Sri Rama Sahasranama: जानियें श्री राम की सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तुतियों में से एक श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम के नित्य पाठ के लाभ…

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श्री राम सहस्रनाम (Rama Sahasranama) का अर्थ है भगवान श्री राम के 1000 नाम। श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम (Rama Sahasranama) प्रभु श्री राम की सबसे प्रसिद्ध और शक्तिशाली स्तुतियों में से एक है। इसमें में वर्णित प्रत्येक नाम के द्वारा भगवान श्री राम के अद्वितीय गुण है, रूप-सौन्दर्य और कार्यों का उत्कृष्ट वर्णन किया गया है। इस स्तोत्रम् का नित्य पाठ करने से यश, प्रसिद्धि, धन-धान्य, उत्तम स्वास्थ्य, सौंदर्य, शत्रु पर विजय, आनन्द और ज्ञान की प्राप्ति जैसे कई लाभ प्राप्त होते है। पढ़ियें श्री राम सहस्रनाम (Rama Sahasranama) स्तोत्रम् और साथ ही जानियें इसके पाठ की विधि और लाभ…

Benefits of Ram sahasranama
श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम् के लाभ

हिन्दु धर्म में भगवान विष्णु को ही सृष्टि का पालनकर्ता माना जाता है और श्री राम को उनका मानस अवतार मानते है। मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम अपने भक्तों पर सदा ही कृपा करते है। उनके आशीर्वाद से साधको को हर वो वस्तु प्राप्त हो सकती है जिसकी वो कामना करता है। यश, बल, मान-सम्मान, प्रसिद्धि, धन, उत्त्म स्वास्थ्य और समृद्धि इत्यादि सबकुछ प्राप्त होता हैं। विधि अनुसार श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम (Rama Sahasranama Stotram) के द्वारा भगवान राम की स्तुति करने से

  • साधक रोग, दोष, पाप, श्राप, कष्ट, दुख और पीड़ा से मुक्त हो जाता है।
  • उसका वैवाहिक जीवन सुखमय होता है।
  • कार्यों सिद्धि में आने वाली सभी बाधायें दूर होती है।
  • मान, सम्मान, यश और बल में वृद्धि होती है।
  • समाज में प्रसिद्धि मिलती है।
  • पापों का शमन होता है।
  • श्रापों का निवारण होता है।
  • अज्ञानता का नाश होता है और ज्ञान की प्राप्ति होती है।
  • सौभाग्य और सौन्दर्य में वृद्धि होती है।
  • दुर्भाग्य और अभिशाप दूर हो जाते हैं।
  • वित्तीय कठिनाइयों का निवारण होता है।
  • उत्साह में वृद्धि होती है।
  • जीवन में सुख और आनन्द की प्राप्ति होती है।
  • मोह का नाश होता है।
  • विचारों में सकारात्मकता आती है।
  • साधक का सर्वांगीण विकास होता है।
  • साधक जीवन – मृत्यु के चक्र से छूटकर मोक्ष को प्राप्त होता है।

नोट: इस स्तोत्र के साथ श्री यंत्र की पूजा करने और लक्ष्मी सूक्त का पाठ करने से चमत्कारी परिणाम प्राप्त होते है। राम नवमी और दीपावली के दिन श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम (Rama Sahasranama Stotram) का पाठ करने से विशेष फलोंं की प्राप्ति होती है।

Who is Rama?
श्री राम कौन है?

हिन्दु धर्म में श्री राम को भगवान विष्णु का सातवाँ अवतार माना जाता है। तीनो लोकों को रावण और अन्य राक्षसों के अत्याचारों से मुक्ति दिलाने और समाज के समक्ष धर्म एवं मर्यादा का उदाहरण प्रस्तुत करने के लिए पृथ्वी पर अवतार लिया था। भगवान राम को उनकी करुणा, उदारता, वीरता, मर्यादा पालन और धार्मिक आचरण के लिए उनके पूजा और सम्मान किया जाता है। श्री राम ने मानव रूप में अवतार लेकर जिस प्रकार धर्म और मर्यादा का पालन किया उसके कारण उनको मर्यादा पुरुषोत्तम भी कहा जाता है। श्री राम एक आदर्श पुत्र, एक आदर्श पति, आदर्श भाई, आदर्श मित्र और एक आदर्श राजा थे।

How and When to Recite Sri Rama Sahasranama?
श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम् का पाठ कैसे करें?

