भादों माह की कृष्णपक्ष की द्वादशी को बछबारस, औगद्वादस (Bach Baras Ogdwadash) और वत्स द्वादशी के नाम से पुकारा जाता है। स्त्रियाँ अपनी संतान की लम्बी आयु के लिये औगद्वादस का व्रत (Ogdwadash Vrat) एवं पूजन करती है। जानियेंं कब है औगद्वादस? साथ ही पढ़ियें औगद्वादस की पूजा विधि, उद्यापन की विधि और व्रत कथा…
Ogdwadash (Bach Baras)
औगद्वादस (बछबारस)
भाद्रपद मास (भादों) की कृष्णपक्ष की द्वादशी तिथि को औगद्वादस (Ogdwadash) का पर्व मनाया जाता है, जिसे अधिकतर लोग बछबारस (बीछ बारस) के नाम से जानते हैं। देश के कुछ भाग में बछबारस को औगद्वादस (Bach Baras Ogdwadash) के नाम से जाना जाता हैं। और यहाँ पर पूजा की विधि भी थोड़ी भिन्न हैं।
Ogdwadash Kab Hai?
औगद्वादस कब है?
इस वर्ष औगद्वादस (बछवारस) की पूजा एवं व्रत 30 अगस्त, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
बछवारस / वत्स द्वादशी
(Bach Baras / Vats Dwadashi)
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Bach Baras (Ogdwadash) Puja Vidhi
बछबारस (औगद्वादश) की पूजा की विधि
1. प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भीगी हुई मिट्टी से सात गाय, सात बछड़े, सात भगोने, उनके ढक्कन और एक तालाब लकड़ी के पाटे पर बनायें।
2. एक थाली में पूजन करने के लिए चने, मोठ (भीगे हुए), खीरा, केला, हल्दी, हरी दूब, दही, चीनी, चढ़ाने के लिये रूपये और चाँदी का सिक्का रखें।
3. एक कलश में कच्चा दूध और पानी मिला भरें।
4. इसके बाद पहले औगद्वादस की कहानी (Ogdwadash Ki Kahani) कहें या सुनें। कहानी कहते हुये या सुनते हुये हाथ में लेकर चनों को छीलते रहें। साथ में बिंदायक जी की कहानी भी सुने और जब कहानी समाप्त हो जाये तब उन्हें मिट्टी के बनाये भगोनों में चढ़ाये और कुछ को चौकी पर बनें मिट्टी के तालाब में भी चढ़ायें।
5. उसके बाद पूजा के लिये रखी सामग्री केला, खीरा, चीनी और रूपये भी पाटे पर चढ़ायें।
6. फिर एक परात को पूजा के पाटे के नीचे लगाये जिससे जो जल महिलायें तालाब में चढ़ाये वो उसमें एकत्रित हो जाये। जो भी महिलायें पूजा के लिये एकत्रित हुई हो वो एक-एक करके कलश के दूध मिले जल को सात-सात बार चौकी पर बने तालाब में चढ़ायें हैं और मिट्टी से बनाये गये गायों एवं बछड़ों के हल्दी से टीका करें।
7. फिर हल्दी से स्वयं के माथे पर भी बिंदी लगाये।
8. फिर उस घर की सास-बहू या देवरानी-जेठानी एकसाथ मिलकर हाथ में चाँदी का सिक्का और हरी दूब लेकर बचा हुआ जल उस पाटे पर चढ़ा दें।
9. फिर उसको सुखाने के लिये धूप में रख दें। सूखने के बाद उस मिट्टी को किसी नदी या बहते हुये जल में प्रवाहित करा दें। और पाटा किसी कामवाली या गरीब स्त्री को दे दें।
10. परात में इकट्ठा किये जल को सभी महिलायें मिलकर सूरज भगवान को चढ़ा दें।
11. इसके बाद अपने दाहिने हाथ पर दो और आधा छिला हुआ चना-मोठ, दूध, दही, चीनी रखें और बायें हाथ पर एक और आधा छिला हुआ चना, मोठ, दूध, दही, चीनी रखें। फिर बायें हाथ पर रखा सामान खाले और दाहिने हाथ वाली सामग्री को अपने पीछे उछाल दें।
12. एक थाली में मिनशने के लिये भीगे चने, मोंठ, पैसे, बेसन के लड्डू और फल रखें। फिर हाथ में पानी लेकर उसे मिनश कर बायना अपनी सास या जेठानी या किसी मंदिर में दे दें।
13. बछबारस (औगद्वादश) (Bach Baras Ogdwadash) पर सिर्फ पूजन किया जाता है, परंतु व्रत नही किया जाता। जो महिलायें ये पूजन करती है वो इस दिन गाय के दूध से बनी वस्तुयें, गेहूँ, जौ और चावल का सेवन नहीं करती। बेसन, मूंग आदि से बनी वस्तुओं का सेवन करती हैं।
When and how to do Udyapan of Ogdwadash (Bach Baras)?
