धन-समृद्धि के साथ आरोग्य प्राप्ति के लिये करें धनतेरस (Dhanteras) पर देवी लक्ष्मी, धन्वंतरी जी (Dhanvantri Ji) और कुबेर की पूजा (Kuber Puja)। जानियें कब और कैसे करें धनतेरस की पूजा? साथ में पढ़ियें धनतेरस का पौराणिक महत्व (Significance Of Dhanteras), धनतेरस की पूजन विधि, धनतेरस की कथा (Dhanteras Ki Katha)…
Dhanteras
धनतेरस
कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी को धनतेरस (Dhanteras) कहा जाता हैं। इस दिन भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरी (Dhanvantri) और कुबेर की पूजा (Kuber Puja) करने का विधान हैं। पौराणिक मान्यता के अनुसार इस दिन समुद्रमंथन से अमृत का कलश लेकर भगवान धन्वंतरी प्रकट हुये थे। उनके हाथ में कलश था, इसीलिये इस दिन बर्तन खरीदने की परम्परा का आरम्भ हुआ।
भगवान धन्वंतरी को आरोग्य का देवता माना जाता हैं। भगवान धन्वंतरी की उपासना से साधक को आरोग्य की प्राप्ति होती हैं। इस लिये धन-समृद्धि और आरोग्य की प्राप्ति के लिये धनतेरस पर देवी लक्ष्मी, धन्वंतरी जी और कुबेर की पूजा की जाती हैं।
Dhanteras Kab Hai?
धनतेरस कब हैं?
इस वर्ष धनतेरस (Dhanteras) का पर्व 29 अक्टूबर, 2024 मंगलवार के दिन मनाया जायेगा।
Significance of Dhanvantri Jayanti
धन्वंतरी जयंती का पौराणिक महत्व
पौराणिक मान्यता के अनुसार जब देवताओं और असुरों ने मिलकर क्षीर सागर का मंथन किया था, तब उससे शरद पुर्णिमा के दिन चंद्रमा उत्पन्न हुये, कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की द्वादशी के दिन कामधेनु उत्पन्न हुयी थी, फिर कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन भगवान धन्वंतरी और दीपावली के दिन देवी लक्ष्मी उत्पन्न हुयी थी। भगवान धन्वंतरी को भगवान विष्णु का रूप माना जाता हैं। भगवान धन्वंतरी को देवताओं का चिकित्सक माना जाता हैं। उनसे ही आयुर्वेद का जन्म हुआ।
भगवान धन्वंतरी क्षीर सागर से अमृत का कलश लेकर प्रकट हुये थे। भगवान धन्वंतरी को धातुओं में पीतल प्रिय हैं। इसलिये धनतेरस पर पीतल के बर्तन खरीदना शुभ माना जाता हैं। धनतेरस पर सोना, चांदी, बर्तन व आभुषण खरीदना शुभ माना जाता हैं।
धनतेरस (Dhanteras) पर देवी लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरी और कुबेर की पूजन से साधक को आरोग्य के साथ धन-सम्पत्ति और ऐश्वर्य की प्राप्ति होती हैं। निरोगी काया सबसे बड़ा सुख माना जाता हैं, इसलिये इस दिन देवी लक्ष्मी के साथ भगवान धन्वंतरि का पूजन अवश्य करें।
Dhanteras Ki Puja Vidhi
धनतेरस की पूजा विधि
1. धनतेरस (Dhanteras) के दिन प्रदोष काल (सूर्यास्त के समय) में स्वच्छ वस्त्र धारण करकें।
2. पूजास्थान पर एक चौकी बिछायें। उस पर लाल कपड़ा बिछाकर और एक मुठ्ठी अनाज रखें।
3. पूर्व दिशा की ओर मुख करके अनाज पर एक जल से भरा कलश स्थापित करें। उस पर एक कटोरी में सुपारी, फूल, सिक्का और कुछ चावल एवं अनाज के दाने रखें। साथ ही चौकी पर भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरी और कुबेर की प्रतिमा स्थापित करें।
4. दीपक प्रज्वलित करें।
5. भगवान गणेश को स्नान करायें, फिर रोली-चावल से उनका तिलक करें। उन्हे पुष्प अर्पित करें, वस्त्र अर्पित करें और साथ में इन मंत्रों का जाप करें।
श्री गणेशाय नम:। ॐ गं गणपतये नम:।
ॐ वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा ॥
गजाननं भूतगणाधिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारुभक्षणम् ।
उमासुतं शोकविनाशकारकम् नमामि विघ्नेश्वरपादपङ्कजम् ॥
6. फिर भगवान धन्वंतरि की प्रतिमा को स्नान करायें, चंदन से तिलक करें। उन्हे नौ तरह के अनाज अर्पित करें। साथ में यह मंत्र बोले
ॐ नमो भगवते महा सुदर्शनाया वासुदेवाय धन्वन्तरये अमृत कलश हस्ताय सर्व भय विनाशाय सर्व रोग निवारणाय त्रैलोक्य पतये त्रैलोक्य निधये श्री महा विष्णु स्वरूप श्री धन्वंतरि स्वरुप श्री श्री श्री औषध चक्र नारायणाय स्वाहा।
7. फिर देवी लक्ष्मी जी की प्रतिमा का पंचामृत (दूध, दही, घी, मक्खन और शहद का मिश्रण) से अभिषेक करें। तत्पश्चात् देवी लक्ष्मी का रोली-हल्दी-चावल से तिलक करें। फिर उन्हे इत्र, पुष्प, फल, गुलाल आदि चढ़ायें। देवी लक्ष्मी की पूजा करते हुये इस मंत्र का जाप करें।