श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम (Rama Sahasranama) का विधि अनुसार नियमित पाठ करने से साधक को भगवान श्री राम का आशीर्वाद प्राप्त होता है। इस स्तोत्रम् के पाठ की विधि इस प्रकार है :-

  • प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजास्थान पर पूर्व दिशा की ओर मुख करके भगवान श्रीराम और देवी सीता की प्रतिमा या तस्वीर के सम्मुख आसन लगाकर बैठ जायें।
  • शुद्ध मन से एकाग्रचित्त होकर भगवान श्री राम का ध्यान करें।
  • धूप दीप जलाकर भगवान की पूजा करें। उन्हें फल, फूल और नैवेद्य अर्पित करें।
  • इसके बाद श्री राम सहस्रनाम स्तोत्रम् (Rama Sahasranama) का पाठ करें।
  • पाठ के पश्चात् श्री राम की आरती करें।
  • भगवान से अपनी गलतियों के लिये क्षमा माँगे और फिर उनसे अपने मनोरथ सिद्धि की प्रार्थना करें।
  • भगवान राम आपकी इच्छा अवश्य पूर्ण करेंगे यह विश्वास मन मे रखकर अपने प्रयास करें।

Shri Rama Sahasranama Stotram Lyrics
श्री राम सहस्त्र नाम स्तोत्रम

अस्य श्रीरामसहस्रनामस्तोत्र महामंत्रस्य, भगवान् ईश्वर ऋषिः,
अनुष्टुप्छंदः, श्रीरामः परमात्मा देवता, श्रीमान्महाविष्णुरिति बीजं,
गुणभृन्निर्गुणो महानिति शक्तिः, संसारतारको राम इति मंत्रः,
सच्चिदानंदविग्रह इति कीलकं, अक्षयः पुरुषः साक्षीति कवचं,
अजेयः सर्वभूतानां इत्यस्त्रं, राजीवलोचनः श्रीमानिति
ध्यानं श्रीरामप्रीत्यर्थे दिव्यसहस्रनामजपे विनियोगः ।

ध्यानं

श्रीराघवं दशरथात्मजमप्रमेयं
सीतापतिं रघुकुलान्वयरत्नदीपम् ।
आजानुबाहुमरविंददलायताक्षं
रामं निशाचरविनाशकरं नमामि ॥

नीलां भुजश्यामल कोमलांगं
सीता समारोपित वामभागम् ।
पाणौ महासायक चारु चापं
नमामि रामं रघुवंशनाथम् ॥

लोकाभिरामं रणरंगधीरं
राजीवनेत्रं रघुवंशनाथम् ।
कारुण्यरूपं करुणाकरं तं
श्री रामचंद्रं शरणं प्रपद्ये ॥

ध्यायेदाजानुबाहुं धृतशरधनुषं बद्धपद्मासनस्थं
पीतं वासो वसानं नवकलदलस्पर्धिनेत्रं प्रसन्नम् ।
वामांकारूढसीतामुखकमलमिललोचनं नीरदाभं
नानालंकारदीप्तं दधतमुरुजटामंडलं रामचंद्रम् ॥

नीलांभोदरकांति कांतमनुषं वीरासनाध्यासिनं
मुद्रां ज्ञानमयीं दधानमपरं हस्तांबुजं जानुनि ।
सीतां पार्श्वगतां सरोरुहकरां विद्युन्निभां राघवं
पश्यंतीं मुकुटांगदादि विविध कल्पोज्ज्वलांगं भजे ॥

