Shakambhari Navratri – जानियें कब से शुरू होंगे शाकंभरी नवरात्रि? पढ़ियें मंत्र एवं कथा

Shakambhari Navratri

धन-धान्य, सुख-समृद्धि और मनोवांछित सिद्धि पाने के लिये करे देवी शाकंभरी की उपासना। जानिये कब से शुरू होंगे शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri)? साथ में पढ़े शाकंभरी नवरात्रि की पूजा विधि, शाकंभरी देवी के मंत्र और शाकंभरी देवी की कथा।

देवी शाकम्भरी की कृपा पाने के लिये पढ़ियें शाकम्भरी चालीसा (Shakambhari Chalisa):-

Shakambhari Navratri
शाकंभरी नवरात्रि

हिंदु मान्यता के अनुसार पौष माह की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से पौष मास की पूर्णिमा तक शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) मनायी जाती हैं। पौष मास की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती (Shakambhari Jayanti) मनायी जाती हैं। शास्त्रों में शाकंभरी नवरात्रि को बहुत महत्वपूर्ण बताया गया हैं। देवी शाकंभरी को देवी दुर्गा का अवतार मना जाता हैं। शाकंभरी नवरात्रि में देवी अन्नपूर्णा की साधना के साथ दान-पुण्य भी किये जाते हैं। जन कल्याण और उनके भरण-पोषण हेतु देवी शाकंभरी ने अपने शरीर से फल-सब्जी आदि उत्पन्न किये थे। इसी कारण माता के इस अवतार को शाकंभरी के नाम से पुकारा जाता हैं।

शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) को सिद्धि प्राप्ति और तंत्र साधना के लिये उपयुक्त माना जाता हैं। हिंदु धर्मशास्त्रों के अनुसार देवी शाकंभरी को दस महाविद्याओं में से एक माना जाता हैं। देवी शाकंभरी की श्रद्धा-भक्ति और विधि-विधान के साथ साधना करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती हैं। तंत्र-मंत्र सिद्धि के लिये भी देवी शाकंभरी की साधना की जाती हैं। शाकंभरी जयंती पर पूर्ण रात्रि जागरण व अनुष्ठान करके साधक गुप्त विद्याएं और मंत्र सिद्धि करके शक्तियाँ प्राप्त करते हैं।

Shakambhari Navratri Kab Hai?
शाकंभरी नवरात्रि कब हैं?

इस वर्ष शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) पौष मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी अर्थात 18 जनवरी, 2024 गुरूवार से आरम्भ होंगे और पौष मास की पूर्णिमा अर्थात 25 जनवरी, 2024 गुरूवार को पूर्ण होंगे।

पौष मास की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी जयंती (Shakambhari Jayanti) मनायी जाती हैं।

Shakambhari Navratri Ki Puja Vidhi
शाकंभरी नवरात्रि की पूजा विधि

पौष मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से देवी शाकंभरी (Devi Shakambari) के नवरात्रि का आरम्भ होता है और पौष मास की पूर्णिमा के दिन शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) पूर्ण होते हैं।

  • पौष मास की शुक्लपक्ष की अष्टमी तिथि से देवी शाकंभरी की उपासना आरम्भ करें।
  • प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थान पर दीपक जलाकर माता शाकंभरी की तस्वीर रख कर उनका आह्वान करें।
  • नौ दिन तक रात्रि को दुर्गा सप्तशती का नित्य पाठ करें।
  • 108 बार देवी शाकंभरी के मंत्र (Devi Shakambari Ke Mantra) का जाप करें।

मंत्र – ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति अन्नपूर्णे नम:॥

  • देवी भागवत का पाठ करें या श्रवण करें।
  • देवी को भोग में ताजे फल अर्पित करें।
  • यदि सम्भव हो तो शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) के सभी दिन व्रत करें और फलाहार करें। ऐसा नही कर सकते हो तो पहले और अंतिम नवरात्रि का व्रत अवश्य करें।
  • शास्त्रों के अनुसार इस नवरात्रि में जरूरतमंदों को फल-सब्जी आदि दान करने से देवी शाकम्भरी प्रसन्न होती हैं और साथ ही जातक को महान पुण्य प्राप्त होता हैं।
  • सुखमय जीवन के लिये शाकंभरी नवरात्रि (Shakambhari Navratri) में देवी अन्नपूर्णा का हवन पूजन करें। हवन सामग्री में जौ, तिल, घृत, अक्षत, पंचमेवा, मधु, ईख, बिल्वपत्र, शक्कर, इलायची लेकर उससे देवी का हवन करें। आम, बेल या जो भी समिधा उपलब्ध हो उसका हवन के लिये प्रयोग कर सकते हैं।

