अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति के लिये करती है स्त्रियाँ गणगौर का व्रत एवं पूजन। गणगौर व्रत (Gangaur Vrat) को गौरी तृतीया के नाम से भी जाना जाता है। गणगौर व्रत कब किया जाता है? इस व्रत की क्या विधि है? गणगौर व्रत की कहानी और उद्यापन की विधि जानने के लिये पढ़ियें…
Gangaur Vrat
गणगौर व्रत
गनगौर पूजन (Gangaur Puja) चैत्र मास की कृष्णपक्ष की प्रथमा यानि धूलण्ड़ी से शुरू होता है और चैत्र मास की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को समाप्त होता है। गण ग़ौर का व्रत (Gangaur Vrat) चैत्र मास की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि के दिन किया जाता है। इसे गौरी तृतीया (Gauri Tritiya) भी कहा जाता है। इस दिन सुहागिन स्त्रियाँ व्रत रखकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसी दिन भगवान शिव और देवी का व्रत और पूजन करने से माता पार्वती की कृपा से सुहागिन स्त्रियों को अखण्ड सौभाग्य की प्राप्ति होती है और कुंवारी लडकियों को मनचाहा जीवनसाथी प्राप्त होता है।
Gangaur Vrat Kab Hain?
गणगौर व्रत कब हैं?
इस वर्ष गणगौर व्रत (Gangaur Vrat) 11 अप्रैल, 2024 गुरूवार को किया जायेगा।
Gangaur Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
गणगौर व्रत और पूजन की विधि
गनगौर व्रत (Gangaur Vrat) के दिन घर में सभी सुहागिन स्त्रियों व कुंवारी कन्याओं को गनगौर की पूजा करनी चाहिये।
- अगर आपने अपने घर में सोलह दिन की गणगौर बिठाई है तो फिर अपने घर पर ही पूजा करें और यदि घर में सोलह दिन की गणगौर नही बिठाई हो तो जिसने गणगौर बिठाई हो उसके यहाँ जाकर पूज आयें।
- यदि यह भी सम्भव ना हो तो घर पर मिट्टी की गणगौर बनाकर उसकी पूजा करें।
- गणगौर के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें। विवाहित स्त्रियाँ सोलह श्रृन्गार करें।
- फिर पूजा स्थान पर गोबर और पानी का चौका लगाये।
- फिर एक डलिया में दूप बिछाकर उसमें गणगौर बैठा बिठाये।
- फिर दीपका जलाकर जल से छींटा लगायें, सोलह-सोलह दातुन दें। रोली से टीका करें, गणगौर के हाथ में मेंहदी लगाये, आँख में काजल डालें, मोली चढायें, फूल व दूप चढ़ायें। चूडी, बिंदी आदि श्रृंगार की सभी सामग्री गणगौर को चढायें। चुनरी चढायें।
- व्रत रखने वाली सुहागिन स्त्री को गणगौर पर चढ़े सिन्दूर को अपनी मांग में लगाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि ऐसा करने से सुहागिन स्त्री का सौभाग्य अखण्ड होता है।
- हलवे का भोग लगाये व दक्षिणा भेंट करें।
- दीवार पर रोली से, मेंहदी से, हल्दी से और काजल से सोलह-सोलह बिंदियाँ लगाये।
- गणगौर की कहानी कहे और सुने। उसके बाद गणगौर की आरती करें।
- पूजा के बाद सोलह मीठी मठरी, एक कटोरी में हलवा और रुपये रखकर बायना निकालें। और अपनी घर की बडी स्त्री या किसी ब्राह्मणी को पैर छूकर दें।
Vivaah Ke Baad Gangaur Ka Udyapan Kaise Kare?
लड़की के विवाह के बाद गणगौर का उद्यापन कैसे करें?