स्तोत्रं

राजीवलोचनः श्रीमान् श्रीरामो रघुपुंगवः ।
रामभद्रः सदाचारो राजेंद्रो जानकीपतिः ॥ 1 ॥

अग्रगण्यो वरेण्यश्च वरदः परमेश्वरः ।
जनार्दनो जितामित्रः परार्थैकप्रयोजनः ॥ 2 ॥

विश्वामित्रप्रियो दांतः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ।
सर्वज्ञः सर्वदेवादिः शरण्यो वालिमर्दनः ॥ 3 ॥

ज्ञानभाव्योऽपरिच्छेद्यो वाग्मी सत्यव्रतः शुचिः ।
ज्ञानगम्यो दृढप्रज्ञः खरध्वंसी प्रतापवान् ॥ 4 ॥

द्युतिमानात्मवान्वीरो जितक्रोधोऽरिमर्दनः ।
विश्वरूपो विशालाक्षः प्रभुः परिवृढो दृढः ॥ 5 ॥

ईशः खड्गधरः श्रीमान् कौसलेयोऽनसूयकः ।
विपुलांसो महोरस्कः परमेष्ठी परायणः ॥ 6 ॥

सत्यव्रतः सत्यसंधो गुरुः परमधार्मिकः ।
लोकज्ञो लोकवंद्यश्च लोकात्मा लोककृत्परः ॥ 7 ॥

अनादिर्भगवान् सेव्यो जितमायो रघूद्वहः ।
रामो दयाकरो दक्षः सर्वज्ञः सर्वपावनः ॥ 8 ॥

ब्रह्मण्यो नीतिमान् गोप्ता सर्वदेवमयो हरिः ।
सुंदरः पीतवासाश्च सूत्रकारः पुरातनः ॥ 9 ॥

सौम्यो महर्षिः कोदंडी सर्वज्ञः सर्वकोविदः ।
कविः सुग्रीववरदः सर्वपुण्याधिकप्रदः ॥ 10 ॥

भव्यो जितारिषड्वर्गो महोदारोऽघनाशनः ।
सुकीर्तिरादिपुरुषः कांतः पुण्यकृतागमः ॥ 11 ॥

अकल्मषश्चतुर्बाहुः सर्वावासो दुरासदः ।
स्मितभाषी निवृत्तात्मा स्मृतिमान् वीर्यवान् प्रभुः ॥ 12 ॥

धीरो दांतो घनश्यामः सर्वायुधविशारदः ।
अध्यात्मयोगनिलयः सुमना लक्ष्मणाग्रजः ॥ 13 ॥

सर्वतीर्थमयः शूरः सर्वयज्ञफलप्रदः ।
यज्ञस्वरूपी यज्ञेशो जरामरणवर्जितः ॥ 14 ॥

वर्णाश्रमकरो वर्णी शत्रुजित् पुरुषोत्तमः ।
विभीषणप्रतिष्ठाता परमात्मा परात्परः ॥ 15 ॥

प्रमाणभूतो दुर्ज्ञेयः पूर्णः परपुरंजयः ।
अनंतदृष्टिरानंदो धनुर्वेदो धनुर्धरः ॥ 16 ॥

गुणाकरो गुणश्रेष्ठः सच्चिदानंदविग्रहः ।
अभिवंद्यो महाकायो विश्वकर्मा विशारदः ॥ 17 ॥

विनीतात्मा वीतरागः तपस्वीशो जनेश्वरः ।
कल्याणप्रकृतिः कल्पः सर्वेशः सर्वकामदः ॥ 18 ॥

अक्षयः पुरुषः साक्षी केशवः पुरुषोत्तमः ।
लोकाध्यक्षो महामायो विभीषणवरप्रदः ॥ 19 ॥

आनंदविग्रहो ज्योतिर्हनुमत्प्रभुरव्ययः ।
भ्राजिष्णुः सहनो भोक्ता सत्यवादी बहुश्रुतः ॥ 20 ॥

