Birbasi Vrat 2024 (Bhai Vrat) – बीरबसी व्रत कब और कैसे करें? जानिये सम्पूर्ण विधि

Birbasi vrat

बीरबसी का व्रत बहनें अपने भाइयों के लिये सुख-समृद्धि की कामना से करती है। जानियें कब किया जाता है बीरबसी व्रत (Birbasi vrat)? साथ ही पढ़ियें बीरबसी व्रत का महत्व, कहानी और पूजन की विधि…

Birbasi Vrat / Bhai Vrat
बीरबसी व्रत / भाई व्रत

बीरबसी का व्रत (Birbasi vrat) बहनें अपने भाइयों के लिये करती हैं। इस दिन बहनें व्रत रखकर अपने भाइयों के लिये सुख-समृद्धि की कामना करती है। यह व्रत रक्षाबन्धन से पहले आने वाले रविवार को मनाया जाता हैं।

Birbasi Vrat Kab Hai?
बीरबसी व्रत कब है?

इस वर्ष बीरबसी व्रत (Birbasi vrat) 18 अगस्त, 2024 रविवार के दिन मनाया जायेगा।

Bhai Vrat Ka Mahatva
बीरबसी व्रत का महत्व

इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती जी की पूजा की जाती हैं। हिंदु मान्यता के अनुसार बहन द्वारा इस दिन का व्रत करने से उसके भाई पर आने वाली समस्याओं का नाश होता और उसके भाइयों को सुख-शांति और धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं। इस दिन बहन भगवान शिव और माता पार्वती व्रत और पूजन करके अपने भाइयों की कुशलता की कामना करती हैं।

Birbasi Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
बीरबसी व्रत व पूजन की विधि

1. यह व्रत कुँवारी लड़कियाँ और विवाहिता स्त्रियाँ दोनों ही कर सकती है। यह व्रत बहनें अपने भाइयों के कल्याण की कामना से रखती हैं।

2. बीरबसी के व्रत (Birbasi vrat) के दिन प्रात:काल स्नानादि से निवृत्त होकर अपने घर के पूजा स्थान पर एक चौकी लगायें।

3. चौकी पर मिट्टी से भगवान शंकर जी, माता पार्वती जी, एक बहन, एक भाई और एक चुल्हा बनाकर स्थापित करें।

4. रोली, मौली एवं चावल से भगवान शिव की पूजा करें और रोली, मौली, हल्दी और मेहंदी से माँ पार्वती की पूजा करें। पुष्प चढ़ायें।

5. धूप-दीप से आरती करें। भगवान को भोग लगायें।

6. फिर बीरबसी व्रत की कहानी पढ़े या सुनें।

7. बीरबसी व्रत (Birbasi vrat) में बहन को अपने भाई के यहाँ भोजन करना चाहिये। यदि यह सम्भव न हो तो पीहर से आया भोजन या उनके द्वारा दी गई राशि से ही भोजन खायें। कहीं किसी ओर का दिया कुछ न खायें।

Birbasi Ki Kahani
बीरबसी की कहानी

प्राचीन समय की बात है, एक बार एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसके सात पुत्र और एक पुत्री थी। साहूकार अपनी बेटी से बहुत प्यार करता था। वो उसकी बहुत ही लाडली थी। सेठ – सेठानी शुरू से ही अपनी बेटी से बीरबसी का व्रत (Birbasi vrat) करवाते थे। जब बेटी का विवाह हो गया तो उसे हर वर्ष बीरबसी पर घर बुलाकर खाना खिलाते और अच्छे से अपनी बेटी को विदा करतें। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि बीरबसी के दिन शादी के बाद भी बहन को अपने ही पीहर का खाना या उनके द्वारा दिए गए पैसों से ही भोजन खाना होता हैं।

माता पिता के देहावसान के बाद सब भाई अलग-अलग रहने लगें। साहूकार के छ: बेटों की आर्थिक स्थिति अच्छी थी, उनके पास सब-कुछ था। परंतु सबसे छोटे बेटे के पास कुछ नही था। वो बहुत गरीब था। वो अपने बड़े भाई के खेतों में काम करके अपने और अपने परिवार का पालन करता था। उसकी स्त्री बहुत ही सुशील और गुणवान थी। वो भी अपने पति का साथ देने के लिये सुबह अपनी जेठानी के घर काम करती और बाद में जंगल से लकड़ी लाकर नगर में बेचती।