लड़की के विवाह वाले साल ही गणगौर व्रत (Gangaur Vrat) का उद्यापन करायें जाने का विधान है। उद्यापन के विधि इस प्रकार है –
- सोलह जगह तो सोलह-सोलह मीठी मीठरी ले और उन पर एक-एक तीयल और दक्षिणा रखें। फिर इसे हाथ फेरकर अपनी ससुराल जाकर अपनी सासूजी के चरण छूकर उन्हे दें।
- एक जगह सोलह माठी अलग लेकर हाथ फेरकर बेटी को दें।
- सोलह मीठी मठरी गनगौर (Gangaur) को चढ़ायें। सोलह माठरी खाने के लिए भी बनायें और उन्हे वह खा ले।
- सोलह माठरी भाई के खाने के लिए भी बनवायें। जिसमें से कुछ भाई को खिलादें और बाकी मठरी घर में रहने वाले अन्य लोग भी खालें।
- जब सोलह दिन की गनगौर पूजने लगें तब छह कुंवारी लड़कियों को भी अपने साथ गनगौर पुजवाएँ।
Gangaur Ka Udyapan Karne Ki Vidhi
गनगौर का उद्यापन करने की विधि
जो औरतें गनगौर व्रत (Gangaur Vrat) का उद्यापन करने की इच्छुक हो वो इस विधि से गनगौर का उद्यापन करें।
- विधि अनुसार गणगौर की पूजा (Gangaur Puja) समाप्त करें।
- फिर उस दिन वही सभी चीजें उसी मात्रा में गनगौर के समक्ष रखकर हाथ फेरकर दक्षिणा रखकर अपनी सास के चरण छूकर दें।
- सुहाग की सभी चीजें मँगाकर एक पिटारी में रख लें और तीयल भी इसी पिटारी में रख लें। साथ ही एक नथ भी रख दें और उसे अपनी सास को दे दें।
- सोलह जगह पूडी – हलवा गणगौर के सामने रखें और हाथ लगाकर सोलह सुहागिन ब्राह्मणियों को भोजन के साथ दें।
- सोलह सुहागन ब्राह्मणियों को भोजन करायें।
- सोलह जगह मेंहदी की पुड़िया, सोलह रोली की डिब्बी, सोलह काजल की डिब्बी, सोलह टीकी, सोलह मैणाँ की डिब्बी, सोलह पुड़िया सिन्दूर, सोलह दर्पण, सोलह कंधे, सोलह शीशे, सोलह पाजेब, सोलह धोती और दक्षिणा रखकर भोजन करने वाली सोलह ब्राह्मणी को सब वस्तुओं में से एक-एक वस्तु टीका लगाकर दें।
Gangaur Vrat Ki Kahani
गनगौर व्रत की कहानी
धार्मिक कथा के अनुसार एक समय भगवान शिव, देवी पार्वती और नारद जी को साथ लेकर धरती पर भ्रमण के लिये निकले। भ्रमण करते हुए तीनों एक गाँव में पहुंच गये। उसी दिन चैत्र मास की शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि थी। गाँव के लोगों को जब भगवान शंकर और देवी पार्वती जी के आने की सूचना मिली तो धनी स्त्रियाँ उनके लिये विभिन्न प्रकार के रुचिकर पकवान बनाने में लग गईं। इसी कारण से उन स्त्रियों को वहाँ पहुँचने में देर हो गई। दूसरी ओर अकुलीन (निर्धन) घर की स्त्रियों को जैसे ही भगवान शिव और देवी पार्वती के आने का पता चला वो जैसे बैठी थीं वैसे ही थाल में हल्दी, चावल, अक्षत, जल लेकर आगई। सभी ने भगवान शिव और देवी पार्वती की पूजा की। उन स्त्रियों की अपार श्रद्धा-भक्ति देखकर देवी पार्वती उनपर प्रसन्न हो गई और उन्होने आशीर्वाद स्वरूप उनपर सुहाग रूपी हरिद्रा (हल्दी) छिड़क दी। देवी पार्वती का आशीर्वाद पाकर वह स्त्रियाँ देवी पार्वती का गुणगान करती अतिप्रसन्नता के साथ अपने घर चली गई।
तत्पश्चात् कुलवन्ती स्त्रियाँ सोलहों श्रृंगार करके, स्वर्ण पात्रों में छप्पन भोग लेकर भगवान शंकर और देवी पार्वती के समक्ष आयी। तब भगवान शिव शंका व्यक्त करते हुए देवी पार्वती से कहा- हे देवी! आपने समस्त सुहाग प्रसाद तो साधारण स्त्रियों को दे दिया, अब इन स्त्रियों को क्या दोगी? देवी पार्वती ने भगवान शिव से कहा- प्रभु यह आप मुझ पर ही छोड़ दें। फिर देवी पार्वती ने अपनी अंगुली चीरकर उन्हे रक्त सुहाग रस देने का निर्णय लिया जिससे वो उनके समान ही सौभाग्यशालिनी बन हो जाती। जब वो कुलीन स्त्रियाँ शिव-पार्वती का पूजन कर चुकीं तो देवी पार्वती ने अपनी अंगुली को चीरकर उसके रक्त को उन स्त्रियों पर छिड़का और उन्हे आशीर्वाद दिया कि तुम सब वस्त्राभूषणों का परित्याग कर माया-मोह से मुक्त होकर