सहस्त्रों अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ करने के समान पुण्यफल देने वाला गौ गिरिराज व्रत (Gou Giriraj Vrat)। जानियें गौ गिर्राज व्रत कब किया जायेगा? और इस व्रत को कैसे किया जाता है। पढ़ियें व्रत एवं पूजन की सम्पूर्ण विधि…
Gou Giriraj Vrat 2024
गौ गिरिराज व्रत 2024
भाद्रपद मास (भादों) की शुक्लपक्ष की त्रयोदशी के दिन गौ गिरिराज व्रत (Gou Giriraj Vrat) किया जाता हैं। हिंदु धर्म में गौ सेवा को बहुत महत्व दिया गया हैं। ऐसा माना जाता हैं कि गाय के अंदर सभी देवी-देवता निवास करते हैं। और गाय की सेवा करने से उनकी सेवा करने के समान ही पुण्य प्राप्त होता हैं। भगवान कृष्ण ने भी गौ-सेवा का संदेश दिया था।
Gou Giriraj Vrat kab hai?
गौ गिरिराज व्रत कब हैं?
इस वर्ष गौ गिरिराज व्रत (Gou Giriraj Vrat) 16 सितम्बर, 2024 सोमवार के दिन किया जायेगा।
Gou Giriraj Vrat Ki Vidhi
गौ गिरिराज व्रत की विधि
गौ गिरिराज व्रत (Gou Giriraj Vrat) के दिन गौपूजन के साथ भगवान लक्ष्मी नारायण के पूजन का विधान हैं।
- इस दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- फिर पूजास्थान पर एक मंड़प बनायें और उस मंड़प में एक चौकी पर भगवान लक्ष्मी नारायण की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। साथ ही गौदान के लिये जीवित गाय या सोने-चाँदी की गाय की प्रतिमा रखें।
- धूप-दीप जलाकर उनकी षोड़शोपचार पूजन करें। फल-फूल चढ़ायें और भोग लगायें।
- गिरिराज चालीसा का पाठ करें और आरती करें।
- फिर गौमाता का ध्यान करते हुये इस मंत्र का जाप करें
पंचगावः समुत्पन्नाः मथ्यमाने महोदधौ।
तेषां मध्ये तु या नन्दा तस्मै धेन्वे नमो नमः॥
इस श्लोक का भावार्थ है – समुद्र मंथन से उत्पन्न हुई पाँच गायों में सबसे मध्यवाली नन्दा गाय को नमस्कार हैं। पैदा हुईं। उनके बीच में नन्दा नाम वाली गाय है। उस गाय को बारम्बार नमस्कार है।
- तत्पश्चात इस मंत्र का उच्चारण करके वो गाय ब्राह्मण को दान करें।
गावो मामग्रतः सन्तु गाँव मे सन्तु पृष्ठतः ।
गांव में पाश्श्वतः सन्तु गवां मध्ये वसाम्यहम्॥
इस श्लोक का भावार्थ है – मेरे आगे-पीछे, दायें-बायें सब तरफ गायें हो। गायों के मध्य ही मेरा वास हो।
- फिर ब्राह्मण को भोजन करायें और सामर्थ्य के अनुसार दक्षिणा देकर आदर के साथ विदा करें।
Significance Of Vrat
गौ गिरिराज व्रत का महत्व
गौ गिरिराज व्रत में गाय के पूजन और दान का विशेष महत्व बताया गया हैं। हिंदु धर्मग्रंथो के अनुसार इस दिन ब्राह्मण को गाय दान करने से मृत्यु के उपरांत जातक आसानी से वैतरणी नदी को पार कर जाता हैं। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं। इस दिन का व्रत करने से जातक को सहस्त्रों अश्वमेघ और राजसूय यज्ञ करने के समान पुण्यफल मिलता हैं।