सुखदः कारणं कर्ता भवबंधविमोचनः ।
देवचूडामणिर्नेता ब्रह्मण्यो ब्रह्मवर्धनः ॥ 21 ॥

संसारोत्तारको रामः सर्वदुःखविमोक्षकृत् ।
विद्वत्तमो विश्वकर्ता विश्वहर्ता च विश्वधृत् ॥ 22 ॥

नित्यो नियतकल्याणः सीताशोकविनाशकृत् ।
काकुत्स्थः पुंडरीकाक्षो विश्वामित्रभयापहः ॥ 23 ॥

मारीचमथनो रामो विराधवधपंडितः ।
दुस्स्वप्ननाशनो रम्यः किरीटी त्रिदशाधिपः ॥ 24 ॥

महाधनुर्महाकायो भीमो भीमपराक्रमः ।
तत्त्वस्वरूपी तत्त्वज्ञः तत्त्ववादी सुविक्रमः ॥ 25 ॥

भूतात्मा भूतकृत्स्वामी कालज्ञानी महापटुः ।
अनिर्विण्णो गुणग्राही निष्कलंकः कलंकहा ॥ 26 ॥

स्वभावभद्रः शत्रुघ्नः केशवः स्थाणुरीश्वरः ।
भूतादिः शंभुरादित्यः स्थविष्ठः शाश्वतो ध्रुवः ॥ 27 ॥

कवची कुंडली चक्री खड्गी भक्तजनप्रियः ।
अमृत्युर्जन्मरहितः सर्वजित्सर्वगोचरः ॥ 28 ॥

अनुत्तमोऽप्रमेयात्मा सर्वादिर्गुणसागरः ।
समः समात्मा समगो जटामुकुटमंडितः ॥ 29 ॥

अजेयः सर्वभूतात्मा विष्वक्सेनो महातपः ।
लोकाध्यक्षो महाबाहुरमृतो वेदवित्तमः ॥ 30 ॥

सहिष्णुः सद्गतिः शास्ता विश्वयोनिर्महाद्युतिः ।
अतींद्र ऊर्जितः प्रांशुरुपेंद्रो वामनो बली ॥ 31 ॥

धनुर्वेदो विधाता च ब्रह्मा विष्णुश्च शंकरः ।
हंसो मरीचिर्गोविंदो रत्नगर्भो महामतिः ॥ 32 ॥

व्यासो वाचस्पतिः सर्वदर्पिताऽसुरमर्दनः ।
जानकीवल्लभः पूज्यः प्रकटः प्रीतिवर्धनः ॥ 33 ॥

संभवोऽतींद्रियो वेद्योऽनिर्देशो जांबवत्प्रभुः ।
मदनो मथनो व्यापी विश्वरूपो निरंजनः ॥ 34 ॥

नारायणोऽग्रणीः साधुर्जटायुप्रीतिवर्धनः ।
नैकरूपो जगन्नाथः सुरकार्यहितः स्वभूः ॥ 35 ॥

जितक्रोधो जितारातिः प्लवगाधिपराज्यदः ।
वसुदः सुभुजो नैकमायो भव्यप्रमोदनः ॥ 36 ॥

चंडांशुः सिद्धिदः कल्पः शरणागतवत्सलः ।
अगदो रोगहर्ता च मंत्रज्ञो मंत्रभावनः ॥ 37 ॥

सौमित्रिवत्सलो धुर्यो व्यक्ताव्यक्तस्वरूपधृक् ।
वसिष्ठो ग्रामणीः श्रीमाननुकूलः प्रियंवदः ॥ 38 ॥

अतुलः सात्त्विको धीरः शरासनविशारदः ।
ज्येष्ठः सर्वगुणोपेतः शक्तिमांस्ताटकांतकः ॥ 39 ॥

वैकुंठः प्राणिनां प्राणः कमठः कमलापतिः ।
गोवर्धनधरो मत्स्यरूपः कारुण्यसागरः ॥ 40 ॥