औगद्वादश (बछबारस) का उद्यापन कब और कैसे करें?
औगद्वादश (बछबारस) (Bach Baras Ogdwadash) का उद्यापन भी किया जाता हैं। औगद्वादश (बछबारस) का उद्यापन तब किया जाता है जब जिस घर में पुत्र का जन्म होता है या बेटे का विवाह होता है। पुत्र के विवाह या जन्म से एक वर्ष के भीतर इसका उद्यापन किया जाता हैं।
उद्यापन के लिये एक पाटे पर मिट्टी से बनी चौदह गाय, चौदह बछड़े और सात भगोने (ढ़क्कन के साथ) बना कर रखें। फिर एक बड़ा सा थाल लेकर उसमें चौदह ढ़ेरी बनाये। ढ़ेरी में चने, मोठ, एक खीरा, एक बेसन का लड्डू और दक्षिणा रखें। साथ में एक बायने में साड़ी-ब्लाउज, पैर छुआई के पैसे, मिठाई और फल रखकर मिनशकर बायना अपनी सास या जेठानी को चरण छूकर दें। उन चौदह ढ़ेरियों में से एक-एक ढ़ेरी अपने परिवार वालों और पड़ोसियों के यहाँ भिजवा दें।
जिस साल उद्यापन करते है उस साल हर वर्ष की भांति एक तो साधारण बायना निकाला जाता है और दूसरा साड़ी ब्लाउज, पैर छूआई के पैसे, चने-मोठ, खीरा और मिठाई (लड्ड़ू) वाला उद्यापन का बायना निकाला जाता हैं।
Ogdwadash (Bach Baras) Ki Katha
औगद्वादश (बछबारस) की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक साहूकर हुआ करता था। उसके सात पुत्र और एक पौत्र था। उसकी स्त्री बहुत धर्मपरायण थी। उनके पास एक गाय और बछड़ा था। वो उनका बहुत ध्यान रखती थी। गाय का नाम था धान और बछड़े का नाम था धानड़े।
एक बार साहूकर की पत्नी को कही बाहर जाना था तो उसने अपनी बहू से कहा कि मैं काम से कुछ दिन के लिये बाहर जा रही हूँ। तू “धान-धानड़े” का ध्यान रखना और इनकी अच्छे से देखभाल करना। बहू ने हाँ कर दिया। एक दिन वो घर के कामों में व्यस्त थी और गाय के पीछे-पीछे बछड़ा घर से निकल गया। बहू को लगा की वो गाय के साथ गया होगा और उसके साथ वापस आ जायेगा। परंतु वो गाय के साथ वापस नही आया। बहू उसको ढ़ूंढ़ने के लिये सब जगह देखती फिर रही किन्तु उसका कहीं कोई पता नही चला। बछड़े के लापता होजाने से उस गाय ने भी खाना-पीना छोड़ दिया। और बछड़े के दुख में उस गाय ने भी उनका घर त्याग दिया और वहाँ से चली गई।
जब सास वापस आई तो गाय और बछड़े को घर में ना पाकर उसने बहू से पूछा तो बहू ने उसे सारा वृत्तांत सुना दिया। सास को सुनकर बहुत दुख हुआ और उसने बहू को बहुत बुरा भला कहा। फिर धीरे-धीरे समय बीतता गया और साहूकार के घर-परिवार में समस्याएँ आने लगी। व्यवसाय में घाटे लगने लगे। उनके कुएँ, तालाब, खेत-खलिहान सब सूखने लगे। स्थिति बद से बदतर होने लगी। यह सब होता देखकर साहूकर की पत्नी ने अपनी बहू को सभी चीजों का जिम्मेदार ठहराना शुरू कर दिया। इससे परेशान होकर बहू अपने पिता के घर रहने चली गई।
