महाद्वादशी (Maha Dwadashi) का व्रत एकादशी व्रत (Ekadashi Vrat) से भी हजारों गुणा अधिक पुण्य फल प्रदान करता है। जानियें कब और कैसे करें महाद्वादशी का व्रत ? साथ ही जानियें इसका महत्व…
Maha Dwadashi
महा द्वादशी
महाद्वादशी (Maha Dwadashi) व्रत का फल सैकड़ों एकादशियों से भी अधिक होता है। विभिन्न नक्षत्र और तिथि सन्योगों से आठ महाद्वादशी होती है। इस दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा किये जाने का विधान है। इस का व्रत करने से मनुष्य को 1000 राजसूय यज्ञ के समान पुण्य की प्राप्ति होती है।
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When is Maha Dwadashi?
कब है महाद्वादशी?
इस वर्ष होने वाले महाद्वादशी (Maha Dwadashi) व्रत की तारीख इस प्रकार है –
पक्षवर्धिनी महाद्वादशी (Paksha Vardhini Maha Dwadashi) का व्रत एवं पूजन 30 अगस्त, 2024 शुक्रवार के दिन किया जायेगा।
विजया महाद्वादशी (Vijaya Maha Dwadashi) का व्रत एवं पूजन 15 सितम्बर, 2024 रविवार के दिन किया जायेगा।
त्रिस्पर्शा महाद्वादशी (Trisparsha Maha Dwadashi) का व्रत एवं पूजन 14 अक्टूबर, 2024 सोमवार के दिन किया जायेगा।
Which Dwadasi Is Called Mahadwadashi?
किस द्वादशी को महाद्वादशी कहते हैं?
जैसे कि सब जानते है कि हिन्दू पंचांग में हर माह में दो एकादशियाँ आती हैं। एक कृष्णपक्ष की एकादशी और दूसरी शुक्लपक्ष की एकादशी। एकादशी व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है। एकादशी व्रत में भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। एकादशी व्रत का पालन करने वाले सभी भक्त माह की दोनों एकादशियों का व्रत करते है। एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते है और साधक को मनोवान्छित फल प्रदान करते है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार साधक को एकादशी व्रत के साथ आठ महाद्वादशियों के व्रत का भी पालन करना चाहिए। यह महाद्वादशी 4 तिथि योग और 4 नक्षत्र योग के अनुसार घटित होती हैं। इन महाद्वादशियों के व्रत और पूजन का माहात्म्य बहुत अधिक होता है। इन महाद्वादशियां के व्रत का पालन करने वाले साधक को सभी प्रकार के दुखों, पापों और परेशानियों से मुक्ति मिल जाती है। उसे जीवन के सभी सुखों की प्राप्ति होती है। बहुत से गौड़ीय वैष्णव भक्त तो एकादशियों के व्रत के बजाए आठ महाद्वादशी व्रतों का ही पालन करते हैं। यह आठ महाद्वादशियां इस प्रकार है:
धर्म शास्त्रों के अनुसार ऐसी आठ विशेष स्थितियाँ होती हैं जिनके कारण द्वादशी तिथि महा-द्वादशी बन जाती है।
- उन्मीलनी महाद्वादशी (Unmilini Maha Dwadashi) : यदि द्वादशी तिथि के दिन प्रातःकाल सूर्योदय तक एकादशी रहती है, तो इसे उन्मिलिनी महाद्वादशी कहते है।
- त्रिस्पर्शा महाद्वादशी (Trisparsha Maha Dwadashi) : यदि द्वादशी तिथि सूर्योदय के बाद आरम्भ होती है और अगले दिन अर्थात त्रयोदशी तिथि के दिन सूर्योदय से पूर्व ही समाप्त हो जाती है, तो इसे त्रि-स्पृसा-महाद्वादशी कहते है।
