नवार्ण विधि (Navarna Vidhi) सम्पूर्ण जानकारी पाने के लिये पढ़ें

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चण्डी पाठ (दुर्गा सप्तशती) के मूल पाठ से पहले किये जाने वाले छ: स्तोत्रों के पश्चात् नवार्ण विधि का पाठ किया जाता है। नवार्ण विधि (Navarna Vidhi) में विनियोग, न्यास और ध्यानम् के लिए मन्त्र शामिल हैं। पढ़ियें सम्पूर्ण नवार्ण विधि…

दुर्गा सप्तशती (चण्डी पाठ) से पहले किये जाने वाले छ: स्तोत्रों का क्रम इस प्रकार से है –

देव्यथर्वशीर्षम् स्तोत्रम् के पश्चात् नवार्ण विधि (Navarna Vidhi) का पाठ किया जाता है।

Navarna Vidhi
नवार्ण विधि

॥ अथ नवार्णविधिः ॥

इस प्रकार रात्रिसूक्त और देव्यथर्वशीर्ष का पाठ करने के पश्‍चात् निम्नांकित रूप से नवार्ण मन्त्र के विनियोग, न्यास और ध्यान आदि करें।

॥ विनियोगः ॥

श्रीगणपतिर्जयति। “ॐ अस्यश्रीनवार्णमन्त्रस्य ब्रह्मविष्णुरुद्रा ऋषयः, गायत्र्युष्णिगनुष्टुभश्छन्दांसि, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवताः, ऐं बीजम्,ह्रीं शक्तिः, क्लीं कीलकम्, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीप्रीत्यर्थे जपे विनियोगः।”

इसे पढ़कर जल गिराये।

और नीचे लिखे न्यास वाक्यों में से एक-एक वाक्य का उच्चारण करके अपने दाहिने हाथ की अँगुलियों से क्रमशः सिर, मुख, हृदय, गुदा, दोनों चरण और नाभि – इन सभी अंगों का स्पर्श करें।

॥ ऋष्यादिन्यासः ॥

ब्रह्मविष्णुरुद्रऋषिभ्योनमः, शिरसि। गायत्र्युष्णिगनुष्टुप्छन्दोभ्यो नमः मुखे।महाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वतीदेवताभ्यो नमः, हृदि। ऐं बीजाय नमः, गुह्ये।ह्रीं शक्तये नमः, पादयोः। क्लीं कीलकाय नमः,नाभौ।

“ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे”- इस मूल मन्त्र के पाठ से दोनो हाथों की शुद्धि करके करन्यास करें।

॥ करन्यासः ॥

करन्यास में हाथ की विभिन्न अँगुलियों, हाथ की हथेलियों और हाथ के पृष्ठभाग में मन्त्रों का न्यास (स्थापन) किया जाता है। इसी प्रकार से अंगन्यास में ह्रदयादि अंगों में मन्त्रों की स्थापना (न्यास) होती है। मन्त्रों को चेतन और मूर्तिमान् मानकर उन-उन अंगों का नाम लेकर उन मन्त्रमय देवताओं का ही स्पर्श और वन्दन किया जाता है। ऐसा करने से पाठ या जप करनेवाला स्वयं मन्त्रमय होकर मन्त्र देवताओं के द्वारा सर्वथा सुरक्षित हो जाता है। उसके बाहर-भीतर की शुद्धि हो जाती है, उसे दिव्य बल की प्राप्ति होती है और उसकी साधना बिना किसी विघ्न के पूर्ण होती और साथ ही परम लाभदायक भी होती है।

ॐ ऐं अङ्गुष्ठाभ्यां नमः। (मंत्र के उच्चारण के साथ अपने दोनो हाथों की तर्जनी अँगुलियों से दोनों अँगूठों का स्पर्श करें।)
ॐ ह्रीं तर्जनीभ्यां नमः। (अपने दोनो हाथों के अँगूठों से दोनों तर्जनी अँगुलियों का स्पर्श करें।)
ॐ क्लीं मध्यमाभ्यां नमः। (अपने दोनो हाथों के अँगूठों से दोनों मध्यमा अँगुलियों का स्पर्श करें।)
ॐ चामुण्डायै अनामिकाभ्यां नमः। (अपने दोनो हाथों के अँगूठों से दोनों अनमिका अँगुलियों का स्पर्श करें।)
ॐ विच्चे कनिष्ठिकाभ्यां नमः। (अपने दोनो हाथों के अँगूठों से दोनों कनिष्ठिका अँगुलियों का स्पर्श करें।)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे करतलकरपृष्ठाभ्यां नमः। (अपने दोनो हाथों की हथेलियों और उनके पृष्ठभागों का परस्पर स्पर्श करें।)

॥ हृदयादिन्यासः ॥

हृदयादिन्यास के अंतर्गत मंत्रों के उच्चारण के साथ दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से हृदय, सिर, नेत्र आदि छ: अंगों का स्पर्श किया जाता है।