उधर साहूकार एक बहुत ही सिद्ध पंड़ित के पास गया और उसको सारी समस्या बताई। उसकी सभी बातें सुनकर पंड़ित ने कहा – तुम्हारे परिवार की वजह से एक गाय ने अपना बछड़ा खोया है और उसी के कारण तुम्हारे साथ ऐसा हो रहा हैं। साहूकर ने पूछा, हे पंड़ित जी! इस समस्या से निकलने का क्या मार्ग हैं? तब उस पंड़ित ने कहा कि आपको एक यज्ञ करना और उसमें अपने इकलौते पोते की बलि देनी होगी, तभी इसका निवारण होगा।
यह सुनकर साहूकर और उसकी पत्नी गहरी चिंता में पड़ गये। फिर उन्होने कठोर हृदय करके यज्ञ आरम्भ किया और अंत में अपने पोते की बलि दे दी। पोते की बलि देते ही उनके सूखे कुएँ, तालाब फिर से भर गये। उनके बंजर खेतों में फिर से हरियाली आ गई। परंतु पोते के दुख के कारण उन्हे कुछ भी अच्छा नही लग रहा था।
वो हर वर्ष औगद्वादश (बछबारस) की पूजा किया करते थे। अब फिर औगद्वादश (बछबारस) आने वाली थी तो सास ने अपनी बहू को भी बुलाने के लिये बुलावा भेज दिया। बहू औगद्वादश (बछबारस) के दिन ही वापस आई तो सास उसको तालब पर पूजा के लिये ले गई। सबने पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ औगद्वादश (बछबारस) की पूजा करी। पूजा समाप्त करने के बाद बहू ने अपनी सास से अपने बेटे के विषय मे पूछा तो सास ने कहा कि यही कही खेल रहा होगा। आवाज देकर देखले अगर यही कही होगा तो आ जायेगा। बहू ने अपने बेटे का नाम लेकर जोर से आवाज लगाई तो चमत्कार हो गया। तालाब में से बेटा और गाय का बछड़ा बाहर आ गये। बछड़े ने तालाब से बाहर आते ही अपनी माँ को पुकारा तो वो गाय भी वहाँ पर आ गई।
यह सब देखकर दोनों सास-बहू आश्चर्य से भर गई। तब सास ने बहू को यज्ञ और पोते की बलि की कहानी सुनाई। फिर सास ने बहू को कहा यह सब तेरे ही भाग्य से हुआ हैं। तू मुझे क्षमा करदें। मैंने क्रोध में तुझे बहुत बुरा-भला कहा था। तब बहू ने कहा नही माता जी यह सब तो औगद्वादश माता की कृपा है। यह उन्ही का आशीर्वाद है जो मेरा पुत्र मुझे पुन: प्राप्त हुआ है।
यह बात पूरे नगर में फैल गई कि औगद्वादश माता की कृपा से साहूकार का मृत पौत्र पुन जीवित हो गया। सबके हृदय औगद्वादश माता के प्रति श्रद्धा से भर गये। तब से सभी पुत्रवती महिलाओं ने अपने पुत्र की सुरक्षा और लम्बी आयु के लिये औगद्वादश का पूजन करना प्रारम्भ कर दिया। बेटे के जन्म और विवाह पर उद्यापन करने की पृथा चली।
