Varalakshmi Vratham 2024: जानिये प्रभावशाली वरलक्ष्मी व्रतम् कब है? पढ़ें इसका महत्व, नियम, पूजा विधि और शुभ मुहूर्त

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वरलक्ष्मी व्रतम् (Varalakshmi Vratham) अष्ट लक्ष्मी की कृपा और अखंड सौभाग्य प्रदान करने वाला चमत्कारिक व्रत है। वरलक्ष्मी पूजा अधिकतर दक्षिण भारत में विवाहित स्त्रियों के द्वारा की जाने वाली पूजा है। जानियें कब है वरलक्ष्मी व्रतम्? और क्या है वरलक्ष्मी पूजा का विशेष मुहूर्त? साथ ही पढ़ियें वरलक्ष्मी व्रतम् का महत्व, पूजा विधि, नियम और कथा…

Varalakshmi Vratham
वरलक्ष्मी व्रत

श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि अर्थात रक्षाबंधन से पहले आने वाले शुक्रवार के दिन वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham) किया जाता है। यह व्रत दक्षिण भारत में बहुत अधिक प्रचलित है। हिंदु मान्यता के अनुसार वरलक्ष्मी व्रत बहुत ही चमत्कारिक और प्रभावशाली है। इस व्रत में देवी लक्ष्मी की पूजा किये जाने का विधान है। वरलक्ष्मी व्रत को सच्चे मन से श्रद्धा-भक्ति के साथ पूरे विधि-विधान से करने से साधक को अष्ट लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। विशेषकर यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियाँ अपने अखण्ड सौभाग्य के लिये करती है। देवी लक्ष्मी की कृपा से इस व्रत को करने वाली सौभाग्यवती स्त्री को अखण्ड़ सौभाग्य की प्राप्ति होती है।

देवी लक्ष्मी के इन आठ रूपों को अष्ट लक्ष्मी कहा जाता है – आदिलक्ष्मी, धनलक्ष्मी, धान्यलक्ष्मी, गजलक्ष्मी, सन्तानलक्ष्मी, वीरलक्ष्मी, विजयलक्ष्मी, विद्यालक्ष्मी।

Varalakshmi Vratham Kab Hai?
वरलक्ष्मी व्रत कब है?

इस वर्ष वरलक्ष्मी व्रत 16 अगस्त, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।

वरलक्ष्मी व्रत के विशेष मुहूर्त

आप जिस लग्न में पूजा करना चाहते हैं उसके अनुसार मुहूर्त चुन सकते हैं –

पूजा के लिये सिंह लग्न मुहूर्त (प्रातः) – 06:05 AM से 08:20 AM

पूजा के लिये वृश्चिक लग्न मुहूर्त (अपराह्न) – 12:53 PM से 03:10 PM

पूजा के लिये कुम्भ लग्न मुहूर्त (सन्ध्या) – 06:58 PM से 08:27 PM

पूजा के लिये वृषभ लग्न मुहूर्त (मध्यरात्रि) – 11:31 PM से 01:27 AM (17 अगस्त)

विशेष : वैसे आप राहुकाल को छोड़कर किसी भी समय देवी वरलक्ष्मी की पूजा कर सकते हैं।

Devi Varalakshmi Ka Swaroop
माँ वरलक्ष्मी (वरद्‌ लक्ष्मी) का स्वरूप

पौराणिक कथाओं के अनुसार देवी वरलक्ष्मी माता लक्ष्मी का ही रूप हैं। देवी लक्ष्मी समुद्रमंथन से क्षीर सागर से प्रकट हुई थीं।

  • देवी लक्ष्मी के ही समान देवी वरलक्ष्मी की काँति बिल्कुल दूध की ही भांति श्वेत है।
  • देवी ने सोलह श्रृन्गार किये हुये है और रंगीन वस्त्र धारण किये हुये हैं।
  • देवी दो हाथों में कमल के पुष्प लिये है और दो हाथों से अपने भक्तों पर धन की वर्षा करती हैं।

Importance of Varalakshmi Vratham
वरलक्ष्मी व्रत का महत्व

शास्त्रों के अनुसार देवी वरलक्ष्मी का व्रत (Varalakshmi Vratham) एवं पूजन सच्चे मन और श्रद्धा-भक्ति के साथ पूरे विधि-विधान से करने से साधक को अष्टलक्ष्मी की पूजा के समान फल प्राप्त होता है। यह व्रत बहुत ही चमत्कारी और प्रभावशाली है। इस व्रत को करने से

  • साधक की मनोकामनायें पूर्ण होती हैं।
  • सौभाग्यवती स्त्रियों का सौभाग्य अखण्ड़ होता हैं।
  • यदि पति-पत्नी दोनों मिलकर इस व्रत को करते है तो उन्हे अत्यंत शुभ फलों की प्राप्ति होती है।
  • संतानहीन को संतान की प्राप्ति होती है।
  • दरिद्रता का नाश होता है।
  • जीवन के समस्त अभाव और कष्टों का नाश होता है।
  • इस व्रत को करने से आने वाली पीढियों तक का जीवन सुखों से भर जाता है।
  • साधक के यश, बल, मान-प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है।