ॐ ऐं हृदयाय नमः। (दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से हृदय का स्पर्श करें)
ॐ ह्रीं शिरसे स्वाहा। (दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से सिर का स्पर्श करें)
ॐ क्लीं शिखायै वषट्। (दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से शिखा का स्पर्श करें)
ॐ चामुण्डायै कवचाय हुम्। (दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों से बायें कन्धे का और बायें हाथ की पाँचों अँगुलियों दाहिने कंधे का एकसाथ स्पर्श करें)
ॐ विच्चे नेत्रत्रयाय वौषट्। (दाहिने हाथ की पाँचों अँगुलियों के अग्रभाग से दोनों आँखों और ललाट के मध्य भाग का स्पर्श करें)
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे अस्त्राय फट्। (यह मंत्र पढ़कर दायें हाथ को सिर के ऊपर से बायीं ओर पीछे की ओर ले जाकर दायीं ओर से आगे की ओर ले आये और तर्जनी और मध्यमा अँगुंलियों से बायें हाथ की हथेली पर ताली बजायें)।

॥ अक्षरन्यासः ॥

नीचे लिखें वाक्यों को पढ़कर क्रमशः शिखा आदि का अपने दाहिने हाथ की अँगुलियों से स्पर्श करें।

ॐ ऐं नमः, शिखायाम्।
ॐ ह्रीं नमः, दक्षिणनेत्रे।
ॐ क्लीं नमः, वामनेत्रे।
ॐ चां नमः, दक्षिणकर्णे।
ॐ मुं नमः, वामकर्णे।
ॐ डां नमः, दक्षिणनासापुटे।
ॐ यैं नमः, वामनासापुटे।
ॐ विं नमः, मुखे।
ॐ च्चें नमः, गुह्ये।

इस विधि द्वारा न्यास करके मूलमन्त्र से आठ बार व्यापक (दोनों हाथों के द्वारा सिर से लेकर पैर तक के सभी अंगों का) स्पर्श करें और फिर प्रत्येक दिशा में चुटकी बजाते हुए न्यास करें-

॥ दिङ्न्यासः ॥

ॐ ऐं प्राच्यै नमः।
ॐ ऐं आग्नेय्यै नमः।
ॐ ह्रीं दक्षिणायै नमः।
ॐ ह्रीं नैर्ऋत्यै नमः।
ॐ क्लीं प्रतीच्यै नमः।
ॐ क्लीं वायव्यै नमः।
ॐ चामुण्डायै उदीच्यै नमः।
ॐ चामुण्डायै ऐशान्यै नमः।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैविच्चे ऊर्ध्वायै नमः।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायैविच्चे भूम्यै नमः।

प्रचलित परम्परा के अनुसार यहाँ पर न्यास विधि सन्क्षेप से दी गयी है। यदि आप इसके विषय में और विस्तार से पढ़ना चाहते है तो अन्यत्र से सारस्वतन्यास, मातृकागणन्यास, षड़्देवीन्यास, ब्रह्मादिन्यास, महालक्ष्म्यादिन्यास, बीजमंत्रन्यास, विलोमबीजन्यास, मंत्रव्याप्तिन्यास आदि अन्य प्रकर के विभिन्न न्यास भी कर सकते है।

॥ ध्यानम् ॥

खड्‌गं चक्रगदेषुचापपरिघाञ्छूलं भुशुण्डीं शिरः
शङ्खं संदधतीं करैस्त्रिनयनां सर्वाङ्गभूषावृताम्।
नीलाश्मद्युतिमास्यपाददशकां सेवे महाकालिकां
यामस्तौत्स्वपिते हरौ कमलजो हन्‍तुं मधुं कैटभम्॥1॥

ॐ अक्षस्रक्परशुं गदेषुकुलिशं पद्मं धनुष्कुण्डिकां
दण्डं शक्तिमसिं च चर्म जलजं घण्टां सुराभाजनम्।
शूलं पाशसुदर्शने च दधतीं हस्तैः प्रसन्नाननां
सेवे सैरिभमर्दिनीमिह महालक्ष्मीं सरोजस्थिताम्॥2॥

ॐ घण्टाशूलहलानि शङ्‌खमुसले चक्रं धनुः सायकं
हस्ताब्जैर्दधतीं घनान्तविलसच्छीतांशुतुल्यप्रभाम्।
गौरीदेहसमुद्भवां त्रिजगतामाधारभूतां महा-
पूर्वामत्र सरस्वतीमनुभजे शुम्भादिदैत्यार्दिनीम्॥3॥

तत्पश्चात् “ऐं ह्रीं अक्षमालिकायै नमः” इस मन्त्र से माला की पूजा करके प्रार्थना करें –

ॐ मां माले महामाये सर्वशक्तिस्वरूपिणि।
चतुर्वर्गस्त्वयि न्यस्तस्तस्मान्मे सिद्धिदा भव॥
ॐ अविघ्नं कुरु माले त्वं गृह्णामि दक्षिणे करे।
जपकाले च सिद्ध्यर्थं प्रसीद मम सिद्धये॥

ॐ अक्षमालाधिपतये सुसिद्धिंदेहि देहि सर्वमन्त्रार्थसाधिनि साधय साधय सर्वसिद्धिं परिकल्पयपरिकल्पय मे स्वाहा।

फिर “ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चे” इस मन्त्र का 108 बार जप करें और –

गुह्यातिगुह्यगोप्त्री त्वं गृहाणास्मत्कृतं जपम्।
सिद्धिर्भवतु मे देवि त्वत्प्रसादान्महेश्‍वरि॥

इस श्‍लोक को पढ़कर देवी के वाम हस्त में जप निवेदन करें।

नोट : नवार्ण विधि (Navarna Vidhi) के पाठ के बाद सप्तशतीन्यास: किया जाता है।