Kajari Teej Vrat Katha: कजरी तीज (सातुड़ी तीज) व्रत कथा ‌- प्रथम

kajari teej vrat katha

कजरी तीज (Kajari Teej) के व्रत से करें माँ को प्रसन्न और पायें सुख-समृद्धि। इस व्रत की तीन कथायें प्रचलित है। पढ़ियेंं कजरी तीज (सातुड़ी तीज) व्रत कथा – प्रथम (Kajari Teej Vrat Katha)

कजरी तीज (Kajari Teej) कब हैं?, कजरी तीज (Kajari Teej) का महत्व क्या हैंं?, कजरी तीज / सातुड़ी तीज पर मनायी जाने वाली परंपराये कौन सी हैं?, कजरी तीज व्रत की विधि क्या हैं? और कजरी तीज के व्रत के नियम क्या हैं? यह जानने के लिये यहाँ क्लिक करेंं। Click here for information about Kajari Teej…

Kajari Teej (Kajali Teej / Satudi Teej) Vrat Katha – First
कजरी तीज (कजली तीज/ सातुड़ी तीज ) व्रत कथा ‌- प्रथम

प्राचीन समय की बात है एक नगर था, उसमें एक दरिद्र ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहा करता था। उसकी पत्नी बहुत धर्म-परायण और पतिव्रता थी। उस ब्राह्मण की पत्नी कजरी तीज का व्रत किया करती थी। एक बार कजरी तीज (Kajari Teej) का दिन था और उस ब्राह्मण की पत्नी का कजरी तीज का व्रत था। उसने अपने पति से कहा कि आज मेरा कजरी तीज का व्रत है, इस व्रत के पालन के लिये आप चने का सत्तू ले आइये। ब्राह्मण के पास सत्तू खरीदने के लिये पैसे नही थे, इसीलिये वो चिंतित होकर इधर-उधर घूमने लगा।

फिर वो एक दुकान पर गया और वहाँ पर उसने चने, घी और शक्कर से बना सवा किलो सत्तू देने को कहा। दुकान के नौकर ने सत्तू बनाकर उसे दे दिया। सत्तू लेकर ब्राह्मण अपने घर के लिये चल दिया।

तब दुकान के नौकर ने उसे रोककर उस सत्तू के पैसे देने को कहा। तब उस ब्राह्मण ने उसे कहा कि मेरे पास अभी पैसे नही है, मैं तुमको बाद में आकर दे दूंगा। परन्तु नौकर नही माना और उसने आवाज लगाकर अपने साथी नौकरों और दुकान के मालिक को बुला लिया।

सब नौकर उस ब्राह्मण को पकड़ कर अपने मालिक के पास ले गये। तब उस दुकान के मालिका ने उस ब्राह्मण से उसका पक्ष जानना चाहा। तब उस ब्राह्मण ने उस दुकान के मालिक को सारी बात बताई कि आज मेरी पत्नी का कजरी तीज का व्रत है और उस व्रत का पालन करने के लिये उसे सवा किलो चने का सत्तू चाहिये, पर मेरे पास सत्तू खरीदने के लिये पैसे नही हैं। इसीलिये मैंने आपके नौकर को सत्तू के पैसे बाद में देने का वचन दिया, परन्तु वो नही माना। मेरी पत्नी मेरा घर पर इंतजार कर रही हैं, जब में सत्तू लेकर जाऊँगा तब वो कजरी तीज का पूजन करेगी।

उसकी बात सुनकर उस दुकान के मालिक को उस पर दया आ गयी। तब उस सेठ ने उस ब्राह्मण की सहायता का वचन दिया और उसकी पत्नी को अपनी बहन मान लिया। फिर उसने उस ब्राह्मण को बहुत सा धन और पूजन का सामान देकर उसे उसके घर भेज दिया। जब ब्राह्मण इतना सारा धन और सब सामान लेकर अपने घर पहुँचा तो उसकी पत्नी बहुत खुश हुई। और उस सामान से उसने धूम-धाम से अपना व्रत पूर्ण किया।