सभी भाई अपने घर परिवार में इतने व्यस्त हो गये की उन्हे अपनी इकलौती बहन का ध्यान ही नही था। इधर बहन भी अपने घर परिवार में खुश थी। परंतु उसे अपने भाइयों की याद आती। जब बीरबसी के व्रत आया तो बहन को लगा कि उसके भाई उसे लेने आयेंगे या उसे अपने घर बुलायेंगे परंतु ऐसा नही हुआ। किसी भी भाई ने ना तो बहन को अपने घर आने का न्योता भेजा, ना भोजन भेजा और ना ही उसको पैसे भेजें जिससे वह बीरबसी का व्रत कर सके।

बहन मन ही मन में विचार करके चिंतित होने लगी कि उसका बीरबसी का व्रत (Birbasi vrat) कैसे पूर्ण होगा ? उसको परेशान देखकर उसके पति ने उससे चिंता का कारण पूछा तो उसने उसे सब बता दिया। तब उसके पति ने उससे कहा कि तुम चिंतित ना हो, ऐसा हो सकता है कि वो किसी कारणवश भूल गए हो, तुम स्वयं उनके घर चली जाओं और अपना व्रत पूर्ण कर आओं। और बच्चों को यही घर पर छोड़ जाओ।

पति की आज्ञा लेकर वो सबसे पहले अपने सबसे बड़े भाई के यहां गई। उसने भाभी से पूछा कि, भैया कहां है? आज बीरबसी का दिन है। भाभी ने कहा, आपके भाई तो बाहर गए हैं। ऐसे वो अपने छहों भाइयों के घर गई और सभी भाइयों के घर पर उसके साथ ऐसा ही व्यवहार हुआ।

अंत में वो अपने सातवें यानी सबसे छोटे भाई के घर गई। वो बहुत गरीब था। उसके घर पर पहुँचते ही उसकी भाभी बहुत खुश हुई और उसने उसकी खूब आव-भगत करी। फिर भाभी ने अपनी ननद से पूछा कि आपका इस तरह कैसे आना हुआ? तब बहन बोली, भाभी आज बीरबसी का व्रत हैं और मैं इसीलिए अपने भाई से मिलने आई थी। भाभी बोली फिर तो मैं आपके भोजन की तैयारी करती हूँ, आप यहाँ बैठिये और मैं जंगल से लकड़ियां लेकर आती हूँ। तब बहन ने सोचा कि यहां अकेले बैठकर क्या करूंगी मैं भी साथ ही चली जाती हूं। तो उसने भाभी से कहा, चलो भाभी मैं अकेली यहां बैठ कर क्या करूंगी। मैं भी आपके साथ चलती हूँ। और वह दोनों ननद-भाभी जंगल में लकड़ियां लाने चली गई।

उसकी भाभी जंगल से लकड़ी लाकर नगर बेचती थी। उसने उस दिन भी वही किया तो उस दिन उसको लकड़ियों के पहले से बहुत अच्छे दाम मिले। परंतु इस सब में शाम हो गई तो ननद ने अपनी भाभी से कहा – भाभी शाम हो गई है, मैं बच्चों को घर अकेला छोड़ कर आई हूँ। सब घर पर मेरा इंतजार कर रहे होंगे। इसलिये मुझे अब जल्दी से घर पहुंचना है, मैं चलती हूँ।

तब भाभी ने कहा, आप अपने भाई से तो मिलकर जाओ। और ऐसा कहकर भाभी ने लकड़ियों को बेचकर जो पैसे मिले थे उसमें से आधे पैसे अपनी ननंद को विदा के रूप मे दे दिए। बहन अपने भाई से मिलने जैसे ही खेत पर पहुंची, तो भाई बहुत खुश हुआ और भाई बोला बहन आज तो बीरबसी है चल घर चल, घर से खाना खाकर ही जाना। बहन बोली, भैया अब तो शाम हो गई है, मुझे घर जल्दी पहुंचना है। फिर कभी आऊंगी, अभी तो मैं जा रही हूं। भाई ने खेत में कोदू बोया था तो उसने कहा, बहन ऐसा है तो तू यह कोदू ले जा और भाई ने बहन को कोदू भरकर दे दिया।