हे औगद्वादस माता! जिस प्रकार तुमने उस बहू की सुनी वैसे सबकी सुनना। जैसा फल आपने उसको दिया वैसा ही सबको फल देना। सबकी संतानों की रक्षा करना।
Bindayak Ji Ki Kahani
बिन्दायक जी की कहानी
पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी का विवाह होने जा रहा था। भगवान विष्णु के सभी देवतओं की सभा बुलाई। सभी देवता सभा में उपस्थित हो गये। वहाँ पर विष्णु जी के विवाह में जाने के लिये चर्चा होने लगी। सभी देवता विवाह में जाने के तैयार हो गये और बोले कि हम सब तो चलेंगे परंतु गणेश जी को नही ले जायेंगे।
विष्णु जी देवताओं से गणेश जी को ना ले जाने का कारण पूछा तो देवता कहने लगे, प्रभु गणेश जी को बहुत भूख लगती है, उनको तो नाश्ते में ही 40 किलो मूंग, 50 किलो चावल, बहुत सा घी और ढ़ेर सारे लड़्ड़ू चहिये होते हैं। और फिर उसके बाद इससे भी अधिक मात्रा में उनको भोजन चाहियेगा। इसके अतिरिक्त उनका मस्तक हाथी का है, बड़े- बड़े कान है, सूंड़ है और उनक शरीर भी भारी हैं। उनको साथ लेकर जायेंगे तो वहाँ की सभी स्त्रियाँ क्या कहेंगी। उनको तो यहाँ रहकर रखवाली करने के लिये छोड़ देते हैं।
सब गणेश जी को घर पर छोड़कर विष्णु जी की बारात में चले गये। यह सब होता देखकर नारद जी गणेश जी के पास आये और बोले गणेशजी यह तो आपका बहुत बड़ा अपमान हैं, सब तो बारात में चले गये और आपको यहाँ घर की रखवाली के लिए छोड़ दिया। सब देवताओं को ऐसा लगता था कि आपको ले जाने से बारात अच्छी नही लगेगी, इसलिए आपको नहीं लेकर गये। गणेशजी ने नारद जी से पूछा – देवर्षि! अब मुझे क्या करना चाहिये? तब नारदजी ने कहा – आप अपने मूषक से कहो की धरती को थोथी कर दे। गणेश जी ने मूषक को धरती पोली करने का आदेश दे दिया।
धरती के थोथी होने से भगवान विष्णु के रथ का पहिया धरती में धंस गया। सभी ने रथ को निकालने का प्रयास किया लेकिन सफल ना हो सके। तब पहिया निकालने के लिये एक बढ़ई को बुलाया गया। उसने काम शुरू करने से पहले बोला – जय बिन्दायक जी की। जय हो गणेश जी की। तभी देवताओं में से किसी ने पूछा कि तूने गणेश जी को क्यों याद किया? तब बढ़ई ने कहा कि गणेश जी को स्मरण करे बिना तो कोई भी कार्य सिद्ध नहीं हो सकता। तब वहाँ उपस्थित देवताओं में से किसी ने कहा कि हम तो गणेश जी को घर पर ही छोड़ कर आये हैं। फिर सभी गणेशजी को बुलाने के लिये वापस गये। परंतु गणेश जी साथ चलने से मना कर दिया। फिर पहले गणेश जी का विवाह रिद्धि-सिद्धि से हुआ। उसके बाद में विष्णुजी ने लक्ष्मी जी से विवाह किया। हे गणेश जी महाराज! जैसे आपने भगवान के कार्य सिद्ध किए वैसे सबके करना।