पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) के दिन ही माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। गंगा दशमी को गंगा दशहरा के नाम से पुकारा जाता है। जानियें गंगा दशहरा (गंगा दशमी) कब है?, गंगा दशमी (Ganga Dashmi) के व्रत एवं पूजन क्या विधि है? और साथ ही पढ़ें गंगावतरण की कथा।
Ganga Dussehra (Ganga Dashmi)
गंगा दशहरा (गंगा दशमी)
ज्येष्ठ मास शुक्ल पक्ष की दशमी को जेठ का दशहरा (ज्येष्ठ का दशहरा) या गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) कहा जाता है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार गंगा दशहरे पर ही माँ गंगा का धरती पर अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन प्रात:काल गंगा जी में स्नान का बहुत महत्व हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन गंगा में स्नान करने और दान करने से सभी पाप धुल जाते हैं और मनुष्य मुक्ति को प्राप्त करता है।
Ganga Dussehra (Ganga Dashmi) Kab Hai?
गंगा दशहरा (गंगा दशमी) कब है?
इस वर्ष गंगा दशहरा (Ganga Dussehra) 16 जून, 2024 (रविवार) के दिन मनाया जायेगा।
Ganga Dussehra (Ganga Dashmi) Vrat Ki Vidhi
गंगा दशहरा (गंगा दशमी) व्रत की विधि
- गंगा दशमी (Ganga Dashmi) पर प्रात:काल गंगा स्नान करे और यदि सम्भव न हो तो नहाने के जल मे थोड़ा सा गंगा जल डाल कर स्नान करें। स्नान करते समय इस मंत्र का जाप करें।
ऊँ नम: शिवाय नारायण्यै दशहराय गंगाय नम:।
इसके पश्चात ‘ ऊँ नमो भगवते एं ह्रीं श्रीं हिलि हिलि मिलि मिलि गंगे मां पावय स्वाहा’ मंत्र का भी जाप करें
और जाप करते हुए 10 फूल माँ गंगा को अर्पित करें। उसके पश्चात माँ गंगा की पूजा की करे। गंगाजी में दूध और बताशे चढ़ायें। रोली, चावल, मौली, नारियल, दक्षिणा, दीया चढ़ाकर, धूप और दीया जलाकर माँ गंगा का ध्यान करें। माँ गंगा की आरती करें।
- इस दिन घर में जितने पुरुष हो उतने जन का सवा सेर आटे का चूरमा और पूड़ी बनाकर हनुमानजी को भोग लगायें। पूजा के बाद सारा चूरमा और पूड़ी ब्राह्मणों में बाँट दें। घर का कोई भी सदस्य उसमें से चूरमा-पूरी ना खायें।
- अपने खाने के लिए सवा सेर आटे का चूरमा अलग से बनाये और उसको हनुमान जी के भोग लगाकर सब प्रसाद लें।
Ganga Ke Avtaran Ki Katha
गंगावतरण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीनकाल में अयोध्या नगर में सगर नाम के राजा राज्य करते थे। उनके दो रानियाँ थीं, केशिनी और सुमति। राजा सगर के केशिनी से अंशुभान और सुमति के साठ हजार पुत्र थे। राजा सगर ने अश्वमेध यज्ञ का अनुष्ठान किया और विधि के अनुसार यज्ञ का घोड़ा छोड़ा गया।
देवराज इन्द्र यज्ञ ने यज्ञ को भंग करने की इच्छा से घोड़े को चुराकर कपिल मुनि के आश्रम में बाँध दिया। राजा सगर ने यज्ञ के घोड़े को खोजने के लिए अपने साठ हजार पुत्रों को भेजा। राजा सगर के पुत्र यज्ञ के घोड़े को खोजते-खोजते कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचे गये। वहाँ उन्होंने यज्ञ के घोड़े को बँधा हुआ पाया। उस समय वहाँ कपिल मुनि तपस्या कर रहे थे। राजा के पुत्रों ने कपिल मुनि का अपमान करना शुरु कर दिया और उन्हे चोर कहकर सम्बोधित करना शुरू कर दिया। इस कोलाहल से कपिल मुनि की समाधि भंग हो गई और इस पर उन्हे बहुत तेज क्रोध आया। राजा सगर के सारे पुत्र कपिल मुनि की क्रोधाग्नि में जलकर भस्म हो गये।
