मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) का व्रत बहुत ही पवित्र और पुण्य फलदायक होता है। मोहिनी एकादशी व्रत कब करें?, मोहिनी एकादशी व्रत एवं पूजा की क्या विधि है?, मोहिनी एकादशी व्रत का क्या महत्व है? जानियें मोहिनी एकादशी व्रत से जुडें हर सवाल का जवाब।
Mohini Ekadashi Vrat
मोहिनी एकादशी व्रत
वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी ही मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) होती है। हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत बहुत ही पवित्र और फलदायक माना जाता है। जो भी मनुष्य इस पवित्र व्रत को विधि विधान से करता है उसका जीवन कल्याणमय हो जाता है। मोहिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से निंदित कार्यों से छुटकारा प्राप्त कर लेता है। व्रत रखने वाला मनुष्य मोह माया के जाल से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्ति की ओर अग्रसर हो जाता है।
Mohini Ekadashi Vrat Kab Hai?
मोहिनी एकादशी कब हैं?
इस वर्ष मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) व्रत 19 मई, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
Ekadashi Vrat Aur Puja Vidhi
एकादशी व्रत एवं पूजा विधि
- मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) को ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नानादि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिये।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्नानादि से शुद्ध कराकर श्वेत वस्त्र पहनाकर उच्च स्थान पर विराजमान करें।
- इसके पश्चात कलश की स्थापना करके भगवान विष्णु का पूजन करेंं।
- धूप, दीप से आरती उतारे और मीठे फलों का भोग लगाये।
- तत्पश्चात मोहिनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें अथवा श्रवण करें।
- फिर प्रसाद वितरित करें।
- विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करें। विष्णु जी की आरती करें।
- रात्रि के समय श्री हरि विष्णु का स्मरण करें और भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें
- अगले दिन यानी द्वादशी के दिन एकादशी व्रत का पारण करें
- सर्वप्रथम भगवान की पूजन करे फिर ब्राह्मण को भोजन कराएं और यथाशक्ति दक्षिणा दें
- इसके पश्चात स्वयं भोजन करें
Significance Of Ekadashi Vrat
एकादशी का महत्व
पौराणिक कथानुसार जब समुद्र मंथन से अमृत प्राप्त हुआ तो देवताओं और असुरों में अमृत को पाने के छीना झपटी मच गई थी। ताकत से देवता असुरों को हरा नहीं सकते थे इसलिए उन्होने भगवान विष्णु से प्रार्थना की तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया जिसे देखकर असुर उनपर मोहित हो गये। असुरों को अपने मोह माया के जाल में फंसाकर भगवान विष्णु ने सारा अमृत देवताओं को पिला दिया जिससे देवताओं को अमरत्व प्राप्त हुआ। इसलिए इस एकादशी को मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) कहा जाता है।
Mohini Ekadashi Vrat Katha
मोहनी एकादशी की व्रत कथा
सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम की एक सुंदर नगरी थी। उसपर धृतनाभ नाम के राजा राज था। उसी राज्य में धनपाल नाम का एक धनवान वैश्य रहता था। वह स्वभाव से बहुत ही धर्मात्मा, दानप्रिय और भगवान विष्णु का भक्त था। उसके पाँच पुत्र थे। उनमें से उसका एक पुत्र महा पापी था। उसका नाम धृष्टबुद्धि था। वो अपने पिता के धन को नीच कर्मों जैसे जुआ खेलना, मदिरापान करना, परस्त्री गमन, वेश्यागमन आदि पर व्यय करता था। उसके माता-पिता उससे बहुत दुखी थे उन्होने उसे बहुत समझाया पर उसने उनकी एक न सुनी। अंत मे दुखी हो कर धनपाल ने अपने पुत्र धृष्टबुद्धि को कुछ धन, वस्त्राभूषण देकर घर से निकाल दिया। उस धन और आभूषणों को से उसका कुछ समय अच्छे से व्यतीत को गया। पर जब वो धनहीन हो गया तो चोरी करने लगा। चोरी करते पकडे जाने पर उसे कारावास मे बंद कर दिया गया। जब दण्ड की अवधि समाप्त हुई तो उसे नगर से निकाला दिया गया। वह वन में इधर-उधर भटकता रहता और पशु-पक्षियों को मारकर अपना गुजारा करता। एक दिन उसे कोई शिकार न मिला तो वो भूखा-प्यास से व्यथित होकर कौडिल्य मुनि के आश्रम पर पहुँच गया। और हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करने लगा और बोला – मैंने बहुत पापकर्म किये हैं जिसकी वजह से मेरे पिता ने भी मुझे त्याग दिया है। अब मैं आपकी शरण में आया हूँ। कृपा करके मुझे कोई ऐसा उपाय बताइये जिसके पुण्य प्रभाव से मेरे सारे पापों का नाश हो जाये और मेरा उद्धार हो जाये। तब कौण्डिल्य बोले मुनि बोले-वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी जिसे मोहिनी एकादशी (Mohini Ekadashi) भी कहते है उसका व्रत करो, उसके पुण्य प्रभाव से मनुष्य के कई जन्मों के पापों का नाश हो जाता हैं। इस व्रत को करके तुम निष्पाप जो जाओगे। ऋषि ने उसे सारी विधि बता दी। धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार मोहिनी एकादशी का व्रत किया। इस व्रत के प्रभाव से वह निष्पाप होकर विष्णुधाम को चला गया। इस व्रत का माहात्म्य सुनने से ही हजारों गौदान के समान फल मिलता है।