Vishwanathashtakam Stotram – विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ का पाठ करने से जीवन में सब आनंद-मंगल होता है

Vishwanathashtakam Stotram

Vishwanathashtakam Stotram Ka Mahatva
विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ का महत्व

भगवान काशी विश्वनाथ के परमभक्त शास्त्री श्री शिवदत्त मिश्र जी ने विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ की रचना की थी। इस स्तोत्र में भगवान काशी विश्वनाथ की महिमा का गुणगान किया गया है। श्री शिवदत्त मिश्र जी द्वारा रचित इस विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ का नित्य पाठ करने से भगवान विश्वनाथ प्रसन्न होते है और अपने भक्तों की मनोकामनाएँ पूर्ण करते है।

नित्य प्रतिदिन प्रात:काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर भगवान शिव का ध्यान करें और शिवालय जाकर शिवलिंग पर जल चढ़ायें। फिर विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ का पाठ करें। विश्वनाथाष्टकम् स्तोत्रम्‌ का नित्य पाठ करने से

  • गृहक्लेश से मुक्ति मिलती है। परिवार में सुख-शांति रहती है।
  • कष्टों का नाश होता है।
  • जीवन के दुखों एवं समस्याओं का नाश होता है।
  • धन-धान्य की प्राप्ति होती है।
  • सम्पत्ति में वृद्धि होती है।
  • भगवान काशी विश्वनाथ की कृपा प्राप्त होती है।
  • मरणोपरांत सद्गति प्राप्त होती है।

Vishwanathashtakam Stotram
विश्वनाथाष्टक स्तोत्रम्

आदिशम्भु-स्वरूप-मुनिवर-चन्द्रशीश-जटाधरं
मुण्डमाल-विशाललोचन-वाहनं वृषभध्वजम् ।
नागचन्द्र-त्रिशूलडमरू भस्म-अङ्गविभूषणं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ १॥

गङ्गसङग-उमाङ्गवामे-कामदेव-सुसेवितं
नादबिन्दुज-योगसाधन-पञ्चवक्तत्रिलोचनम् ।
इन्दु-बिन्दुविराज-शशिधर-शङ्करं सुरवन्दितं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ २॥

ज्योतिलिङ्ग-स्फुलिङ्गफणिमणि-दिव्यदेवसुसेवितं
मालतीसुर -पुष्पमाला -कञ्ज-धूप-निवेदितम् ।
अनलकुम्भ-सुकुम्भझलकत-कलशकञ्चनशोभितं
श्रीनीलकण्ठहिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ ३॥

मुकुटक्रीट-सुकनककुण्डलरञ्जितं मुनिमण्डितं
हारमुक्ता-कनकसूत्रित-सुन्दरं सुविशेषितम् ।
गन्धमादन-शैल-आसन-दिव्यज्योतिप्रकाशनं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथ-विश्वेश्वरम् ॥ ४॥

मेघडम्वरछत्रधारण-चरणकमल-विलासितं
पुष्परथ-परमदनमूरति-गौरिसङ्गसदाशिवम् ।
क्षेत्रपाल-कपाल-भैरव-कुसुम-नवग्रहभूषितं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथ-विश्वेश्वरम् ॥ ५॥

त्रिपुरदैत्य-विनाशकारक-शङ्करं फलदायकं
रावणाद्दशकमलमस्तक-पूजितं वरदायकम् ।
कोटिमन्मथमथन-विषधर-हारभूषण-भूषितं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ ६॥

मथितजलधिज-शेषविगलित-कालकूटविशोषणं
ज्योतिविगलितदीपनयन-त्रिनेत्रशम्भु-सुरेश्वरम् ।
महादेवसुदेव-सुरपतिसेव्य-देवविश्वम्भरं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ ७॥

रुद्ररूपभयङ्करं कृतभूरिपान-हलाहलं
गगनवेधित-विश्वमूल-त्रिशूलकरधर-शङ्करम् ।
कामकुञ्जर-मानमर्दन-महाकाल-विश्वेश्वरं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वेनाथविश्वेश्वरम् ॥ ८॥

ऋतुवसन्तविलास-चहुँदिशि दीप्यते फलदायकं
दिव्यकाशिकधामवासी-मनुजमङ्गलदायकम् ।
अम्बिकातट-वैद्यनाथं शैलशिखरमहेश्वरं
श्रीनीलकण्ठ-हिमाद्रिजलधर-विश्वनाथविश्वेश्वरम् ॥ ९॥

शिवस्तोत्र-प्रतिदिन-ध्यानधर-आनन्दमय-प्रतिपादितं
धन-धान्य-सम्पति-गृहविलासित-विश्वनाथ-प्रसादजम् ।
हर-धाम-चिरगण-सङ्गशोभित-भक्तवर-प्रियमण्डितं
आनन्दवन-आनन्दछवि-आनन्द-कन्द-विभूषितम् ॥ १०॥

इति श्रीशिवदत्तमिश्रशास्त्रिसंस्कृतं विश्वनाथाष्टकस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।