रंग पंचमी (Rang Panchami) के दिन अबीर-गुलाल उड़ाकर करें नकारात्मकता का नाश और वातावरण में सकारात्मकता का संचार। जानियें कब और कैसे मनाई जाती है रंग पंचमी? क्या है रंग पंचमी का पौराणिक महत्व? साथ ही पढ़ियें इसकी पौराणिक कथा…
Rang Panchami / Shree Panchami
रंगपचमी / श्री पंचमी
चैत्र मास की कृष्णपक्ष की पंचमी तिथि के दिन रंगपंचमी (Rang Panchami) का त्योहार बडी धूम-धाम से मनाया जाता है। रंगपंचमी को श्री पंचमी (Shree Panchami) के नाम से भी जाना जाता है। होली के बाद पंचमी तिथि तक होली का त्यौहार चलता है। भारत देश के कई इलाकों में रंगपंचमी बहुत हर्ष-उल्लास एक साथ मनायी जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने राधा जी और गोपियों के साथ होली खेली थी। इस दिन राधा-कृष्ण की पूजा की जाती है।
Rang Panchami Kab Hai?
रंगपचमी कब है?
इस वर्ष रंगपचमी (Rang Panchami) का त्योहार 30 मार्च, 2024 शनिवार के दिन मनाया जायेगा।
Rang Panchami Ka Puranik Mahatva
रंगपंचमी का पौराणिक महत्व क्या है?
होली हिंदुओं का एक बहुत बडा त्योहार है। यह त्योहार पांच दिन तक मनाया जाता है। रंगपंचमी को श्री पंचमी (Shree Panchami) और कृष्ण पंचमी (Krishan Panchami) के नाम से भी पुकारा जाता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार यह पर्व देवताओं को समर्पित है। इस दिन दैवीय शक्तियां नकारात्मक शक्तियों से अधिक प्रभावी होती है। वातावरण में सकारात्मकता रहती है।
ऐसा माना जाता है रंगपचमी (Rang Panchami) के दिन रंग-अबीर को शरीर पर ना लगाकर बल्कि हवा में उड़ा कर मनाया जाता है। ऐसा करने से वातावरण शुद्ध होता है, नकारात्मकता दूर होती है और सकारात्मकता का संचार होता है, जिससे व्यक्ति के अंदर सात्विक गुणों में वृद्धि होती है और उसके तामसिक गुणों का नाश हो जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार द्वापर युग जब भगवान विष्णु ने श्री कृष्ण के रूप में धरती पर अवतार लिया था तब इसी दिन श्री राधाजी व अन्य गोपियों के संग रंग और अबीर से होली खेली थी।
Shree Panchami Ki Puranik Katha
श्री पंचमी से जुडी पौराणिक कथा
धर्मग्रंथों के अनुसार देवी सती ने जब अपने पिता दक्ष प्रजापति के यज्ञ जाकर अपनी में देह त्याग दी थी उसके बाद भगवान शिव में वैराग्य उत्पन्न हो गया और वो गहन तपस्या में लीन हो गये। इस बात का लाभ उठाकर असुरराज तारकासुर ने ब्रह्मदेव को प्रसन्न करके यह वरदान प्राप्त कर लिया की उसका वध भगवान शिव के पुत्र से ही सम्भव हो क्योकि उसे पता था कि देवी सती ने देह त्याग दी है और भगवान शिव गहन तपस्या मे लीन है इसलिये ना तो शिव जी के कोई पुत्र होगा और नाही कोई उसका वध कर पायेगा।
देवताओं ने देवी आदिशक्ति से सहायता की प्रार्थना की, तो देवी आदिशक्ति ने पार्वती जी के रूप में पर्वतराज हिमालय और रानी मैंना देवी के यहाँ पुत्री रूप में जन्म ले लिया। देवी पार्वती और भगवान शिव का मिलन कराने के लिये और शिवजी को तपस्या से उठाने के लिये देवताओं ने कामदेव का आह्वान किया। कामदेव ने भगवान शिव की तपस्या तोडने के लिये कई प्रयास किये जिससे भगवान शिव क्रोधित हो गये और उन्होने कामदेव को अपनी तीसरी आँख खोलकर अग्नि से जलाकर भस्म कर दिया। कामदेव की पत्नी रति यह देखकर विलाप करने लगी। तब सभी देवताओं ने भगवान शिव को सारी बात से अवगत कराया तब भगवान शिव ने रति को वरदान दिया कि द्वापर युग में कामदेव भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्मुन मे रूप में जन्म लेगा। यह जानकर सभी देवी-देवता प्रसन्न हो गये और आनंदित होकर रंग उडाकर रंगोत्सव मनाने लगे। कामदेव के भस्म हो जाने से जो वातावरण और प्रकृति में नीरसता आ गयी थी वो सब समाप्त हो गई। इस लिये रंगपंचमी (Rang Panchami) के दिन हवा में रंग उडाने का प्रचलन है।
Rang Panchami Kaise Manate Hai?
रंगपंचमी कैसे मनाते हैं?
- रंगपंचमी (Rang Panchami) के दिन भगवान श्रीकृष्ण और राधी जी की पूजा की जाती है।
- श्रीराधा जी के बरसाना स्थित मंदिर में इस दिन विशेष झाँकी सँजायी जाती है।
- लोगे हवा में रंग-गुलाल उडाते है।
- श्रीखण्ड बनाकर भगवान को भोग लगाते है।
- नृत्य-संगीत के आयोजन किये जाते है, जूलूस निकाले जाते हैं।