श्री महाकाल भैरव स्तोत्रम के पाठ से हर विपत्ती दूर होगी

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श्री महाकाल भैरव स्तोत्रम् (Sri Maha Kala Bhairava Stotram) बहुत ही प्रभावशाली स्तोत्र है। इसके वाचन से हमारे शरीर के चक्र जागृत होते है और अप्रत्याशित लाभ होते है। हर रविवार के दिन श्री महाकाल भैरव स्तोत्रम् का पाठ करें।

Significance Of Sri Maha Kala Bhairava Stotram
श्री महाकाल भैरव स्तोत्रम का महत्व

धर्मशास्त्रों के अनुसार श्री महाकाल भैरव स्तोत्र एक बहुत ही दुर्लभ और प्रभावशाली स्तोत्र है। इस स्तोत्र का पाठ शरीर में उपस्थित सात चक्रों को जागृत करता है। यह सात चक्र है – मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मणिपुर, अनाहत, विशुद्ध, आज्ञा और सहस्त्रार। इसके अतिरिक्त इस स्तोत्र का प्रभाव अकथनीय है। इसके पाठ से

  • साधक की हर विपत्ति दूर होती है।
  • जीवन में अप्रत्याशित लाभ होते है और अकल्पनीय सफलता प्राप्त होती है।
  • साधक को वो खुशियाँ प्राप्त होती है जिसकी उसने कल्पना भी नही की होती है।
  • सुख-शांति – समृद्धि की प्राप्त होती है।
  • आयु – यश और बल में वृद्धि होती है।
  • रोगों का नाश होता है।

Sri Maha Kala Bhairava Stotram Lyrics
श्री महा काल भैरव स्तोत्रम

ॐ महाकाल भैरवाय नम:

जलद् पटलनीलं दीप्यमानोग्रकेशं,
त्रिशिख डमरूहस्तं चन्द्रलेखावतंसं!

विमल वृष निरुढं चित्रशार्दूळवास:,
विजयमनिशमीडे विक्रमोद्दण्डचण्डम्!!

सबल बल विघातं क्षेपाळैक पालम्,
बिकट कटि कराळं ह्यट्टहासं विशाळम्!

करगतकरबाळं नागयज्ञोपवीतं,
भज जन शिवरूपं भैरवं भूतनाथम्!!

भैरव स्तोत्र

यं यं यं यक्ष रूपं दशदिशिवदनं भूमिकम्पायमानं।
सं सं सं संहारमूर्ती शुभ मुकुट जटाशेखरम् चन्द्रबिम्बम्।।
दं दं दं दीर्घकायं विकृतनख मुखं चौर्ध्वरोयं करालं।
पं पं पं पापनाशं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।1।।

रं रं रं रक्तवर्ण कटक कटितनुं तीक्ष्णदंष्ट्राविशालम्।
घं घं घं घोर घोष घ घ घ घ घर्घरा घोर नादम्।।
कं कं कं काल रूपं घगघग घगितं ज्वालितं कामदेहं।
दं दं दं दिव्यदेहं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।2।।

लं लं लं लम्बदंतं ल ल ल ल लुलितं दीर्घ जिह्वकरालं।
धूं धूं धूं धूम्र वर्ण स्फुट विकृत मुखं मासुरं भीमरूपम्।।
रूं रूं रूं रुण्डमालं रूधिरमय मुखं ताम्रनेत्रं विशालम्।
नं नं नं नग्नरूपं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।3।।

वं वं वं वायुवेगम प्रलय परिमितं ब्रह्मरूपं स्वरूपम्।
खं खं खं खड्ग हस्तं त्रिभुवननिलयं भास्करम् भीमरूपम्।।
चं चं चं चालयन्तं चलचल चलितं चालितं भूत चक्रम्।
मं मं मं मायाकायं प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।4।।

खं खं खं खड्गभेदं विषममृतमयं काल कालांधकारम्।
क्षि क्षि क्षि क्षिप्रवेग दहदह दहन नेत्र संदिप्यमानम्।।
हूं हूं हूं हूंकार शब्दं प्रकटित गहनगर्जित भूमिकम्पं।
बं बं बं बाललील प्रणमत सततं भैरवं क्षेत्रपालम्।।5।।

ॐ तीक्ष्णदंष्ट्र महाकाय कल्पांत दहन प्रभो!
भैरवाय नमस्तुभ्यं अनुज्ञां दातु महर्षि!!

॥ इति श्री महा काल भैरव स्तोत्रम् ॥