॥ दोहा ॥
श्री गरु पद समरण करी,गोरी नंदन ध्याय ।
वरनों माता जीण यश, चरणों शीश नवाय ॥
झाकी की अद्भत छवि, शोभा कही नजय ।
जो नित समरे माय को, कष्ट दूर हो जाय ॥
॥ चोपाई ॥
जय जय जय श्री जीण भवानी । दुष्ट दलन सनतन मन मानी ।।
कैसी अनुपम छवि महतारी । लख निशिदिन जाऊ बलहारी ।।
राजपत घर जनम तुम्हारा । जीण नाम मा का अति प्यारा।।
हर्षा नाम मातु का भाई । प्यार बहन से है अधिकाई ।।
मनसा पाप भाभी को आया । बहन से ये नहीं छपे छपाया ।।
तज के घर चल दीन्ही फ़ौरन । निज भाभी से करके अनबन ।।
नियत नार की हर्षा लख कर । रोकन चला बहन को बढ़ कर ।।
रुक जा रुक जा बहन हमारी । घर चल सुन ले अरज हमारी ।।
अब भेया मे घर नहीं जाती । तज दी घर अरु सखा सघाती ।।
इतना कह कर चली भवानी । शुची सूमुखी अरु चतुर सयानी ।।
पर्वत पर चढ़कर हुंकारी । पर्वत खंड हए अति भारी ।।
भक्तो ने माँ का वर पाया । वही महत एक भवन बनाया ।।
रत्न जडित माँ का सिंहासन । करे कौन कवी जिसका वर्णन ।।
मस्तक बिंदिया दम दम दमके । कानन कंडल चम चम चमके ।।
गल में मॉल सोहे मोतियन की । नक में बेसर है सुवरण की ।।
हिंगलाज की रहने वाली । कलकत्ते में तुम ही काली ।।
नगर कोट की तुम ही ज्वाला । मात चण्डिका तुम हो बाला ।।
वैष्णवी माँ मनसा तू ही । अन्नपूर्णा जगदम्बा त ही ।।
दुष्टो के घर घालक तुम ही । भक्तो की प्रतिपालक तुम ही ।।
महिषासुर की मर्दन हारी । शुम्भ निशम्भ की गर्दन तारी ।।
चंड मुड की तू सन्हारी । रक्त बीज मारे महतारी ।।
मुगल बादशाह बल नहीं जाना । मंदिर तोडन को मन माना ।।
पर्वत पर चढ़ कर तू आई । कहे पूजारी सून मेरी माझा ।।
इसको माँ अभिमान है भारी । ये नहीं जाने शक्ति तुम्हारी ।।
माँ ने भवर विलक्षण छोड़ । भागे हाथी भागे घोडे।
हार गया माँ से अभिमानी । गिर चरणों में कीर्ति बखानी।।
गनाह बख्श मेरी खता बख्श दे । दया दिखा मेरे प्राण बख्श दे।।
तेल सवा मन तुरंत चढाया । दीप जला तम नाश कराया।।
माँ की शक्ति अपरम्पारा । वो समझे सो माँ का प्यारा।।
शुद्ध हदय से माँ का पूजन । करे उसे माँ देती दर्शन ।।
दुःख दरिद्र को पल में टारी । सुख सम्पति भर दे महतारी।।
जो मनसा ले तोंकू जाये । खाली लोट कभी न आये ।।
बाँझ, दुखी और बुढ़ा बाला । सब पर कृपा करे माँ ज्वाला।।
पीकर सुरा रहे मतवाली । हर जन की करती रखवाली।।
सुरा प्रेम से करता अर्पण । उसको माँ करती आलिंगन।।
चेत्र अश्विन कितना प्यारा । पर्व पड़े माँ का अति भरा ।।
दूर दूर से भक्त आवे । मनवांछित फल माँ से पावे।
जात जडूला कर गठ जोड़ा । माँ के भवन से रिश्ता जोड़ा।
करे कढाई भोग लगावे । माँ चरणों में शीश झुकावे ।।
जीण भवानी सिंह वाहिनी । सभी समय माँ रहो दाहिनी ।।
नित चालीसा जो पढे, दुख दरिद्र मिट जाय ।।
भ्रष्ट हए प्राणी भले, सुधर सुपथ चल आय ।।
ग्राम जीण सीकर जिला, मंदिर बना विशाल ।।
भवरा की रानी तू ही, जीण भवानी काल ।।
काजल शिखर विराजती, ज्योति जलत दिन रात ।।
भय भंजन करती सदा, जीण भवानी मात ॥
॥ दोहा ॥
जय दुर्गा जय अम्बिका, जग जननी गिरिराय ।
दया करो हे जगदम्बे, विनय शीश लवाय ।।