तन, मन, धन से अपने पति की सेवा करना, तुम्हें अखंड सौभाग्य की प्राप्ति होगी। देवी पार्वती के ऐसे आशीर्वचन सुनकर वो स्त्रियाँ बहुत प्रसन्न हुयी। फिर देवी पार्वती को धन्यवाद देकर उनके गुणगान के गीत गाती अपने-अपने घर लौट आई। जिसकी जैसी भावना थी उसपर छिड़के रक्त का प्रभाव उसपर वैस ही पड़ा। जिन्होने अपना सिर्फ वैभव दिखाने का प्रयास किया था उन्हे उसका कोई फल नही मिला परंतु जिन्होने सच्चे हृदय से देवी पार्वती और भगवान शिव के लिये सारी तैयारियाँ की थी उन्हे वैसा ही सौभाग्य प्राप्त हुआ और वो पतिव्रता हो गई।
इसके पश्चात् देवी पार्वती ने शिव जी की आज्ञा से नदी में जाकर स्नान किया। फिर वहाँ बालू का शिवलिंग बनाकर पूजन किया, भोग लगाया, प्रदक्षिणा करके दो कणों का प्रसाद खाया और मस्तक पर टीका लगाया। देवी पार्वती की भक्ति देखकर उस पार्थिव लिंग से भगवान शिवजी प्रकट हुए और उन्होने देवी पार्वती को वरदान दिया कि आज के दिन जो भी स्त्री मेरा पूजन और तुम्हारा व्रत व पूजन करेंगी, उनके पति दीर्धायु रहेंगे और उन्हे मृत्यु के उपरांत मोक्ष की प्राप्ति होगी। ऐसा वरदान देकर भगवान शिव अन्तर्धान हो गये।
तत्पश्चात् पार्वतीजी नदी तट से चलकर उसी स्थान पर पहुँची जहाँ पर महादेव और नारद को छोड़कर गई थीं। भगवान शिव तो अंतरयामी है उन्हे सब पता थी फिर भी जब देवी पार्वती वहाँ पहुँची तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से विलंब का कारण पूछा। तो देवी पार्वती ने कहा कि नदी के किनारे मुझे मेरे भाई-भाभी मिल गये थे, उन्होंने मुझसे दूध-भात खाने तथा उनके पास थोडी देर रूकने का आग्रह किया। उनके पास रूकने और भोजन करने के कारण मुझे आने में देर लग गई। ऐसा सुनकर भगवान शिव ने भी उनके भाई-भाभी से मिलने और दूध-भात खाने की इच्छा व्यक्त करी। भगवान की इच्छा सुनकर देवी पार्वती ने अपनी माया से नदी के किनारे एक अतिसुंदर महल प्रकट कर दिया और वहाँ अपने भाई-भाभी को भी विराजमान करा दिया। वहाँ पहुँचने पर उनके भाई-भाभी ने भगवान शिव और देवी पार्वती का खूब स्वागत-सत्कार किया। कुछ समय रूकने के बाद वो सभी वहाँ से चल दिये।
तभी मार्ग मे भगवान शिव ने कहा कि मैं अपनी रूद्राक्ष की माला तुम्हारे मायके में ही भूल आया हूँ। यह सुनकर देवी पार्वती ने स्वयं जाकर माला लाने के लिया कहा तब शिवजी ने कहा कि माला नारद जी लेकर आ जायेंगे। नारद जी जब वहाँ पहुँचे तो वहाँ पर सिर्फ वन था। महल इत्यादि सभी चीजें गायब हो चुकी थी। वहाँ एक वृक्ष पर उन्हे शिवजी की माला मिल गई। उसे लेकर वो तत्काल ही भगवान शिव और देवी पार्वती के पास आ गये। और सारा वृत्तांत शिवजी को सुनाया। तब भगवान शिव ने नारद जी को बताया कि – हे मुनि! आपने वहाँ जो भी देखा था वह सब देवी पार्वती की माया थी। वो अपने पार्थिव पूजन की बात को आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने असत्य कहा था। और फिर उस असत्य को सत्य करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से माया द्वारा महल आदि की रचना की। सच्चाई को उभारने के लिए ही मैंने आपको माला लाने के लिए तुम्हें दोबारा उस स्थान पर भेजा था। यह सब सुनकर देवर्षि नारद ने देवी पार्वती के पतिव्रत धर्म और उसकी शक्ति खूब प्रशंसा की। इस पूजा को देवी पार्वती ने छिपकर किया इसलिये इस पूजा को छुप कर अर्थात पति के बिना करना चाहिये। देवी पार्वती का वचन है कि इस दिन जो स्त्रियाँ को गुप्त रूप से गणगौर का पूजन कार्य करेंगी उनकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होगी और उनके पति दीर्धायु होंगे। क्योकि देवी पार्वती जी ने व्रत को छिपाकर किया था तभी से इस परम्परा के अनुसार आज भी पूजन के अवसर पर पुरुष उपस्थित नहीं रहते हैं।