योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) का व्रत करने से अक्षम्य पाप का भी प्रायश्चित हो जाता है

Yogini Ekadashi

योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) का व्रत करने से बड़े से बड़े अक्षम्य पाप का भी प्रायश्चित हो जाता है, रोग-व्याधियों का नाश हो जाता है, गुण, रुप और यश की प्राप्ति होती है और किसी के दिये श्राप से भी मुक्ति मिल जाती है।

Yogini Ekadashi Vrat
योगिनी एकादशी व्रत

आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) कहते है। योगिनी एकादशी के दिन भगवान लक्ष्मी नारायण की पूजा-आराधना की जाती है। भगवान विष्णु को लक्ष्मी नारायण भी कहा जाता है। पुराणों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पापों का नाश हो जाता है। इस व्रत का विधि पूर्वक पालने करने से मनुष्य के बड़े से बड़े अक्षम्य पाप का भी प्रायश्चित हो जाता और वो उस पाप से मुक्त हो जाता है। जैसे पीपल के पेड़ को काटना या किसी के द्वारा दिये हुए श्राप से भी मनुष्य मुक्त हो जाता है। योगिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से शरीर की सभी रोग-व्याधियों का भी नाश होता है और जातक को गुण, रुप और यश की प्राप्ति होती है।

Yogini Gyaras Vrat Kab Hai?
योगिनी एकादशी व्रत कब है?

इस वर्ष योगिनी एकादशी व्रत 2 जुलाई, 2024 मंगलवार के दिन किया जायेगा।

Yogini Ekadashi Vrat Aur Puja Vidhi
योगिनी एकादशी व्रत व पूजा विधि

इस महान पुण्य फलदायिनी एकादशी के व्रत की विधि इस प्रकार है:-

  1. योगिनी एकादशी (Yogini Ekadashi) का व्रत एक दिन पूर्व यानी दशमी तिथि की रात से ही आरम्भ हो जाता है। दशमी की रात से ही मनुष्य को ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिये और गेहूं, जौं और मूंग की दाल से बना हुआ और नमक वाला खाना भी नही खाना चाहिये।
  2. इस व्रत में नमक रहित भोजन ही करना चाहिये।
  3. योगिनी एकादशी के दिन प्रात: काल स्नानादि नित्य कर्मों से निवृत होकर व्रती को व्रत का संकल्प लेना चाहिये।
  4. संकल्प लेने के बाद कलश की स्थापना करके उसपर भगवान विष्णु की प्रतिमा रखें। फिर उसकी पूजा करें।
  5. भगवान विष्णु की प्रतिमा को पंचामृत से स्नान करवाकर नेवैद्य अर्पित करें। फूल अर्पित करें, और धूप, दीप से आरती करें। यदि आप स्वंय ये पूजा नही कर सकते तो किसे योग्य विद्वान ब्राह्मण से भी पूजन करवा सकते हैं।
  6. इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा जरूर करें ।
  7. इसके बाद योगिनी एकादशी की कथा अवश्य सुनें।
  8. विष्णुसहस्रनाम का पाठ करेंं। भगवान विष्णु की आरती करें।
  9. योगिनी एकादशी के दिन दान कर्म का विशेष महत्व है। इस दिन दान करने से मनुष्य का कल्याण होता है।
  10. व्रत की रात को जागरण अवश्य करें। इस व्रत के दिन दुर्व्यसनों से दूर रहे और सात्विक जीवन जीयें।
  11. योगिनी एकादशी का व्रत दशमी तिथि की रात से आरम्भ होकर व्रत के अगले दिन यानी द्वादशी तिथि के प्रात समय दान पुण्य के बाद सम्पूर्ण होता है।

Significance of Ekadashi Vrat
योगिनी एकादशी व्रत का महत्व

योगिनी एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को जीवन में समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति होती है। और जीवन में धन-समृद्धि की कभी कमी नही होती। मनुष्य आनन्द के साथ जीवन व्यतीत करता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार योगिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से मनुष्य के पापों का प्रायश्चित होता और मनुष्य श्राप तक के प्रभाव से भी मुक्त हो जाता है। इस व्रत को करने से मनुष्य के समस्त पापों का नाश होता है और वो इस लोक में सुख भोगकर मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त करता है।

पौराणिक ग्रंथों के अनुसार योगिनी एकादशी का व्रत करने से जातक को 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने के समान पुण्य प्राप्त होता है।

Yogini Ekadashi Vrat Katha
योगिनी एकादशी व्रतकथा

पौराणिक मान्यता के अनुसार महाभारत काल में धर्मराज युधिष्ठिर को भगवान श्री कृष्ण ने आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी अर्थात योगिनी एकादशी का महात्म्य सुनाया था। भगवान श्री कृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर से कहा हे राजन! यह योगिनी एकादशी का व्रत तीनों लोकों में विख्यात है। जो भी व्यक्ति योगिनी एकादशी का व्रत विधि विधान से करता है उसके समस्त पापों का नाश हो जाता हैं। और जीवन में समस्त सांसारिक सुख-सुविधाओं को भोग कर आनंद प्राप्त करता है और मरणोपरांत मोक्ष को प्राप्त करता है। यह सब सुनकर धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से योगिनी एकादशी के बारे में विस्तार से बताने का अनुरोध किया। तब भगवान श्री कृष्ण ने कहा, हे राजन! पुराणों में वर्णित योगिनी एकादशी की कथा में आपसे कहता हूँ आप सुनाता हूं उसे मन लगाकर कर सुनिये ।