बहन कोदू लेकर चल दी किंतु उसने मन ही मन विचार किया कि जब वो कोदू लेकर अपने घर पहुंचेगी तो सब लोग क्या कहेंगे? सास-ससुर, पति सबके सामने बेज्जती होगी। सब बोलेंगे कि भाई के यहां गई थी और कोदू लेकर आई है। यह सोचकर उसने रास्ते में ही कुम्हार से एक हांडी खरीदी और पत्थर का चूल्हा बनाया। उस पर कोदू को पानी डालकर पका लिया। फिर उसका भगवान को भोग लगाकर खुद खा लिया और जो बचा उसे वही पत्थर से ढक कर रख दिया। जैसे ही वह आगे बढ़ने लगी तभी भगवान शंकर और माता पार्वती बुड्ढे-बुढ़िया का रूप लेकर उसके सामने आ गए। और बोले, हे बेटी! हमें भूख लगी है। तो वो बोली बाबा मुझे तो देर हो रही है, वहाँ पत्थर से ढ़का हुआ खाना रखा है आप लेकर खालो।

तब बुड्ढे-बुढ़िया का रूप लिये भगवान शंकर और माता पार्वती जी बोले हमें तो तुम स्वयं दोगी तभी हम खाएंगे, नहीं तो तुम्हें हम श्राप दे देंगे। तब वो बेचारी वापस गई और जैसे ही उसने पत्थर हटाकर बर्तन खोला तो उसमें 36 तरह की तरकारी और 32 तरह के भोजन थे। तब भगवान शंकर और माँ पार्वती अपने असली स्वरूप में आ गए और बोले बेटी जो मांगना हैं माँग लें। तब बहन बोली हे भगवन मेरे पास तो सब कुछ है। मेरे छ: भाइयों के पास भी सब कुछ है। परंतु मेरा सबसे छोटा भाई बहुत गरीब है, आप उस पर कृपा करो। भगवान शंकर उसको उसका मनचाहा आशीर्वाद देकर वहाँ से अंतर्ध्यान हो गये।

भगवान शंकर और माता पार्वती की कृपा से छोटे भाई के वारे न्यारे हो गए। उसके पास अपार धन सम्पत्ति आ गई। और उसकी झोपड़ी की जगह महल हो गया। घर में धन का अंबार लग गया। इतनी जल्दी इतना धन पाकर वो दोनो खुशी के मारे फूले नही समा रहे थें। अगले दिन छोटा भाई और उसकी पत्नी जब काम पर नही गये तो उसके बड़े भाई की पत्नी ने अपने बेटे को उनको बुलाने के लिये भेजा।

बच्चे ने जाकर चाची से कहा, चाची चलो माँ आपको काम के लिये बुला रही है। तब उसकी चाची ने कहा, नहीं बेटा मैंने तुम्हारे घर खूब काम कर लिया, पर अब मैं काम पर नहीं आ पाऊंगी। मेरे घर पर ही मेरे पास बहुत सारा काम हैं। बच्चे ने वही बात जाकर अपनी मां को बोली तब उसकी भाभी स्वयं आई और वहां झोपड़ी की जगह महल और देवरानी के पास इतनी धन-संपत्ति देखकर चकित हो गई।

उसने अपनी देवरानी से पूछा कि तुमने ऐसा क्या किया, कि एक रात में तुम्हारी स्थिति इतनी बदल गई। झोपड़ी की जगह महल और फटे पुराने कपड़ों की जगह यह सुंदर वस्त्र-आभूषणों कहाँ से आयें। तो देवरानी बोली यह सब तो माँ पार्वती और भगवान शिव का आशीर्वाद है जो उन्होंने बीरबसी का व्रत करने के कारण ननद बाई को दिया था और उन्होंने अपने छोटे भाई के लिए सुख समृद्धि मांगी।