राजा सगर ने अपने पुत्र अंशुमान को अपने भाइयों को खोजने भेजा। जब अंशुमान अपने भाइयों को ढूँढता हुआ कपिल मुनि के आश्रम में पहुँचा तो महात्मा गरुड़ ने उसे उसके भाइयों के भस्म होने का सारा वृतांत कह सुनाया। गरुड़जी ने अंशुमान को उसके भाइयों की मुक्ति के लिये गंगा जी को स्वर्ग से धरती पर लाने के लिये कहा। गरुड़जी ने कहा इस समय तो तुम अश्व को ले जाकर अपने पिता के यज्ञ को पूर्ण कराओ।
इसके पश्चात गंगा के पथ्वी पर लाने का प्रयास शुरु करना। अंशुमान घोड़े को लेकर यज्ञमंडप में पहुँचे और राजा सगर को सारा वृत्तान्त कह सुनाया। महाराज सगर की मृत्यु के बाद अंशुमान ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए तपस्या करनी शुरु की परन्तु वह स्वर्ग से गंगा जी को धरती पर लाने में सफल नही हो पायें। उनके पश्चात उनके पुत्र राजा दिलीप ने भी तप किया परन्तु वह भी सफल न हो सके।
अन्त में राजा दिलीप के पुत्र भगीरथ ने गंगा जी को पृथ्वी पर लाने के लिए गोकर्ण तीर्थ में जाकर कठोर तपस्या करी। भगीरथ कई वर्ष तक तपस्या में करते रहे। तब ब्रह्माजी उन पर प्रसन्न हुए तथा गंगा जी को पृथ्वी पर ले जाने का वरदान दिया। परंतु समस्या यह थी कि ब्रह्माजी के कमण्डल से निकलने के बाद माँ गंगा का वेग इतना अधिक था कि अगर वह सीधे धरती पर आतीं तो पाताल में ही चलीं जातीं। तब ब्रह्माजी ने बताया कि भगवान शंकर के अतिरिक्त किसी में इतनी शक्ति नहीं है कि जो गंगा जी के वेग को संभाल सके। इसलिए ब्रह्माजी ने भगीरथ को यह सुझाया कि गंगा के वेग संभालने के लिए वो भगवान शिव से प्रार्थना करें।
महाराज भगीरथ ने भगवान शंकर की कठोर तपस्या की। उनकी कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिवजी गंगा को अपनी जटाओं में संभालना स्वीकार कर लिया। गंगाजी जब अपने पूरे वेग से देवलोक से पृथ्वी की ओर आने लगी तो शिवजी ने गंगाजी की धारा को अपनी जटाओं में समेट लिया। कई वर्षों तक गंगा जी को शिव जी की जटाओं से बाहर निकलने का मार्ग नही मिल सका। तब भगीरथ ने पुनः शिवजी से निवेदन किया तब शिवजी ने गंगा को अपनी जटाओं से मुक्त किया।
इस प्रकार शिव की जटाओं से छूटकर गंगा जी हिमालय की पहाड़ियों से होकर मैदान की ओर बढ़ीं। जिस मार्ग से गंगाजी आ रही थी उसी मार्ग में ऋषि जन्हु का आश्रम था। तपस्या में विघ्न समझकर वे गंगा जी को पी गये परन्तु भगीरथ के प्रार्थना करने पर उन्होने पुनः गंगा को अपनी जॉँघ से निकाल दिया।
तभी से गंगा को जन्हपुत्री या जान्हवी भी कहा जाता है। इस प्रकार अनेक स्थानों से होकर गंगाजी ने कपिल मुनि के आश्रम में पहुंचकर सगर के साठ हजार पुत्रों के भस्म अवशेषो का तारकर उन्हे मुक्ति प्रदान करी। उस समय ब्रह्माजी ने प्रकट होकर भगीरथ से कहा कि तुम्हारे नाम पर गंगाजी का नाम भागीरथी होगा। अब तम जाकर अयोध्या का अपना राज संभालो। और ऐसा कहकर ब्रह्माजी वहाँ से अन्तर्धान हो गये।
विशेष : पूरे देश भर में गंगा दशमी (Ganga Dashmi) पर लाखों भक्तं प्रयागराज, गढ़मुक्तेिश्वीर, हरिद्वार, ऋषिकेश, वाराणसी और गंगा नदी के अन्य तीर्थ स्थानों पर डुबकी लगाते हैं। इस अवसर पर हर स्थान पर भक्तों द्वारा लस्सी, शरबत, शिकंजी जैसे पेय पदार्थ तथा जलेबी, मालपुआ, खीर और फल तरबूज जैसी मिठाइयां भी वितरित की जाती हैं। कुछ स्थानों पर गंगा दशहरे (Ganga Dussehra) के दिन पतंग उड़ाकर भी जश्न मनाया जाता है।