कुंभकर्णप्रभेत्ता च गोपीगोपालसंवृतः ।
मायावी स्वापनो व्यापी रैणुकेयबलापहः ॥ 41 ॥

पिनाकमथनो वंद्यः समर्थो गरुडध्वजः ।
लोकत्रयाश्रयो लोकभरितो भरताग्रजः ॥ 42 ॥

श्रीधरः सद्गतिर्लोकसाक्षी नारायणो बुधः ।
मनोवेगी मनोरूपी पूर्णः पुरुषपुंगवः ॥ 43 ॥

यदुश्रेष्ठो यदुपतिर्भूतावासः सुविक्रमः ।
तेजोधरो धराधारश्चतुर्मूर्तिर्महानिधिः ॥ 44 ॥

चाणूरमर्दनो दिव्यः शांतो भरतवंदितः ।
शब्दातिगो गभीरात्मा कोमलांगः प्रजागरः ॥ 45 ॥

लोकगर्भः शेषशायी क्षीराब्धिनिलयोऽमलः ।
आत्मयोनिरदीनात्मा सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥ 46 ॥

अमृतांशुर्महागर्भो निवृत्तविषयस्पृहः ।
त्रिकालज्ञो मुनिः साक्षी विहायसगतिः कृती ॥ 47 ॥

पर्जन्यः कुमुदो भूतावासः कमललोचनः ।
श्रीवत्सवक्षाः श्रीवासो वीरहा लक्ष्मणाग्रजः ॥ 48 ॥

लोकाभिरामो लोकारिमर्दनः सेवकप्रियः ।
सनातनतमो मेघश्यामलो राक्षसांतकृत् ॥ 49 ॥

दिव्यायुधधरः श्रीमानप्रमेयो जितेंद्रियः ।
भूदेववंद्यो जनकप्रियकृत्प्रपितामहः ॥ 50 ॥

उत्तमः सात्विकः सत्यः सत्यसंधस्त्रिविक्रमः ।
सुव्रतः सुलभः सूक्ष्मः सुघोषः सुखदः सुधीः ॥ 51 ॥

दामोदरोऽच्युतः शारंगी वामनो मधुराधिपः ।
देवकीनंदनः शौरिः शूरः कैटभमर्दनः ॥ 52 ॥

सप्ततालप्रभेत्ता च मित्रवंशप्रवर्धनः ।
कालस्वरूपी कालात्मा कालः कल्याणदः कविः ।
संवत्सर ऋतुः पक्षो ह्ययनं दिवसो युगः ॥ 53 ॥

स्तव्यो विविक्तो निर्लेपः सर्वव्यापी निराकुलः ।
अनादिनिधनः सर्वलोकपूज्यो निरामयः ॥ 54 ॥

रसो रसज्ञः सारज्ञो लोकसारो रसात्मकः ।
सर्वदुःखातिगो विद्याराशिः परमगोचरः ॥ 55 ॥

शेषो विशेषो विगतकल्मषो रघुनायकः ।
वर्णश्रेष्ठो वर्णवाह्यो वर्ण्यो वर्ण्यगुणोज्ज्वलः ॥ 56 ॥

कर्मसाक्ष्यमरश्रेष्ठो देवदेवः सुखप्रदः ।
देवाधिदेवो देवर्षिर्देवासुरनमस्कृतः ॥ 57 ॥

सर्वदेवमयश्चक्री शारंगपाणिरनुत्तमः ।
मनो बुद्धिरहंकारः प्रकृतिः पुरुषोऽव्ययः ॥ 58 ॥

अहल्यापावनः स्वामी पितृभक्तो वरप्रदः ।
न्यायो न्यायी नयी श्रीमान्नयो नगधरो ध्रुवः ॥ 59 ॥

लक्ष्मीविश्वंभराभर्ता देवेंद्रो बलिमर्दनः ।
वाणारिमर्दनो यज्वानुत्तमो मुनिसेवितः ॥ 60 ॥

देवाग्रणीः शिवध्यानतत्परः परमः परः ।
सामगानप्रियोऽक्रूरः पुण्यकीर्तिः सुलोचनः ॥ 61 ॥

