हिन्दू मान्यता के अनुसार जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra) भगवान जगन्नाथ को समर्पित है। भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। जानिये जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा कब और क्यों निकाली जाती है?, रथ यात्रा की पौराणिक कथा, और इस यात्रा के दौरान कौन सी परंपरायें मनायी जाती है?
Jagannath Puri Rath Yatra Kab Nikaali Jayegi?
जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा कब निकाली जायेगी?
इस वर्ष जगन्नाथ पुरी रथ यात्रा 7 जुलाई 2024 रविवार को निकाली जायेगी।
Jagannath Puri Mein Ratha Yatra Kab Aur Kyun Nikaali Jati hai?
जगन्नाथ पुरी में रथ यात्रा कब और क्यों निकाली जाती है?
हिन्दू पंचांग के अनुसार भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा हर वर्ष आषाढ़ माह की शुक्ल पक्ष की द्वितिया तिथि को निकाली जाती है।
यह यात्रा भगवान जगन्नाथ की स्मृति में निकाली जाती है। हिन्दू धर्म में भगवान जगन्नाथ की इस रथयात्रा को बहुत पावन और महत्वपूर्ण उत्सव माना जाता है। हर साल उड़ीसा राज्य के पुरी में भगवान जगन्नाथ की विशाल रथ यात्रा का आयोजन होता है।
यह यात्रा भारत ही नही अपितु पूरे विश्व मे प्रसिद्ध है और इसे एक त्यौहार के रूप मे मनाया जाता है। दुनियाभर के लाखों श्रद्धालु इस रथ यात्रा को देखते है। परम्परानुसार वर्ष के इस दिन भगवान जगन्नाथ इस यात्रा के माध्यम से गुंडिचा माता के प्रसिद्ध मंदिर जाते हैं। रथ यात्रा से एक दिन पूर्व श्रद्धालु गुंडिचा माता के मंदिर (Gundicha Mandir) की साफ-सफाई करते है और उसे धोते है। इसे गुंडिचा मार्जन (Gundicha Marjan) कहा जाता है।
भगवान जगन्नाथ भगवान विष्णु का ही रूप है। जगन्नाथ का अर्थ होता है ‘जगत के नाथ’ अर्थात भगवान विष्णु। भगवान जगन्नाथ का पुरी (उडीसा) स्थित मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। ऐसी मान्यता है की हिंदु धर्म के अनुयायी को जीवन में एक बार भगवान जगन्नाथ के मंदिर के दर्शन करने अवश्य जाना चाहिए।
पुरी की भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Jagannath Puri Rath Yatra) में भगवान कृष्ण, उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा भी शामिल होते हैं। विशाल भव्य रथों में विराजमान होकर तीनों की पुरी में रथयात्रा निकाली जाती है। विधि विधान से श्रद्धापूर्वक तीनों की पूजा की जाती है। बलभद्र जी के रथ को ‘तालध्वज’, सुभद्रा के रथ को ‘दर्पदलन’ या ‘पद्म रथ’ और भगवान जगन्नाथ के रथ को ‘नंदी घोष’ या ‘गरुड़ ध्वज’ कहा जाता है। रथयात्रा में सबसे आगे बलभद्र जी का रथ ‘तालध्वज’ चलता है। उसके पीछे यानी मध्य में सुभद्रा जी का रथ ‘दर्पदलन’ चलता है। और सबसे अंत में भगवान जगन्नाथ का रथ ‘गरुड़ ध्वज ‘ चलता है। हर वर्ष लाखों भक्त इस रथयात्रा को देखने के लिये पुरी आते है।
Story Of Jagannath Ratha Yatra
