Krishna Stotram (श्री कृष्ण स्तोत्रं) का नित्य पाठ करने से खुलेगा मुक्ति का मार्ग

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पृथ्वी पर रहने वाले मनुष्यों को आसानी से देवकृपा प्राप्त हो इसलिये देवऋषि नारद ने श्री कृष्ण स्तोत्रं (Krishna Stotram) की रचना करी। भगवान श्री कृष्ण की भक्ति अनुपम फलदायिनी है। उनकी कृपा से साधक को ज्ञान प्राप्त होता है और वो संसार में रहते हुये भी संसार से मुक्त हो जाता है। पढ़ियें श्री कृष्ण स्तोत्रं और साथ ही जानिये इसके लाभ…

Benefits Of Krishna Stotram
श्री कृष्ण स्तोत्रं के लाभ

संसार को कर्म का मार्ग दिखाने वाले भगवान श्री कृष्ण की भक्ति मनुष्य को परमानंद से भर देती है। बहुत ही आसानी से साधक श्री कृष्ण की भक्ति करके अपने पापों से मुक्त होकर मोक्ष को प्राप्त कर सकता है। जो साधक श्री कृष्ण की भक्ति करते हुये स्वयं को उन्हे समर्पित कर देता है और उन्ही की सेवा में रहता है वो जीवन – मृत्यु के चक्र से छूट जाता है। श्री कृष्ण स्तोत्रं (Krishna Stotram) का नित्य पाठ करने से

  • साधक को भगवान श्री कृष्ण की कृपा प्राप्त होती है।
  • श्री कृष्ण की कृपा से धन-धान्य एवं सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है।
  • रोग-दोष-कष्ट और पाप नष्ट होते है।
  • साधक मोह के बन्धन से मुक्त होकर संसार में रहते हुये भी इस संसार से मुक्त हो जाता है।
  • मनुष्य सुख – दुख में समान आचरण करने वाला हो जाता है।
  • धरती पर सुखों को भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त होता है।

देवराज इन्द्र द्वारा रचित श्री कृष्ण स्तोत्र का पाठ करने के लिये यहाँ क्लिक करें।

When and how to recite Krishna Stotram?
श्री कृष्ण स्तोत्रं का पाठ कब और कैसे करें?

इस स्तोत्र के पाठ में साधक स्वच्छता का पूर्ण ध्यान रखें। शरीर और मन दोनों की शुद्धता के साथ पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ श्री कृष्ण का ध्यान करें। सुबह या शाम कभी भी इस स्तोत्र का पाठ कर सकते है। स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्री कृष्ण की प्रतिमा या चित्र के समक्ष बैठकर श्री कृष्ण स्तोत्रं का पाठ करें।

Narada Rachita Krishna Stotra Lyrics

श्री कृष्ण स्तोत्रं (श्री नारद रचितम्)

श्री गणेशाय नमः ।

वन्दे नवघनश्यामं पीतकौशेयवाससम् ।
सानन्दं सुन्दरं शुद्धं श्रीकृष्णं प्रकृतेः परम् ॥ १॥

राधेशं राधिकाप्राणवल्लभं बल्लवीसुतम् ।
राधासेवितपादाब्जं राधावक्षःस्थलस्थितम् ॥ २॥

राधानुगं राधिकेष्टं राधापहृतमानसम् ।
राधाधारं भवाधारं सर्वाधारं नमामि तम् ॥ ३॥

राधाहृत्पद्ममध्ये च वसन्तं सन्ततं शुभम् ।
राधासहचरं शश्वद्राधाज्ञापरिपालकम् ॥ ४॥

ध्यायन्ते योगिनो योगान् सिद्धाः सिद्धेश्वराश्च यम् ।
तं ध्यायेत् सततं शुद्धं भगवन्तं सनातनम् ॥ ५॥

सेवन्ते सततं सन्तो ब्रह्मेशशेषसज्ञकाः ।
सेवन्ते निर्गुणं ब्रह्म भगवन्तं सनातनम् ॥ ६॥

निर्लिप्तं च निरीहं च परमात्मानमीश्वरम् ।
नित्यं सत्यं च परमं भगवन्तं सनातनम् ॥ ७॥

यं सृष्टेरादिभूतं च सर्वबीजं परात्परम् ।
योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ॥ ८॥

बीजं नानावताराणां सर्वकारणकारणम् ।
वेदावेद्यं वेदबीजं वेदकारणकारणम् ॥ ९॥

योगिनस्तं प्रपद्यन्ते भगवन्तं सनातनम् ।
इत्येवमुक्त्वा गन्धर्वः पपात धरणीतले ॥ १०॥

नमाम दण्डवद् भूमौ देवदेवं परात्परम् ।
इति तेन कृतं स्तोत्रं यः पठेत् प्रयतः शुचिः ॥ ११॥

इहैव जीवन्मुक्तश्च परं याति परां गतिम् ।
हरिभक्तिं हरेर्दास्यं गोलोके च निरामयः ॥ १२॥

पार्षदप्रवरत्वं च लभते नाऽत्र संशयः ॥ १३॥

॥ इति नारदपञ्चरात्रे कृष्णस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