श्री शान्तादुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम् (Shri Shantadurga Devi Pranati Stotram) के पाठ से होगी देवी प्रसन्न

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श्री शान्तादुर्गा देवि दुर्गा का शांत स्वरूप बताया गया है। श्री शान्तादुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम् (Shri Shantadurga Devi Pranati Stotram) का नित्य पाठ करने से माँ दुर्गा प्रसन्न होती है और साधक के जीवन में शान्ति आती है। पढ़ियें श्री शान्तादुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम्…

Who is Shantadurga?
शांतादुर्गा कौन है?

हिंदू धार्मिक कथाओं के अनुसार शांतादुर्गा देवी दुर्गा ही एक स्वरूप है। माँ का यह स्वरूप गोवा और कर्नाटक राज्य के कुछ हिस्सों में बहुत लोकप्रिय और प्रतिष्ठित है। माँ शांतादुर्गा को देवी संतेरी का एक रूप भी माना जाता है। सर्वप्रथम शांतामुनि के समक्ष देवी इस रूप में प्रकट हुई थी इसलिये उन्हे शांतादुर्गा के नाम से जाना जाने लगा। माँ शांतादुर्गा देवी दुर्गा का शांत स्वरूप है।

Story of Shantadurga
देवी शांतादुर्गा की कहानी

अति प्राचीन काल में एक समय जब भगवान शिव और भगवान विष्णु के मध्य युद्ध का प्रसंग हुआ। वो युद्ध बहुत ही भयंकर और विनाशकारी होता जा रहा था। तब सृष्टि की रक्षा के लिये परमपिता ब्रहमा ने माँ दुर्गा से उस युद्ध को रूकवाने का प्रार्थना की। तब देवी दुर्गा ने शांतादुर्गा का रूप धारण किया और अपने दाहिने हाथ भगवान विष्णु और बाएं हाथ पर भगवान शिव को बिठा कर उस युद्ध को समाप्त कराया।

Significance Of Shri Shantadurga Devi Pranati Stotram
श्री शान्ता दुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम्

श्री शान्ता दुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम् एक दुर्लभ स्तोत्र है। इस स्तोत्र के नित्य पाठ से माँ दुर्गा प्रसन्न होती है। इस स्तोत्र का श्रद्धा-भक्ति और पवित्रता के साथ पाठ करने से

  • माँ दुर्गा की कृपा प्राप्त होती है।
  • विभिन्न कर्मों एक द्वारा अर्जित पापों का नाश होता है।
  • अनिष्ट का निवारण होता है।
  • ज़ीवन में सुख और आनन्द की प्राप्ति होती है।
  • धन-समृद्धि में वृद्धि होती है।
  • आंतरिक कलह और लड़ाई-झगड़ों से मुक्ति मिलती है। जीवन में शांति आती है।

नोट: प्रतिदिन स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करके श्रद्धा – भक्ति के साथ इस स्तोत्र का पाठ करें। शरीर और मन की पवित्रता का विशेष ध्यान रखें।

Shri Shantadurga Devi Pranati Stotram Lyrics
श्री शान्ता दुर्गा देवि प्रणति स्तोत्रम्

श्रीशान्तादुर्गा महामाये कैवल्यपुरवासिने ।
नमो भर्गेमहाकाली महिषासुरमर्दिने ॥ १॥

नमो गौरी जगन्माते रत्नमालाविभूषिते ।
नमो भवानि रुद्राणि विश्वरूपे सुकंधरे ॥ २॥

नमस्ते भगवान्माये जगद्रक्षणकारिणे ।
नमोऽस्तु पतितोद्धारे नानारूपधरे नमः ॥ ३॥

नमो दाक्षायणी देवी भक्तारिष्टनिवारके ।
नमस्ते गिरिजे हेमी शिवरूपे महेश्वरी ॥ ४॥

नमः कात्यायनी आर्ये अपर्णे सस्मितानने ।
नमः खड्गधरे माये दशाष्टकरधारिणे ॥ ५॥

षड्गुणैश्वर्यसम्पन्ने नमः सुन्दररूपिणे ।
नवयौवनसंयुक्ते शाम्भवी शङ्करप्रिये ॥ ६॥

गणनाथाम्बिके भर्गे कार्तविर्योद्भवे शिवे ।
कामारि‍इश-अर्धांगे भवरोगादिनाशिने ॥ ७॥

नमः कौमार्यसम्पन्ने नीलकण्ठप्रिये नमः ।
निशाचरकुलध्वंसे भक्तकल्पलते नमः ॥ ८॥

अर्कपुष्पप्रिये चण्डि ललितादेविरूपिणे ।
सहस्रशिरसे गौरी मोहिनी सुरपालके ॥ ९॥

अहिंसाप्रियसंशुद्धे हिंसाकर्मनिवारके ।
वेदरूपिणी शास्त्राङ्गे शाक्तपाखाण्डदण्डके ॥ १०॥

चद्रानने चारुगात्रे सिंहासनसुशोभिते ।
भद्रकाली विरूपाक्षे पातालपुरवासिने ॥ ११॥

नमो दिव्ये महादेवी वाग्वरदे विलासिनी ।
विश्वात्मके विश्ववन्द्ये नानाभरणभूषिते ॥ १२॥

जगदम्ब जगदम्ब गौडकुलप्रपालके ।
सारस्वतेऽस्मि त्वत्पुत्र नमामि पदपकञ्जे ॥ १३॥

क्षमस्व अपराधोऽस्मि हीनदीनोऽस्मि अम्बिके ।
महामूढ महापापी महदज्ञानि पामर ॥ १४॥

अतिक्रोधि सुदुष्टोऽस्मि महाचाण्डाळ पातकी ।
अघोररूपी कामोऽस्मि क्षमस्व जगदम्बिके ॥ १५॥

। श्रीशान्तादुर्गाचरणार्पणमस्तु ।

। इति श्रीशान्तादुर्गादेविप्रणतिस्तोत्रं सम्पूर्णम् ।