सभी दोषों एवं पापों का नाश करने वाला और मोक्ष प्रदान करने वाला है ऋषि पंचमी का व्रत । जानियेंं ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) कब है? पढ़ियें ऋषि पंचमी व्रत की कथा (Rishi Panchami Vrat Katha), पूजन विधि, उद्यापन विधि और व्रत के नियम…
Rishi Panchami
ऋषि पंचमी
भाद्रपद माह (भादों) की शुक्लपक्ष की पंचमी तिथि के दिन ऋषि पंचमी का व्रत (Rishi Panchami Vrat) एवं पूजन किया जाता हैं। इस दिन सप्त-ऋषियों की पूजा का विधान हैं। हिंदु धर्म के कुछ नियम हैं और जो उनका पालन नही करते या भूलवश कोई गलती हो जाती है तो उन्हे उसका दोष लगता हैं, उदाहरण के लिये रजस्वला स्त्री के लिये कुछ नियम हैं और यदि वो जानबूझकर या अनजाने उन नियमों का पालन नही करती है तो उसे और उसके परिवार वालों को दोष लगता हैं। ऐसी मान्यता है की इस दिन का व्रत एवं पूजन करने से साधक सभी प्रकार के दोषों से मुक्त हो जाता हैं।
ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) का दिन ऋषियों को ही समर्पित हैं। इस दिन इन सप्त ऋषियों की पूजा की जाती हैं।
कश्यप, अत्रि, भारद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि, वशिष्ठ
Rishi Panchami Kab Hai?
ऋषि पंचमी कब हैं?
इस वर्ष ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) का व्रत एवं पूजन 8 सितम्बर, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
Rishipanchami Vrat Aur Pujan Ki Vidhi
ऋषि पंचमी व्रत एवं पूजन की विधि
जाने अनजाने हुयी गलतियों और पापों के प्रायशिचत के लिये ऋषि पंचमी का व्रत (Rishi Panchami Vrat) एवं पूजन किया जाता हैं। ऋषि पंचमी का व्रत महिलायें और पुरूष दोनों ही कर सकते हैं।
1. ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य क्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें।
2. यदि आप स्वयं ऋषि पंचमी का पूजन नही कर सकते तो किसी योग्य ब्राह्मण से भी यह पूजन करा सकते हैं।
3. इस दिन सर्वप्रथम पूरे घर को गाय के गोबर से लीपें और यदि ऐसा नही कर सकते तो सिर्फ पूजा के स्थान को ही गाय के गोबर से लीपें।
4. गाय के गोबर से लिपे हुये स्थान पर एक चौकी बिछायें और तत्पश्चात् उस पर मिट्टी से देवी अरूंधती और सप्तऋषियों की मूर्तियाँ बनाकर स्थापित करें।
5. एक कलश में जल भरकर रखें। फिर हल्दी, रोली ,चदंन, अक्षत और फूल चढ़ाकर पूजा करें। भोग लगायें।
6. सप्तऋषियों की पूजा करते हुये इस मंत्र का जाप करें
कश्यपोऽत्रिर्भरद्वाजो विश्वामित्रोऽथ गौतमः ।
जमदग्निर्वसिष्ठश्च सप्तैते ऋषयः स्मृताः ॥
दहन्तु पापं मे सर्वं गृह्नणन्त्वर्घ्यं नमो नमः ॥
7. फिर ऋषि पंचमी की कथा (Rishi Panchami Vrat Katha) कहें या सुनें।
8. दिन में एक ही समय भोजन करें और अपना आचरण सात्विक रखें।
विशेष : यह बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत हैं, इसे एक बार आरम्भ करने के बाद बिना उद्यापन के छोड़ना नही चाहिये। अगर आपको ऐसा लगता हो कि आप यह व्रत लगातार नही कर सकेंगे तो इसका उद्यापन कर सकते हैं।
Rishi Panchami Vrat Ke Udyapan Ki Vidhi
ऋषि पंचमी के व्रत की उद्यापन की विधि
ऋषि पंचमी के व्रत के उद्यापन (Rishi Panchami Vrat Udyapan) में पूजन की विधि तो वही रहती हैं, बस उद्यापन में ऋषि पंचमी पर सात पण्ड़ितों को भोजन कराया जाता हैं। भोजन कराने से पूर्व उनको सप्तऋषियों का स्वरूप मानकर उनकी पूजा करें।
उनकी पूजन करनें के बाद उन्हे भोजन करायें और फिर यथासम्भव दक्षिणा देकर उन्हे संतुष्ट करें। तत्पश्चात् गाय को भोजन करायें।
Rishi Panchami Vrat Ke Niyam
ऋषि पंचमी के व्रत में क्या करें और क्या ना करें?
