पुत्र प्राप्ति की मनोकामना पूर्ण करने हेतु करें पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत एवं पूजन। वर्ष में दो पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) आती हैं, एक श्रावण मास में और दूसरी पौष मास में। जानिये पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कब हैं?। साथ ही पढ़ें पौष पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि और व्रत कथा।
Pausha Putrada Ekadashi
पौष पुत्रदा एकादशी
पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है। पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) वर्ष में दो बार आती है। एक बार श्रावण मास में और दूसरी बार पौष मास में। श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी और पौष मास शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार पुत्रदा एकादशी का व्रत करने से साधक की पुत्र रत्न की प्राप्ति की कामना पूर्ण होती है। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से करना चाहिये।
Pausha Putrada Ekadashi Kab Hai?
पौष पुत्रदा एकादशी कब है?
इस वर्ष पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत एवं पूजन 21 जनवरी, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
Putrada Ekadashi Vrat Ki Vidhi
पुत्रदा एकादशी व्रत की विधि
पौष मास की पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) के व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। इस उत्तम व्रत की विधि इस प्रकार है –
पौष मास की पुत्रदा एकादशी का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता हैं। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये।
- पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
- संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उस पर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।
- भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर नेवैद्य अर्पित करें। फूल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसी योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
- विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
- इसके बाद पुत्रदा एकादशी व्रत की कथा (Putrada Ekadashi Vrat Katha) पढ़ें या सुनें। भगवान विष्णु की आरती करें।
- पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) का निर्जल व्रत करें और संध्या को पूजन करने के बाद ही जल ग्रहण करें और फलाहार करें।
- व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
- व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि को ब्राह्मण को भोजन करवायें और यथाशक्ति दान-दक्षिणा दे कर संतुष्ट करें।
Pausha Putrada Ekadashi Vrat Katha
पौष पुत्रदा एकादशी व्रत कथा
धर्मग्रंथों के अनुसार धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी के विषय में पूछा तब उन्होने धर्मराज युधिष्ठिर को इस एकादशी के विषय में बताया था। भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को कहा, हे धर्मराज! पौष मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के नाम से जाना जाता है।
इसका महात्म्य इसके नाम मे ही वर्णित है। इस एकादशी का व्रत करने से पुत्र प्राप्ति की कामना पूर्ण होती हैं, इसलिए इसका एक नाम पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) है। इसका व्रत करने से जातक के सभी पाप उतर जाते है, और उसे स्वर्ग की प्राप्ति होती हैं।
इस एकादशी की व्रत कथा और महात्म्य कहने और सुनने से ही वायपेय यज्ञ के समान पुण्य फल प्राप्त होता है। फिर भगवान श्री कृष्ण ने कहा, “हे धर्मराज! अब में आपसे पुत्रदा एकादशी की कथा कहता हूँ आप ध्यान से सुनिये।“
प्राचीन काल में भद्रावती नाम के नगर पर राजा सुकेतु का राज्य था। राजा सुकेतु बहुत ही धार्मिक, कर्तव्य परायण, न्याय प्रिय और संतान के समान प्रजा का पालन करने वाला राजा था। उसके राज्य में प्रजा सुख और आनन्द का अनुभव करती थी।
राजा सुकेतु की पत्नी का नाम शैव्या था। रानी शैव्या भी बहुत ही सुंदर और पतिव्रता स्त्री थी। राजा सुकेतु और रानी शैव्या के पास सबकुछ था किंतु कोई संतान नही होने के कारण वो बहुत दुखी रहते थे। इस दुख के कारण उनको किसी भी चीज में आनंद का अनुभव नही होता था। राजा को ऐसा लगता था कि बिना पुत्र के मनुष्य अपने पितृ ऋण से उऋण नही हो सकता। बिना संतान के मनुष्य ना तो इस लोक में सुख का अनुभव कर सकता है और ना ही परलोक में सुखी रहा सकता हैं। इसी दुख और चिंता के कारण राजा हमेशा चिंतित रहता। राजा और रानी ने पुत्र प्राप्ति के लिये अनेक उपाय किए परंतु उनकी मनोकामना पूर्ण नही हुई।
समय व्यतीत होने के साथ ही राजा की चिंता और गहरी होती जा रही थी। अत्यंत दुखी होकर राजा ने अपना राजपाट त्याग कर अपनी रानी के साथ वन में जाने का निर्णय ले लिया। राजा अपना राजपाट अपने मंत्रियों को सम्भला कर स्वयं अपनी रानी के साथ वन की ओर चल दिया। उसके मन में अनेक प्रकार के विचार आने लगें। एक नदी के किनारे पहुँच कर राजा के मन में अपनी रानी के साथ प्राण त्यागने का विचार आया। राजा के अंतर्मन ने उसे कहा कि आत्महत्या तो कायर करते है, यह पाप हैं। ऐसा सोचकर राजा ने आत्महत्या का विचार त्याग दिया।
तभी राजा और रानी को एक ऋषियों का समूह नदी की ओर आता दिखाई दिया। राजा और रानी ने उनको पूर्ण श्रद्धा के साथ विनम्रता से प्रणाम किया। ऋषि उनको अपने साथ आश्रम में ले गये। आश्रम का वातावरण बहुत ही दिव्य था। वेद पाठ और मंत्रो के स्वर गूंज रहे थे। वहाँ पहुँच कर राजा को बहुत शांति का अनुभव हुआ।
राजा ने उस आश्रम के प्रमुख ऋषि के दर्शन किये। ऋषि ने राजा से वनागमन का कारण पूछा तो राजा ने उन्हे कहा, “हे ऋषिवर मैंने सदा धर्म का पालन किया हैं। किंतु ईश्वर ने मुझे किस कर्म की सजा दी हैं जो समस्त प्रयासों के उपरांत भी मैं संतानहीन हूँ।“ राजा के दुखी वचन सुनकर ऋषि ने राजा को पौष पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत करने के लिये कहा। ऋषि ने राजा को पुत्रदा एकादशी के व्रत की विधि से अवगत कराया और उसका महात्म्य भी बताया।
राजा सुकेतु ने अपने नगर लौट कर पुत्र प्राप्ति की कामना से अपनी पत्नी के साथ पूर्ण श्रद्धा-भक्ति के साथ विधि-विधान से पौष मास की पुत्रदा एकादशी (Pausha Putrada Ekadashi) का व्रत किया। पुत्रदा एकादशी के व्रत के प्रभाव से नौ माह पश्चात रानी ने एक बहुत ही तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया। पुत्रदा एकादशी (Putrada Ekadashi) के व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा की पुत्र प्राप्ति मनोकामना पूर्ण हुई।
यह पूरी कहानी सुनाने के बाद भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा हे धर्मराज! इस एकादशी (Ekadashi Vrat) का व्रत करने से मनुष्य की पुत्र पाने की कामना पूर्ण होती हैं। पुत्र प्राप्ति की इच्छा रखने वाले मनुष्य को यह व्रत अवश्य करना चाहिये। इस व्रत की कथा पढ़ने और सुनने से ही जातक के समस्त पापों का नाश हो जाता है और वो इस लोक में सुख भोगकर अंत में मोक्ष को प्राप्त करता हैं।
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