Mokshada Ekadashi 2024: पढ़ियें मोक्षदा एकादशी व्रत की शास्त्रीय विधि, नियम और व्रत कथा…

Mokshada Ekadashi

मोक्ष प्रदान करने वाला है मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत एवं पूजन। जानिये मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व (महात्म्य), मोक्षदा एकादशी व्रत एवं पूजन की विधि, मोक्षदा एकादशी व्रत के नियम, और मोक्षदा एकादशी व्रत कथा (Mokshada Ekadashi Vrat Katha)।

Mokshada Ekadashi
मोक्षदा एकादशी

मार्गशीर्ष (अगहन) माह की शुक्लपक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) के नाम से जाना जाता हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार मोक्षदा एकादशी का व्रत एवं पूजन करने से साधक और उसके पूर्वजों तक को मोक्ष की प्राप्ति होती है साथ ही उनकी सभी समस्याओं का समाधान हो जाता हैं। मोक्षदा एकादशी को मौनी एकादशी और के नाम से भी जाना जाता हैं। इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा किये जाने का विधान हैं।

हिंदु कैलेण्डर के अनुसार जिस माह में सूर्य धनु राशी में होता है उस माह की शुक्लपक्ष की एकादशी को वैकुण्ठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi) एवं मुक्कोटी एकादशी (Mukkoti Ekadashi) कहा जाता हैं। वैकुण्ठ एकादशी व्रत (Vaikuntha Ekadashi Vrat) का निर्धारण सूर्य की गणना के अनुसार होता है, इसलिये वैकुण्ठ एकादशी कभी मार्गशीर्ष माह तो कभी पौष माह में आती हैं। वैकुण्ठ एकादशी (Vaikuntha Ekadashi) 2 जनवरी 2023, सोमवार पौष माह में थी और दूसरी 23 दिसम्बर, 2023 शनिवार के दिन होगी। अब वर्ष 2024 मे वैकुण्ठ एकादशी नही होगी। जबकि वर्ष 2025 में दो वैकुण्ठ एकादशी होने जा रही हैं। पहली है 10 जनवरी, 2025 शुक्रवार और दूसरी 31 दिसम्बर, 2025 बुधवार के दिन होगी।

Mokshada Ekadashi Kab Hai?
मोक्षदा एकादशी कब हैं?

इस वर्ष मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत (स्मार्त व वैष्णव) एवं पूजन 11 दिसम्बर, 2024 बुधवार दिन किया जायेगा। और मोक्षदा एकादशी का व्रत (निम्बार्क) एवं पूजन 12 दिसम्बर, 2024 गुरूवार के दिन किया जायेगा।

मार्गशीर्ष माह की शुक्लपक्ष की एकादशी के दिन ही भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। इसलिये इस दिन गीता जयंती (Gita Jayanti) मनायी जाती हैं और श्रीमद्भगवतगीता की पूजा की जाती हैं।

Significance Of Mokshada Ekadashi
मोक्षदा एकादशी व्रत का महत्व (महात्म्य)

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा करने से जातक को महान पुण्य की प्राप्ति होती हैं। मोक्षदा एकादशी के महात्म्य (Significance Of Mokshada Ekadashi) का पाठ करने के साथ व्रत एवं पूजन करने से जातक को वाजपेय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती हैं। मोक्षदा एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला और मोह का नाश करने वाला हैं।

विधि अनुसार मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत एवं पूजन करने से

  • जातक के समस्त पापों का नाश हो जाता हैं।
  • इस व्रत के प्रभाव से परलोक में अपने कर्मों के कारण दुख झेलते पितरों को सद्गति प्राप्त होती हैं।
  • मनुष्य के कष्टों का नाश होता हैं।
  • मनुष्य पर आने वाली विपत्ति टल जाती हैं।
  • जातक को धन-समृद्धि की प्राप्ति होती हैं।
  • मनुष्य संसार के सभी सुखों को भोगकर अंत समय में मोक्ष को प्राप्त होता हैं।
  • साधक की सभी मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।

इस दिन श्रीमद्भवतगीता का पूजन भी किया जाता हैं। गीता पाठ और पूजन से जातक को पुण्य के साथ ज्ञान की भी प्राप्ति होती हैं।

Mokshada Ekadashi Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
मोक्षदा एकादशी व्रत एवं पूजन की विधि

अन्य एकादशी की भांति मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) का व्रत भी एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता है। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।