मंत्र – ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं भगवति माहेश्वरि अन्नपूर्णे स्वाहा ॥

Shakambhari Devi Ka Swaroop
देवी शाकंभरी का स्वरूप

मार्कंडेय पुराण में देवी शाकंभरी (Devi Shakambari) के स्वरूप का वर्णन मिलता है जिसके अनुसार

  • देवी शाकंभरी नीलवर्णा है, उनके नेत्र भी नील कमल के समान प्रतीत होते हैं।
  • देवी शाकंभरी कमल के फूल पर विराजमान हैं।
  • उनके चार हाथ हैं, एक हाथ में कमल पुष्प, दूसरे हाथ में बाण, तीसरे हाथ में शाक-फल और चौथे हाथ में धनुष सुशोभित हैं।

Shakambhari Devi Ka Mantra
देवी शाकंभरी का मंत्र

ॐ सर्वाबाधा विनिर्मुक्तो धनधान्य: सुतान्वित:।
मनुष्यो मत्प्रसादेन भविष्यति न संशय:॥

Devi Shakambhari Ki Katha
देवी शाकंभरी की कथा

पौराणिक कथा के अनुसार हिरण्याक्ष के वंश मे एक महादैत्य ने जन्म लिया उसका नाम था दुर्गम। दुर्गमासुर ने कठोर तपस्या द्वारा परमपिता ब्रह्मा जी को प्रसन्न करके चारों को वेदो को अपने अधीन कर लिया और साथ ही यज्ञ आदि से देवताओं को प्राप्त होने वाली शक्तियाँ और भाग भी अपने अधीन कर लिया। वेदों का असुर के अधीन होना एक बहुत विकट समस्या बन गयी थी। जिसके कारण दैत्य शक्तिशाली होते जा रहे थे और देवताओं की शक्तियाँ क्षीण होने लगी।

पूरी धरती दानवों के उत्पात से त्रस्त हो गयी थी। साधू-सन्यासी व ऋषि मुनियों का जीवन मुश्किल हो गया था। धरती पर अनाचार बढ़ रहा था। धरती पाप के बोझ से दबी जा रही थी। धरती पर धरम-करम बिल्कुल रूक गया था। इसके कारण वर्षों तक धरती पर वर्षा नही हुई और सभी तरफ अकाल-सूखा और भुखमरी फैल गई थी।

धरती की ऐसी अवस्था देखकर ऋषि मुनियों और देवताओं ने मिलकर देवी आदिशक्ति का आह्वान किया। अपने भक्तों के आह्वान पर देवी प्रकट हुयी। उन्होने जब पृथ्वी की ऐसी दुर्दशा देखी तो उनके नेत्रों से आँसु निकलने लगें। देवी ने तब शाकम्भरी अवतार लिया, उनके सौ नेत्र थे और उनके नेत्रों से अश्रुओं की बारिश होने लगी। देवी के नेत्रों से होने वाली बारिश से धरती का सूखा समाप्त हो गया। देवी ने अपने शरीर के अंगों से फल-वनस्पति आदि प्रकट किये। जिसके धरती पर हरियाली ही हरियाली फैल गई। इसलिये देवी के इस रूप को शाकम्भरी के नाम से पुकारा जाता हैं। देवी की कृपा से वर्षो का अकाल दूर हुआ और धरती के लोगों की भूख शांत हुई।

देवी ने दुर्गमासुर को उसकी सेना के साथ यमलोक भेज कर देवाताओं और ऋषि-मुनियों का संताप भी हर लिया। सौ नेत्रों के कारण देवी शाकम्भरी को शताक्षी भी कहा जाता हैं। इनकी उपासना करने से जातक को धन-धान्य-समृद्धि प्राप्त होती है और उसका जीवन सुखमय हो जाता हैं।

Click below to listen Shakambari Devi Beej Mantra (शाकंभरी देवी बीज मंत्र) :-

https://www.youtube.com/watch?v=8bO-XVdyyGM