Vishwanathashtakam – महर्षि व्यास द्वारा रचित विश्वनाथाष्टकम् का महत्व जानने के लिये पढ़ें

Vishwanathashtakam

Vishwanathashtakam Ka Mahatva
विश्वनाथाष्टकम् का महत्व

महर्षि व्यास ने विश्वनाथाष्टकम् की रचना की थी। इस स्तोत्र में भगवान काशी विश्वनाथ की महिमा का गुणगान किया गया है। महर्षि व्यास द्वारा रचित इस विश्वनाथाष्टकम् का नित्य पाठ करने से भगवान विश्वनाथ प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते है।
नित्य प्रतिदिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान शिव का ध्यान करें और शिवालय जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ायें। फिर विश्वनाथाष्टकम् का पाठ करें। विश्वनाथाष्टकम् का नित्य पाठ करने से

  • जातक के सभी दुखों का नाश होता है।
  • धन-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • यश-कीर्ति में वृद्धि होती है।
  • जातक विद्यावान होता है।
  • इस लोक में सुख भोगकर मरणोपरांत मोक्ष की प्राप्ति होती है।

Vishwanathashtakam
विश्वनाथाष्टकम्

गङ्गातरंगरमणीयजटाकलापं
गौरीनिरन्तरविभूषितवामभागम् ।
नारायणप्रियमनंगमदापहारं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ १॥

वाचामगोचरमनेकगुणस्वरूपं
वागीशविष्णुसुरसेवितपादपीठम् ।
वामेनविग्रहवरेणकलत्रवन्तं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ २॥

भूताधिपं भुजगभूषणभूषितांगं
व्याघ्राजिनांबरधरं जटिलं त्रिनेत्रम् ।
पाशांकुशाभयवरप्रदशूलपाणिं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ३॥

शीतांशुशोभितकिरीटविराजमानं
भालेक्षणानलविशोषितपंचबाणम् ।
नागाधिपारचितभासुरकर्णपूरं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ४॥

पंचाननं दुरितमत्तमतङ्गजानां
नागान्तकं दनुजपुंगवपन्नगानाम् ।
दावानलं मरणशोकजराटवीनां
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ५॥

तेजोमयं सगुणनिर्गुणमद्वितीयं
आनन्दकन्दमपराजितमप्रमेयम् ।
नागात्मकं सकलनिष्कलमात्मरूपं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ६॥

रागादिदोषरहितं स्वजनानुरागं
वैराग्यशान्तिनिलयं गिरिजासहायम् ।
माधुर्यधैर्यसुभगं गरलाभिरामं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ७॥

आशां विहाय परिहृत्य परस्य निन्दां
पापे रतिं च सुनिवार्य मनः समाधौ ।
आदाय हृत्कमलमध्यगतं परेशं
वाराणसीपुरपतिं भज विश्वनाथम् ॥ ८॥

वाराणसीपुरपतेः स्तवनं शिवस्य
व्याख्यातमष्टकमिदं पठते मनुष्यः ।
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्तिं
सम्प्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ॥ ९॥

विश्वनाथाष्टकमिदं यः पठेच्छिवसन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥

॥ इति श्रीमहर्षिव्यासप्रणीतं श्रीविश्वनाथाष्टकं सम्पूर्णम् ॥