पुण्यः पुण्याधिकः पूर्वः पूर्णः पूरयिता रविः ।
जटिलः कल्मषध्वांतप्रभंजनविभावसुः ॥ 62 ॥

अव्यक्तलक्षणोऽव्यक्तो दशास्यद्वीपकेसरी ।
कलानिधिः कलारूपो कमलानंदवर्धनः ॥ 63 ॥

जयो जितारिः सर्वादिः शमनो भवभंजनः ।
अलंकरिष्णुरचलो रोचिष्णुर्विक्रमोत्तमः ॥ 64 ॥

अंशुः शब्दपतिः शब्दगोचरो रंजनो रघुः ।
निश्शब्दः प्रणवो माली स्थूलः सूक्ष्मो विलक्षणः ॥ 65 ॥

आत्मयोनिरयोनिश्च सप्तजिह्वः सहस्रपात् ।
सनातनतमः स्रग्वी पेशलो जविनां वरः ॥ 66 ॥

शक्तिमान् शंखभृन्नाथः गदापद्मरथांगभृत् ।
निरीहो निर्विकल्पश्च चिद्रूपो वीतसाध्वसः ॥ 67 ॥

शताननः सहस्राक्षः शतमूर्तिर्घनप्रभः ।
हृत्पुंडरीकशयनः कठिनो द्रव एव च ॥ 68 ॥

उग्रो ग्रहपतिः कृष्णो समर्थोऽनर्थनाशनः ।
अधर्मशत्रुः रक्षोघ्नः पुरुहूतः पुरुष्टुतः ॥ 69 ॥

ब्रह्मगर्भो बृहद्गर्भो धर्मधेनुर्धनागमः ।
हिरण्यगर्भो ज्योतिष्मान् सुललाटः सुविक्रमः ॥ 70 ॥

शिवपूजारतः श्रीमान् भवानीप्रियकृद्वशी ।
नरो नारायणः श्यामः कपर्दी नीललोहितः ॥ 71 ॥

रुद्रः पशुपतिः स्थाणुर्विश्वामित्रो द्विजेश्वरः ।
मातामहो मातरिश्वा विरिंचो विष्टरश्रवाः ॥ 72 ॥

अक्षोभ्यः सर्वभूतानां चंडः सत्यपराक्रमः ।
वालखिल्यो महाकल्पः कल्पवृक्षः कलाधरः ॥ 73 ॥

निदाघस्तपनोऽमोघः श्लक्ष्णः परबलापहृत् ।
कबंधमथनो दिव्यः कंबुग्रीवः शिवप्रियः ॥ 74 ॥

शंखोऽनिलः सुनिष्पन्नः सुलभः शिशिरात्मकः ।
असंसृष्टोऽतिथिः शूरः प्रमाथी पापनाशकृत् ॥ 75 ॥

वसुश्रवाः कव्यवाहः प्रतप्तो विश्वभोजनः ।
रामो नीलोत्पलश्यामो ज्ञानस्कंधो महाद्युतिः ॥ 76 ॥

पवित्रपादः पापारिर्मणिपूरो नभोगतिः ।
उत्तारणो दुष्कृतिहा दुर्धर्षो दुस्सहोऽभयः ॥ 77 ॥

अमृतेशोऽमृतवपुर्धर्मी धर्मः कृपाकरः ।
भर्गो विवस्वानादित्यो योगाचार्यो दिवस्पतिः ॥ 78 ॥

उदारकीर्तिरुद्योगी वाङ्मयः सदसन्मयः ।
नक्षत्रमाली नाकेशः स्वाधिष्ठानषडाश्रयः ॥ 79 ॥

चतुर्वर्गफलो वर्णी शक्तित्रयफलं निधिः ।
निधानगर्भो निर्व्याजो गिरीशो व्यालमर्दनः ॥ 80 ॥

श्रीवल्लभः शिवारंभः शांतिर्भद्रः समंजसः ।
भूशयो भूतिकृद्भूतिर्भूषणो भूतवाहनः ॥ 81 ॥

