashi 2023: जानियें कब है अधिक मास की पद्मिनी एकादशी? साथ ही पढ़ियें व्रत की विधि, महत्व और व्रत कथा…

Padmini Ekadashi_Kamla Ekadashi

अधिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी बहुत ही शुभ फल देने वाली है। एकादशी का व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और पुरूषोत्तम मास (अधिक मास) भी भगवान विष्णु को ही समर्पित है। इसलिये इस माह की एकादशी का महत्व और अधिक बढ़ जाता है। पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) का व्रत सभी जन्म के पापों का नाश करने वाला, अपार यश एवं कीर्ति दिलाने वाला है। जानियें कब है पद्मिनी एकादशी? साथ ही पढ़ियें व्रत की विधि, माहात्म्य और व्रत कथा…

Padmini Ekadashi Vrat / Kamla Ekadashi Vrat
पद्मिनी एकादशी व्रत / कमला एकादशी व्रत

पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) की शुक्लपक्ष की एकादशी को पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। पद्मिनी एकादशी का व्रत बहुत ही शुभ फल देने वाला हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार एकादशी का व्रत करने से जातक को महान पुण्य प्राप्त होता हैं। पद्मिनी एकादशी का महत्व इसलिये और बढ़ जाता है क्योकि यह पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) में आती हैं।

अधिमास भगवान विष्णुकी आराधना के लिये ही समर्पित हैं। अधिक मास तीन वर्ष में एक बार आता हैं। इसे अधिमास, पुरूषोत्त्म मास और मल मास के नाम से जाना जाता हैं। वशिष्ठ सिद्धान्त के अनुसार सूर्य और चंद्र की गणना से सूर्य और चंद्र वर्ष के अंतर को समाप्त करने और उनके मध्य सामंजस्य बिठाने के लिये हिंदु पंचाग में हर तीन वर्ष मे एक अतिरिक्त चंद्र मास होता हैं।

पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) को कमला एकादशी (Kamla Ekadashi) और कमला पुरूषोत्तम एकादशी भी कहा जाता हैं। इस एकादशी का व्रत और पूजन करने से मनुष्य अपने इस जन्म और पूर्वजन्म के पापों से मुक्त हो जाता हैं। उसका मन एवं आत्मा निर्मल हो जाती हैं। साथ ही उसे संसार के सभी सुख प्राप्त होते हैं, और मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती हैं।

Padmini Ekadashi Kab hai?
पद्मिनी एकादशी कब हैं?

इस वर्ष पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) का व्रत 29 जुलाई, 2023 शनिवार के दिन किया जायेगा।

Significance Of Adhik Maas Ekadashi
पद्मिनी एकादशी का माहात्म्य

पौराणिक कथा के अनुसार अधिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का नाम राजा कार्तवीर्य की रानी पद्मिनी के नाम पर पड़ा हैं। सबसे पहले उसी ने सती अनुसुइया के कहने पर इस व्रत को किया था। इस व्रत को करने से मनुष्य की सभी इच्छायें पूर्ण होती हैं।

1. मनुष्य अपने इस जन्म और पूर्व जन्म के पापों से मुक्त हो जाता हैं।

2. इस व्रत को करने से मनुष्य का मन निर्मल और आत्मा शुद्ध हो जाती हैं।

3. मनुष्य संसार के सभी सुख भोगकर मरणोंपरांत वैकुण्ठ धाम को चला जाता हैं।

4. इस एकादशी के व्रत से जातक के यश और कीर्ति में अपार वृद्धि होती हैं।

5. पुरूषोत्तम मास भगवान विष्णु के पूजन के लिये ही समर्पित हैं। इस माह में आने वाली एकादशी का व्रत करने से साधक को कई यज्ञों और सहस्त्रों वर्षों की तपस्या करने के समान पुण्य प्राप्त होता हैं।

Kamla Ekadashi Vrat Ki Vidhi
कमला एकादशी व्रत की विधि

पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु के पूजन का विधान हैं। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार हैं –

अन्य एकादशियों के व्रत के समान ही पद्मिनी एकादशी का व्रत भी एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात्रि से ही प्रारम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

1. पद्मिनी एकादशी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती व्रत का संकल्प करें।

2. संकल्प लेने के बाद पूजा स्थान पर एक चौकी पर कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।

3. भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर नेवैद्य अर्पित करें। फूल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।

4. विष्णु सहस्त्रनाम और विष्णु पुराण का पाठ करें।

5. इसके बाद पद्मिनी एकादशी व्रत का महात्म्य और कथा पढ़े या श्रवण करें।

6. दिनभर निर्जल एवं निराहार रहकर व्रत करें।

7. व्रत की रात को जागरण करें। और रात्रि के हर प्रहर में भगवान को अलग-अलग वस्तुयें अर्पित करें। जैसे एक प्रहर में नारियल, दूसरे में प्रहर फल, तीसरे में मेवे और चौथे प्रहर में पान-सुपारी आदि।

8. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।

9. फिर उसके बाद स्वयं खाना खायें।

10. इस व्रत के दौरान दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें। झूठ ना बोले और परनिंदा से बचें।

