रक्षा पंचमी (Raksha Panchami) को गोगा पंचमी और भाई भिन्ना भी कहते है। संतान प्राप्ति एवं संतान के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिये इस दिन व्रत और पूजन किया जाता है। जानियें कब है गोगा पंचमी (Goga Panchami)? साथ ही पढ़ें इसका महत्व, पूजा विधि और व्रत कथा…
Goga Panchami / Guga Panchami / Bhai Binna/ Raksha Panchami
गोगा पंचमी / गूगा पंचमी / भाई-भिन्ना / रक्षा पंचमी
गोगा पंचमी का पर्व भाद्रपद मास (भादों) की कृष्णपक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता हैं। इसे रक्षा पंचमी, गूगा पंचमी और भाई भिन्ना के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन जाहरवीर गोगा जी और नाग देवता की पूजा की जाती है। ऐसी मान्यता है की जाहरवीर गोगा जी साँप के काटने से मनुष्य के जीवन की रक्षा करते हैं।
Raksha Panchami (Goga Panchami) Kab Hai?
रक्षा पंचमी (गोगा पंचमी) कब है?
रक्षा पंचमी (Raksha Panchami) इस वर्ष 23 अगस्त, 2024 शुक्रवार के दिन मनाई जायेगी।
Significance of Goga Panchami
रक्षा पंचमी (गोगा पंचमी) का महत्व
धार्मिक मान्यता के अनुसार गोगा जी की पूजा करने से संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है, बच्चों वाली महिलाओं के बच्चे दीर्धायु होते है, गोगाजी उनके बालकों के जीवन की रक्षा करते है। इसीलिये मातायें अपने बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लम्बी आयु की कामना के साथ गोगा जी की पूजा-अर्चना करती हैं।
भाई भिन्ना का व्रत बहुत ही शुभ फल देने वाला है। इस व्रत का पालन करने से स्त्रियों को सौभाग्य की प्राप्ति होती हैं। उनके जीवनसाथी के जीवन की परेशानियों का नाश होता है और उनकी समस्त मनोकामनायें पूर्ण होती हैं। बहुत से स्थानों पर इस दिन बहिने अपने भाइयों के तिलक लगाती हैं और भाई उन्हे धन या उपहार देते हैं।
भाद्रपद कृष्णपक्ष की पंचमी यानी गोगा पंचमी के 4 दिन बाद भाद्रपद कृष्णपक्ष नवमी को गोगा नवमी का त्योहार मनाया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गोगानवमी को जाहरवीर गोगा जी का जन्म हुआ था।
Raksha Panchami (Goga Panchami) Ki Pujan Vidhi
रक्षा पंचमी (गोगा पंचमी) की पूजन विधि
1. गोगा पंचमी दिन जाहरवीर गोगा जी और नाग देवता को दूध चढ़ाना चाहिए।
2. पूजा के लिये साफ-सुथरी दीवार को गेरू से पोत लें। फिर दूध में कोयला मिलाकर दीवार पर एक चौकोर चौक बनाये। उस चौकोर चौक में 5 नाग बनायें।
3. नाग बनाने के बाद कच्चा दूध, जल, रोली एवं चावल चढ़ाकर उनकी पूजा करें। और बाजरा, आटा, घी और शक्कर से बना प्रसाद भोग लगायें।
4. पंड़ित को भोजन करायें और उसे दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।
Raksha Panchami (Bhai Binna) Ki Kahani
रक्षा पंचमी (भाई भिन्ना) की कहानी
रक्षा पंचमी (भाई भिन्ना) की कहानी और भाई पंचमी की कहानी एक समान ही हैं। भाई पन्चमी की कहानी के लिये यहाँ क्लिक करें।
Goga Ji Kaun The?
गोगा जी कौन थे?
जाहरवीर गोगा जी को राजस्थान का लोक देवता माना जाता हैं। इनको ‘जाहरवीर गोग राणा के नाम से भी जानते है। लोक मान्यता के अनुसार सांपों के देवता का रूप मानकर गोगाजी की पूजा की जाती हैं। इनके भक्त इन्हे गोगाजी, गुग्गा वीर, जाहरवीर, राजा मण्डलिक एवं जाहर पीर जैसे अलग-अलग नामों से पुकारते हैं। महापुरुष गोगा जी गुरु गोरक्षनाथ के शिष्य थे।
प्रचलित लोक कथा के अनुसार गोगाजी का जन्म भी गुरु गोरखनाथ के वरदान से ही हुआ था। चौहान वंश के राजपूत राजा जेवरसिंह जी और उनकी पत्नी बाछल देवी के कोई संतान नही थी। बाछल देवी ने संतान प्राप्ति के लिये ‘गोगामेडी’ के टीले पर गुरु गोरखनाथ की तपस्या करी थी। तब गुरु गोरखनाथ (गोरक्षनाथ) ने उन्हें अभिमंत्रित करके गुगल नाम का फल प्रसाद के रूप में दिया और पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद दिया। उस प्रसाद के फल को खाने के प्रभाव से बाछल देवी गर्भवती हुई और फिर उन्होने गोगाजी को जन्म दिया। उस गुगल नाम के फल कारण ही उनका नाम गोगाजी पड़ा।
जहाँ पर बाछल देवी ने तपस्या करी थी वो गोगामेड़ी राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में हैं। यहां भाद्रपद माह की कृष्णपक्ष की पंचमी और नवमी को गोगाजी का मेला भरता हैं। गोगाजी की पूजा हर सम्प्रदाय और धर्म के लोग करते हैं।
गुजरात के रबारी लोग गोगाजी को गोगा महाराज के नाम से पुकारते हैं, तो मुस्लिम धर्म के लोग इन्हे जाहर पीर कहते हैं। दत्तखेड़ा ददरेवा गाँव गोगा जी का जन्मस्थान है, यह राजस्थान के चुरू में स्थित हैं। यहां पर हिंदू, मुस्लिम, सिख सभी धर्म और संप्रदायों के लोग श्रद्धा से माथा टेकने आते हैं।
आज भी गोगा जी की जन्मस्थली पर उनके घोड़े का अस्तबल है और उस अस्तबल में उनके घोड़े की रकाब आज तक सुरक्षित हैं। गोगा जी के जन्म स्थान पर आज गोगा जी का मंदिर है और गुरु गोरक्षनाथ का आश्रम भी है। यहाँ पर घोड़े पर सवार गोगा जी की मूर्ति रखी हुई हैं। भक्त सर्पदंश के निवारण के लिये आज भी गोगाजी की पूजन करते हैं। लोग साँप की आकृति गोगाजी का प्रतीक मानकर लकड़ी या पत्थर पर उकेरते हैं।
गोगाजी के जन्म स्थान से तकरीबन 80 किलोमीटर की दूरी पर गोगामेड़ी में गोगाजी की समाधि हैं। यह बहुत ही पवित्र स्थल हैं। यहाँ पर एक हिन्दू पुजारी और एक मुस्लिम पुजारी उपस्थित रहता है। यह साम्प्रदायिक सद्भाव का अनोखा प्रतीक हैं। गोगामेड़ी में श्रावण पूर्णिमा से भाद्रपद (भादों) पूर्णिमा तक मेला लगता हैं। मेले में दूर दूर से भक्त जाहरवीर गोगाजी की समाधि पर आते हैं। उनके जयकारों से पूरी जगह गूंजायमान रहती हैं।
भक्तजन गोरख टीला पर स्थित गुरु गोरक्षनाथ के धूने पर सिर झुकाकर मन्नत मांगते हैं।