1. ऋषि पंचमी (Rishi Panchami) पर गंगा स्नान का बहुत महत्व होता हैं। इस दिन गंगा स्नान करने से मनुष्य सभी पापों से छूटकर निर्मल हो जाता हैं।
2. ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा दें।
3. ऋषि पंचमी के व्रत में दूध, दही, चीनी और हल से जोती गई कोई वस्तु ना खायें।
Rishi Panchami Vrat Katha
ऋषि पंचमी व्रत कथा
ब्रह्मपुराण में वर्णित एक कथा के अनुसार एक बार परमपिता ब्रह्मा से सिताश्व नाम के एक राजा ने एक प्रश्न किया। राजा सिताश्व ने ब्रह्मा जी से पूछा कि, “हे परमपिता! कृपा करके मुझे बताइये कि ऐसा कौन सा सर्वश्रेष्ठ व्रत है, जिसको करने से मनुष्य के सभी प्रकार के पापों का शमन हो जाता हैं?” तब ब्रह्मा जी ने उत्तर देते हुये कहा, “हे सिताश्व! मनुष्य द्वारा जाने-अंजाने में किय गये सभी पापों का नाश करने वाला दुर्लभ व्रत है, ऋषि पंचमी का व्रत। इस व्रत को करने से मनुष्य अपने सभी पापों से मुक्त होकर स्वर्ग को प्राप्त करता हैं।“
तब राजा सिताश्व ने उनसे इस व्रत के विषय में और बताने का आग्रह किया। तब ब्रह्माजी ने राजा सिताश्व को ऋषि पंचमी की कथा सुनायी। ब्रह्मा जी ने राजा सिताश्व से कहा, प्राचीन समय में विदर्भ देश में एक बहुत ही सदाचारी ब्राह्मण अपने परिवार के साथ रहता था। उस ब्राह्मण का नाम उत्तंक था और उसकी पत्नी का नाम सुशीला था। सुशीला और उत्तंक के एक पुत्र और एक पुत्री थी।
कन्या के विवाह योग्य होने पर उस ब्राह्मण ने उसका विवाह एक योग्य लड़के के साथ सम्पन्न कर दिया। परन्तु दुर्भाग्यवश उस लड़की के पति की असमय मृत्यु होने से वो बहुत ही कम आयु में विधवा हो गई। पुत्री के साथ इतनी बड़ी दुर्घटना हो जाने के कारण वो ब्राह्मण दम्पति बहुत दुखी रहने लगें। इधर उनकी पुत्री भी इतनी कम आयु में विधवा होने के दुख से बाहर नही आ पा रही थी। इस कारण उसका स्वास्थ्य भी दिन ब दिन खराब होने लगा।
अपने परिवार पर आये इस संकट का समाधान पाने के लिये वो ब्राह्मण एक ऋषि के पास गया। उस ऋषि ने उसे बताया कि उनके परिवार से जाने-अंजाने में कुछ गलतियाँ हुई हैं उन्ही के कारण उन्हे यह दिन देखने पड़ रहे हैं। ऋषि ने उसे बताया कि हिंदु धर्म में जो नियम है उनका पूर्ण रूप से पालन ना करने के कारण ऐसा हुआ हैं। तब उस ब्राह्मण ने उनसे इसका समाधान पूछा तो उन्होने कहा, अब इस दुख और संताप का नाश करने के लिये और अपने उन पापों को नष्ट करने के लिये तुम अपने परिवार के साथ ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन करों।
उस ऋषि से व्रत की विधि और उसका विधान जानकर वो ब्राह्मण अपने घर आ गया। उसने सारी बात अपनी पत्नी, पुत्री और पुत्र को बताई। तब उसके बाद से वो सब ऋषि पंचमी का व्रत एवं पूजन पूरी श्रद्धा और भक्ति से करने लगे। ऋषि पंचमी के व्रत के प्रभाव से उनके समस्त पाप नष्ट हो गये और अंत में वो जन्म-मृत्यु के चक्र से छूटकर स्वर्गलोक को चले गये।