Padmini Ekadashi (Kamla Ekadashi) Vrat Katha
पद्मिनी एकादशी (कमला एकादशी) व्रत कथा

पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने पद्मिनी एकादशी (Padmini Ekadashi) के व्रत के विषय में सबसे पहले अर्जुन को बताया था।

भगवान श्रीकृष्ण ने पद्मिनी एकादशी व्रत का महत्व बताते हुये कहा था कि अधिक मास में आने वाली शुक्लपक्ष की इस एकादशी को पदमिनी एकादशी कहा जाता हैं। इसका व्रत करने से साधक को अनेक यज्ञों और सहस्त्रों वर्षों की तपस्या के समान पुण्य प्राप्त होता हैं। इस व्रत का पालन श्रद्धा-भक्ति और पूरे विधि-विधान से करने से मनुष्य को अपार यश और कीर्ति प्राप्त होती है, वो अपने सभी पापों से छूटकर इस लोक के सभी सुख भोगकर अंत में वैकुण्ठ धाम को चला जाता हैं।

भगवान श्री कृष्ण ने पद्मिनी एकादशी व्रत की कथा सुनाते हुये कहा – त्रेतायुग में एक परम पराक्रमी और प्रजा वत्सल राजा हुआ करता था। उसका नाम कृतवीर्य था। राजा कृतवीर्य का राज्य बहुत विशाल था। परंतु उसके कोई संतान नही थी। उसने सन्तान प्राप्ति के लिये अनेक विवाह किये परंतु उसको संतान की प्राप्ति नही हुयी। उसके उपरांत उसके राज्य का क्या होगा? उसके वंश का क्या होगा? यही सोचकर राजा कृतवीर्य बहुत उदास रहता था। राजा ने पुत्र प्राप्ति के लिये हर सम्भव प्रयास किया, किंतु उसे सफलता नही मिली। उसने अनेक यज्ञ, हवन, दान-पुण्य और चिकित्सिय उपाय किये, परंतु उसकी पुत्र प्राप्ति की इच्छा पूर्ण नही हुयी। तब राजा कृतवीर्य ने तपस्या का मार्ग चुना।

रानी पद्मिनी राजा कृतवीर्य की सबसे प्रिय रानी थी। उसका जन्म इक्वाक्षु वंश में हुआ था। राजा कृतवीर्य ने राज्य का सारा कार्यभार अपने विश्वसनीय मंत्रियों को सौंप दिया और स्वयं अपनी प्रिय रानी पद्मिनी के साथ तपस्या के लिये गंधमादन पर्वत कि ओर प्रस्थान किया।

राजा कृतवीर्य ने हजारों वर्ष तक कठोर तपस्या करी, किंतु फिर भी उसकी पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण नही हुयी। सौभाग्यवश एक दिन रानी पद्मिनी की भेंट सती अनुसुइया से हुयी। तब उसने सती अनुसुइया को अपनी सारी कथा सुनाई। तब सती अनुसुइया ने रानी पद्मिनी को अधिक मास की शुक्लपक्ष की एकादशी का व्रत करने के लिये कहा। सती अनुसुइया ने कहा- यह बहुत ही दुर्लभ व्रत हैं और इसके पालन से तुम्हारी मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होगी।

रानी पद्मिनी ने पुत्र प्रप्ति की कामना के साथ इस एकादशी के व्रत का संकल्प किया। और पूरे विधि-विधान के साथ निराहार रहकर एकादशी के व्रत का पालन किया। व्रत के पूर्ण होने पर भगवान विष्णु प्रकट हुये और रानी पद्मिनी से वरदान माँगने के लिये कहा- तब रानी पद्मिनी ने भगवान विष्णु से सर्वगुण सम्पन्न पुत्र की कामना करी। रानी पद्मिनी ने भगवान विष्णु से कहा- हे प्रभु! मुझे ऐसा पुत्र दीजिये जो अत्यंत ही गुणवान, रूपवान और बलवान हो। तीनों लोको में उसकी कीर्ति हो, उसका सम्मान हो। उसका सामर्थ्य ऐसा हो की भगवान के अतिरिक्त कोई भी उसको पराजित ना कर सके।

भगवान ने रानी पद्मिनी को उसकी इच्छा के अनुसार वर प्रदान किया। रानी पद्मिनी ने सर्वगुण सम्पन्न पुत्र को जन्म दिया। उसका नाम कार्तवीर्य अर्जुन रखा गया। कार्तवीर्य अर्जुन बहुत की शक्तिशाली राजा हुआ। उसकी कीर्ति तीनों लोकों में फैली थी। एक बार उसने रावण तक को युद्ध में बंदी बना लिया था।

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा – हे अर्जुन ! जो भी मनुष्य इस परम दुर्लभ और महान पुण्य देने वाली पद्मिनी एकादशी का व्रत करेगा, इसके महात्म्य और परम पुण्य देने वाली कथा को पढ़ेगा या श्रवण करेगा, उसके इस जन्म के साथ पूर्वजन्म के पापों का भी क्षय हो जायेगा। और मृत्यु के बाद उसे वैकुण्ठ वास प्राप्त होता हैं।