  1. मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये। व्रत करने वाली यदि स्त्री हो तो वो इस बात का ध्यान रखें कि सिर से स्नान न करें।
  2. इस दिन भगवान विष्णु के दामोदर स्वरूप की पूजा किये जाने का विधान हैं। उनके साथ ही देवी लक्ष्मी और गणेश जी की भी पूजा की जाती हैं।
  3. संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु एवं देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें। अगर उनकी प्रतिमा ना होतो उनका चित्र भी रख सकते हैं। साथ ही भगवान गणेश की प्रतिमा भी स्थापित करें।
  4. धूप-दीप जलाकर सर्वप्रथम भगवान गणेश की पूजा करें। उनके रोली चावल से तिलक करें, मोली चढ़ायें, जनेऊ चढ़ायें करें और फल-फूल अर्पित करें।
  5. फिर भगवान विष्णु (दामोदर) की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर, चंदन से तिलक करें व नेवैद्य अर्पित करें। फल-फूल व तुलसी अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
  6. देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करायें, हल्दी-रोली-चावल से तिलक करें, वस्त्र चढ़ाये, पुष्पमाला अर्पित करें और फल-फूल चढ़ायें।
  7. तत्पश्चात भोग अर्पित करे।
  8. विष्णु सहस्त्रनाम स्त्रोत्र का पाठ करें और आरती करें।
  9. इसके बाद मोक्षदा एकादशी व्रत का महात्म्य और कथा पढ़े या सुनें।
  10. दिनभर उपवास करें। संध्या के समय भगवान की पूजा और आरती के बाद फलाहार करें।
  11. अगले दिन द्वादशी को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
  12. फिर उसके बाद स्वयं भोजन करें।
  13. व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
  14. इस दिन गीता जयंती भी मनायी जाती हैं। श्रीमद्भगवत गीता की पुस्तक का पूजन किया जाता हैं। रोली चावल से तिलक करके, फल-फूल अर्पित किये जाते है और भोग निवेदन किया जाता हैं।

Mokshada Ekadashi Vrat Ke Niyam
मोक्षदा एकादशी व्रत के नियम

मोक्षदा एकादशी (Mokshada Ekadashi) पर भूल कर भी यह काम ना करें।

  • इस दिन स्त्रियाँ सिर से स्नान न करें। अर्थात बाल न धोयें।
  • भोजन में चावल का सेवन न करें।
  • व्रत करने वाला इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करें।
  • मौन रखें अन्यथा कम बोलें, बिल्कुल भी क्रोध ना करें।
  • अपने आचरण पर नियंत्रण रखें।

Mokshada Ekadashi Vrat Katha
मोक्षदा एकादशी व्रत कथा

पौराणिक कथा के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने मोक्षदा एकादशी की कथा (Mokshada Ekadashi Vrat Katha) सुनाते हुये धर्मराज युधिष्ठिर को बताया, प्राचीनकाल में वैखानस नाम का एक धर्मात्मा और प्रजावत्सल राजा गोकुल नाम के नगर पर राज्य किया करता था। वो अपनी प्रजा का पालन अपनी संतान के समान पूरे धर्म और न्याय के साथ किया करता था। उसके राज्य में बहुत से ज्ञानी पण्ड़ित और धर्मात्मा व्यक्ति निवास किया करते थे। वे लोग वेदों का पाठ किया करते, यज्ञ-हवन किया करते। पूरे नगर सुख-शांति थी। प्रजा भी बहुत सुखी थी।

एक रात्रि को राजा वैखानस ने स्वप्न में देखा की उसके पिता नरक में यातनायें झेल रहे हैं। यह देखकर वो बहुत दुखी हुआ। जब राजा प्रात:काल उठा तो उसने अपना स्वप्न अपने मंत्रियों को सुनाया और उनसे अपने पिता के उद्धार और उत्तम लोक की प्राप्ति का उपाय पूछा। मंत्रियों ने राज्य के सभी ज्ञानी पण्ड़ितो से इसके विषय में पूछा तो एक ज्ञानी महात्मा ने उन्हे बताया की नगर के समीप पर्वत ऋषि का आश्रम हैं, वो बहुत बड़े तपस्वी हैं। उन्होने वर्षों तक तपस्या करके अनेक सिद्धियाँ और शक्ति अर्जित की हैं। वो इसका उपाय अवश्य बता सकते हैं।

राजा पर्वत ऋषि के आश्रम में पहुँचे और उन्हे अपने स्वप्न के विषय में बताया। फिर उनसे अपने पिता की सद्गति के लिये उपाय पूछा। तब पर्वत ऋषि ने राजा को परम पुण्यदायिनी मोक्षप्रदायिनी मोक्षदा एकादशी के व्रत विषय में बताया। ऋषि ने कहा, हे राजन! अपने पिता के उद्धार और उनके मोक्ष के लिये अपने पिता के निमित्त आप मोक्षदा एकादशी का व्रत एवं पूजन करों। इसके प्रभाव से आपके पिता के पापों का नाश होगा और उन्हे उत्तम लोक की प्राप्ति होगी।

राजा ने अपने पूरे परिवार के साथ मोक्षदा एकादशी का व्रत एवं पूजन किया और उसका पुण्य संकल्प के द्वारा अपने पिता को दे दिया। जिसके प्रभाव से उसके पिता को मोक्ष की प्राप्ति हुयी। उन्होने राजा को स्वप्न में दर्शन देकर कहा कि मोक्षदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो गयी है और मुझे वैकुण्ठ की प्राप्ति हुयी है।

भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा जो भी मनुष्य पूर्ण श्रद्धा और भक्ति के साथ मोक्षदा एकादशी का व्रत एवं पूजन करेगा उसके साथ उसके पूर्वजों तक के पापों का शमन होगा और मोक्ष की प्राप्ति होगी।

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