- व्यंजुली महाद्वादशी (Vyanjuli Maha Dwadashi) : यदि द्वादशी तिथि लगातार दो दिन सूर्योदय के समय तक रहती है या अन्य शब्दों में कहे तो यदि सूर्योदय से 90 मिनट पूर्व तक एकादशी तिथि हो और सूर्योदय द्वादशी तिथि में हो और इसके साथ अगले दिन (त्रयोदशी तिथि) प्रात:काल सूर्योदय के बाद तक द्वादशी तिथि हो तो उसे व्यंजुली महाद्वादशी कहते हैं। इसमें पहली द्वादशी के दिन वंजुलि महाद्वादशी का व्रत एवं पूजन किया जाता है।
- पक्षवर्धिनी महाद्वादशी (Paksha Vardhini Maha Dwadashi) : जिस द्वादशी तिथि के बाद अमावस्या या पूर्णिमा तिथि दो दिन सूर्योदय तक रहती है अर्थात उनकी वृद्धि होती है तो उस द्वादशी को पक्ष-वर्धिनी-महाद्वादशी कहा जाता है।
- जया महाद्वादशी (Jaya Maha Dwadashi) : यदि पुनर्वसु नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है तो उस द्वादशी को जया महाद्वादशी के नाम से पुकारा जाता है।
- विजया महाद्वादशी (Vijaya Maha Dwadashi) : यदि श्रवण नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है, तो उस द्वादशी को विजया महाद्वादशी कहते है। श्रवण नक्षत्र भगवान विष्णु के द्वारा शासित नक्षत्र है।
- जयंती महाद्वादशी (Jayanti Maha Dwadashi) : यदि रोहिणी नक्षत्र शुक्लपक्ष की द्वादशी के दिन होता है, तो उस द्वादशी को जयंती महाद्वादशी कहते हैं।
- पापनाशिनी महाद्वादशी (Papa Nashini Maha Dwadashi) : यदि पुष्य नक्षत्र शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि के दिन होता है, तो उसे पापनासिनी महाद्वादशी कहते हैं।
Significance Of Maha Dwadashi
महाद्वादशी का महत्व
वंजुली महाद्वादशी (Vanjuli Maha Dwadashi) के महत्व का वर्णन हरि भक्ति विलास के ग्यारहवें अध्याय में मिलता है। उसके अनुसार यह दिन ईश्वर भक्तों के लिये बहुत खास है। इस साधक अपने भक्तियुक्त कार्यो से भगवान को बहुत ही आसानी से प्रसन्न कर सकता है। यह दिन भगवान श्री कृष्ण की साधना करने से साधक को श्रीकृष्ण का आशीर्वाद और प्रसन्नता प्राप्त होती है। वंजुली द्वादशी के दिन को हरि वासर अर्थात हरि का दिन कहा गया है।
व्यंजुली महाद्वादशी व्रत (Vyanjuli Maha Dwadashi Vrat) का पालन करने से साधक को 1,000 राजसूय यज्ञ करने से भी अधिक पुण्य प्राप्त होता है। शास्त्रों में यहाँ तक कहा गया है कि सिर्फ ‘व्यंजुली महद्वादशी’ का मात्र नाम लेने से ही साधक की 1000 पाप योनियों का नाश हो जाता है। इस व्रत और पूजन करने से शास्त्रों में निषिद्ध भोजन खाने का पाप भी नष्ट हो जाता है। इस दिन उत्तर प्रदेश के वृन्दावन मे स्थित श्री राधा मनोहर मंदिर के अतिरिक्त सभी कृष्ण मंदिरों और इस्कॉन मंदिरों में व्यंजुली महाद्वादशी (Vyanjuli Maha Dwadashi) बहुत ही भव्यता से मनाई जाती है।
Maha Dwadashi Puja Vidhi
महाद्वादशी पूजा विधि
महाद्वादशी (Maha Dwadashi) के दिन भगवान श्री कृष्ण की पूजा किये जाने का विधान है। भगवान श्री कृष्ण को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। महाद्वादशी का व्रत एवं पूजन एकादशी व्रत और पूजन के जैसा ही होता है। इसमें त्रयोदशी के दिन पारणा किया जाता है। महाद्वादशी व्रत के नियम भी एकादशी व्रत के समान ही होते है।
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