ॐ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ॐ महालक्ष्मयै नम:॥
8. फिर धनपति कुबेर को स्नान करायें। फिर रोली-चावल से उनका तिलक करके उन्हे पुष्प अर्पित करें। यक्ष कुबेर की पूजा करते समय इस मंत्र का जाप करें।
ऊँ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं में देहि दापय।
9. भोग में भगवान गणेश को लड्डू, देवी लक्ष्मी को मावे की मिठाई, भगवान धन्वंतरि को पीली मिठाई और धनपति कुबेर को सफेद मिठाई अर्पित करें।
10. धन्वंतरि स्त्रोत्र का पाठ करें। धनतेरस की कथा का पाठ या श्रवण करें।
11. धनतेरस पर घर के द्वार पर, पूजास्थान पर, तुलसी के सामने, मंदिर और गोशाला में दीपक जलायें।
12. इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान गणेश, देवी लक्ष्मी, भगवान धन्वंतरि और भगवान कुबेर से अपनी गलतियों के लिये क्षमा मांगें और उनसे धन-समृद्धि, सुख-शांति, सफलता, आरोग्य, खुशी और कल्याण की कामना करें।
Dhanteras Ki Katha
धनतेरस की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक बार देवी लक्ष्मी ने भगवान विष्णु से मृत्युलोक के भ्रमण की इच्छा व्यक्त की। तब भगवान विष्णु ने सशर्त उनको अपने साथ आने की अनुमति दे दी। भगवान विष्णु ने देवी लक्ष्मी से कहा, कि आपको मेरी हर बात माननी होगी और आप मुझसे पूछे बिना कोई भी कार्य नही करेंगी और ना ही कही जायेंगी। देवी लक्ष्मी ने इसके लिये उनसे हाँ कर दी।
भूलोक पर पहुँचने के बाद भगवान विष्णु ने अपने वापस आने तक देवी लक्ष्मी को एक स्थान पर रूकने के लिये कहा। भगवान विष्णु जैसे ही दक्षिण दिशा की ओर चले, देवी लक्ष्मी ने उनकी बात ना मानकर उनके पीछे चलना आरम्भ रखा। जब वो आगे पहुँचे तो वहाँ देवी लक्ष्मी को सरसों का खेत दिखा, उन्होने वहाँ से फूल लेकर अपना श्रृन्गार कर लिया। फिर उसके आगे उन्हे गन्ने का खेत दिखा, तो उन्होने वहाँ से गन्ने तोड़कर चूसना शुरू कर दिया।
यह देखकर भगवान विष्णु क्रोधित हो गयें और उन्होने देवी लक्ष्मी से कहा, “हे देवी! आपने अपना वचन तोड़ा। आपने मेरी आज्ञा ना मानने का जो अपराध किया है, उसके लिये आपको 12 वर्षो तक धरती पर रहकर उस किसान की सेवा करनी होगी जिसका यह खेत हैं।“ ऐसा कहकर भगवान विष्णु अपने धाम को चले गयें।
देवी लक्ष्मी रूप बदल कर उस किसान के पास पहुँची और उससे काम मांगा। उस किसान ने उन्हे अपने यहाँ काम पर रख लिया। देवी लक्ष्मी की कृपा से उस किसान का तो भाग्योदय हो गया। वो धन-धान्य से परिपूर्ण हो गया।
बारह वर्षों के बाद भगवान विष्णु देवी लक्ष्मी को वापस लेने आये तो उस किसान को सत्य का आभास हुआ। जब उसे पता चला कि इतने समय से स्वयं देवी लक्ष्मी उसके यहाँ निवास कर रही थी और उन्ही की कृपा से उसे समस्त सुख-सुविधायें प्राप्त हुयी है, तो उसने देवी लक्ष्मी को भगवान विष्णु के साथ भेजने से मनाकर दिया। भगवान विष्णु ने उस किसान को बहुत समझाया कि यह सब मेरे श्राप के कारण हुआ था। तुम इस प्रकार से देवी लक्ष्मी को अपने पास नही रख सकते।
जब किसान नही माना तो, देवी लक्ष्मी ने उसे कहा, यदि तुम मेरी बात मानोगे तो मैं तुम्हारे यहाँ हमेशा निवास करूंगी। उस किसान ने हाँ कर दिया। देवी लक्ष्मी ने कहा, कार्तिक मास की कृष्णपक्ष की त्रयोदशी के दिन अपने घर को स्वच्छ करके संध्या के समय एक कलश में सिक्के रखकर, दीपक जलाकर मेरी पूजा करोगे, तो तुम्हारे पास कभी धन-धान्य की कमी नही होगी। तुम्हे स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होगी। ऐसा कहकर देवी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ वहाँ से अंतर्ध्यान हो गयी।
किसान ने देवी लक्ष्मी के कहे अनुसार वैसा ही किया। उसने धनतेरस (Dhanteras) के दिन देवी लक्ष्मी की विधि अनुसार पूजन की। उस पर माँ लक्ष्मी की कृपा हुयी और उस किसान की धन-सम्पत्ति में लगातार वृद्धि होती गयी। उस किसान को देखकर अन्य लोगो ने भी धनतेरस के दिन देवी लक्ष्मी का पूजन करना आरम्भ कर दिया।
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