Aasmai Ki Pooja Vidhi aur Vrat Katha – आसमाई की पूजा विधि व व्रत कथा

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Aasmai Ki Puja Vidhi
आसमाई की पूजा विधि


आसमाई (Aasmai) की पूजा वैशाख, आषाढ़ और माघ माह के किसी रविवार को कर सकते है। अधिकतर संतान वाली महिलाएँ ही यह व्रत करती हैं। इस व्रत के दिन भोजन में नमक का प्रयोग वर्जित है। सफेद चन्दन से ताम्बूल पर पुतली बनाकर चार कौड़ियों को रखकर पूजा करी जाती है। फिर चौक बनाकर कलश को स्थापित करते हैं। उसी के पास आसमाई (Aasmai) को स्थापित करते हैं। पूजन के बाद पंडित 12 पोटियों वाला मांगलिक सूत्र व्रत करने वाली महिला को देता है। इस मांगलिक सूत्र को धारण करके ही भोग लगाना चाहिए।

Aasmai Ki Katha
आसमाई की कथा


एक समय की बात है एक राजा था और उसके एक पुत्र था। राजा का पुत्र लाड़-प्यार के कारण मनमानी करने लगा था। वह पनघट पर जाकर गुलेल से पनिहारियों की मटकियों को फोड़ देता था। राजा ने आदेश दिया की कोई भी पनघट पर मिट्टी का बर्तन लेकर न जाए। तब से सभी स्त्रियाँ पीतल व ताँबे के बर्तन ले कर पानी के लिए ले जाने लगीं। अब राजा के बेटे ने लोहे के टुकड़ों से पनिहारियों के घड़े फोड़ने शुरू कर दिये। इस बात पर राजा बहुत अधिक क्रोधित हुए और अपने पुत्र को देश निकाला दे दिया। राजकुमार घोड़े पर सवार होकर वन की ओर चल दिया। मार्ग में उसकी भेंट चार बुढ़ियाओं से हुई। तभी राजकुमार के हाथ से उसका चाबुक गिर गया। उसने घोड़े से उतरकर उसने चाबुक को उठाया तो बुढ़ियाओं को लगा की उसने उन्हे प्रणाम किया है। नजदीक पहुँच कर उन्होने पूछा तो राजकुमार ने बताया कि उसने चौथी बुढ़िया (आसमाई) को प्रणाम किया है। इस बात पर आसमाई (Aasmai) बहुत प्रसन्न हुई तथा उसने राजकुमार को चार कौड़िया देकर आशीर्वाद दिया कि जब तक ये कौड़ियाँ तुम्हारे पास रहेंगी तुम्हें कोई भी हरा नहीं पायेगा। तुम्हें समस्त कार्यों में सफलता प्राप्त होगी। आसमाई देवी से आशीर्वाद लेकर राजकुमार आगे चल दिया। वह घूमता हुआ एक देश की राजधानी में पहुँचा। वहाँ का राजा जुआँ खेलने में पारंगत था। राजकुमार ने वहाँ के राजा को जुए मे परास्त कर दिया तथा राजा का राजपाट भी जुए में जीत लिया। वृद्ध मंत्री की सलाह से उस राजा ने अपनी राजकुमारी के साथ उसका विवाह करा दिया। राजकुमारी बहुत ही सुशील और सदाचारिणी थी। उस महल में उसकी सास-ननद के न होने से वह कपड़े की गुड़ियों द्वारा सास ननद की कल्पना करके उनके चरणों छूकर आशीर्वाद प्राप्त करने लगी। एक दिन उसने राजकुमार को अपनी सास-ननद की सेवा करने की इच्छा के विषय में बताया तो वह राजकुमार सेना को साथ लेकर अपने घर को चल दिया। अपने पिता के राज्य में पहुँचने पर उसने देखा कि उसके माँ-बाप रो-रोकर अंधे हो गये हैं। पुत्र के आने का समाचार पाकर राजा – रानी बहुत प्रसन्न हुए। महल में प्रवेश करने के बाद बहू ने अपनी सास के चरण स्पर्श किये। सास के आशीर्वाद से उसने एक सुन्दर पुत्र को जन्म दिया। आसमाई की कृपा से राजा-रानी के नेत्रों की रोशनी वापस आ गई। और उनके समस्त कष्ट भी दूर हो गये।