Varalakshmi Vratham Ke Niyam
वरलक्ष्मी व्रत के नियम

  • यह व्रत कुंवारी कन्याओं के लिये नही है।
  • यह व्रत विवाहित स्त्री-पुरूष दोनों कर सकते हैं।
  • यह व्रत हर वर्ष करना चाहिये।
  • इस व्रत में दीपावली की ही भांति पूजा किये जाने का विधान है।

Varalakshmi Vratham Pooja Vidhi
वरलक्ष्मी व्रत की पूजा विधि

धर्मग्रंथो के अनुसार वरलक्ष्मी व्रत (Varalakshmi Vratham) की पूजा भी दीपावली की पूजा की ही भांति किये जाने का विधान है।

  • व्रत के दिन प्रात:काल स्नानादि नित्यक्रिया से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
  • पूजा स्थान को साफ व स्वच्छ करके एक रंगोली बनाएं।
  • देवी लक्ष्मी की प्रतिमा को नए वस्त्र-आभूषणों से सजाएं और कुमकुम लगायें।
  • पूजा के मुहूर्त के समय पूजास्थान पर एक चौकी बिछाकर उसपर लाल कपड़ा बिछायें।
  • फिर उस चौकी पर भगवान गणेश जी और देवी लक्ष्मी की प्रतिमा स्थापित करें।
  • चौकी पर थोडे चावल का ढेर बनाकर उसपर एक कलश स्थापित करें। कलश के चारों ओर चंदन के टीक लगायें। कलश में आधे से ज़्यादा चावल भरें साथ ही उसमें पान के पत्ते, खजूर और चांदी का सिक्का डालें।
  • फिर कलश के ऊपर एक नारियल रखें। नारियल पर हल्दी, चंदन व कुमकुम लगायें और साथ ही नारियल के आसपास आम के पत्ते लगायें।
  • चौकी पर थोडे से चावल रखकर उन पर एक थाली रखें और उस थाली में नया लाल कपड़ा रखें।
  • फिर स्वयं पूर्व दिशा की ओर मुहँ करके पूजन करें।
  • देवी लक्ष्मी के समक्ष तेल का दीपक जलायें और भगवान गणेश के समक्ष घी का दीपक प्रज्वलित करें।
  • भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी के कुमकुम, हल्दी से तिलक करें। अक्षत चढ़ायें।
  • गणेश जी को जनेऊ चढ़ायें, दूर्वा चढ़ायें। देवी लक्ष्मी को श्रृंगार का सामान अर्पित करें।
  • भगवान गणेश और देवी लक्ष्मी को फल-फूल अर्पित करें। मिष्ठान का भोग लगायें। पान-सुपारी चढ़ायें।
  • लक्ष्मी मंत्र का जाप करें।
  • तत्पश्चात्‌ वरलक्ष्मी व्रत की कथा पढ़ें या सुनें।
  • माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की आरती करें।
  • पूजा समाप्त करने के बाद स्त्रियों को प्रसाद बांटें।

Varalakshmi Vrat Katha
वरलक्ष्मी व्रत कथा

अति प्राचीन समय में मगध देश में एक बहुत ही सुंदर नगर था। उस नगर का नाम कुंडी था। कुंडी नगर में चारुमती नाम की एक स्त्री निवास करती थी। वो धर्म का पालन करने वाली बहुत ही पतिव्रता स्त्री थी। चारूमती देवी लक्ष्मी की परम भक्त थी। चारूमती हर शुक्रवार के दिन देवी लक्ष्मी का व्रत और पूजन पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ किया करती थी।

उसकी भक्ति को देखकर देवी लक्ष्मी उस पर प्रसन्न हो गई। एक रात देवी लक्ष्मी ने चारूमती को स्वप्न में दर्शन देकर वरलक्ष्मी व्रत के विषय में बताया। माँ लक्ष्मी ने चारूमती से कहा, “हे पुत्री! तू श्रावण मास की पूर्णिमा से पहले वाले शुक्रवार को वरलक्ष्मी व्रत करना। यह बहुत ही चमत्कारी और दुर्लभ व्रत है।“ माँ लक्ष्मी चारूमती को व्रत की विधि इत्यादि के विषय में बता कर अंतर्ध्यान हो गई।

चारूमती देवी लक्ष्मी की भक्त थी। जब श्रावण मास की पूर्णिमा से पहले का शुक्रवार आया तो उसने माँ लक्ष्मी के कहे अनुसार वरलक्ष्मी व्रत का पालन पूरी श्रद्धा-भक्ति के साथ पूरे विधि-विधान से किया। वरलक्ष्मी व्रत के प्रभाव से उसका घर सोने-चाँदी से भर गया। उसकी धन-समृद्धि को देखकर लोग विस्मित हो गये। तब उन्होने चारूमती से उसकी समृद्धि के विषय में पूछा तो उसने उन्हे वरलक्ष्मी व्रत के विषय में बताया। चारूमती से वरलक्ष्मी व्रत के विषय में जानकर उस नगर की सभी स्त्रियों ने उस व्रत का पालन करना आरम्भ कर किया। इस व्रत के प्रभाव से उस नगर सभी लोग समृद्ध हो गये। वो पूरा नगर स्वर्ण का हो गया।