एक समय की बात है स्वर्गलोक में अलकापुरी नाम के एक नगर बहुत ही नेक और धर्मपरायण राजा राज करता था। उनका नाम था में कुबेर। वो भगवान शिव का बहुत बड़ा भक्त था। राजा कुबेर नियमित रूप से प्रतिदिन भगवान शिव की उपासना किया करता थ। चाहे कैसी भी विपत्ति आये पर वो राजा अपने आराध्य देव महादेव की पूजा नही छोड़ते थे। चाहे आंधी-तूफान ही क्यू न आये परंतु उनकी पूजा नही टलती।

राजा कुबेर ने पूजन के लिये उनके फूल लाने का कार्य एक विश्वसनिय माली को दे रखा था । उस माली का नाम था हेम। वही प्रतिदिन पूजा के लिये फूल लेकर राजा के पास जाया करता था। माली हेम का विवाह एक अत्यन्त ही रूपवती स्त्री से हुआ था। उसका नाम था विशालाक्षी। माली हेम अपनी पत्नी से बहुत प्रेम करता था।

एक बार माली हेम पूजा के लिये फूल लाने समय से पूर्व ही चला गया। अपनी स्त्री के मोहवश जब वो फूल लेकर लौटा तो उसने रास्ते में उसने विचार किया की अभी तो पूजा में बहुत समय है क्यूँ न अपने घर चल कर थोड़ा समय बिता लिया जाये। यही विचार करके वो अपने घर की ओर चल दिया। घर पहुँच कर वो अपनी स्त्री को देखकर कामातुर होकर उसके साथ भोग करने लगा। और उसे समय का ध्यान ही नही रहा। और उधर राजा कुबेर पूजा के लिये फूलों का इंतजार कर रहे थे।

समय बीतता गया और पूजा के लिये फूल न आने से राजा कुबेर व्यतिथ हो गये। उन्होने अपने सैनिकों को आदेश दिया की वो जाकर माली हेम का पता लगाये की वो अभी तक फूल लेकर क्यूँ नही आया? राजा की आज्ञा पाकर सैनिक माली हेम को ढ़ूंढ़ते हुए उसके घर पहुँच गये। वहाँ जाकर उनको सारा मामला समझ में आ गया। सैनिकों ने वहाँ से लौटकर राजा कुबेर को सारा वृतांत सुना दिया कि माली हेम तो अपनी स्त्री के साथ भोग विलास में व्यस्त हैं।

यह सुनकर राजा कुबेर को अत्यधिक क्रोध आया और तुरंत माली हेम को बंदी बनाकर लाने का आदेश दिया। सैनिकों ने राजा की आज्ञा पाकर माली हेम को बन्दी बनाकर राजा के समक्ष लाकर खड़ा कर दिया। क्रोधवश राजा कुबेर ने माली हेम को शाप दे दिया और कहा तू बहुत ही नीच और महापापी है। तूने अपनी कामुकता के कारण भगवान शिव का अपमान किया है। तू अपने इस पाप के लिये मृत्युलोक में जाकर सजा पायेगा। तू एक कोढ़ी का जीवन जीयेगा और स्त्री का वियोग भी सहेगा।

राजा कुबेर के शाप से माली हेम धरती पर आ गया और उसे कोढ़ भी हो गया। धरती पर उसका जीवन बहुत कष्ट में बीत रहा था। भूख-प्यास से व्याकुल और रोग के कष्टों को झेलते हुए वो बहुत दुखी होकर अपना जीवन बिता रहा था। उसे अपने दुखों से छुटकारा पाने का कोई मार्ग भी सुझाइ नही दे रहा था। उसने बहुत समय तक भगवान शिव की पूजा में सहयोग किया था। इसीलिये उसके उन पुण्य कर्मों के कारण वो एक दिन घूमते-घामते मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में जा पंहुचा।

ऋषि का आश्रम बहुत ही सुंदर था। माली हेम मार्कंडेय ऋषि को देखकर उनके चरणों में जाकर लेट गया और रोने लगा। मार्कण्डेय ऋषि ने उससे उसके दुखों का कारण पूछा तो उसने उन्हे अपना सारा दुख सुना दिया। मार्केंडय ऋषि को उस पर दया आ गयी। उन्होने उसे कहा मैं तुम्हे एक उपाय बताता हूँ तुम वो करना उससे तुम्हारे सभी कष्ट दूर हो जायेंगे। मार्केंडय ऋषि ने माली हेम को योगिनी एकादशी के व्रत के विषय में बताया। और कहा की इस व्रत को विधि विधान से पूर्ण करने से तुम्हारे समस्त पापों का नाश हो जायेगा।

माली हेम ने ऋषि को प्रणाम किया और उनके द्वारा बताये गये योगिनी एकादशी के व्रत को विधि विधान से पूर्ण किया। योगिनी एकादशी के व्रत के प्रभाव से माली हेम को अपने शाप से मुक्ति मिल गई और वो पुन: अपने वास्तविक रुप में आ गया। उसे उसकी स्त्री भी प्राप्त हो गई। फिर वो उसके साथ सुखपूर्वक रहने लगा। और मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त हुआ।‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