अकायो भक्तकायस्थः कालज्ञानी महावटुः ।
परार्थवृत्तिरचलो विविक्तः श्रुतिसागरः ॥ 82 ॥

स्वभावभद्रो मध्यस्थः संसारभयनाशनः ।
वेद्यो वैद्यो वियद्गोप्ता सर्वामरमुनीश्वरः ॥ 83 ॥

सुरेंद्रः करणं कर्म कर्मकृत्कर्म्यधोक्षजः ।
ध्येयो धुर्यो धराधीशः संकल्पः शर्वरीपतिः ॥ 84 ॥

परमार्थगुरुर्वृद्धः शुचिराश्रितवत्सलः ।
विष्णुर्जिष्णुर्विभुर्यज्ञो यज्ञेशो यज्ञपालकः ॥ 85 ॥

प्रभविष्णुर्ग्रसिष्णुश्च लोकात्मा लोकभावनः ।
केशवः केशिहा काव्यः कविः कारणकारणम् ॥ 86 ॥

कालकर्ता कालशेषो वासुदेवः पुरुष्टुतः ।
आदिकर्ता वराहश्च माधवो मधुसूदनः ॥ 87 ॥

नारायणो नरो हंसो विष्वक्सेनो जनार्दनः ।
विश्वकर्ता महायज्ञो ज्योतिष्मान् पुरुषोत्तमः ॥ 88 ॥

वैकुंठः पुंडरीकाक्षः कृष्णः सूर्यः सुरार्चितः ।
नारसिंहो महाभीमो वक्रदंष्ट्रो नखायुधः ॥ 89 ॥

आदिदेवो जगत्कर्ता योगीशो गरुडध्वजः ।
गोविंदो गोपतिर्गोप्ता भूपतिर्भुवनेश्वरः ॥ 90 ॥

पद्मनाभो हृषीकेशो धाता दामोदरः प्रभुः ।
त्रिविक्रमस्त्रिलोकेशो ब्रह्मेशः प्रीतिवर्धनः ॥ 91 ॥

वामनो दुष्टदमनो गोविंदो गोपवल्लभः ।
भक्तप्रियोऽच्युतः सत्यः सत्यकीर्तिर्धृतिः स्मृतिः ॥ 92 ॥

कारुण्यं करुणो व्यासः पापहा शांतिवर्धनः ।
संन्यासी शास्त्रतत्त्वज्ञो मंदराद्रिनिकेतनः ॥ 93 ॥

बदरीनिलयः शांतस्तपस्वी वैद्युतप्रभः ।
भूतावासो गुहावासः श्रीनिवासः श्रियः पतिः ॥ 94 ॥

तपोवासो मुदावासः सत्यवासः सनातनः ।
पुरुषः पुष्करः पुण्यः पुष्कराक्षो महेश्वरः ॥ 95 ॥

पूर्णमूर्तिः पुराणज्ञः पुण्यदः पुण्यवर्धनः ।
शंखी चक्री गदी शारंगी लांगली मुसली हली ॥ 96 ॥

किरीटी कुंडली हारी मेखली कवची ध्वजी ।
योद्धा जेता महावीर्यः शत्रुजिच्छत्रुतापनः ॥ 97 ॥

शास्ता शास्त्रकरः शास्त्रं शंकर शंकरस्तुतः ।
सारथिः सात्त्विकः स्वामी सामवेदप्रियः समः ॥ 98 ॥

पवनः साहसः शक्तिः संपूर्णांगः समृद्धिमान् ।
स्वर्गदः कामदः श्रीदः कीर्तिदोऽकीर्तिनाशनः ॥ 99 ॥

मोक्षदः पुंडरीकाक्षः क्षीराब्धिकृतकेतनः ।
सर्वात्मा सर्वलोकेशः प्रेरकः पापनाशनः ॥ 100 ॥