यह देखकर उसकी जेठानी ईर्ष्या के मारे जल उठी। और मन मसोस कर अपने घर लौट आयी। इधर समय के साथ बड़े भाइयों की आर्थिक स्थिति बिगड़ती गई। उनको हर दिन कुछ ना कुछ नुकसान होने लगा। कभी दुकान में आग लग गई, कभी गाय – भैंस मर गई, फसले सूख गई। इस प्रकार घाटे और नुकसान खा-खाकर उनकी हालत खराब हो गई। एक समय ऐसा आया कि उनके पास खाने के भी लाले पड़ गये। छहों भाई आपस में बात करने लगे, क्या सब कुछ हमारी बहन के भाग्य से ही था, जब वो आती थी तो हमारे पास सबकुछ था और अब नहीं आती तो हमारा कितना नुकसान हो रहा है।

तब उनमें से एक की पत्नी जो अपने सबसे छोटे देवर की उन्नति से चिढ़ रही थी। वो बोली तुम्हारी बहन हम सब पर टोटका करके गई है। जिससे तुम्हारा सातवाँ भाई तो समृद्ध हो गया तुम सब भिखारी हो गयें। वो तुम लोगों से प्रेम नही करती और ना ही तुम्हारी उन्नति चाहती है। इसी कारण उसने ऐसा किया है। उसकी बातें सुनकर भाइयों को अपनी बहन पर क्रोध आ गया और वो उसे मारने के लिये तलवार लेकर चल दिये।

चारों तरफ बारिश हो रही थी। बहन अपने घर के आंगन मे काम कर रही थी। और काम करते- करते बोल रही थी बीरबसी माँ मेरे सातों भाइयों के खेत में खूब पैदावार करना, उनके धंधे में बरकत देना, उनके परिवार में सुख-शांति रहे ऐसी कृपा करना। यह सब सुनकर भाई बोले कि यह तो अभी भी हमारे लिए ही दुआ मांग रही है और हम इसके बारें में क्या-क्या सोच रहे थे। तभी बिजली का चमकना हुआ और बहन का घर से बाहर आना हुआ। बहन ने अपने भाइयों को एक साथ हाथों में तलवार लिये देखकर पूछा आप यहां तलवार लेकर बरसात में क्यों भीग रहे हो? तब भाई बोले कि हम तो तुझे मारने आए थे। तेरी भाभी ने बताया था कि तू बीरबसी के दिन आई थी और उसके बाद तू कुछ ऐसा करके गई कि हमारे नुकसान पर नुकसान हो रहा है। और छोटा भाई तरक्की कर रहा है। तब बहन ने कहा, भैया अगर आप मुझे मारने आयें हो तो मार दो। लेकिन मैंने ऐसा कोई जादू टोना नहीं किया। तो भाई बोले फिर तू जिस दिन से वापस गई है, तब से हमारे को घाटा ही घाटा क्यों हो रहा है? क्यों हमें हर काम में नुकसान उठाना पड़ रहा हैं? तब बहन बोली, भैया मैंने तो आप लोगो की खुशहाली के लिये बीरबसी का व्रत किया था और उस दिन मैं आप लोगों के पास गई थी। और फिर उसने उन्हे सारी कहानी सुना दी।

उस दिन जो जो उसके साथ हुआ उसने सब कुछ बता दिया। किस तरह मां पार्वती और भगवान शंकर उसके सामने आये, उसकी परीक्षा ली और उसको वर मांगने को कहा और उसने क्या वर मांगा। उसके भाइयों को अपनी गलती का एहसास हुआ, तब उन्होंने कहा कि बहन अब से बीरबसी पर तुम मेरे घर आना। फिर सब बहन को अपने घर बुलाने के लिये आपस में झगड़ने लगे। तब बहन बोली, भैया मैं सबके घर आऊंगी और सभी के यहां खाना खाऊंगी।

जब बीरबसी का दिन आया तो बहन अपने सभी भाइयों के पास गई और सबके यहाँ से थोड़ा-थोड़ा भोजन लेकर भगवान को भोग लगाया। भगवान को भोग लगाने के बाद स्वयं खाया। फिर उसने भगवान से प्रार्थना करी, हे ईश्वर! इन नादानों को क्षमा करो। इनसे जो भी गलती हुई है उसे इनकी नादानी समझ कर इन्हें क्षमा करोंं। हे भगवान भोलेनाथ! हे मां पार्वती! इन सब पर कृपा करो और इनको पहले की भंति समृद्ध कर दों। तब से सब भाई बहन को आदर सत्कार के साथ बुलाने लगे और उनके घर में पहले जैसी सुख समृद्धि हो गई।