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की पौराणिक कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार एक समय की बात है बार माता रोहिणी से भगवान श्री कृष्ण की रास लीला के विषय में जानने की इच्छा से गोपियाँ उनके पास आई और उनसे श्री कृष्ण की रास लीला के विषय मेंं बताने का आग्रह किया। सुभद्रा जी उस समय माता रोहिणी के साथ ही थी, तो माता रोहिणी को सुभद्रा जी के समक्ष भगवान श्री कृष्ण की रास लीला के विषय में बताना उचित नहीं लगा। उन्होंने सुभद्रा जी को यह कहकर कक्ष से बाहर भेज दिया की तुम बाहर जाकर ध्यान रखों की कोई बाहर से अंदर ना आ जाये। इसी बीच भगवान श्री कृष्ण और बलराम जी आ गये और सुभद्रा जी के दाएँ-बाएँ खड़े होगये और माता रोहिणी की बातें सुनने लगे।
तभी देव ऋषि नारद जी वहाँ आ गये और तीनों भाई-बहन को इस रूप में एक साथ देख कर कहने लगे की आप तीनों इसी रूप में अपने भक्तों को अपने दिव्य दर्शन देने की कृपा करे। तीनों ने नारद के इस आग्रह को मान लिया। तभी से जगन्नाथ पुरी के मंदिर में इन तीनों भाई-बहन (बलभद्र, सुभद्रा एवं कृष्ण जी) के दर्शन इसी रूप में होते हैं।
Which traditions are celebrated during Jagannath Ratha Yatra?
जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान कौन सी परंपरायें मनायी जाती है ?
पहांडी: यह एक धार्मिक परंपरा है, इसमें बलभद्र जी, सुभद्रा जी और भगवान श्री कृष्ण के रथों को उनके भक्त जगन्नाथ मंदिर से गुंडिचा माता मंदिर तक लेकर जाते है। ऐसा माना जाता है की गुंडिचा माता भगवान श्रीकृष्ण की बहुत बड़ी और सच्ची भक्त थीं। इसीलिये उनकी भक्ति का सम्मान करते हुए बलभद्र जी, सुभद्रा जी और भगवान श्री कृष्ण तीनों उनसे मिलने के लिये हर साल जाते हैं।
छेरा पहरा: यह परम्परा रथ यात्रा के पहले दिन निभाई जाती है। इस परम्परा के अनुसार पुरी के गजपति महाराज यात्रा के मार्ग और भगवान के रथों को सोने की झाडू के द्वारा स्वच्छ करते है। प्रभु के सामने हर मनुष्य एक समान होता है। इसलिए एक राजा सफ़ाई वाला कार्य करता है। यह परम्परा रथ यात्रा के दौरान दो बार निभाई जाती है। एक बार जब रथयात्रा को गुंडिचा माता मंदिर ले जाते है और दूसरी बार जब रथ यात्रा को पुन: जगन्नाथ मंदिर वापस लाया जाता है।
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा जब गुंडिचा माता मंदिर पहुँचती है तब विधिपूर्वक भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा एवं बलभद्र जी को स्नान कराया जाता है और उन्हें पवित्र वस्त्र धारण कराये जाते हैं।
रथयात्रा के पाँचवें दिन को हेरा पंचमी भी कहा जाता है। इसका भी बड़ा महत्व है। ऐसा माना जाता है भगवान जगन्नाथ जो अपने मंदिर से निकल कर रथयात्रा में चलें गए हैं, और इस दिन माँ लक्ष्मी उन्हे ढ़ूढ़ने के लिये आती है।
Importance of Jagannath Ratha Yatra
जगन्नाथ रथ यात्रा का महत्व
हिन्दू मान्यता के अनुसार पुरी यात्रा भगवान जगन्नाथ जो कि भगवान विष्णु के अवतार है उन्हे समर्पित है। ऐसा माना जाता है कि जो भी कोई भक्त पूर्ण श्रद्धा के साथ सच्चे मन से भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा (Puri Jagannath Yatra) में सम्मिलित होता हैं, उसे मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस रथयात्रा को पुरी कार फ़ेस्टिवल के नाम से भी जाना जाता है।