सर्वदेवो जगन्नाथः सर्वलोकमहेश्वरः ।
सर्गस्थित्यंतकृद्देवः सर्वलोकसुखावहः ॥ 101 ॥

अक्षय्यः शाश्वतोऽनंतः क्षयवृद्धिविवर्जितः ।
निर्लेपो निर्गुणः सूक्ष्मो निर्विकारो निरंजनः ॥ 102 ॥

सर्वोपाधिविनिर्मुक्तः सत्तामात्रव्यवस्थितः ।
अधिकारी विभुर्नित्यः परमात्मा सनातनः ॥ 103 ॥

अचलो निर्मलो व्यापी नित्यतृप्तो निराश्रयः ।
श्यामो युवा लोहिताक्षो दीप्तास्यो मितभाषणः ॥ 104 ॥

आजानुबाहुः सुमुखः सिंहस्कंधो महाभुजः ।
सत्यवान् गुणसंपन्नः स्वयंतेजाः सुदीप्तिमान् ॥ 105 ॥

कालात्मा भगवान् कालः कालचक्रप्रवर्तकः ।
नारायणः परंज्योतिः परमात्मा सनातनः ॥ 106 ॥

विश्वसृड्विश्वगोप्ता च विश्वभोक्ता च शाश्वतः ।
विश्वेश्वरो विश्वमूर्तिर्विश्वात्मा विश्वभावनः ॥ 107 ॥

सर्वभूतसुहृच्छांतः सर्वभूतानुकंपनः ।
सर्वेश्वरेश्वरः सर्वः श्रीमानाश्रितवत्सलः ॥ 108 ॥

सर्वगः सर्वभूतेशः सर्वभूताशयस्थितः ।
अभ्यंतरस्थस्तमसश्छेत्ता नारायणः परः ॥ 109 ॥

अनादिनिधनः स्रष्टा प्रजापतिपतिर्हरिः ।
नरसिंहो हृषीकेशः सर्वात्मा सर्वदृग्वशी ॥ 110 ॥

जगतस्तस्थुषश्चैव प्रभुर्नेता सनातनः ।
कर्ता धाता विधाता च सर्वेषां प्रभुरीश्वरः ॥ 111 ॥

सहस्रमूर्धा विश्वात्मा विष्णुर्विश्वदृगव्ययः ।
पुराणपुरुषः स्रष्टा सहस्राक्षः सहस्रपात् ॥ 112 ॥

तत्त्वं नारायणो विष्णुर्वासुदेवः सनातनः ।
परमात्मा परं ब्रह्म सच्चिदानंदविग्रहः ॥ 113 ॥

परंज्योतिः परंधामः पराकाशः परात्परः ।
अच्युतः पुरुषः कृष्णः शाश्वतः शिव ईश्वरः ॥ 114 ॥

नित्यः सर्वगतः स्थाणुरुग्रः साक्षी प्रजापतिः ।
हिरण्यगर्भः सविता लोककृल्लोकभृद्विभुः ॥ 115 ॥

रामः श्रीमान् महाविष्णुर्जिष्णुर्देवहितावहः ।
तत्त्वात्मा तारकं ब्रह्म शाश्वतः सर्वसिद्धिदः ॥ 116 ॥

अकारवाच्यो भगवान् श्रीर्भूनीलापतिः पुमान् ।
सर्वलोकेश्वरः श्रीमान् सर्वज्ञः सर्वतोमुखः ॥ 117 ॥

स्वामी सुशीलः सुलभः सर्वज्ञः सर्वशक्तिमान् ।
नित्यः संपूर्णकामश्च नैसर्गिकसुहृत्सुखी ॥ 118 ॥

कृपापीयूषजलधिः शरण्यः सर्वदेहिनाम् ।
श्रीमान्नारायणः स्वामी जगतां पतिरीश्वरः ॥ 119 ॥

श्रीशः शरण्यो भूतानां संश्रिताभीष्टदायकः ।
अनंतः श्रीपती रामो गुणभृन्निर्गुणो महान् ॥ 120 ॥

॥ इति आनंदरामायणे वाल्मीकीये श्रीरामसहस्रनामस्तोत्रम् ॥

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